इक रास्ता है ज़िन्दगी जो थम गए
तो कुछ नहीं
ये क़दम किसी मुक़ाम पे जो थम
गए तो कुछ नहीं
इक रास्ता है ज़िन्दगी ..
बहुत सुंदर गीत है साहेब, जो थम गये तो कुछ नहीं, हमारा जीवन यात्रा ही तो है...
ये कदम किसी मुकाम पर रूकने नहीं चहिये. चरेवेति चरेवेति... चलते रहे.... कहीं मंजिल
तो होगी. नहीं नहीं, मंजिल कहीं नहीं होती, कई बार हम दिशा हीन होते है, पर मन ही
मन में कहीं न कहीं एक पुकार/आवाज़ जरूर होती है .... अपने गंतव्य की तरफ, वहीँ
जहाँ ढलान होती है, शायद मंजिल, किसी प्रेयसी माफिक वही कहीं हमारा इन्तेज़ार कर
रही होती है .... और उसी प्रियतम/ प्रेयसी को मन में बसा चलना है... यही जिंदगी है,...
नदी माफिक... जहाँ ढलान दिखी वहाँ राह बना लिया – ये मालूम होते हुए भी कि सागर या
फिर वो बड़ी नदी जिसमे मिलना है बहुत दूर है. पता नहीं कितने दुःख रुपी नाले अभी और
समायेंगे .... पर चलना है गर हार मान ली तो गंतव्य पर पहुंचे पहुँचते नदी नाले में
भी बदल सकती है और हिम्मत हुई तो वही छोटी नदी गंगा में मिल कर गंगा जल में
परिवर्तित होने का साहस भी रख सकती है. यानि जितना भी कचरा आ जाए, सभी कुछ बहा ले
जाने का साहस... जिंदगी.
दुखो का तूफ़ान, प्रियों का
बिछुडना, कुछ कुटिल लोगो का जिंदगी में आना, बहुत कुछ
दुष्कर लग सकता है जीवन यापन के लिए. लगता है कि यहीं कहीं हम ठहर गए हैं कुछ नहीं है - इन लोगों में जीवन खराब कर दिया. पर ध्यान से सोचिये ये मंजिल नहीं,
मंजिल बहुत आगे है, अत: इन लोगों को यहीं कहीं दफ़न कर दीजिए अपने विराट व्यक्तित्व में और आगे चलिए... किसी छोटी नदी माफिक - कहीं तो गंगा से संगम होगा ही.
गीत सुनते सुनते, दिमाग इसी ओर चला गया कर्म प्रधान जीवन है और ब्लॉग्गिंग ठंडी छाँव कुछ देर सुस्ता लिया और ये दो लाईने लिख दी. जय राम जी की.
जय राम जी की... :)
जवाब देंहटाएंबढ़ते रहा जाये..
जवाब देंहटाएंबाबा की बकबक में गहरा सन्देश छिपा होता है हरदम.. एकदम रवानी भरी पोस्ट है!!
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद मिले, सलिल जी स्वागत है
हटाएंसच है जीवन तो चलने का ही नाम है.....सहज सरल विचार
जवाब देंहटाएंबांग्लादेशी भारत छोड़ो .....
जवाब देंहटाएंजय बाबा बनारस .....
जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह शाम।
जवाब देंहटाएंvakai blogging thandi chhanv...
जवाब देंहटाएंजीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबहो शाम ...
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई।
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