बहुत मुश्किल है दिल में पैदा हुवे जज्बातों को शब्द देना या फिर लफ़्ज़ों में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना. सचमुच बहुत ही मुश्किल है......... कहीं शब्द कम पड़ जाते है ..... कहीं लय नहीं बन पाती ... पर क्या करें भावुक मन है .... और भावना में बह कर लिख रहे हैं.... इस आशा के साथ की गुस्ताखियाँ माफ होंगी.
आज इन शहनाइयों को बजने दो............
इस अँधेरी रात में
चाँद मुबारक हो तुम्हे
हमारे दिल की इस बेकरारी में
तुम्हे दिल का करार आ जाये ..
तुमने आशिकी की हमसे
और सेहरे कि लड़ियों में सजती
हमारी हसरतों को परवाज़ चढ़ने दो
बहकते उन जज्बातों में भी
तुम जो न रुसवा हुवे ज़माने से
और हमसे ही रूठ गए ख्वाब हमारे ..
जी जायेंगे हम इन अंधेरों में
लेके नाम तुम्हारा
तुम्हे सब रोशनियाँ मुबारक हों
आज इन शहनाइयों को बजने दो............
जरूरी नहीं है
हर अफ़साने का एक मुकाम हों...
हमें इस सेहरा में ...
यूँ तन्हा गर्द हों जाने दो ..
आज इन शहनाइयों को बजने दो............
भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति...आभार
जवाब देंहटाएंदीपक जी.. आपके अंदर जो छमता है उसके हिसाब से यहाँ ब्यक्त भाव आपको कमजोर बनाते हैं... इनसे उबरिये.. सार्थक सिरजन आपका इंतजार कर रहा है!!
जवाब देंहटाएं’आवाज’ पर उस गाने का ज़िक्र पढ़कर आये अब यहाँ बाबाजी भी कह रहे हैं शहनाईयों को बजने दो। बजने दो भाई, स्वागत है दीपक जी, त्वाडा भी।
जवाब देंहटाएंमहाराज, सलिल जी की सलाह मान लो - सुखी रहोगे(मतलब कम दुखी रहोगे)।
लिखा अच्छा है, लिखने पर कोई सवाल नहीं है दोस्त, कहीं तुम भी बुरा मान जाओ।
@महेंद्र जी बढिया रहा आपका आना.
जवाब देंहटाएं@सलिल जी, कोशिश करूँगा, आपकी सलाह को नमन.
@संजय जी (मौ सम कौन) "कहीं तुम भी बुरा मन जाओ" और कहाँ कहाँ बुरा कह आए हो........
दीपक बाबा! संजय जी तो गीता हाथ में उठाकर कसम उठा लिए हैं कि जो कहेंगे सच कहेंगे और सच के सिवा कुछ न कहेंगे... ऐसे में इनका काम तो बस सच कहना है, बुरा तो खुद ब खुद बन जाता है वह सच! ज़माने से आगे चलने वाले इंसान के साथ यही होता है!!
जवाब देंहटाएंचलिए लिख मारिये एक कविता इसी थीम पर!!
जी जायेंगे हम इन अंधेरों में
जवाब देंहटाएंलेके नाम तुम्हारा....
प्रेम में ईश्वर बसता है .....
शायद इसलिए इसमें इतनी ताकत होती है .....