24 अप्रैल 2013

आह ! हंगामेदार देश हमारा



आह ! हंगामेदार देश हमारा
खुल गया मानो मुद्दों का पिटारा
उत्तर से दक्खन तक सब-हारा सब-हारा

संस्कारहीन युवा – सम दुश्शासन चरितर
राहती रहीं बेटियां और शर्मशार हुई नार
रक्षक, व्यवस्था, कानून - सब हुए लाचार


आईपीएल - नित नव बिगड़ैल खेल
बेच गहने, तज नौकरी, पैसा बनाने का ये फंडा
युवा खेले सट्टा यहाँ, काम-धंधा सब ठंडा ठंडा

गाँधी नाम मज़बूरी - करे जो नरेगा की बात
प्रधान और BDO  के कागजों से, बनी ऐसी औकात
देखो बे-रास्ता बिन सीमेंट-रोड़ी, सड़कें बनती जात

2जी से 3जी – राजा मौनी एक पर्याय
कोयला लिखे इतिहास में, जैसे काले अध्याय
कैग और जेपीसी यहाँ, फिर भी जांच में पिसा न्याय

नेता करें हंगामा - हो संसद ठप्प
मीडिया रूम में पहुँच, ये करें शाम गुलज़ार
बहुत सहा वोटर ने, इनका इमोशनल अत्याचार

संसद ठप्प, नेता मस्त - पर गलियों में शोर
'शेम-शेम' बोल कैंडल लिए, दिखा जनपथ पर आक्रोश
इस रीढविहीन देश में बढा, दिशाहीन युवाओं का जोश

महारानी और मौनी – दोउ बने धृतराष्ट
सीमा पारकर आये लाल सैनिक, करें विराट अट्टहास
देख 62 संग्राम को, लद्दाख अब कैसे करे विश्वास

जय राम जी की.

18 टिप्‍पणियां:

  1. आम हिंदुस्तानी की व्यथा की सुंदर अभिव्यक्ति.

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  2. २जी से ३जी – राजा मौनी एक पर्याय
    कोयला लिखे इतिहास में जैसे काले अध्याय
    यहाँ भी कैग, जेपीसी में पिसा न्याय ..

    धागे उखाड़े तो हैं आपने ... इनको बेपर्दा भी कर दिया पर ... शर्म नहीं आएगी इन्हें ... मोती चमड़ी वाले हैं ये ...

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  3. गज़ब गज़ब गज़ब …………एक एक के बखिये उधेड दिये …………बेहतरीन प्रस्तुति

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  4. उत्तर
    1. Anurag Sharma ने आपकी पोस्ट " आह ! हंगामेदार देश हमारा " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

      अव्यवस्था की दाल को
      भ्रष्टाचार के तड़के से बघारा
      सब-हारा सब-हारा ...

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  5. जो हो रहा है, कहाँ चुपचाप हो रहा है, शान्ति से जीना भी कोई जीना है?

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  6. सटीक प्रस्‍तुति ..
    क्‍या कहा जाए ??
    क्‍या किया जाए ??

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  7. आज के समय के मुताबिक लिखी गई लेखनी ....
    दुखद है ये सब कुछ जो आज कल देखने और सुनने को मिल रहा है

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  8. सब पिस ही रहे हैं.. फ़िर भी आगे बढ़ रहे हैं..

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  9. Supereb Deepak ji,

    Aaj Ka Kadva sach..... sach to hai

    " Hungama Khada Karna Inka Maksad hai "

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  10. बहुत सटीक रचना, 1962 के बाद चीनी कभी मीठी हुई ही नही, सिर्फ़ अविश्वास और जहर से भरी चीनी हैं.

    रामराम.

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  11. देश लुट रहा है, हम लोग कवितायें व लेख लिख रहे हैं . या फिर वाह वाह व शब्दों की बखियां उखेड़ रहे हैं, क्योंकि भले आदमी को लगता है मैं इसके इलावा कुछ कर ही नहीं सकता ... हमे ऑफिस से बाहर निकलने की जरूरत है.
    मेरा क्या योगदान हो सकता है यह सोच का विषय है...

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    उत्तर
    1. आदरणीय सुरेश जी,

      सन्नाटेभरे इस माहौल में ढंग से झन्नाटेदार थप्पड़ मारा है आपने.

      रस्ते पर आ गए तो आभार.

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  12. विचारणीय, मार्मिक और सटीक प्रस्तुतीकरण |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.