आदरणीय किसन भैया ....
मैं यहाँ कुशलता से हूँ और आपकी कुशलता परमपिता ने नेक चाहता हूँ. यहाँ आपको सब याद करते हैं. जब से आप यहाँ से गए हो – दुबारा आये नहीं – आपने तो कहा था “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युथानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥“
भैया परिवार बड़ा हो गया वो आप जिन जंगल में गैया को चराने जाते थे....... उ जंगल भी अब नहीं रहे. अपने ही घर के लोगों ने जंगल काट कर खेत बना दिए है. गैया सब कि हालत खराब है...... इहाँ चारा तो रहता नहीं है तो दूध निकालने के बाद हम उन्हें गलियों में भेज देते हैं – वहाँ कचरा- पोलिथिन वगैराह खा कर जान दे देती है. कुछ विधर्मी घर में आकर रहने लग गए थे .... उ अब उनको काटने भी लग गए है...... भैया गैया का उद्धार आपको करना पड़ेगा.
पूतना को तो आप मार गए थे ......... पर अब उसी के परिवार कि एक और डायन आ गई है – महंगाई डायन. छोटे छोटे बच्चों से दूध खींच रही है...... खाना नहीं खाने दे रही....... लोग भूखे मर रहे है. पूतना तो बस आपकी जान के पिच्छे पड़ी थी ... ई डायन तो सबको परेशान किये दे रही है.
आपके जाने के बाद फिर यमुना जी में प्रदुषण रूपी कालिया घुस आया है. जो कालिया दाह आपने किया था.. उससे तो बहुत जहरीला है. इसके तट पर आपके खेलने के स्थान पर कुछ लोगों नें जबरन कब्ज़ा कर लिया है.
जरासंघ जैसे लोगों से परिवार फिर फल फुल रही हैं. अब ये भष्ट्राचार के रूप में कु-ख्यात हो चुके है.
दुशासन के परिवार कि हरकते अब बढ़ गई है. मामला पहले तो राज दरबार में चीर-हरण तक सिमित था – पर अब तो गली गली – में उससे आगे हो रहा है.
कौरव फिर युद्ध उन्मंत हो रहे है...... आपके सभी भाइयों से जंगल-जमीन खींच रहे हैं.............. हम साधनहीन हो चुके है....... उ लोग फिर सत्ता के मद में अंधे हो कर हमें खदेड़ रहे है.
उत्तर पूर्व में जो पडोसी है – बहुत जाबर हो रहे हैं.... रोज रोज – हमारी जमीन पर कब्ज़ा करने को तैयार रहते हैं. उत्तर पश्चिम के पड़ोसियों का तो क्या कहना..... हमरे परिवार के ही छोटे सदस्यों को हतियार वगैरा दे कर ...घर में उत्पात मच्वाते हैं.
भैया चिट्ठी को तार समझना और तुरंत आने वाली करना. तनिक भी देर कि – तो सब परिणाम ही भयानक होंगे.
बातें बहुत से हैं - इस चिट्ठी में क्या क्या लिखें। बाकी बातें आपके आने पर ही होंगी। प्रणाम
आपका छुटकू
दीपक
lagata hai deepak baba ka aur kanha ka gahara yaraana lagata hai.
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