कितने गुमसुम से हैं
तुम्हारी घाटी में गुलाब के ये फूल
अमन पैगाम की भाषा भी क्या खूब समझते हैं.
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आसमां से बातें करते चिनार के ऊँचे दरख्त
और नीचे कल कल बहती पवित्र सिन्धु भी
सोचती है,
पवित्र फरिश्तों माफिक लड़कियों की जुल्फें
इस अमन पसंद घाटी में जाने क्यों नहीं
लहराती.
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भेड़ें घुमाते चराते वो निराश/हताश बकरवाल
पहाड़ों के उस पार तकता हुआ सोचता
है ...
कैसे अमन पसंदों ने उसे अपने बिरादर से
अलग कर दिया.
सच, उसकी उदास आँखें बर्फ से ज्यादा उदास
लगती हैं.
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हाथ में फोन लिए चिट-चेट करना ..
बात-बात पर बिंदास खिलखिलाना
बिलकुल शेष देश की यौवनाओं माफिक
ओ जवां-हसीं लड़की तुम ऐसा ही सोचती हो न
पर नहीं कर पाती, घुट कर रह जाती हो,
कितना मजबूत पर्दा बुना है अमन पसंद
पुरुषों ने
तुम्हारे चेहरे/जुल्फों को ढकने के लिए
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