इस धरा पर अगर मेरे जैसे लोग जन्म ले कर शांति के लिए अनाप शनाप तरीके आजमा रहे है तो गलत है ....... सवेदनाओ को एक किनारे कर के समाज में एकरस हो जाना ही जीने की कला है... या फिर भावनाओं में जकड कर अपने को समाज से किनारे रखना .... दूसरी कला. अब अपने पर निर्भर करता है की कौन सी कला में निपुण होकर जीने लायक है.
हम है उस प्रभु के दासा.......
देखन आये जगत तमाशा..
इस तर्ज़ पर दूर से दुनिया को देखना और उस में खुद निर्लेप न होना. या खुद को दूर ही रखना - हर वाद, धारा, सम्युदाय, क्षेत्र से.
विश्व साहित्य प्रसिद्ध साईंस फिक्शन कृति ब्रेव न्यू वर्ल्ड के लेखक आल्डूअस हक्सले साहब के कथन हैं -
“गंगा में मोक्ष की अभिलाषा लिए लोगों को डुबकी लगाते देख उनका चिन्तक मन क्लांत हो गया ..उन्होंने आगे लिखा -
"भारतीयों ने जीवन के संघर्ष से मुंह मोड़ काल्पनिक सत्ताओं का सृजन कर लिया -आत्मा परमात्मा और मोक्ष जैसी धारणाएं इसी का परिणाम है !"”
“गंगा में मोक्ष की अभिलाषा लिए लोगों को डुबकी लगाते देख उनका चिन्तक मन क्लांत हो गया ..उन्होंने आगे लिखा -
"भारतीयों ने जीवन के संघर्ष से मुंह मोड़ काल्पनिक सत्ताओं का सृजन कर लिया -आत्मा परमात्मा और मोक्ष जैसी धारणाएं इसी का परिणाम है !"”
मित्र सुरेश नागपाल जी के शब्द है....
क्यों, भई, क्यों चाहिए तुम्हे शांति......... कर्म करो....... शांति वान्ति कहीं नहीं है. तुम कहते शांति ..... नहीं मिलती ... और अब मेरे ख्याल से मिलनी भी नहीं चाहिए. यहाँ मानव जन्म में शांति का क्या काम. कर्म की बात करनी चाहिए..... शांति तो उन संतो को भी नहीं मिलती जो दूर कंदराओ में बैठे है. जो संन्यास धारण करके भी अखाड़ों और पदवी की राजनीति में उलझे रहते है.. और तुमने तो मात्र अपने नाम के आगे मात्र बाबा लगाया है.
अन्न धन और वैभव से परिपूर्ण सेठ का पता नहीं क्या हुवा...... शांति की तलाश में चल पड़ा. दूर किसी जंगल में जाकर राम जी के चरणों में धूनी जमा कर बैठ गया और.... प्रभु को सेठ की जिद्द के आगे नतमस्तक होकर दर्शन देने पड़े. तपस्या से खुश होकर उस नगर सेठ को राष्ट्र सेठ बनाने के धन-धन्य इत्यादी .. सेठ में कहा प्रभु मुझे ये सब नहीं चाहिए.......
मुझे बस शान्ति चाहिए.. राम जी ने कहा ... सेठ, तुमने रामायण पढ़ कर ऐसा सोच रहे हो........ मानव जन्म में तो मुझे कहाँ शान्ति मिली थी......सारी जिंदगी मात्र परेशानी, संघर्ष के अलावा क्या थी..... क्या मैं भी शांत मन से अजोध्या में एक किनारे बैठ कर जिंदगी नहीं काट सकता था..........
सत्य है....... इश्वर ने अवतार लिए है.. मात्र हमको रास्ता दिखाने को ही हैं.
...... और हम लोग अंधभक्ति में पड़ कर घंटी बजाने लग जाते हैं और उस कहानी के तत्व ज्ञान को भूल जाते हैं........
...... और हम लोग अंधभक्ति में पड़ कर घंटी बजाने लग जाते हैं और उस कहानी के तत्व ज्ञान को भूल जाते हैं........
शान्ति नहीं............
अब क्रांति की बात होनी चाहिय........
भारत वर्ष में हर क्षत्र में क्रांति चाहिए.........
हम यानी लगभग १.२५ अरब की संख्या वाला देश जिसमे लगभग पच्चास प्रतिशत युवा माने तो २५ साल से भी कम की उम्र के हैं...............
और यही युवा पीडी किसी न किसी बाबा, संत फकीर के चक्कर में पड़ी है....... कहीं जागरण और कहीं साईं संध्या के लिए दिन रात एक कर रहे हैं.
और यही युवा पीडी किसी न किसी बाबा, संत फकीर के चक्कर में पड़ी है....... कहीं जागरण और कहीं साईं संध्या के लिए दिन रात एक कर रहे हैं.
और हमरा अपना देश बनाने के लिए चीन से श्रमिक भी आने लग गए.......
इस धार्मिक नशे और आलस्य का जीवन छोड़ कर एक नाद कर देना चाहिए.............
इस धार्मिक नशे और आलस्य का जीवन छोड़ कर एक नाद कर देना चाहिए.............
क्रांति.......... हर क्षेत्र में........
हम लोग छोटे-छोटे कार्य में निपुण होकर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट को बनायेंगे..........
बहरहाल, जय राम जी की
हम लोग छोटे-छोटे कार्य में निपुण होकर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट को बनायेंगे......
जवाब देंहटाएंbahut badiya idea diya hai baba ji.
सराहनीय प्रस्तुती..लेकिन इस देश में कोई भी क्रांति सफल नहीं हो सकती जबतक ये जबरदस्ती के गाँधी बने भ्रष्ट नेताओं की पूरी वंस बिज का नास ना हो क्योकि ये साले भ्रष्ट नेता किसी भी इंसान को एक कदम ईमानदारी से चलने ही नहीं देते ...अगर ऐसा नहीं होगा तो आने वाले पांच वर्षों में इंसानियत के वंस बिज का नास होना निश्चित है ...
जवाब देंहटाएं@honesty project democracy
जवाब देंहटाएंसर, कहाँ थे आप इतने दिन.... आपकी टीप भी नज़र नहीं आयी. साहेब जब छुटी पर जाया करें तो कम से कम अपने ब्लॉग पर तो नोटिस दे दिया करें...
हम है उस प्रभु के दासा.......
जवाब देंहटाएंदेखन आये जगत तमाशा..
क्रांति की ज़रूरत है..
जवाब देंहटाएंक्रांति क्या इस से नहीं आ सकती- मैं और आप अपना काम पूरी लगन और ईमानदारी से करें. काम चोरी ना हो.. किसी भी स्तर पर.
क्या ख्याल है आपका
मनोज खत्री
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम
जवाब देंहटाएंदास मलूका कह गए सब के दाता राम
@मनोज जी, स्वागत है..
जवाब देंहटाएं"क्रांति क्या इस से नहीं आ सकती- मैं और आप अपना काम पूरी लगन और ईमानदारी से करें. काम चोरी ना हो.. किसी भी स्तर पर.
क्या ख्याल है आपका"
.. और मेरे ख्याल से आप का ख्याल सही है.
आलसी जीवन जीने वाला का पैगाम
जवाब देंहटाएंआलस्य ही सबसे बड़ा धन है
अल्लाह देगा खाने को तब हम कुयू जाये कमाने को
जवाब देंहटाएंdeepak ji aap ki baat koie nahi sunta hai.
जवाब देंहटाएंabhi kathi kutia likh do bahut logo ka agman hoga
i agreed with honesty project sahib ki teepdi se
जवाब देंहटाएंbaise aajkal babaob ka hi bola bala he, sab short-cut ki maya he, kahe ki chakri baba ji,
papa karo aur ganga-maiya me dubki lagaye le, sab sankat mit-javenge.
aapki bat vicharniye he,
likhte rahiye aur aate rahiye
kranti shabd sunane men bahut achchha lagta hai, har kshetra me ho rahi hai, lekin collective kranti nahi ho rahi, jisakee jyada jarurat hai
जवाब देंहटाएंदीपक बाबा जी हम तो आपकी चाकरी कर रहें हैं ..उसके बदले में कुछ आपके सार्थक विचार पढने को मिल जातें हैं ...आपकी सोच निश्चय ही एक इंसान की सच्ची सोच है...ऐसी सोच बहुत कम लोगों की है ...लेकिन दुःख तो इस बात की है की अच्छी सोच और ईमानदारी भरे हर प्रयास को इस देश और समाज में हर जगह दबाया जाता है और इसमें सबसे आगे हैं ये साले भ्रष्ट नेता और उसके हरामी चमचे...
जवाब देंहटाएंjai babji ki.
जवाब देंहटाएं6/10
जवाब देंहटाएंसामाजिक सरोकार से जुडी एक जरूरी पोस्ट
आपके लेखन में नयापन है..नयी सोच है..लेकिन कसाव नहीं है - थोडा बिखराव सा है. फिर भी पोस्ट सराहनीय है.
दीपक बाबू! जेब्बात! आपका एही तेवर देख कर त जोस भर जाता है मन में, लेकिन फिर बैलून में पिन के जईसा हवा निकल जाता है जब देखते हैं आदर्स कॉलोनी के नाम पर केतना सुंदर आदर्स प्रस्तुत कर रहे हैं देस के बड़े बड़े लोग.. क्रांति का आवाज घुट जाता है... सायद इसीलिए अभाव का महौल बना कर रखा गया है कि इंसान पेट के ऊपर जा ही नहीं पाए... पता नहीं कब दुस्यंत जी का आह्वान रंग लाएगा ऊर आपका भीः
जवाब देंहटाएंहो चुकी है पीर परबत सी, पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए!
देश के कर्णधार ही बेलगाम हैं..
जवाब देंहटाएंdeepak ji ekdum sau take ki bat...........
जवाब देंहटाएंएकदम सही लिखा है जी आपने। सहमत हैं आपसे और सारे कमेंट्स से भी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट।
सत्य वचन कहे हैं आपने। इतने दिनों के बाद आपको पढना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएं---------
मन की गति से चलें...
बूझो मेरे भाई, वृक्ष पहेली आई।
राम को जब वैराग्य हुआ था तो ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी का अहसास करवाया था | उसके बाद उन्होंने कभी शान्ति की मांग नहीं की | राम वन में शान्ति पाने के लिए नहीं गए थे | अगर ऐसा होता तो वे दंडक वन को जाने के बजाय उत्तर को चले जाते | श्रीकृष्ण तो साक्षात कर्म हैं, निष्काम कर्म ... बिना फल की इच्छा किये | 'अबे छोड़ न यार ' मेरा दोस्त कहता है | 'तू भी न.. अच्छा ये बता ... ये तारागो वालों ने 'साइलेंट वेडनेसडे ' करके एक प्रोग्राम रखा है , चलेगा ? एक घंटे तक बिलकुल शांत बैठना है , विदाउट नोइस ...इन्नर पीस..'
जवाब देंहटाएंहम अपने आत्म विश्वास और सवभाव को भूल गए हैं , हम सभी को श्री हनुमान जी से प्रेरणा लेना चाहिए, जब हनुमान जी लंका में गए वहां राक्षसों ने उनकी पूंछ को आग लगा दी, जिस प्रकार राजनीतीयागयों द्वारा हमारी पूंछ को रोज ही आग लगा दी जाती है,
जवाब देंहटाएंहनुमान जी को फिर सोने की लंका दिखाई नहीं दी, उन्होंने उसी पूंछ से पूरी लंका जला दी,
लेकिन हम अपनी जली पूंछ भूल जाते हैं जब हमें सोना दिखाई देता है, तो फिर राजनीतीयज्ञों की लंका केसे जलायेगे, क्रांति से पहले अध्यात्मिक क्रांति की आवश्यकता है