25 सित॰ 2011

बालिका दिवस... कहानी.

फरीदाबाद से वापिस आते आते आनंद का स्कूटर कुछ तंग करने लगा और मोबाइल भी काफी देर से चिल्ला रह था, संकेत स्पष्ट थे, कुछ देर के लिए रुका जाए... बदरपुरफ्लाई ओवर के समानांतर नीचे चलती रोड पर, कुछ समय विश्राम के लिए ठीक लगी, कि इच्छुक वार्ताकारों से कुछ देर गुफ्तगू भी की जाय.

    बातें करते-करते आनंद की निगाह आसपास के माहौल पर पड़ी तो नियत उसकी भी थोडी ही सही, पर बेरहम हो गयी. सुनहले अक्षरों में लिखा इंग्लिश वाइनशॉप.... और साथ ही ठेका देसी दारू. मानो दो भाई... एक तो सत्ता की सीढ़ी पकड़ कर अमीर हो गया चमक-दमक वाला और दूसरा वही पुरानी लकीर का फकीर. वाइनशॉप के साथ ‘आहाता’ हरियाणा सरकार द्वारा अनुमोदित, वो रेस्टोरेंट जहाँ बैठ कर आप विस्की पी सकते हैं, और देसी ठेके के सामने ही दरियादिरी दिखता व्यक्ति, हर कस्टमर को एक प्लास्टिक का ग्लास, और एक पानी पाउच फ्री में दे रहा है. आसपास, पापड़, चने मुरमुरे, सिगरेट, अंडे फ्राई, छोटी-छोटी फिश फ्राई, मूंगफली, पानीवाला, गोलगप्पे...... बिलकुल मेले जैसे.
    पता नहीं क्यों आनंद को वो कुछ आमंत्रित करती सी लगी, मानो रंगमंच सज्जा हुआ हो, – चलने को तो आनंद नाक पर हाथ रख आगे भी चल सकता था, पर कुछ खोजी ‘कीटाणु’ उसके भी दिमाग में मचल कर रहे थे. अत: छोड़ा न गया, और स्कूटर को एक किनारे ‘पार्क’ कर टहलने लगा.
    उसने सामान इंग्लिश शाप से खरीदा और मुफ्त पानी और गिलास देसी दूकान से लेकर, बगल के उस खाली प्लाट की तरफ गया, जहां बाकी ‘लोग’ (शराबी कह कर नायक की तोहीन नहीं की जा सकती न) भी जा रहे थे, टूटे हुए बहुत बड़े गेट के पार एक अलग तरह की दुनिया थी, जैसे उसने किस्से कहानियों में पढ़ी थी, ठीक कहवाघरों जैसे. पर यहाँ हर आँखें कुछ अजीब थी, मानो दिन भर खटने के बाद, शाम को शरीर की टूटन निकालने या फिर दिन भर की टूटन को कुछ आराम देने वाले इंसानों की एक अलग ही तरह की दुनिया थी, – आनंद के लिए एक नया अनुभव था, पत्रकारिता में आने के बाद हालाँकि उसे इस तरह की आदत पड़ गयी थी, पर ऐसी जगह वो शायद पहली बार आया था, सीलन, बीडी के धुंवे के साथ पसीने और आसपास ही कई जगह लोगो द्वारा मूतने से, जगह बहुत बदबूदार हो गयी थी. आनंद नाक पर हाथ रखना चाह ही रहा था, पर उसने ऐसा करने के स्वयम को रोक दिया, ताकि लोग उसे नोटिस में न लें.
    दिवार के साथ एक व्यक्ति के खड़े होने लायक खाली जगह सी दिखी ... आनंद वहीं ‘एडजस्ट’ हो गया, और थोडी ही देर में एक २२-२४ साल का युवा, चेहरे से ही उत्तरांचल के किसी पहाड का लगता था.... उसने तुरंत अपना देसी का पौव्वा निकाल कर गिलास में डाला ... और नाममात्र का पानी उसमे मिला कर एक ही सांस गटक कर एक अजीब सी स्टाइल में मुंह बनाया... आनंद को दिलचस्प लगा, और उसने जो बाहर से काले उबले चने की पांच रुपे की चाट बनवाई थी, वो उसे खाने के ऑफर की. कहते हैं शराबियों को दोस्ती करने के लिए ज्यादा हाय फाय नहीं करना पड़ता, उसने थोडी से चने मुंह में डाले और बाकी संभाल कर उस टूटी हुई दिवार पर रख दिए जहाँ... खाली गिलास और पानी के पाउच बेतरतीब से बिखरे पड़े थे.
    क्या करते हो दो घूँट भरते ही आनंद ने आदत मुताबिक उस से युवा से पूछा. भाई जी, ‘विश्वकर्मा इन्जिनीर्स’ में काम करता हूँ, पहले मैं भी इंग्लिश लेता था, पर आजकल कमाई कम है तो देसी में ही गुजरा करना पड़ता है”  “इसमें कोई बुरा नहीं, इंसान को अपनी चादर से पैर बाहर नहीं फैलाना चाहिए आनंद अपना बडप्पन झाड़ने की गुरेज से बोला.
    भाईजी, ८५०० रुपये महीना पगार है, पर ओवर टाइम बंद है.... मंदी का असर है, नहीं तो ओवर टाईम लगा कर ११-१२००० महीना तक उठा लेता था
    आज देश के महान अर्थशास्त्री कह रहे हैं, कि ३२ रुपये कमाने वाला गरीब नहीं है. लेकिन देखा जाए तो तुम्हारी ३०० रुपये दिहाडी तो आज मंदी में भी है... तो तुम तो बिलकुल ही गरीब नहीं हो, छोडो ये बताओ नाम क्या है तुम्हारा
    भाईजी, गजिंदर सिंह
    गजिंदर, भाई क्या शादीशुदा हो”  “जी, एक बच्ची है, अभी २ महीने की है
    और यहाँ किराए पर रहते हो
    नहीं भाई जी, अपना मकान है माँ-बाप और २ भाई और मेरे अलावा भी हैं – सभी अपना कमाते हैं, अपना खाते हैं. कोई दिक्कत नहीं
    बढिया है, भाई, बहुत बढिया अब आनंद को अपनी स्थिति – गजिंदर सिंह से कुछ कमज़ोर लगने लगी. हाल फिलहाल जिस मासिक मगज़िन में वो बतौर संपादक नौकरी कर रहा था, वहाँ उसे १५,००० रुपये मिलते थे, वो भी कई किस्तों में. जिसमे से क्वातर का किराया, स्कूटर का पेट्रोल और अपनी शौंक को निकलने के बाद उसके पास कुछ नहीं बचता था... इसलिए ३५ साल का होने के बावजूद अभी तक वह शादी करने का ‘साहस’ नहीं जुटा पाया था.
    भैयाजी, आपके बच्चे तो बड़े होंगे, स्कूल जाते होंगे
    "हाँ", आनंद ने कुछ बेरुखी से जवाब दिया.. और बाकि का अपना क्वाटर उस गजिंदर सिंह के इस्टाइल में गले में उड़ेल गया.
    भैयाजी, आप उम्र में बड़े हैं, एक बात पूछे, बुरा नहीं माने तो
    हाँ, हाँ, पूछो
    बच्चा होने के बाद, बीवी के पास कितने दिन में जाते हैं गजिंदर कुछ झेंपते हुए बोला.
पता नहीं, क्या हुआ आनद को जोर से हंसी आई, ना ही उसने रोकी और जोर जोर से हँसने लगा...
हालाँकि दोनों दारू पी चुके थे, एक का देशी ब्रांड था – माल्टा वाला, और दूसरे का इंग्लिश.... और पीने के बाद बेत्क्लुफ़ भी हो चुके थे... गजिंदर आनंद का हाथ पकड़ कर उस जगह से बाहर ले आया.
    भैया जी, सिगरेट पीते हैं, लायूं क्या...
    लो मेरे पास है, आनद ने छोटी नेवीकट का पैकेट जेब से निकाल कर उसे दिया.
    अब बता क्या पूछ रहा था, सिगरेट के कश लगता हुआ आनंद ने उसे उसकाया..
    भाई जी, मैं पूछ रहा था बच्चा पैदा होने के बाद औरत से सेक्स कब किया जाता है
    जाहिर सी बात है, देसी मलटा सर चुकी थी, और जो थोडी शर्म उनके बीच थी वो खत्म हो गयी थी.
    गजिंदर ऐसा कोई रूल्स तो नहीं है पर हमारे यहाँ चालीस दिन के बाद औरत के साथ सेक्स कर सकते हैं
    भाईजी, मेरी बिटिया तो २ महीने की हो गयी, अभी तक औरत के पास नहीं गया...
    फिर
    फिर क्या, यहीं आस पास ही ‘जुगाड’ करना पड़ता है...
    अच्छा तुम तो बड़े छुपे रुस्तम हो.... कहाँ जुगाड करते हो..
आपको करना है अभी चलो, मैं आपका भी जुगाड करवाता हूँ.
क्या, अभी आनंद की ऑंखें विस्मय से फटती चली गयी.
हाँ, भाई जी, चलो मेरे साथ... अभी. मेरा भी ध्यान रखना
चल....
    बड़ी तेज़ी से गजिंदर आनंद को फ्लाईओवर नीचे ले गया, जहाँ फरीदाबाद जाने के लिए ऑटो रिक्शा लाईन में लगे थे.... और जाने कहाँ, एक आंटी टाइप लेडी – ४५-५० की उम्र दरबयान, जाने कहाँ से प्रकट हुई और हंस कर गजिंदर से हाथ मिलाने लगी..
ये बड़े भैया है....... इनको लड़की दिखाओ
    उसने हँसते हुए आनंद से हाथ मिलाया और एक पटरी के दूसरी तरफ इशारा सा किया...
    औचक रह गया आनंद, देखा वहाँ से कूदती फांदती एक लड़की बमुश्किल १४-१५ साल की घुटा हुआ शरीर, एक बार तो देखने से मात्र १०-११ साल की लगती होगी. मानो अभी रस्सी कूद कर आ रही हो... और आनंद के सामने  आ कर खड़ी हो गयी...
    आनंद को तो जैसे सांप सूंघ गया हो... हेरान परेशान हो गया.... मुंह से कोई बोल न निकला..
चलो सर, ऑटो में बैठो... उस ओरत में आनंद का हाथ पकड़ कर औटो की तरफ इशारा करते हुए बोली.
नहीं,
क्या हुआ, लड़की पसंद नहीं आयी...
नहीं, ये नहीं...
क्यों, ये लड़की नहीं है क्या..
भाई जी, चलो बढिया है.... गजिंदर भी आनंद हाथ पकड़ते हुए बोला...
    नहीं..., और कुछ मुंह से नहीं फूटा, पर तेज़ी से वहाँ से निकला...
पीछे पीछे ... गजिंदर उस ओरत के साथ, कोई प्रोबलम है तो दूसरी और भी है सर... आप चलिए तो सही.
पैसा भी रिजनेबल है... और भी माल है कमरे में चलो तो सही...
.........
    आनंद का नशा हिरन हो चूका था.... जैसे तैसे वहाँ से भाग अपने कमरे पर पहुंचा ... और घर में रखी हुई विस्की में से १ लार्ज पेग बना कर हलक में उडेला... बिना खाना खाए और बिना कपडे बदले वो बिस्तर पर पड़ गया..
खून भरी फ्राक उसे सपने में दिखी, और वह उचक कर उठ बैठा..
    फिर से सोने की कोशिश करता... फिर सपने में उसे खून भरी मैली कुचेली फ्राक दिखती, और फिर वो उठ बैठता..... सारी रात उसने करवटों में बदल दी... सुबह ४ बजे उसने अपने लेप्पी आन किया और बालिका दिवस पर इस महीने की लीड स्टोरी लिखने बैठ गया...

18 टिप्‍पणियां:

  1. दिल्ली और फरीदाबाद को दिल्ली-गुडगाँव तर्ज़ पर एक लंबे फलाईओवर द्वारा जोड़ दिया है. खूब लंबे फलाईओवर पर हवाओं से बातें करती गाडियां और फलाई ओवर के नीचे रिक्शे औटो, और दुपहिये और अन्य सवारी वाहन जैसे सब नोर्मलहो. उपर सफ़ेद आलीशान और नीचे वही गट्टर माफिक बदबूदार गंदगी और उसी में पलते कीड़े माफिक इंसान ,...

    दीपक, तुम घृणा योग्य हो.

    जी, एक मित्र का कमेंट्स था, मेरी कहानी को सुनकर.. संस्कार युक्त सभ्रांत घरों के युवक यही बोलेंगे.

    गर कहानी सत्य घटना पर आधारित हो तो ... क्या करेंगे आप. नाक पर रुमाल रख कर निकल लेंगे यहाँ... या फिर आनंद जैसे संपादक की तरह एक लीड स्टोरी लिखने बैठ जायेंगे.

    हालत ऐसे हो गए हैं, कि दूसरा मित्र कह रहा है ऐसा तो होता ही है - ये समाज है, अगर ये लड़कियां ऐसा काम नहीं करेंगी तो खाएंगी क्या... तुम तरस खा कर एक-२ दिन रोटी दे सकते हो.. ५-५ बच्चे पैदा कर के जो गन्दगी समाज में फैलाई जा रही है... ये सभी दुर्गन्ध उसी की देन है.

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  2. देश के अर्थशास्त्र और उत्थान के बुलन्द इरादों के बीच बालिका की दयनीय दशा।

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  3. अंत बेहद कष्टदायक रहा बाबा !
    मगर समाज के नंगपन को उजागर करती यह कहानी समाज का आइना है !
    पुरातन समय से कलंक है मानव हवस.....शायद ही कोई निदान हो ...

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  4. घृणा योग्य हो क्योंकि औरों की तरह ऊपरी चमक दमक देखकर ’ऑल इज़ वैल’ का मुगालता नहीं पालते।
    लेकिन जो भी है, हमें पसंद हो।

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  5. yeh aaj ka bharat hai aur uske uper india hai...

    32 rupia kamane wala gareeb nahi hai lakin 320000000,hazar lakh karor ghotale wale aaj bhee gareeb hai...

    LEKHAK JO KI EK PATRAKAR HAI USNE SAMAJ KE ANDER GHUS KAR SAMAJ MAIN AAJ KAL KIYA CHAL RAHA HAI WAHI LIKHA HAI...NAMKEEN KHANE KE BAAD NAMKEEN KA PATA CHALTA HAI..AUR MEETHA KHANE KE BAAD HI MEETHE KA PATA CHALTA HAI...DEEPAK KA KAAM JALNA HAI DEEPAK KHUD JAL KAR DUNIYA KO ROSANI DIKHATA HAI......
    JAI BABA BANARAS.....

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  6. ओह ... अत्यंत मार्मिक स्थिति ... खाली लीड स्टोरी लिखी कुछ सुधारात्मक काम नहीं किया कहानी के नायक ने ..

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  7. लीड स्टोरी ही लिख सकता था वह।
    अगर कुछ चतुराई करता तो आँटी के गुर्गे उसे ठिकाने लगा देते।

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  8. कहानी को अच्छी कैसे कहें,पर सचाई इससे भी वीभत्स है !

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  9. कल 27/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. आचार्य, (गिरिजेश राव जी)की टीप मेल द्वारा प्राप्त हुई ...


    दिल के आर पार नस्तर चुभा दिये बाबा।
    इतना घनघोर यथार्थ देखोगे/लिखोगे तो कुछ दिनों में नींद आनी भी बन्द हो जायेगी। अपने पर रहम करो क्यों कि एक लिमिट के बाद लिक्विड भी साथ नहीं देता।

    राम राम

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  11. दीपक जी ……………बहुत ही वीभत्स हालात का चित्रण किया है और आज बालिकाओ की क्या दशा है उस पर भी गहरे चिन्तन की जरूरत है ये हमे ही समझना होगा। इतना बडा सच हजम नही होता ना मगर सच कब किसे हजम हुआ है।

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  12. मै भी ...............आचार्य, (गिरिजेश राव जी)....की टिपण्णी से सहमत हूँ ............हम लोगो का समाज ...अगल अगल भाग में बंटा हुआ है ....और कोई भी इंसान अपने दायरे से निकाल कर किसी भी जगह फिट नहीं हो सकता ........दीपक जी ...आप अपने दायरे को नहीं लांघ सकते ......और इतना दर्द लेकर इस जीवन में जीना दुश्वार हो जायेगा ...बात २...४ दिन की हो तो ..कोई भी कुछ भी कर गुज़रेगा ...पर ता उम्र ....कोई कुछ नहीं कर सकता .......आभार

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  13. मुझे लगा में यहीं फ्लाईओवर के पास खड़ा हूँ, और दो बंदे रोड क्रोस करके इधर पहुँचे हैं.

    बाबा सटीक लिख दिया आपने.

    यह आज का सच है, जिसे हम जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं. इस विधा में आपकी और पोस्ट्स देखने कि इच्छा है.

    मनोज

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  14. अत्यंत मार्मिक हृदयस्पर्शी!!..

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.