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देखो मेरे पीछे मत आना........
मैं तुम्हारे प्यार में मजबूर हूँ मैना
नहीं .... हमें इसी दुनिया में रहना है..
देखो मैना.. तुम्हारे बगैर ये दुनिया मुझे मंज़ूर नहीं.
नहीं हमारे घर वाले क्या कहेंगे.
घर वालों से पूछ कर प्यार किया था क्या.....
वो मेरे नादानी भरे जज्बात थे......
पर मैं तो सोच कर तुम्हारे साथ चला था..
अब कुछ नहीं हो सकता......
नहीं मैना, तुम वायदे तोड़ नहीं सकती...
वो मेरा बचपना था.........
नहीं, तुम तो जवान थी......
हाँ, पर अब मैं समझदार हूँ......
मैना, मैं भी उस समय समझदार था..
पर तुम्हारी निगाह मेरे बाप की दौलत पर है..
मैना, अगर तुम्हारा बाप अमीर है तो मेरी क्या गलती...
तुमने और लड़कियों से भी तो फ्लर्ट किया....
वो तो मेरे पीछे थी, मैं ही हेंडसम था .. इसमें मेरा क्या कसूर....
देखो, मेरे घरवालों ने मेरा रिश्ता एक अच्छे घर में तय किया किया है...
तो क्या मैं मिस्टर शिनॉय को वो MMS मेल कर दूं ....
और संवाद खत्म हो जाता है..
मतलब अब ये सब लिखोगे.......
जवाब देंहटाएंbaba ji
जवाब देंहटाएंkya kiya jay. naye jamane ka hitech pyar hai.....
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जवाब देंहटाएंबस और कुछ नहीं!
हा हा क्या दीपक बाबा आप यह सब भी करेंगे?
जवाब देंहटाएंतुम्हारे प्यार में मजबूर हूँ मैना
जवाब देंहटाएंअरे बाबा। धमकी?
जवाब देंहटाएंमहाभारत धर्म युद्ध के बाद राजसूर्य यज्ञ सम्पन्न करके पांचों पांडव भाई महानिर्वाण प्राप्त करने को अपनी जीवन यात्रा पूरी करते हुए मोक्ष के लिये हरिद्वार तीर्थ आये। गंगा जी के तट पर ‘हर की पैड़ी‘ के ब्रह्राकुण्ड मे स्नान के पश्चात् वे पर्वतराज हिमालय की सुरम्य कन्दराओं में चढ़ गये ताकि मानव जीवन की एकमात्र चिरप्रतीक्षित अभिलाषा पूरी हो और उन्हे किसी प्रकार मोक्ष मिल जाये।
जवाब देंहटाएंहरिद्वार तीर्थ के ब्रह्राकुण्ड पर मोक्ष-प्राप्ती का स्नान वीर पांडवों का अनन्त जीवन के कैवल्य मार्ग तक पहुंचा पाया अथवा नहीं इसके भेद तो परमेश्वर ही जानता है-तो भी श्रीमद् भागवत का यह कथन चेतावनी सहित कितना सत्य कहता है; ‘‘मानुषं लोकं मुक्तीद्वारम्‘‘ अर्थात यही मनुष्य योनी हमारे मोक्ष का द्वार है।
मोक्षः कितना आवष्यक, कैसा दुर्लभ !
मोक्ष की वास्तविक प्राप्ती, मानव जीवन की सबसे बड़ी समस्या तथा एकमात्र आवश्यकता है। विवके चूड़ामणि में इस विषय पर प्रकाष डालते हुए कहा गया है कि,‘‘सर्वजीवों में मानव जन्म दुर्लभ है, उस पर भी पुरुष का जन्म। ब्राम्हाण योनी का जन्म तो दुश्प्राय है तथा इसमें दुर्लभ उसका जो वैदिक धर्म में संलग्न हो। इन सबसे भी दुर्लभ वह जन्म है जिसको ब्रम्हा परमंेश्वर तथा पाप तथा तमोगुण के भेद पहिचान कर मोक्ष-प्राप्ती का मार्ग मिल गया हो।’’ मोक्ष-प्राप्ती की दुर्लभता के विषय मे एक बड़ी रोचक कथा है। कोई एक जन मुक्ती का सहज मार्ग खोजते हुए आदि शंकराचार्य के पास गया। गुरु ने कहा ‘‘जिसे मोक्ष के लिये परमेश्वर मे एकत्व प्राप्त करना है; वह निश्चय ही एक ऐसे मनुष्य के समान धीरजवन्त हो जो महासमुद्र तट पर बैठकर भूमी में एक गड्ढ़ा खोदे। फिर कुशा के एक तिनके द्वारा समुद्र के जल की बंूदों को उठा कर अपने खोदे हुए गड्ढे मे टपकाता रहे। शनैः शनैः जब वह मनुष्य सागर की सम्पूर्ण जलराषी इस भांति उस गड्ढे में भर लेगा, तभी उसे मोक्ष मिल जायेगा।’’
मोक्ष की खोज यात्रा और प्राप्ती
आर्य ऋषियों-सन्तों-तपस्वियों की सारी पीढ़ियां मोक्ष की खोजी बनी रहीं। वेदों से आरम्भ करके वे उपनिषदों तथा अरण्यकों से होते हुऐ पुराणों और सगुण-निर्गुण भक्ती-मार्ग तक मोक्ष-प्राप्ती की निश्चल और सच्ची आत्मिक प्यास को लिये बढ़ते रहे। क्या कहीं वास्तविक मोक्ष की सुलभता दृष्टिगोचर होती है ? पाप-बन्ध मे जकड़ी मानवता से सनातन परमेश्वर का साक्षात्कार जैसे आंख-मिचौली कर रहा है;
खोजयात्रा निरन्तर चल रही। लेकिन कब तक ? कब तक ?......... ?
ऐसी तिमिरग्रस्त स्थिति में भी युगान्तर पूर्व विस्तीर्ण आकाष के पूर्वीय क्षितिज पर एक रजत रेखा का दर्शन होता है। जिसकी प्रतीक्षा प्रकृति एंव प्राणीमात्र को थी। वैदिक ग्रन्थों का उपास्य ‘वाग् वै ब्रम्हा’ अर्थात् वचन ही परमेश्वर है (बृहदोरण्यक उपनिषद् 1ः3,29, 4ः1,2 ), ‘शब्दाक्षरं परमब्रम्हा’ अर्थात् शब्द ही अविनाशी परमब्रम्हा है (ब्रम्हाबिन्दु उपनिषद 16), समस्त ब्रम्हांड की रचना करने तथा संचालित करने वाला परमप्रधान नायक (ऋगवेद 10ः125)पापग्रस्त मानव मात्र को त्राण देने निष्पाप देह मे धरा पर आ गया।प्रमुख हिन्दू पुराणों में से एक संस्कृत-लिखित भविष्यपुराण (सम्भावित रचनाकाल 7वीं शाताब्दी ईस्वी)के प्रतिसर्ग पर्व, भरत खंड में इस निश्कलंक देहधारी का स्पष्ट दर्शन वर्णित है, ईशमूर्तिह्न ‘दि प्राप्ता नित्यषुद्धा शिवकारी।31 पद
अर्थात ‘जिस परमेश्वर का दर्शन सनातन,पवित्र, कल्याणकारी एवं मोक्षदायी है, जो ह्रदय मे निवास करता है,
पुराण ने इस उद्धारकर्ता पूर्णावतार का वर्णन करते हुए उसे ‘पुरुश शुभम्’ (निश्पाप एवं परम पवित्र पुरुष )बलवान राजा गौरांग श्वेतवस्त्रम’(प्रभुता से युक्त राजा, निर्मल देहवाला, श्वेत परिधान धारण किये हुए )
ईश पुत्र (परमेश्वर का पुत्र ), ‘कुमारी गर्भ सम्भवम्’ (कुमारी के गर्भ से जन्मा )और ‘सत्यव्रत परायणम्’ (सत्य-मार्ग का प्रतिपालक ) बताया है।
स्नातन शब्द-ब्रम्हा तथा सृष्टीकर्ता, सर्वज्ञ, निष्पापदेही, सच्चिदानन्द , महान कर्मयोगी, सिद्ध ब्रम्हचारी, अलौकिक सन्यासी, जगत का पाप वाही, यज्ञ पुरुष, अद्वैत तथा अनुपम प्रीति करने वाला।
अश्रद्धा परम पापं श्रद्धा पापमोचिनी महाभारत शांतिपर्व 264ः15-19 अर्थात ‘अविश्वासी होना महापाप है, लेकिन विश्वास पापों को मिटा देता है।’
मिलता जुलता वाकया देखा है मैंने। उस शाम ट्रेन में होस्टल के बहुत से स्टुडेंट्स थे, जब भीड़ कुछ कम हुई तो एक लड़के ने अपनी दूर बैठी दोस्त को आवाज देकर अपने पास बुलाया। कई बार बुलाने पर भी जब लड़की नहीं आई तो उसने फ़िर से आवाज लगाई, "ये देख, और मोबाईल ऊपर उठाकर बटन दबाने लगा।" लड़की आ गई, संवाद तो खैर नहीं ही हुआ फ़िर........
जवाब देंहटाएंजय हो!
जवाब देंहटाएंबेनामी जी की महाभारत कथा से MMS का सम्बन्ध पता करने की कोशिश कर रहा हूँ। मालूम पड़ते ही पुन: आ जाऊँगा ;)
बेनामी जी हिन्दू ग्रंथों में चिलगोंजई (अर्थ के लिए सतीश पंचम से सम्पर्क करें) ढूँढ़ रहे हैं। यह आजकल लेटेस्ट फैशन हो गया है - अल्ल, बल्ल, सल्ल, क्रस्ट, भ्रष्ट सब ढूँढ़ लो, सब मिलेगा। ससुरे ऋषि मुनि भी इतना ऊँचा मूतने की नहीं सोचे होंगे, अपने ही मुँह में धार पहुँच जाती।
जवाब देंहटाएंवैसे आप धन्य हैं दीपक बाबा! किसी ब्लॉग की टीप पर ऐसा प्रचार पहली बार देखा है। कुमारीपुत्र की जय हो! बोलो करमकष्ट बाबा की जय!
इन्हें कनवर्ट होने का झाँसा देकर पता मालूम कीजिए ताकि MMS भेजा जा सके। वाकई इंटरेस्टेड कैंडिडेट होंगे।
@गिरिजेश जी, पता नहीं का है कि लाल सलाम से लेकर सफेद पोस्ट चंगाई प्राथना वाले हमका "इंटरेस्टेड कैंडिडेट" काहे समझते हैं.
जवाब देंहटाएंआखिर सच बाहर आ ही गया...
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