ये दिल्ली है साहेब........... यहाँ चकाचौंध है.... बड़े बड़े खेलों की, मीडिया के कैमरों की, आसमान छूती बिल्डिंग में बड़ी कंपनियों के साइन बोर्ड की....... एकदम चमाचम....
कहा जाता होगा किसी जमाने में, दिल्ली है दिलवालों की... पर आज नहीं .. आज दिल्ली है संगदिल लोगों की....... संगदिल ...... चाहे पैसे और रुतबे से कित्ते भी बड़े क्यों न हो.... चाहे उन्होंने अदब और साहितियक दुनिया में कित्ते ही बड़े झंडे बुलंद न कर रखे हों......... चाहे कित्ते ही बड़े समाजसेवी और मानवाधिकार और पर्यावरण, जाने क्या-क्या, के कार्यकर्ता और अधिकारी हों...... पर सब संगदिल......... बाहर का दिखावा एक दम मस्त.... पोलिश .... पर एक छोटा-सा दायरा ... उसके अंदर किसी को भी आने की आज़ादी नहीं.... और न ही साहेब लोग उस दायरे से बाहर जाते है ... एक बनावटी मुस्कान ... कागज के फूलों-सी हरएक सूटेड-बूटेड टाई पहने इंसान के मुंह पर है..........
महंगे ब्रांडेड महकते कपडे में लोगों के काले-काले दुर्गन्ध मारते दिल ... चमचमाते चेहरे..... लंगर.... दान........ गुरुपुरव, साईं संध्या, विशाल भगवती जागरण है यहाँ. ......... हरेक की प्रधानी चमक रही है..... कालकाजी मंदिर, बंगला साहिब, शीश गंज साहिब, हनुमान मंदिर, शनिमंदिर में लगती लंबी कतारें...... सूटेड-बूटेड प्राणाम - ये नतमस्तक हैं. .... पापों से छुटकारा चाहने के बाद........ दारू और मुर्गे के साथ आबाद होती किसी भी फार्म-हाउस और बियर-बार में रंगीन शामे........ रात १२ बजे तक दिन है साहिब.. अब कौन क्या कर रहा है किसी को क्या मतलब? अपना सौदा देख.
सुबह की टेंशन ......... ऑफिस, उधारी कारों (इंस्टालमेंट) की लंबी कतारें, ट्रेफिक जाम – एवेरज १० कि.म. प्रति घंटा.... एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड का शोर - कोई मरे तो मरे ......... लबालब मेट्रो........ भागते इंसान... दम तोडती सिटी बस. परेशान करते ऑटो रिक्शा वाले.. दिल्ली है साहेब.......... गुजारा करोगे - तो खरीदो कार और लगो क्यु में .... १५ किलोमीटर के ऑफिस में पहुँचो शान से १ घंटे में.... टाई पहन कर – सूटेड बूटेड.... आप अपनी सहुलि़त के लिए नहीं जी रहे ......... आप सहुलि़त पाने के लिए जीते हो यहाँ पर........ साध्य ही रास्ता है साधन तक पहुँचने का..... उलटी गंगा है - ये दिखावटी अमीरी है साहिब...
यहाँ पर बहिन-बेटी, बुडे माँ-बाप – सब बराबर ... धक्का मुक्की........ चैन स्नेचिंग, बैंक-रोबरी , लूटमार, बलात्कार.......... जो हो जाए वो कम है. अब बारी है दुसरे तबके की ....... उनके पास अगर किस्तों पर कार है तो हमारे पास चोरी की............ वो फार्म-हाउस में रंगीन शामे गुज़ार रहे हैं तो अपन भी दारू पी कर बलात्कार से ही गुज़ारा कर रहे है..... आदमी पिस रहा है अपने सपनो में ... अपनी आकांक्षाओं में...... जो कि गाँव में उधार लिए थे....... और दिल्ली में लुटा रहे है........
नेता मस्त है - पुलिस पस्त है ... दबंग जी रहा है...... कर्मो से पूज रहा है.
नेता मस्त है - पुलिस पस्त है ... दबंग जी रहा है...... कर्मो से पूज रहा है.
आओगे साहेब...... मेरी दिल्ली में .......
अपने सपने गाँव में पूरे करना जी.... मत आना इन सपनो के शहर .. यहाँ तो सुना है श्रवण कुमार ने भी माता पिता से किराया मांग लिया था..... यमुना भी यहाँ आकर थक जाती है.......
ये दिल्ली है
शान है
सत्ताधीशों की.......
दलालो की......
घोटालेबाजों की....
और दूषित मानसिकता लिए जाबाजों की......
आओगे यहाँ .... स्वागत है.....
Photo courtsey : as search by google.co.in
आओगे यहाँ .... स्वागत है.....
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दिल वालों की दिल्ली को उसका असली चेहरा दिखाती पोस्ट
जवाब देंहटाएंअमूमन हर बड़े शहर का यही हाल है... यहां लोग सिर्फ़ लोग हैं, इसान नहीं, पड़ोसी कौन है उससे मतलब नहीं.. उसके पास दो कारें हैं तो मेरे पास क्यों नहीं..रिश्ते दफ़न कर चुके, समय किसी के पास नहीं..
जवाब देंहटाएंमनोज
--
यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल - ४
bilkul sahi deelli ka avlokan hai.
जवाब देंहटाएं"सुबह की टेंशन ......... ऑफिस, उधारी कारों (इंस्टालमेंट) की लंबी कतारें.."
जवाब देंहटाएंलेट पंहुचे थे क्या ?
आज दिल्ली से नाराज क्यों हो गए दीपक बाबा ... ?
जवाब देंहटाएंदिल्ली से यह दिलजली दिल्लगी?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे दीपक जी:)
जवाब देंहटाएंदिल्ली के गलियारे
जवाब देंहटाएंतंग इतने हो गये
दिलवालो से आज वो
संग दिल से हो गये
ये दिल्ली का अधूरा सच है
हम पिछले एक साल दिल्ली में रहे और उस एक साल की यादेम आज भी मुझे प्रसन्न कर देती है ।
और समय के साथ दिल्ली नही लोगो के दिल बदल रहे है , फिर चाहे वो दिल दिल्ली का हो या कही और का ।
आयेंगे तो जरुर दीपक बाबा...और तुम्हारा इन्तजार भी रहेगा भले ही तुम शर्माओ. :)
जवाब देंहटाएंदिल्ली का एक रूप यह भी तो है
जवाब देंहटाएंदिल्ली के मजबूत अंग-प्रत्यंग
और भाई समीर लाल की नजर से भी दिल्ली देखिए
दिल्ली में मिले दिल वालों से..१३ नवम्बर, २०१०
अब आप क्या कहते हैं
नजरिया भिन्न भिन्न है
रूप हैं विभिन्न
सकारात्मकता लाइये
हिन्दी ब्लॉगिंग से समाज में सार्थक बदलाव लाने के लिए हमारे साथ मिलकर अलख जगाइये।स्नेह और प्रेम से दिल्ली में लबालब हो जाइये।
वाह-वाह दीपक जी आपने आज दिल्ली की पोल खोल दी.....लेकिन कुछ लोग है यहाँ जो वाकई दिलवाले हैं और उनके अन्दर इंशानियत जिन्दा है इसलिए दिल्ली कराह कर भी जिन्दा है.........भ्रष्टाचारियों के कालेधन ने और बिल्डर माफियाओं के कुकर्मों ने वास्तव में दिल्ली को दुर्गन्ध से भर दिया है..........यहाँ सामाजिक सरोकार जीने की मजबूरी के निचे दबकर दम तोरने के कगार पर है......
जवाब देंहटाएं@तनेजा जी और पूर्वीय जी, आप सहमत दिखते हैं.
जवाब देंहटाएं@मनोज जी, यानि कि जयपुर का भी यही हाल है
@सक्सेना जी, लेट और जल्दी से तो उपर उठ गए हैं ..... तभी तो नाम के साथ 'बाबा' लगा रखा है.....
@सुज्ञ जी, बक दिया जो दिल में था, दिल्लगी कह लीजिए... या दिलजली.
@मौ सम कौन .... हुजुर ये दिल्लगी अच्छी नहीं.
@अपर्णा जी, @ये दिल्ली का अधूरा सच है... मानता हूं. अगली पोस्ट में पूरा सच लिखने की कोशिश करूँगा.
@समीरलाल जी, ....... सिनेओर्टी का बहुते शर्म हो गया. . अबकी बार आँखों में आंखे डालकर हाथ मिलायेंगे... और कहेंगे दीपक बाबा हैं.......
@अविनाश जी, "सकारात्मकता लाइये" - पूरी कोशिश करेंगे जी,
@झा जी, आपसे पूर्णता सहमत हूं.
jai babaji ki aagaye ho is delli main.
जवाब देंहटाएं5.5/10
जवाब देंहटाएंहर महानगर की अंतर्व्यथा यही है.
बशीर बद्र साहब ने क्या खूब कहा है -
"कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो"
"कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
जवाब देंहटाएंये नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो"
@उस्ताद जी, आज तो घायल कर के चल दिए......
बाबा जी, अपनी इस दिल्ली का कंट्रास्ट गालिब की दिल्ली के साथ देखिए...
जवाब देंहटाएंबल्लीमारान के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियां
सामने ताल के नुक्कड़ पर बटेरों के कसीदे
गुड़गुड़ाती हुी पान की पीकों में वो दाद वो वाह वाह
चांद दरवाजों पर लटके हुए बोसीदा से कुछ ताल के पर्दे
एक बकरी के ममियाने की आवाज़
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अंधेरे
ऐसे दीवारों से मुंह जोड़ के चलते हैं यहां
चूड़ीवालान के कटरे की बड़ी बी जैसे,
अपनी बुझती हुई आंखों से दरवाज़े टटोले,
इसी बेनूर अंधेरी सी गली कासिम से एक तरतीप चरागों की शुरू होती हैं,
इक कुराने सुखन का सफ़ा खुलता है, असदुल्ला ख़ान गालिब का पता मिलता है...
जय हिंद...
बाबा जी,
जवाब देंहटाएंनाराज हो क्या दिल्ली से
श्श्श्श्श्श्श्श्श्श!!!!!!!! धीरे धीरे बोल कोई सुन ना ले!!अभी महीना भर भी नहीं हुआ, दीपक बाबू, सुना था कुछ करोड़ रुपये ख़र्च करके दिल्ली को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का शहर बना दिया गया था. ऐसे में ये बॉटलनेक वाली अफ़वाह आपने कहाँ से उड़ा दी!!
जवाब देंहटाएंऔर भाई साहब "दिल्ली" से तोअपुन भी उतने ही खुश बैठे हैं जितने इस पोस्ट में आप! इसी बात पर एक घायल करने वाला सवाशेर हमसे भी सुनते चलेंः
रात का इंतज़ार कौन करे,
आजकल दिन में क्या नहीं होता!
नेता मस्त है - पुलिस पस्त है ... दबंग जी रहा है...... कर्मो से पूज रहा है. मेरी दिल्ली में .......
जवाब देंहटाएं.
.
बहुत ही सामायिक लेख लिखा है बाबा जी .
बहुत सार्थक और अच्छी सोच ....
जवाब देंहटाएं@सहगल साहेब, आपने बात पुराने दिनों की रुमानियत भरी दिल्ली की. पर बन्दा जो भुगत रहा है उसी को लिख दिया - माफ कीजियेगा हाल-फिलहाल तो यही सत्य है.
जवाब देंहटाएं@सलिल जी (चला बिहारी ब्लोगर बनने),
रात का इंतज़ार कौन करे,
आजकल दिन में क्या नहीं होता!
सवाशेर के लिए बहुत शुक्रिया....