जमा देने वाली सर्दी और उफ़ ये धुंध...
वो बैठी है रिक्शे में....
बेकरारी से निहार रही है –
आस पास गुजरते गाडी वालों को.
५० रुपे का ठेका है...
रिक्शे वाले के साथ....
ग्राहक न मिलने तक...
यूँ ही घुमाता रहेगा
इस महानगर के राजमार्ग पर
.... मेरे मौला, कोई गाहक भेज..
रिक्शे वाला भी दुआ कर रहा है...
एक गाड़ी से चेहरा बाहर निकलता है..
रेट ?
३०० रूपये एक के..
और गाड़ी चल देती है.
रिक्शे वाला गुस्सियाता है...
काहे, बाई कित्ता घुमाएगी...
चल देती इसके साथ २०० में...
अरे, तू क्या जाने औरत कर दर्द
मुए चार बैठे है गाड़ी में..
बाई, २०० तो मिलते.........
थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...
कल सुबह टीवी में मुंह छुपाती फिरेगी.....
आजकल ऐसी सनसनी के लिए
टी वी चैनल भी तो बहुत तेज है.
दीपक बाबू,
जवाब देंहटाएंमौन चलेगा..!!
चलेगा........
जवाब देंहटाएंसही शब्द वेश्या है।
जवाब देंहटाएंगुस्साता या गुसियाता या गुस्सियाता
इतना नंगा यथार्थ! दीपक बाबू आप ने मुझे मेरी ही कविता नरक के रस्ते की याद दिला दी।
सो जाइए या कैनवास बड़ा कीजिए और रच डालिए एक लम्बी कविता... ज़माने में बहुत दर्द है। कागज पर उतर आता है तो पढ़ने वाले जाने अनजाने उससे निपटने की राह खोजते हैं या किसी को दर्द न देने की सौंह लेते हैं।
दर्दनाक है ...समाज का नंगा यथार्थ यही है दीपक बाबा ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना
समाज का ऐसा सच जिसके लिए शब्द नहीं हैं ....लेकिन आपने शब्दों से मूर्त रूप दे दिया है ...सटीक और सार्थक ..
जवाब देंहटाएंमहानगर की सच्चाई बयान कर दी है बाबाजी।
जवाब देंहटाएंसमाज के कई सच हैं लेकिन किसी शरीफ कन्या के साथ ऐसा वाकया होता है वो भी सच है।
जवाब देंहटाएंएक कडवी सच्चाई को बखूबी उकेरा है।
जवाब देंहटाएंआजकल ऐसी सनसनी के लिए
जवाब देंहटाएंaaj kal blog jagat kisi sansani se kam nahi hai.
कडवी सच्चाई
जवाब देंहटाएंबाबा जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंबहुत बारीक निगाह डाली है
अजित जी,
जवाब देंहटाएं@समाज के कई सच हैं लेकिन किसी शरीफ कन्या के साथ ऐसा वाकया होता है वो भी सच है।
यही सच तो झंझ्कोर के रख देता है - जब किसी के साथ ऐसा हादसा पढते हैं तो ..........
थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...
जवाब देंहटाएंकल सुबह टीवी में मुंह छुपाती फिरेगी.....
आजकल ऐसी सनसनी के लिए
टी वी चैनल भी तो बहुत तेज है.
... jabardast abhivyakti ... behatreen !!!
कितना विकृत है हमारा यथार्थ।
जवाब देंहटाएं---------
प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
अरे, तू क्या जाने औरत कर दर्द
जवाब देंहटाएंमुए चार बैठे है गाड़ी में..
बाई, २०० तो मिलते.........
थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...
कल सुबह टीवी में मुंह छुपाती फिरेगी....
कितना कड़वा सच...आज के समाज पर सटीक और तीखी टिप्पडी ...
दीपक बाबा ! बहुत दिन बाद आया, लेकिन आना निष्फल नहीं |
जवाब देंहटाएंऔर वो लाइन 'थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...' मूक कर दिया आपने |
bahoot hi katu sachchhai........ paede ke peechhe ka sara khel kabhi bhi sachhai bankar samne nahin aa pata ....
जवाब देंहटाएंक्या बात है दीपक बाबा पेजर बाबा का सलाम कबुल करे मैंने अभी अभी ब्लॉग में कदम डाला है आपकी पोस्ट बहुत ही अच्छी है मगर आपपे सक लगता है क्या सायद आपको पता है आप भी तो बाबा है न
जवाब देंहटाएंbaba ki jai ho
जवाब देंहटाएंBABA IS GREAT
जवाब देंहटाएंsahi hai
जवाब देंहटाएंनिशब्द
जवाब देंहटाएंसरजी आपकी कविता को पढ़ने के बाद निःशब्द रह गया। आभार कि संवेदना के इस गहराई तक आपकी पहूंच है।
जवाब देंहटाएंऔर क्षमायाचना के साथ निवेदन कि आपकी रचना को विना आपकी अनुमति को मीडिया मंच पर लगा दिया है।
सादर