13 जुल॰ 2010

जोगर्स पार्क नहीं ब्लोगेर्स पार्क - पता नहीं क्या

क्या आप सुबह पार्क में भ्रमण के लिए जाते हैं। यदि जाते हैं तो अच्छी बात है, पर नहीं जाते तो कोई बात नहीं, हम बताते हैं क्या हो रहा होता है:

मोटी मोटी स्त्रियों को पार्क में यूँ भाग रही होती हैं की मनो आज ही सारा कोलेस्ट्रोल ख़त्म कर देंगी और नयी उम्र की लोंदियों की नज़र आएँगी. कुछेक के साथ उनके टौमी को और कुछ एक के साथ तो उनके 'उनके' को भी मजबूरी वश हाँफते हाँफते भागना पड़ता है। जो की सब से नज़र बचा कर और झुका कर चल रहे होते है.फिर थोड़ी ही दूर ... उम्र के अंतिम पड़ाव पर कुछ बुजुर्ग जोर जोर से ठहाके लगा रहे होते है : जोर जोर से ठहाके लगाने से या तो उनके नकली दांत गिर गए होते हैं या फिर पहेले से ही घर में रख कर आते है. वहां रुक कर देखने में बड़ा ही आनंद आता है. थोडा आगे जाने पर .... मोर्निग वाल्क का बहाना कर के निकली मेनका ... किसी इंद्र को लुभा रही होती है या फिर कोई देवदास पारो नयनो के तीर एक दुसरे पर चला रहे होते हैं। दूर एक बेंच पर एक सरदार जी, जिनकी नज़ारे तो उक्त प्रेमी युगल पर होती पर साँसे बाबा रामदेव का आलोम वियोम कर रही होती है।

बाकि कल बतायेंगे :

1 टिप्पणी:

  1. हा...हा...हा...हा....
    मज़ा आ गया ..मुझे लगता है यही आपका निर्मल रूप है, इस बाबा को बाहर निकालो यह ब्लागर बाबा दूर से सबको दिखेगा ! मस्तमौला ढंग से सुबह के पार्क का नज़ारा हर जगह दीखता है दीपक बाबा ! बहुत बढ़िया सजीव वर्णन !

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.