सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत् ।
अर्थात सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी को शुभ दर्शन हों और कोई दु:ख से ग्रसित न हो ।
कितना सुंदर और सारगर्भित ये मंत्र है जिसमे विशव के सभी मानव जाति के कल्याण की बात की गए है। होली के बाद ही मौसम में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है । जब प्रकृति अपनी सम्पूर्ण छटा बिखेर कर अपने योअवन पर आ कर मुस्कराती है तो भारत देश में मानव तो क्या प्रतेयेक प्राणी के मन में नयी उमंग आ जाती hai।
नयी फसल खेतों से निकलकर - किसान जब नगदी घर लाता है - और घर में एक त्यौहार का एहसास होता है बच्चों के लिए नए कपडे, घर के लिए कुछ नया, और पैसा बचा तो घर की मालकिन के लिए नया कपड़े जेवर इत्यादि । कुल मिला कर किसान जो भारत वर्ष की ७० प्रतिशत जनता का प्रतिनिध्तावा करता है खुश होता है और मन उमंगों से भरा रहेता है। प्रकृति के ताल से अपना ताल मिलते हुवे अपनी खुशी में और इजाफा करता है।
वसंत ऋतू में प्रकृति अपने सम्पूर्ण यौवन पर मानव के चित्त को मस्त करती है। आम के वृक्षों में फूल सुगंध बिखेरते हैं। जगह जगह लगे पेड़ भी नव पत्तों के साथ नए कपड़े पहेने सरीखे लगते हैं।
विक्रमी संवत का इतिहास :
ब्रम्हा जी ने आज ही के दिन सृष्टि का निर्माण शुरू किया था.
भगवान् श्री रामचंद्र जी का राज्यअभिषेक इसी दिन हुआ था.
आज ही के दिन स्वामी दयानंद जी नें आर्यसमाज की नींव रखी थी.
माना जाता है कि विक्रम संवत गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उज्ज्यनी में शकों को पराजित करने की याद में शुरू किया था।
एक बात और, दीपक बाबा ने भी इसी दिन संवत २०६२ में नरेना मैं एक 6 गुना 6 फ़ुट कोठरी में मिस्टिकल ग्राफिक्स नामित कंपनी की शुरुवात की थी. अत इस दिन का महत्व और भी बाद जाता है. अच्छी तरह याद है की पंडित राम कुमार पाण्डेय जी (छोटू पंडित) नें कोठरी के बाहर हवन किया था और जी भर कर आशीर्वाद दिया था.
दोस्तों हमारा हिंदू धर्म कह लो या जीवन पद्धति - हमें प्रकृति के साथ जीने की विद्धा सिखाती है। और हमारे पूर्वज प्रकृति के लए के साथ ताल मिलते हुवे जीते थे और खुश रहते थे। आज अपने बारे में सोचे? अंग्लो नव वर्ष Happy New Year पर क्या करते है? क्या प्रक्रति हमारा साथ देती है. हम बस और लोगों की देखा देखि ये अंग्लो नव वर्ष मानते है.