२ अक्टूबर २०१० समय दोपहर २-३ बजे के बीच और मैं पार्क के ठीक गेट के पास दूकान पर बैठ कर बोर हो रहा हूँ और महसूस कर रहा हूँ कि अगर घर में अगर नेट का कनेक्शन होता तो कुछ बेशक कुछ पोस्ट नहीं लिख पता पर टिपण्णी तो दे ही देता – और शायद कोई ब्लोगर खुश हो कर ५-७ रुपे फी टिपण्णी हिस्साब से मेरे अकाउंट में जमा करवा देता.
पर पता नहीं क्यों जिस जगह बैठा हूँ, वहाँ भी किसी चिट्ठाजगत से कम नहीं लग रहा. सभी ब्लोगर महोदय के पात्र घूमते हुवे नज़र आते है – दारू में धुत – बापू को श्रद्धांजलि देते हुए. २ अक्टूबर है – राष्ट्रीय छुटी है अत: लगता है कल दारू ही थोक में खरीद ली होगी.
बगल पार्क से एक शराबी आता है – जो ठीक धर्मेन्द्र की तरह कमीज़ के ३ बटन उपर के खोल रखे है – उसके २ मित्र और मित्रों कि भाभी – यानी उस शराबी की पत्नी उसको घर ले जाने की असफल चेष्टा करते हुई – लाला को पांच का सिक्का देती है और लाला उसको स्वत: ही १ कुबेर और २ दिलबाग के पाउच पकड़ा देता है. बड़े प्यार से से वो पतिदेव के जेब में डालती है. धीरे-धीरे ये लोग नाट्य-मंच से दूर हो जाते है....... पर दिमाग में नेपथ्य से वो प्यार भरी आवाजें आती रहती है.
नाट्य-मंच पर अकस्मात ही एक नेपालन औरत आती है और लाला को हँसते हुए कहती है, परेशान होकर मैंने ‘उसे’ नेपाल भेज दिया है. सारा दिन मर खप के पेट भरने लायक तो कमा ही लुंगी – पर बेज्जती बरदास्त नहीं होती. मुझे मारे – तो चोट मुझे ही लगती है – पर आसपास के लोगो से उसको पिटते देखती हूँ तो भी चोट मुझे ही लगती है......... वो बोल रही है .........
पर नेपथ्य........ एक ओरत कूट पिट भी रही है और अपने पतिदेव को गर्म हल्दी-तेल भी लगा रही और और उसका चेहरा अपने शरीर की चोटों से कम और पति के जख्मो से ज्यादा दर्द से तपा जा रहा है. आकाशवाणी पर गाँधी बाबा का भजन गया जा रहा है – वैष्णो जन तो उनको कहिये, जो पीर पराई जाने रे.........
फिर धर्मेन्द्र कि पत्नी भागती पार्क कि तरफ से जा रही है, बोलती जाती है – कल फेक्टरी से २००० एडवांस मिले थे – पता नहीं लड़ाई झगडे में कहाँ गेर आया या किसने खींच लिए.
नंगे-पैर वो पार्क में चली जाती है.
थोड़ी देर धर्मेन्द्र फिर से साले कुत्ते, कमीने, माँ, भेण करता हुवा लडखडाता – चल रहा है.
आकशवाणी में ‘जागते रहो’ का गाना बज रहा है जिंदगी ख्वाब है, ख्वाब मे झूठ है क्या और भला सच है क्या...
भारी मन से उठकर में पार्क जाता हूँ और उस झील में अपनी तम्बाकू कि पुडिया फैंक देता हूँ................. आज २ अक्टूबर है. टहलते टहलते शमशान कि तरफ चला जाता हूँ वहाँ एक शव को लेकर कुछ लोग आये हैं – में मन ही मन प्रणाम करके शमशान कि चारदीवारी के बाहर आ जाता हूँ, वहाँ (शमशान के पीछे) फिर ४-५ शराबी उलझे मिलते हैं, साथ में दोलक और मजीरा भी है. शायद कोई भोजपुरी या फिर पूर्व का कोई खांटी गीत गा रहे हैं. गीत कि लय को पकड़ कर में वही बेंच पर बैठ जाता हूँ, पर गीत के बोल समझ में नहीं आ रहे.
क्या हो रहा हैं यहाँ – कड़क आवाज में मैं पूछता हूँ.
आज छुटी है बाबू, एन्जॉय कर रहे हैं.............
बुरा मत माना बाबू................. लो इ लियो, कह कर एक प्लास्टिक का मय से भरा गिलास मेरी तरफ बड़ा देते हैं.
पता नहीं किस मूड में में वो गिलास थाम लेता हूँ..........
ढोलकी और मजीरे तेज बजने लगते हैं –
कद्दू काट मृदंग बनावे, नीबू काट मंजीरा,
पाँच तरोई मंगल गावें, नाचे बालम खीरा
रूपा पहिर के रूप दिखावे, सोना पहिर रिझावे,
गले डाल तुलसी की माला, तीन लोक भरमावे।।
ये लोग अपने दिल में मस्त गाते जाते है
वहाँ शमशान में अग्नि तेज़ी से शव के साथ-साथ मेरे नव अंकुरित प्रण को भी प्रजवलित करती है......... पता नहीं मुझे क्या हो जाता है
मैं नाचने लग जाता हूँ, उछलता हूँ - कुदद्ता हूँ, फिर मटके-झटके भी लगता हूँ,
कुछ दलीप कुमार के भाव बनाता हूँ, कुछ राजकपूर का अभिनय करता हूँ और आखिर नशे से बदमस्त होकर वहीं गिर जाता हूँ जहाँ घीसू और माधो गिरे थे.
आज २ अक्टूबर है ............ बापू का जन्मदिन....................
राष्ट्रीय छुट्टी है........ और दारू के ठेके बंद है.
picture : with thanks from google
bahut sateek depak babu...
जवाब देंहटाएंgandhi jayani ki shubhkamnayen.
दद्दा, राम राम -
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार - आपने मेरा उत्साह बनाया.
जवाब देंहटाएंहॉट सेक्शन अब केवल अधिक 'पढ़े गए' के आधार पर कार्य करेगा
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क्या बात है ....!!
जवाब देंहटाएंबापू का जन्मदिन मनाने का ये नया अंदाज़ पसंद आया .....
नेपथ्य के माध्यम से आपने कथा को खूब रंग दिए हैं ....
बहुत अच्छा लिखते हैं ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति है। इसके लिए आपको आभार
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
बाबाजी,
जवाब देंहटाएंजिस तरह टुन होने के बावजूद मस्ती में आपने लिख दिया, उसी तरह हमने भी पिनक में होते हुए भी पढ़ लिया...गांधी जी जीते जी देश आज़ाद करा गए, स्वर्ग जाने के बाद भी कम से कम एक दिन तो छुट्टी का जुगाड़ कर ही गए...
जय हिंद...
एक शब्द में बोलें?
जवाब देंहटाएंवाssssह!
आशीष
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प्रायश्चित
बहुत अच्छा लिखते हैं ....
जवाब देंहटाएंयह दुनिया एक रंगमंच ही तो है । गान्धी बाबा अपना रोल करके चले गये और अब हम सब अपना अपना रोल कर रहे हैं । ज़िन्दगी थोडा सा यथार्थ है और बाकी सब ख्वाब .. और ख्वाब मे झूठ क्या और सच क्या ? सब......सच है ।
जवाब देंहटाएंbahut achchi likhi hai.
जवाब देंहटाएंrangmanch ke sath achchhi prastuti
जवाब देंहटाएंdunia to ek mela hai.
जवाब देंहटाएंsunder vichaar hai .
हमेशा कि तरह आपने मेरी बक बक सुनी और उत्साहवर्धन किया - आप सब का आभार.
जवाब देंहटाएंjai ho bakbakanand maharaj.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत बक बक के लिए तथा शानदार प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएँ। -: VISIT MY BLOG :- जमीँ पे है चाँद छुपा हुआ।.............कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखते हो दीपक बाबा , अंत तक एक एक लाइन पढवा कर ही माने !
जवाब देंहटाएंसमाज को अच्छा दोगे इस आशा के साथ हार्दिक शुभकामनायें !