मित्रों, कई बार कहीं ऐसी कविता या कुछ पंक्तियाँ मिल जाती है कि आपके दिल को छू जाती है. आप उसको इग्नोर नहीं कर सकते..... कुछ सोचने पर मजबूर करती है :
कित्ता आसान है – किसी के एड्रेस बुक में स्थान पाना, पर
कितनी मुश्किल आती है दिल में जगह बनाने के लिए
कितनी मुश्किल आती है दिल में जगह बनाने के लिए
कित्ता आसान है – किसी की गलती गिनना, पर
कितनी मुश्किल आती है अपनी गलती ध्यान आने में
कितनी मुश्किल आती है अपनी गलती ध्यान आने में
कित्ता आसान है – बिना सोचे समझे बोलना, पर
कितनी मुश्किल आती है अपनी जबा को संभालने में.
कितनी मुश्किल आती है अपनी जबा को संभालने में.
कित्ता आसान है अपने किसी प्रिय को दुखी करना, पर
कितना मुश्किल है किसी जख्मी दिल को मोह्हबत से भरना
कितना मुश्किल है किसी जख्मी दिल को मोह्हबत से भरना
कित्ता आसान है – किसी को भी क्षमा कर देना, पर
कितना मुश्किल होता है किसी से क्षमा माँगना...
कितना मुश्किल होता है किसी से क्षमा माँगना...
कित्ता आसान है – कोई नियम बनाना, पर
कितना मुश्किल होता है – इसे स्वयं पर लागू करना..
कितना मुश्किल होता है – इसे स्वयं पर लागू करना..
कित्ता आसान है – सपने देखना, पर
कितना मुश्किल है उनको पूरा करना ...
कितना मुश्किल है उनको पूरा करना ...
कितना आसान है विजयोत्सव मनाना , पर
कितना मुश्किल है उसी गरिमा से हार स्वीकार करना...
कितना मुश्किल है उसी गरिमा से हार स्वीकार करना...
कित्ता आसान है – किसी से वायदा करना, पर
कितना मुश्किल हो जाता है – उसे पूरा करना..
कितना मुश्किल हो जाता है – उसे पूरा करना..
कितनी आसानी से हम गलती करते हैं, पर
कितना मुश्किल है – उन गलतियों से सीखना..
कितना मुश्किल है – उन गलतियों से सीखना..
कित्ता आसान है – बिछुड़ों के लिए रोना, पर
कितना मुश्किल है – उनको संभालना जो नहीं बिछुडे....
कितना मुश्किल है – उनको संभालना जो नहीं बिछुडे....
दिन में कितनी बार हम कुछ इमप्रोवमेंट के लिए सोचते हैं
पर लागू करना कित्ता मुश्किल है..
पर लागू करना कित्ता मुश्किल है..
कितना आसान है शब्दों की दोस्ती करना , पर
कितना मुश्किल होता है इन्ही शब्दों के अर्थ के साथ निभाना....
कितना आसान .... कितना मुश्किल ...... वाकई आसान - बहुत ही आसान और मुश्किल - बहुत ही मुश्किल....... ये पंक्तियाँ कह लो या फिर कविता.... इ-मेल से प्राप्त हुई थी.. उसे अनुवाद कर के आपसे बाँट कर कुछ प्रसन्नता अनुभव कर रहा हूँ.......
सही में, कित्ता आसान है किसी के मज्मूम को छापना, पर कित्ता मुश्किल हो जाता है खुद दो-शब्द लिखना.....
जय राम जी की.....
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जवाब देंहटाएंदीपक जी , पंक्तियाँ शेयर करने के लिये आभार. सब बहुत अच्छी है।
जवाब देंहटाएंकितना आसान और कितना मुश्किल.. सच..
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए थैंक्स
कित्ता आसाह है, ऐसी बातें पढ़ सकना
जवाब देंहटाएंकिता मुश्किल है, ऐसी बातों पर प्रतिक्रिया देना।
बहुत खूब दीपक जी।
कितना आसान है सम्वेदनशीलता को पालना और कितना मुश्किल है उससे छुटकारा पाना! और दीपक बाबू , मैंने भी कभी पढा था कहीं बहुत ही आसान है किसी के प्यार में अपनी जान दे देना, लेकिन बहुत ही कठिन है एक ऐसा शख्स मिलने जिसके प्यार में आप जान दे सकें!!
जवाब देंहटाएंbada aasa kisi ko apna banana.
जवाब देंहटाएंbada muskil hai ki wo aap ko apna banye .
@उपेन्द्र जी, मनोज जी, आभार उत्साह वर्धन के लिए.
जवाब देंहटाएं@संजय जी, कम से कम आपके लिए तो परतिक्रिया देना मुश्किल नहीं है
@सलिलजी, वाजिब बात कही है, पर कई बार पता ही नहीं चलता और वो शख्स हमारे सामने होता है.
@मिश्र जी, पहले खुद तो किसी के बन के देखें .... फिर देखेंगे वो जनाब कहाँ तक बचते हैं.
आदरणीय दीपक डुडेजा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
विविध सामग्री से भरपूर आपका ब्लॉग बहुत रोचक लगा । बहुत सारी पुरानी पोस्ट्स का भी लुत्फ़ लिया … ख़ूब !
और …
कित्ता आसान है – बिछुड़ों के लिए रोना,
पर कितना मुश्किल है – उनको संभालना जो नहीं बिछुडे.... वाह !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कित्ता आसान है किसी के मज्मूम को छापना, पर कित्ता मुश्किल हो जाता है खुद दो-शब्द लिखना.....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल जी।
sahi baat.
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द सही है...लोग इसे सिर्फ पढ़ें ही नहीं समझे भी...
जवाब देंहटाएंनीरज
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जवाब देंहटाएंकित्ता आसान है – किसी को भी क्षमा कर देना, पर
कितना मुश्किल होता है किसी से क्षमा माँगना...
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सभी पंक्तियाँ एक से बढ़कर एक हैं और बहुत सटीक भी।
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