22 जुल॰ 2012

मजदूर, चाँद और रोटियां

चाँद और रोटी की बात पता नहीं कब किस शायर/कवि ने सबसे पहले कही होगी... कहा नहीं जा सकता. रोटी को देख कर चाँद के प्रति जी ललचाया होगा या फिर चाँद को देख कर रोटी की याद आयी होगी. मेरे ख्याल से चाँद को देख कर रोटी को याद किया गया होगा... क्योंकि आज माध्यम वर्ग में न तो चाँद चाहिए और न ही रोटी. अब वो बचपन नहीं रहा जो चंदा को मामा कहता था और स्कूल से घर आते ही एक रोटी ढूँढता था... जी, उन दिनों भूख बहुत लगती थी. आज बचपन को चाँद तो नसीब ही नहीं, कितने ही कालोनियों में चाँद के दर्शन दुर्लभ हो गए है, और भूख लगने पर पिज्जा या फिर मेगी की फरमाइश करता है... कहाँ का चाँद और कहाँ की रोटी. 

घटनाएं जल्दी जल्दी घटती हैं, दादा को राष्ट्रपति भवन में जाने की जल्दी है, पवार साहेब को नम्बर २ की कुर्सी पर बैठने की जल्दी... दारा सिंह और काका को ज्यादा जल्दी थी, सो वो जल्दी निकल गए. युवराज को कोई जल्दी नहीं है, ..... वो और इन्तेज़ार करना चाहते है. सरकार है बार बार करवट बदल रही है. छोडिये, इन लोगों को न तो चाँद से मतलब है न रोटी से. व्यर्थ ही लिख दिया इनके बारे में. 

पिछले दिनों “सलाम बस्तर” पढ़ी थी, “क्यों जायूं बस्तर, मरने” के चक्कर में. रोटी हाथ से निकल रही है... माओवादी बढ़ रहे हैं, उनकी मंशा देखें तो ऐसा लगता है कि २०-२५ साल बाद लाल सलामी होगी – लाल किले पर. 

अभी गीत सुन रहा था, गेंगस औफ़ वासे पुर का .... चाँद और रोटियां, दिमाग घूम घूम कर वहीँ पहुँच रहा है. 

“अम्‍मा तेरी सिसकियों पे कोई रोने आएगा” हाँ, कहीं जवानों की शहादत में और कहीं माओवादी केडर की मौत में सिसकियाँ कम होती जायेंगी... कोई रोने नहीं आएगा... क्योंकि ये रोज का धंधा हो जाएगा. 

देश प्रेम, क्रिकेट, आसमान से बातें करती ऊँची इमारतें, ज्येष्ठ की दुपहरी में भी ठन्डे ठन्डे माल, मेट्रो, एअरपोर्ट – ये सब चाँद ही तो हैं, जिन्हें दिखा कर आम आदमी को बहकाया जा रहा है. जिसे रोटी की चाहत है. 


होनी और अनहोनी की परवाह किसे है मेरी जां

हद से ज्‍यादा ये ही होगा कि यहीं मर जाएंगे 


पिछले दिनों मानेसर में मारुती सुजुकी कंपनी में जो हुआ, उस पर मैं कोई टिपण्णी टिप्पणी नहीं करना चाहता. पर क्यों लग रहा है कि आने वाले दिनों में धार्मिक/भाषाई दंगे इतिहास की बातें हो जायेंगी. औद्योगिक फसाद शुरू होने को हैं... रोटी को तरसते मजदूरों को और उसमे भडकने वाले असंतोष को हवा/समर्थन दिया जा रहा है. 

रोटी और चाँद का खूब खेल चलेगा. देखिएगा.

7 जुल॰ 2012

भारत के सबसे तेज़ ब्लोगर डॉ अनवर जमाल DR. ANWER JAMAL

डॉ अनवर जमाल साहेब, दिसम्बर २००९ से ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं, ये पूर्ण कालीन ब्लोगर हैं, नून आटा दाल चावल सोरी ये सब तो ये खाते नहीं, अंडे चिकन मटन सब इन्हें ब्लॉग्गिंग से ही प्राप्त होता है. रात रात भर जाग कर डॉ साहिब न केवल पोस्ट लिखते/कट पेस्ट करते हैं अपितु कमेंट्स भी करते हैं : इन्ही के शुभ हाथों द्वारा कि-बोर्ड पर पंच “भाई साहब हम भी आ गए हैं जोत जलाने और वह भी रात को 3 बजे । बिना सनकामीटर के ही भाँप लीजिए कि किस ग्रेड की सनक सवार है ?

3 जुल॰ 2012

Life is incomplete without Plastic. प्लास्टिक बिना जीवन सूना


१३-१४ साल पुरानी बात कर रहा हूँ, प्रगति मैदान में एक प्रदर्शनी लगी थी, प्लास्टिक उद्योग के उपर .... और उस का नारा था, Life is incomplete without Plastic.  तब ज्यादा समझ नहीं आया. पर आज राशन की दुकान पर शेम्पू के, रसोई मसोलों के, टाफी, चाकलेट, नमकीन, बिस्कट, कुरकुरे, पानी, देसी शीतल पेय आदि के पाउच देख कर लगता है कि वास्तव में सही बात है. : Life is incomplete without plastic.
पहले छोटू (१०-१२ साल का लड़का) चाय लेकर केतली में या फिर छीके’ (5-6 या ८ चाय के छोटे गिलास रखने का खांचा) में लाता था. बाद में वो खाली गिलास व केतली या छीके में रख कर वापिस ले जाता था. बाल मजदूरी पर रोक से ये 'छोटू' लोग चाय दूकान से गोल हो गए. अब पार्कों में बैठ कर नशा कर रहे हैं या छोटी मोटी चोरी चकारी. पढ़ने से तो रहे, सरकार जितना भी जतन करे. 
प्लास्टिक की पन्नी में चाय ओर प्लास्टिक के कप, किसी भी व्यावसायिक क्षेत्र में चाय वाला रोज की १२५ से २०० चाय के कप डिस्पोज करता है.
चाय वालों के पास इतना सामर्थ्य नहीं था कि किसी बालिग़ को अपनी दुकान पर नौकर रखे, एक तो उसकी तनख्वाह ज्यादा होती है दुसरे छोटू की तरह फुर्ती से काम भी नहीं कर पाते. अब चाय वालों ने ऑफिस/फेक्टरी में फ्री डिलिवेरी बंद कर दी, गर आपको चाय चाहिए तो आप दूकान से ले कर जाईये. यहाँ भी लोचा था अपनी जरूरत को तो ऑफिस बॉय चाय ले जाता पर केतली या वो खांचा उस दूकान पर वापिस करने नहीं आता.
इसका रास्ता ये निकला कि चाय अब प्लास्टिक की पन्नी में आने लगी और शीशे की ग्लास की जगह प्लास्टिक के कपों ने ले ली. आप किसी भी व्यावसायिक स्थल पर चले जाए, आपको ऐसे प्लास्टिक के कपों के ढेर मिल जायेंगे.