दर्द का खरीदार हूं,
दर्द खरीदता हूँ......
जितने दर्द हो दे दीजिए.......
बहुत अजीब लगा.... ये फेरी वाला
मैडम ....... ढूंढ लीजिए..
दिलों दिमाग में,
कल फिर आ जायूँगा...
क्यों भई, क्या रेट खरीदोगे.. दर्द
मैडम, दर्द का कोई भाव नहीं......
ये तो बेमोल है....
जितना संभाल सकते हो ....
उतना ही संभालिए.....
न संभले तो हमें दीजिए.....
बराबर तौल कर खुशियाँ दे जाऊँगा...
आपका दर्द ले जाऊँगा.
नहीं भई, आजकल जमाना कैश का है...
खुशियाँ क्या करनी है.....
उन्हीं खुशियों के बदले ही तो दर्द लिया है...
तुम दर्द ले जायो ...और कैश दे जाना...
ठीक है, बीवी जी, जैसे आपकी मर्ज़ी.....
मैं नहीं देखता... नफा नुकसान..
मुझे नहीं मालूम सही पहचान....
बस ऐसा ही सौदागर हूं.
सही है बाबा ,
जवाब देंहटाएंआपने भी दर्द ठेले बाले को बेच कर कैश ले लिया ....
आजकल काम केवल कैश आता है !
इस दर्द के सौदागर को हमारा सलाम...
जवाब देंहटाएंनीरज
बधाई! यह कविता सोच में डालती है।
जवाब देंहटाएंबार्टर सिस्टम के भीतर रहते हुए दु:ख सुख बाँटने का प्रस्ताव कहीं पुरातन मानवीय साझेपन को दिखाता है - आओ साझा कर लें, तुम थोड़ा हँस लो और मैं भी थोड़ी आँखें नम कर लूँ।
लेकिन अंतिम पैरा में 'कैश' प्रस्ताव, नफा नुकसान और सही पहचान की बात एक झटके से उस त्रासदी को उघाड़ देती है जिससे आज समाज त्रस्त है - सब कुछ बिकाऊ है, कैश चाहिए। पर सब कुछ के बाद भी दर्द वहीं रह जाता है। खुशियाँ लिए नासमझ सौदागर अपने धन्धे की तौहीनी पर मन मसोसने के अलावा कर ही क्या सकता है?
...अमाँ सही में स्वयं को आचार्य समझने लगे हो क्या? फूटो यहाँ से। :)
नहीं भई, आजकल जमाना कैश का है...
जवाब देंहटाएंखुशियाँ क्या करनी है.....
उन्हीं खुशियों के बदले ही तो दर्द लिया है...
तुम दर्द ले जायो ...और कैश दे जाना...
ठीक है, बीवी जी, जैसे आपकी मर्ज़ी.....
मैं नहीं देखता... नफा नुकसान..
मुझे नहीं मालूम सही पहचान....
बस ऐसा ही सौदागर हूं.
kis kis ka dard kharado ge -------
बाबा जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंहमारे दिल की दुकान मे बहुत सामान (दर्द) है
सौदागर को हमारे गरीबखाने पर भी भेज देना
आचार्य ,
जवाब देंहटाएं@आचार्य........... गिरिजेश राव जी.
आओ साझा कर लें, तुम थोड़ा हँस लो और मैं भी थोड़ी आँखें नम कर लूँ।
कविता तो मैंने लिखी थे, पर भाव आपने उजागर कर दिए........ सही में. .... हमारी पुरातन सभ्यता रुपे और डालर से पहले येही बार्टर सिस्टम चलता था.........
जल्दबाजी मेरी वैयक्तिक कमजोरी है मन में तो बहुत था......... पर डर हमेशा व्यक्तित्व पर हावी रहता है........ 'बीबीजी' शब्द आ गया था...... और कविता उस डगर पर चल पड़ी थी जहाँ नारीवादी कार्यकर्ता धरना के लिए तैयार रहते हैं........ अत: कविता को अचान्चक खत्म करना पड़ा........... अधूरी ही लग रही है.............
दीपक बाबा ,
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है ब्लॉग जगत की दुर्दशा के बारे में अच्छे जानकार हो ...बहुत बढ़िया सुझाव लाये हो आपका स्वागत करता हूँ !
पहल करने वाले भीड़ में से नहीं ढूंढे जाते वे अपने आप आगे आते हैं और रास्ता भी बनाते हैं ! मुझे जो कहना था डॉ अरविन्द मिश्र के ब्लॉग पर कह चूका हूँ मगर ध्यान रहे मीटिंग में आया एक भी गलत आदमी आपका सारा उद्देश्य खराब कर सकता है अतः अधिक लोगों के चक्कर में न पड़ काम शुरू करें !
मुझे आप पर भरोसा है आप कुछ विश्वसनीय और ईमानदार लोगों की एक कमेटी बनाइये मुझे जो काम देंगे कर लूँगा !
कैश, नफ़ा, नुकसान... ये शब्द आपकी दिक्षनारे एन कहाँ से आ गए...!! दुखों को खरीदने के धंदे ने आपको भी सौदागर आना दिया!! सलाह देने के लिए मैं बौना हूँ... पर इस वेदना में जो दुःख नज़र आ रहा है उसे खरीदने को तैयार हूँ... मुंहमांगी कीमत दूंगा दीपक बाबू! बोली लगाओ!!
जवाब देंहटाएंनफा नुक्सान से परे दर्द खरीदने वाली हस्ती को प्रणाम!
जवाब देंहटाएंमैडमों से फ़ुर्सत पा लो तो बाबाजी हमारी तरफ़ भी चक्कर लगा लेना, पाव-डेढ़ पाव दर्द हमसे भी ले जाओ, छटांक भर खुशियां दे जाना:)
जवाब देंहटाएंइस दर्द के सौदागर को हमारा सलाम...
जवाब देंहटाएंyahi to sahi insaniyat hai,,,,,,,,,bhut khoob,behad sundar...badhai ho
जवाब देंहटाएंजय हो!!
जवाब देंहटाएंक्या सटीक लिखा है बाबा..
जवाब देंहटाएंbab ji hamare darwaje par bhi bhenjiyega aise mahapurush saudagar ko.............
जवाब देंहटाएंदीपक भाई, दुनिया में दर्द तो बहुतायात में है, पर उसके खरीददार आप पहले मिले हैं। आपकी इस सदभावना को सलाम करने को जी चाहता है।
जवाब देंहटाएं---------
छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
ekdam alag kism ki anoothi kavita.
जवाब देंहटाएंआपकी इस सदभावना को सलाम
जवाब देंहटाएंकोई सौदागर हो तो हमारी ओर भी प्रेषित करें
जवाब देंहटाएंदीपक जी अपने व्यापार मे हमे भी शामिल कर लीजिये । सच किसी के दर्द लेकर जो खुशी मिलती है उतनी खुशी शायद किसी को खुशी देकर भी नही मिलती ।
जवाब देंहटाएंमै कैश नही मांगूगी ।
धंधे की बात है? लेकिन अच्छी बात है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... दर्द का खरीदार ... असल में तो कोई नहीं मिलेगा ... दर्द देने वाले जरूर मिल जाते हैं ... भरे पड़े हैं दुनिया में ...
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