फिजा में तैर रहे थे कुछ हर्फ़ महफूज़ से
दिल्लगी से मैंने छुए और -
हाथ में आये तो दास्तां बन गए.
कहीं हीर रांझा लिख दिया
और कहीं
सोहनी ते महिवाल लिख दिया.
कहीं कब्रों से उठ बैठा बुल्लेशाह...
इक नई इबारत पढ़ने के लिए.
इक नई इबारत गड़ने के लिए.
वो रांझा आज भी मारा फिरता है .
अपनी हीर की तलाश में.
जो मशरूफ है अपनी जिंदगानी में
अपनी जवानी में..
तख़्त हजारे को याद कर के
वो आज भी रोता है
हीर अब चेटिंग से
रोज इक नई दास्तां बनाती है.
bie bulla shah ki yaad taaza kar di.
जवाब देंहटाएंदिल्लगी से मैंने छुए और - हाथ में आये तो दास्तां बन गए.
जवाब देंहटाएंआपकी रचना चोरी हो गयी ..... यहाँ देखे
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_8465.html
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जवाब देंहटाएंजनाब इतना सुन्दर लिखते ही क्यों है की चोरी हो जाये। आखिर चोर भी इंसान है बेचारा। मुझे तो सच हँसी आ रही है।
जवाब देंहटाएंचोर कि रपट लिखाओ भैया ..
जवाब देंहटाएंचोर तो चोरी करेगा ही. हमारे भी ब्लाग पर जनाब पधारे थे.आखिर कविता में दम था तभी ना. बाबा की बकबक है ही इस तरह की कि किसी की भी नजर लग जाय. बहुत सुन्दर कविता.हीर को भी आरकुट वालों ने अपने जाल में फंसा रखा होगा. बेचारा रांझा.....
जवाब देंहटाएंयह नये ज़माने की चेटिंग करने वाली हीर है
जवाब देंहटाएंबाबा जी,
जवाब देंहटाएंशुक्र है हरकीरत हीर जी ने आपकी ये पोस्ट नहीं पढ़ी, नहीं तो आपकी खैर नहीं होती...
जय हिंद...
अच्छा तो ये बात थी ......
जवाब देंहटाएंखुशदीप जी आप एक मेल कर देते तो हम खैर लेने पहले आ जाते .....हा...हा...हा....!!
कौशल जी, सक्सेना जी, उपेन्द्र जी और शरद जी, आपका ये प्यार ही तो कुछ न कुछ बकने को मजबूर करता है.
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी, खुशदीप जी और हरकीरत ही आपका आभार - पहली बार मेरे ब्लॉग पर विजिट किया है.
बाकि चोर भाई - छोटे ब्लोगर है - वैसे ही कम लिखते हैं - वो भी आप ले उड़ोगे तो हम क्या करेंगे.
दीपक जी आई तो थी आपकी खूबसूरत नज़्म देख कर पर बीच में खुशदीप जी की टिपण्णी की ओर ध्यान चला गया और आपकी नज़्म की बात अधूरी ही रह गयी ....
जवाब देंहटाएंफिजा में तैर रहे थे कुछ हर्फ़ महफूज़ से
दिल्लगी से मैंने छुए और -
हाथ में आये तो दास्तां बन गए.
कहीं हीर रांझा लिख दिया
और कहीं .....
दिल्लगी भी यूँ की तूने रान्झया ...
तू अपनी बात भूल गया
चैटिंग की बात कह, हीर बदनाम कर गया ......
दिल्लगी भी यूँ की तूने रान्झया ...
जवाब देंहटाएंतू अपनी बात भूल गया
चैटिंग की बात कह, हीर बदनाम कर गया ....
जहां रांझा इक पायल कि झंकार पर दोड़ता चला आता था.
अब हीर बज़ करके ओरो को बुलाती है.
ये नए ज़माने कि बात है.
हरकीरत जी,
मेरे ख्याल से ये ठीक है न.