मित्रों जरूरी नहीं कि आपका हमराह सदा आपके साथ ही चले, कुछ शिकवे हो सकते हैं, कुछ शिकायते भी.. और बीच मजधार में जब यही शिकवे और शिकायते .... कसमे वायदों पर भारी पड़ती हैं तो मुहं से आह निकलती हैं :
प्रस्तुत हैं कुछ पंक्तियाँ, अगर आप कविता का नाम दे दो तो अपने को धन्य मानूंगा.
मेरे हमराह .. मेरा साथ दोगे.
राह में मेरे साथ चलोगे..
वायदा निभाओगे...
इस कंटक पथ में
विचलित तो नहीं होवोगे..
मेरे हमराह .. मेरा साथ दोगे.
मैं नहीं जानता रस्मे-ऐ-जमाना...
मैं नहीं जानता दस्तूर-ऐ-मोहब्बत
मुझे नहीं मालूम मंजिल अपनी
मैं एक आवारा बादल सा,
क्या मेरा साथ निभावोगे..
मेरे हमराह .. मेरा साथ दोगे.
इन बारिशों में पानी बहुत है
इन नदियों में न-उम्मीदी का आलम
मेरी पतवार भी टूटी और
मेरी कश्ती भी बीच भंवर में...
मेरे हमराह .. क्या फिर भी तुम
मेरा साथ दोगे?
तुफानो के काले साये यूं..
रोशन नहीं होने देते राह को
ये कडकती बिजलियाँ भी..
काली अमावस की रात में
नहीं दिखाती राह भी...
नहीं दिखाती राह भी...
तो क्या, मेरे साथ चलोगे..
ऐ मेरे हमराह .. मेरा साथ दोगे ?
बहुत अच्छे भाव लिए हुये है ये कविता है
जवाब देंहटाएंबात तो आप सही कि यदि हम सफर ठान ले तो कोई
मुश्किल डिगा नही सकती (अगर भाग्य साथ दे तो)
बहुत अच्छी नज़्म ....
जवाब देंहटाएंउम्मीद है जवाब मिल गया होगा ......!!
Nice post .
जवाब देंहटाएंमन की अभिव्यक्ति ही कविता है..
जवाब देंहटाएंऔर आपने स्वयं को अभिव्यक्त कर दिया है...
आशा है आप सफल हुए होंगे...
आभार...!
दो बातें, पहली तो ये कि कविता को कविता बताने का सर्टिफ़िकेट कौन दे... जो मन से निकली सच्ची बात हो वही कविता है... अदा जी की बात से सहमत!
जवाब देंहटाएंदूसरी बात एक कहावत है... कोई छोड़ कर जाना चाहे तो उसे जाने दो... अगर तुम्हारा है लौट आएगा, नहीं आया तो वो तुम्हारा कभी था ही नहीं!!
खूब कह दिया बाबा..
जवाब देंहटाएंकितना सच कहा आपने.. 'अगर हम सफर या फिर हम राह ठान ले कि वो आपके 'हम कदम' रहेंगे, तो कोई भी मुश्किल डिगा नहीं सकती'
कितने लोग इस बात को समझ पाते होंगे !!..
आजकल हमारे पंजाब में चावलों का सीज़न है। एक शैलर के बाहर ट्रक खड़े थे और एक ट्रक के पीछे लिखा था,
जवाब देंहटाएं"मेरा सो जावे नहीं,
जावे सो नहीं मेरा"
अपने को जमती है ऐसी बात। ये अलग बात है कि कभी कभी ऐसा ओवर कोन्फ़ीडेंस धोखा भी दे जाता है।
तो बाबाजी, सही किये आप कि पुकार लिये हमराह को, काये को रिस्क लो आप। हमारी तो....:)
दीपक जी बकबक में भी काफी बड़ी बात कर दी आपने। हमराह तो खैर हमसाया बनकर साथ दे तो क्या बात है। रास्ता तो मिनटों में कट जाता है चाहे जिंदगी का हो या फिर कोई भी। नारायणा तो जनकपुरी के पास ही है। आइए कभी, करते हैं बकबक। काफी शौक है बकबक का। वैसे भी मीडिया का कोई भी बाशिंदा हो बकबक के बिना गुजारा कैसे।
जवाब देंहटाएंहा..हा...हा...हा.....
जवाब देंहटाएंहे भगवान् ! नाव में छेद और टूटी पतवार...मांगो... मांगो.... मांगते रहो दीपक बाबा कोई न कोई जरूर सुनेगा .....
मेरी इस समय की मनस्थिति के हिसाब से तो इसका शीर्षक " भिखारी " ही ठीक रहेगा दीपक बाबा !
मैं भी सुबह से मांग रहा हूँ ....अभी तक कुछ नहीं मिला ...
बाकी राय मो सम कौन..., और विचार शून्य जी देंगे
शुभकामनायें
:-))))
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जवाब देंहटाएंमैं महर्षि मनु की हमराह के बारे में सोच रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंमुबारक हो संजय !
जवाब देंहटाएंदीपक बाबा को पहचानने के लिए
ऊपर की टिप्पणियों में, बाबा की टूटी नाव में यार दोस्त धक्का लगाने को तैयार खड़े हैं !!
लगता है किसी ने भी दीपक मिस्टिकल नाम नहीं पढ़ा लगता है
हा..हा..हा..हा. .
baba hum to hamesha aap ke saath hai.
जवाब देंहटाएं@दीपक जी, अगर भाग्य साथ दे तो : क्या सभी 'दीपक' इसा सोचते हैं.
जवाब देंहटाएं@बड़ी बहिन हरिकीरत जी और अदा जी, .... यानि इसे कविता कहा जा सकता है.
@सलील जी, ..... कोई छोड़ कर जाना चाहे तो उसे जाने दो..
कैसे जाने दें.. किसी को दिल से निकल सकते हैं क्या, सोच कर देखिये.. चाहे वो चला जाये..
@मनोज जी, लगता ही आप समझ गये... मेरे लिए बहुत है.
@संजय जी, हमने हमराह को पुकारा और आप आ गए.... और आपके होते हुवे हमें रिस्क लेने की क्या जरूरत है.
@बोले तो बिंदास ...... आइए कभी, करते हैं बकबक।....... क्या झेले पाओगे...? मिलने पर ही पता चलेगा
@सक्सेना साहिब, जब नाम के आगे बाबा लग जता है तो शायद .... सामने वाला बन्दा अपने आप समझ जाता है - की भिखारी है ... कोनो लेबल नहीं लगाना पड़ता....
@गिरिजेश जी, आपने ज्ञान पिटारा खोल दिया और हमें अधुरा ही छोड़ गए...... अब महारिशी मनु महाराज के हमराह के बारे में भी बता देते..... शायद बतायेंगे...
जवाब देंहटाएं@सतीश जी, संजय जी को बधाई विलम्ब से दे रहे हो.... उपर के दोस्तों में आप भी शमिल हैं..... मिस्टिकल को शयद ही समझ पाओगे....... क्योंकि वो "मिस्टिकल" है.
@ पूर्विया जी, आप साथ हैं तभी तो हम हैं....
धन्यवाद् आप सभी ka..
bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएं'अगर हम सफर या फिर हम राह ठान ले कि वो आपके 'हम कदम' रहेंगे, तो कोई भी मुश्किल डिगा नहीं सकती'
जवाब देंहटाएं...very nice post.
आपने इस ग़ज़ल की याद ताज़ा कर दी .....
जवाब देंहटाएंचल मेरे साथ ही चल ....
ए मेरी जाने ग़ज़ल ...
इन समाजों के बनाए हुवे बंधन से निकल ... चल ....
मैं नहीं जानता रस्मे-ऐ-जमाना...
जवाब देंहटाएंमैं नहीं जानता दस्तूर-ऐ-मोहब्बत
मुझे नहीं मालूम मंजिल अपनी
मैं एक आवारा बादल सा,
क्या मेरा साथ निभावोगे..
मेरे हमराह .. मेरा साथ दोगे.
सुन्दर अभिव्यक्ति...
hume to babaji ke bina chain nahi..... hum sath sath hai.
जवाब देंहटाएंअरे दीपक जी आप ब्लॉग परिवार से जुड़ें हैं कुछ लोग तो सच्चे मन से आपके साथ आयेंगे ही.........जरूरत पे आजमाकर देखिएगा.....!
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