“कबाड़ी, पेपोर, रद्दी वाला............”
“कबाड़ी, पेपोर, रद्दी वाला............”
मैं बालकोनी से झांक कर उसे देखता हूँ – साइकिल पर वज़न लादे – वो खड़ा है – मलीन कपड़ों में. एक लोहे के डंडे को आलम्ब देकर उसने साइकिल को खड़ा किया है. और सुरती बनाते बनाते – चिल्ला रहा है “कबाड़ी, पेपोर, रद्दी वाला............”
सच, अगर ये कबाडी वाले न हो तो – पत्ता नहीं हमारा घर कितने कबाड से अट्टा-पट्टा रहे. कित्ते ही.... आप सोच कर देखिये........ क्या क्या नहीं ले जाता ये. बस हमारी दुःख तकलीफों को छोड़ कर. और शायद ये हमारे दुःख और दुस्वपन भी ले जाता है. आपकी बुरी यादें - वो कोर्स की विज्ञान और गणित कि किताबे जो नहीं पढ़ पाए. जिन किताबों को देखते ही दृष्टि तुरंत अपनी हथेलियों पर चली जाती है – कित्ते ही डंडे मारे थे – गणित के सरजी ने, वो सभी किताबे ले जाने को उद्दत है ये. नव यौवन के उस जज्बाती कालखंड में माशूक ने जो कविताओं की किताब आपको दी थी – प्रथम पृष्ठ पर अपने जज्बात लिख कर. जो घर के एक सुरक्षित स्थान पर रखी रखी आपको घूरती रहती है – चैन नहीं देती – सोने नहीं देती. तुलवा कर इस कबाडी को दे दो – एक दो सिगरेट या फिर चाय के पैसे मिलेंगे सो अलग और चैन कि नींद का आनंद अलग.
उसके झोले जो साइकिल के दोनों और झूल रहे है - उसमे कुछ हिंदी के पुराने नोवेल झांक रहे थे..... मैं तुरंत नीचे उतरा और – उसका झोला उलट दिया......... मतवाला: लेखक-लोकदर्शी, पत्थर दिल और गुनाह – आदिल रशीद, उज्जली सुबह – लेखक मीनाक्षी माथुर, पाषाण पंख - लेखक नानक; ये सभी उपन्यास हार्ड बाइंडिंग में थे और सबसे उलेखनीय और सबसे बुरी दशा में जो था वो - जय शंकर प्रसाद कृत तितली का. अपने पुराने स्वरुप में मिला. ये सभी उपन्यास लगभग १९७०-७४ तक के काल में प्रकाशित हुए थे. किसी लाइब्रेरी के थे – रद्दी वाले ने ढंग से जवाब नहीं दिया.
मैंने मूल्य पुछा – तो वो बोला की एक सरदार जी हैं – जिनकी पुरानी किताबों कि दूकान है – वो दस रुपे प्रति किताब के हिसाब से खरीदते हैं. जाहिर है – मैंने उसको पैसे दिए और उपन्यास कब्ब्जे में लेकर आ गया.
“दुनिया घर से कबाड निकल कर बेचती है और साहब रद्दी उठा कर घर ले आये.”
ज़ाहिर है होम मिनिस्टर के ये वक्तव्य आपका इन्तेज़ार कर रहे है.
ये उपन्यास पढ़ने ने के लिए क्या चाहिए ? शमशान के पीछे की शांति, तम्बाकू कि पुडिया और इसके के साथ चाय के कप मिल जाए तो कहना ही क्या ?
लोकदर्शी : जाहिर सी बात है की उनका असली नाम नहीं होगा. असली नाम मालूम भी नहीं पड़ा. मतवाला – पढ़ने पर ब्लैक & व्हाइट कोई चलचित्र दिमाग में घूमने लगा. बढिया कथानक था - देवानंद या फिर धर्मेन्द्र का कोई हीरो, जो मतवाला “सतीश” है मस्त आदमी है और मस्ती में फंस जाता है चक्रव्यूह में – और अपनी सादगी और दरियादिली से निकल भी आता है. लोकदर्शी का लिखने का ढंग ऐसा ही कि पूरा उपन्यास ही आँखों के सामने चलचित्र की मानिंद घूमता रहता है.
जय शंकर प्रसाद कृत तितली – अंग्रेजी हुकूमत के समय में ग्राम्य पृष्ठभूमि वाला उपन्यास है ये. प्रेमचंद के किसी भी उपन्यास जैसा ही.
कहानी एक नारी पात्र – तितली को लेकर लिखी गई है. तहसीलदार, जमींदार, मुंशी और मंदिर के महंत नायक – मधुबन, कहानी के सह पात्र इन्द्रेश की माता इत्यादि.
बढिया कहानी थी ........... अंत तक तितली की “छोटी – किन्तु व्यवस्थित गृस्थी” पर खत्म होता है.
सबसे मुख्या बात है – जय शंकर प्रसाद जी ने इस उपन्यास में जो “जीवन दर्शन” लिखा है बहुत बढिया है. उपन्यास मैंने बाईडर को दिया है ठीक करने के लिया. अगली पोस्ट में कुछ पंक्तियाँ वहाँ से टीप कर टाइप करूँगा.
जय राम जी की.
फोटो : sarsonkekhet.blogspot.com से आभार सहित.
भई...एक साहब से बात चीत के दौरान आपकी बहुत तारीफ़ सुनी ...... और आज देख भी लिया.... अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आ कर...
जवाब देंहटाएंचलिये आज बाबा जी को कबाड में हीरे मिले. बहुत अच्छा.
जवाब देंहटाएंbhai bunty chor aa gaya badhi ho .
जवाब देंहटाएंlagta hai chor ne chori chod dee.
बाबाजी,
जवाब देंहटाएंहमारी अरज सुनो।
दिल्ली पब्लिक लाईब्रेरी के मेंबर बनो जरा अगर नहीं हैं अब तक तो। दिल्ली स्टेशन के सामने वाली मेन ब्रंच में किताबों का खजाना है।
बलवंत सिंह, विजयदान देथा, आशुतोष मुखर्जी, विवेकी राय, रांगेय राघव और पता नहीं कौन कौन।
मैं अपने घर से भी ज्यादा मिस कर रहा हूँ डीपीएल को।
लगा कि शौक है किताबों का सो सलाह दे दी, अच्छी लगे तो अपना लो. बुरी लगे तो........।
हा हा हा
आपको तो खजाना मिल गया भाई बधायी हो
जवाब देंहटाएंमहफूज़ अली साहेब, धन्यवाद आपका - हमरे डेरे पे आये.
जवाब देंहटाएंबाकि, बंटी चोर जी.... लगता है आज आपको मेरा लेख पसंद नहीं आया, नहीं तो ले उड़ते........ और हम देखते रहते.
बहरहाल - आभार.
उपेन्द्र जी, मिश्र जी, आपका धन्यवाद हमेशा की तरह.
जवाब देंहटाएंऔर संजय जी (मो सम कौन वाले) भाई इत्ती भी न है कि दिल्ली पब्लिक लाईब्रेरी खुद जा कर किताबे लाएं.
इससे तो झील वाला पार्क अच्छा है - थाली बैठने के लिए.
अरविन्द जी, आप भी रोबोर्ट से मिल आये - बधाई.
जब इस तरह की किताबे पढ़ने की इच्छा थी तो कोर्स की किताबो से फुरसत नहीं मिलती थी उसके बाद समय मिला तो खुद ही लिखने का भूत सवार हो गया तो पढ़ते क्या | हा चार साल पहले जय शंकर जी की तितली को पढ़ा था पर याद बहुत कम ही है दो चार पंक्तिया लिख देंगे तो सब याद आ जायेगा|
जवाब देंहटाएंवाह!! यह तो खजाना हाथ लग गया आपके...अब सुनाते चलें.
जवाब देंहटाएंदीपक जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन
आनंदित कर दिया आपने
सच घूरे से हीरे ही मिलते हैं
मिसफ़िट पर आने के लिये शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअंशुमाला जी, समीर जी और गिरीश बिल्लोरे जी, उत्साह वर्धन के लिए आभार
जवाब देंहटाएंकबाड़ से कीमती खजाना ढूंढ लाये ...
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी ...!
@जब इस तरह की किताबे पढ़ने की इच्छा थी तो कोर्स की किताबो से फुरसत नहीं मिलती थी उसके बाद समय मिला तो खुद ही लिखने का भूत सवार हो गया तो पढ़ते क्या
जवाब देंहटाएंहा हा हा .... अंशुमाला जी से सहमत हूँ
मजा आया पढ़ कर :)
अब से कबाड़ियों की किताबों पर भी नजर रहेगी अपनी तो :))
blog par aane ke liye dhnyvad
जवाब देंहटाएंशमशान के पीछे की शांति, तम्बाकू कि पुडिया और इसके साथ चाय के कप ... अपने लिये भी यही ज़रूरी है ।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन के लिये आभार एवं "उम्र कैदी" की ओर से शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंजीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव भी जीते हैं, लेकिन इस मसाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये यह मानव जीवन अभिशाप बना जाता है। आज मैं यह सब झेल रहा हूँ। जब तक मुझ जैसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यही बडा कारण है। भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस षडयन्त्र का शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल दो मिनट का समय हो तो कृपया मुझ उम्र-कैदी का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आप के अनुभवों से मुझे कोई मार्ग या दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये।
आपका शुभचिन्तक
"उम्र कैदी"
अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंतीन गो बुरबक! (थ्री इडियट्स!)-2 पर टिप्पणी के लिए आभार!
मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .. आपने तो बहुत ही बड़ी बात कह दी , जो की आपकी महानता है ...
जवाब देंहटाएंआपकी टिपण्णी के जरिये ही आप के ब्लॉग को पढने का मौका मिला . और पढ़कर बहुत अच्छा लगा ,
यह rachna बहुत अच्छी लगी ..सही कहा आपने कि सच, अगर ये कबाडी वाले न हो तो – पत्ता नहीं हमारा घर कितने कबाड से अट्टा-पट्टा रहे. ..
"आनंदित कर दिया आपने
जवाब देंहटाएंसच घूरे से हीरे ही मिलते हैं..."
पता नहीं आपको किसने ढूँढा ... :-))