राष्टीय गौरव संस्थान ने अशिवनी कुमार, संपादक पंजाब केसरी की पुस्तक "क्या हिन्दुस्थान में हिंदू होना गुनाह है ?" महेश समीर जी के संपादन में प्रकाशित की. मैं पिछले सप्ताह उसी में व्यस्त रहा.
गत शुक्रवार को महेश जी का आगमन हुआ और अपने कार्यकर्म की रूप रखा बताने लगे, कि ३० सितम्बर को पंचकूला, हरियाणा में उनका संस्थान एक कार्यक्रम कर रहा है - जिसकी डॉ सुब्रामनियन स्वामी अध्यक्षता करेंगे और श्री अशिवनी कुमार के कुछ चुनिन्दा सम्पादीय को एक पुस्तक की शक्ल में विमोचित किया जाएगा. ये मुद्रण व्यवसाय की विडंबना ही है कि कार्यकर्म के कार्ड तो पहले से ही बंट जाते है और किताब की सामग्री जिसका विमोचन होना है उसका अता-पता नहीं होता. :)
मैं लगभग १९९० से लगभग २० वर्षों तक पंजाब केसरी का नियमित पाठक रहा हूँ, और उनकी कलम और राष्ट्रवादी विचारों से बहुत प्रभावित हुआ हूँ. मेरे लिए ये बहुत खुशी का मौका था कि उनके लिखे लेख मेरी प्रेस में छपेंगे.
मैंने पंजाब केसरी पढ़ना क्यों छोड़ा ये भी काफी दिलचस्प है.
मैं सुबह अखबार खोल कर सबसे पहले ज्योतिष वाले पन्ने पर अपनी कर्क राशि देख कर दिन का अनुमान लगाता था ... कैरियर का उठान था, अधिकतर समय भयभीत ही रहता था. जिस दिन राशि नहीं छपी होती - उस दिन सुबह से ही परेशान रहता था. जिस दिन राशि बढिया आयी, उस दिन बोस को भी बोस नहीं समझना और जिस दिन राशि बेकार आई उस दिन चपरासी से भी डर कर रहना. :) ये बहुत ही भयानक आदत हो गयी थी. मैं अपनी आदत बदलना चाहता था, तो लगा कि पहले पंजाब केसरी को पढ़ना छोडो. और एक बात और.... अखबार पढ़ने में दिक्कत आने लगी, एक दिन चाचा जी ने पंजाब केसरी देख कर कहा कि अंधा होना है तो ये अखबार पढ़ना. :) ये बात मेरे घर कर गयी. पर बाद में पता चला कि मेरी नज़र कुछ कमज़ोर हो गयी थी. जो भी हो... २००९ से सभी अखबारें बदल बदल कर आने लगी... मैं अपना टेस्ट बनाने लगा. अन्त: मैं दैनिक हिन्दुस्तान रुक गयी.. पर अब अखबार पढ़ने का चाव भी कम हो गया है.
"क्या हिन्दुस्थान में हिंदू होना गुनाह है" ये एक ऐसा यक्ष प्रशन है जो न केवल मुझे अपितु प्रत्येक जागरूक और चिंतनशील देशवासी को व्याकुल और उत्देलित कर रहा. इसलिए मात्र मेरी आवाज़ नहीं, बल्कि करोड़ों देशप्रेमी देश प्रेमी हिन्दुस्थानियों की सामूहिक आवाज़ है और कहते है कि सामूहिक आवाज़ ईश्वर की आवाज़ होती है. यही कारन है कि मैंने लिखा है कि कालपुरुष पूछ रहा है "क्या हिन्दुस्थान में हिंदू होना गुनाह है ?" - अशिवनी कुमार - संपादक पंजाब केसरी.
हाँ तो बात पुस्तक की.
महेश समीर जी कुछ मस्त मौला औघड किस्म के व्यक्तित्व के मालिक है.. बोले सब तैयार है बस छापना है. जब सी डी मुझे दी गयी तो पता चला जो लेख प्रकाशित करने थे ... उनकी कटिग मात्र थी - पी डी एफ फोर्मेट में. अब मसला उसको बुक शेप में लाने का था - पेज मेकिंग होनी थी, उसके लिए मेटर चाहिय था - जो दुबारा टाइप करना पड़ता. जब मैंने उन्हें समस्या बताई तो वो बोले कि चिंता की कोई बात नहीं. पंजाब केसरी से लाकर ओपन फ़ाइल में मेटर ले आयेंगे. आप अपने साइज़ के हिसाब से सेट कर लेना.
२ दिन बाद दुबारा सी डी आ गयी - क्वार्क में. और फॉण्ट भी चाणक्य ... पहले तो ये सोफ्टवेयर लोड ही नहीं हुआ, हुआ तो फॉण्ट हमारे सिस्टम में लोड नहीं हो पाया क्योंकि चाणक्य डोंगल से चलता है - . फिर वही समस्या. अन्त में मैंने सुझाव दिया कि पंजाब केसरी के कार्यालय पर जाकर उन्ही के सिस्टम में किताब की पेज्मेकिंग की जाए.
प्रेस की एक अलग दुनिया होती है, जहाँ छ्पासी कीड़ों को आराम मिलता है. :) जब मैं पंजाब केसरी प्रेस गया तो लगभग दिन के चार बजे थे और कोम्पोसिंग विभाग में ६०-७० कम्पुटर - की बोर्ड टकटकाटक पेले जा रहे थे. वास्तव में ये बहुत ही रोमांचक अनुभव था. हालांकि अशिवनी कुमार जी से तो मिल नहीं पाया. पर उनकी कोई किताब इसी संस्थान द्वारा छापने के लिए आयी तो मैं फिर जाना चाहूँगा.
जो भी हो, समस्या तो बहुत आई पर १६+६ घंटे (मात्र प्रोडक्शन) के अथाह परिश्रम के बाद किताब अपने नियत समय पर विमोचन के लिए पहुँच गयी .. शारीरिक थकान के चलते मैं पंचकुला नहीं जा पाया... हालाँकि महेश जी का काफी आग्राह था.
महेश जी बहुत बढिया कविताई करते है - और लेख भी दमदार होते है... जब मैंने उन्हें ब्लॉग्गिंग के विषय में बताया तो तैयार तो दिखे... पर पता नहीं इस समय खटाऊ विधा के फेर में पड़ेंगे या नहीं.
पुस्तक के बारे में लिखना शेष है वो फिर कभी.
जय राम जी की.
PS : काफी देर हो गयी मोबाइल से महेश जी की इमेज लेना चाहता था, पर नहीं निकाल पाया. अत: इसे यूँ ही पब्लिश कर रहा हूँ,
पुस्तक के बारे में भी आलेख की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंकिसी समय हमारा भी मनपसंद अखबार हुआ करता था 'पंजाब केसरी|' अश्विनी कुमार जी के कुछ(बहुत से) आलेख बहुत अच्छे होते थे लेकिन अपना पसंदीदा कालम एक और भी था, बहुत पहले छद्म नाम से छपने वाला| guess कर सकोगे बाबाजी?
जवाब देंहटाएं@ guess कर सकोगे बाबाजी?
हटाएंगलत बात !
guess करना हम आप जैसे साधारण जीवों का काम है , बाबा जी तो वैसे ही ज्ञानी माने जाते हैं :)
ये हुई न बात बड़े भाई वाली, एकदम सही बात कही अली साहब| तो हम ही guess करे लेते हैं कि बाबाजी सब जानते हैं|
हटाएंबहरहाल, एक बड़ा काम नियत समय पर पूरा करने की बधाई देनी रह गई थी, उसकी बाबाजी को बधाई| कीबोर्डों की टकटकाटक पेलाई देखने वाली लाईन बहुत मजेदार है| पुस्तक की समीक्षा और अंश भी उपलब्ध कराये जाएँ, कोटि कोटि परनाम एडवांस में दिए देते हैं|
पागल की डायरी था क्या
हटाएंया फिर "विजय" के नाम से छपने वाली कवितायें
प्रणाम
@पुस्तक की समीक्षा और अंश भी उपलब्ध कराये जाएँ,
हटाएंआदेश का पालन होगा.
@पागल की डायरी
पागलखाना तरनतारन.
:) ये एड्रेस था.
अली साहब, अन्तर भाई, बाबाजी - सबकी जय हो यारों, बड़े पहुंचेले जीव हो सब।
हटाएंबहुसंख्यक होने पर दुख ही दुख हैं। पुस्तक के विषयों का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंये सवाल क्यों उठा है?
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि सवाल तो उठना ही नहीं चाहिए..
मुझे भी इंतजार है पुस्तक के विषयों की
जब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb
महेंद्र जी, जब हर जायज सवाल ही प्रशनचिन्ह लिए हुए हो तो लगता ही है कि ऐसा सवाल तो नहीं उठना चाहिय था...
हटाएंआज जब समाज से उठते सवालों को 'लिखने वाली बिरादरी' ही उत्तर देने से कतरा रही है नारे लगाना तो मेरे जैसे कम्पोजर का दायित्व बन जाता है.
1990-2000 तक खूब पढा पंजाब केसरी
जवाब देंहटाएंअश्विनी कुमार के सम्पादकीय से लेकर क्लासीफाईड विज्ञापन तक
इतवार को "श्रीकृष्णा" सीरिज बहुत लम्बी चली थी, शायद अब भी चल रही हो
एक कॉलम "विजय" की शायरी का आता था, बेहतरीन कॉलम था और एक लेखक थे जो "जीने की कला" लिखते थे
राशिफल तो सभी राशियों के पढ लेता था, क्योंकि आपकी कोई भी राशि हो सभी के फल हर राशि पर सटीक होते हैं :) वास्तव में कुछ चुनिंदा से पंक्तियां होती हैं इनके पास जिन्हें हेरफेर करके लिखते रहते हैं
फिर इतवार, वीरवार और बाद में मंगलवार को भी इस अखबार में अश्लील तस्वीरें देने का चलन बढता गया
प्रणाम
किताब के बारे में कुछ ज्यादा जानने की इच्छा है और थोडा मैटर भी शेयर कर सकें तो आभार होगा
जवाब देंहटाएंbaba ji ka jawab nahi ....
जवाब देंहटाएंham to har mahene baba ji ke aacharan se do char hote hai...baba ji aur samay ki pabandi dono hi bemisaal hai....
jai baba banaras....