१३-१४ साल पुरानी बात कर रहा हूँ, प्रगति मैदान में एक प्रदर्शनी लगी थी, प्लास्टिक उद्योग के उपर .... और उस का नारा था, Life is incomplete without Plastic. तब ज्यादा समझ नहीं आया. पर आज राशन की दुकान पर शेम्पू के, रसोई मसोलों के, टाफी, चाकलेट, नमकीन, बिस्कट, कुरकुरे, पानी, देसी शीतल पेय आदि के पाउच देख कर लगता है कि वास्तव में सही बात है. : Life is incomplete without plastic.
पहले छोटू (१०-१२ साल का लड़का) चाय लेकर केतली में या फिर छीके’ (5-6 या ८ चाय के छोटे गिलास रखने का खांचा) में लाता था. बाद में वो खाली गिलास व केतली या छीके में रख कर वापिस ले जाता था. बाल मजदूरी पर रोक से ये 'छोटू' लोग चाय दूकान से गोल हो गए. अब पार्कों में बैठ कर नशा कर रहे हैं या छोटी मोटी चोरी चकारी. पढ़ने से तो रहे, सरकार जितना भी जतन करे.
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प्लास्टिक की पन्नी में चाय ओर प्लास्टिक के कप, किसी भी व्यावसायिक क्षेत्र में चाय वाला रोज की १२५ से २०० चाय के कप डिस्पोज करता है. |
चाय
वालों के पास इतना सामर्थ्य नहीं था कि किसी बालिग़ को अपनी दुकान पर नौकर रखे, एक तो उसकी तनख्वाह ज्यादा होती है दुसरे छोटू की तरह फुर्ती से काम भी नहीं कर पाते. अब चाय वालों ने ऑफिस/फेक्टरी में फ्री
डिलिवेरी बंद कर दी, गर आपको चाय चाहिए तो आप दूकान से ले कर जाईये. यहाँ भी लोचा
था अपनी जरूरत को तो ऑफिस बॉय चाय ले जाता पर केतली या वो खांचा उस दूकान पर वापिस
करने नहीं आता.
इसका
रास्ता ये निकला कि चाय अब प्लास्टिक की पन्नी में आने लगी और शीशे की ग्लास की
जगह प्लास्टिक के कपों ने ले ली. आप किसी भी व्यावसायिक स्थल पर चले जाए, आपको ऐसे प्लास्टिक
के कपों के ढेर मिल जायेंगे.
२-३
बरस पहले दिल्ली सरकार ने दिल्ली में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया था,
कि कोई ठेले वाला या फिर दुकानदार ग्राहक को पन्नी में सामान नहीं देगा, और तो और तम्बाकू
खैनी और गुटखा तक इसकी जर्द में आ गए और उन पर दबाव रहा कि वो अपनी पैकिंग में
बदलाव करें, जो भी कम्पनीयों ने बदलाव जारी रखे. लाला लोगों ने पांच का कुबेर छे में बेचा, ब्लेक मार्केटिंग हुई.
अंकल चिप्स, कुरकुरे या फिर हल्दी राम जैसे नमकीन पांच रूपये वाले नमकीन या उपर उल्लेखित प्रोडक्ट पर कोई बैन नहीं. आज भी किसी भी पार्क में अगर सबसे ज्यादा कचरा होता है तो प्लास्टिक
के गिलास के बाद इन्ही सब की पैकिंग का होता है. और तो और दिल्ली जैसे महानगर में पानी के छोटे छोटे
पैक भी १ रुपये में मिल जाते हैं, पहले किसी चाय की दूकान पर चाय से पानी की इच्छा
होती थी तो वहाँ रखे मटके से प्यास बुझा ली जाती थी, फ्री में. पर अब ऐसा नहीं है,
पांच रुपये की चाय से पहले आपको १ रुपये के पानी का पाउच लेना पड़ेगा, यदि प्यास
लगी है तो.
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तिहाड गाँव झील के किनारे पर धार्मिक लोगों द्वारा छोड़ा गया कचरा, जिसमे प्लास्टिक की थैलियाँ ही अधिक मात्रा में हैं. |
वाकई,
प्लास्टिक के बिना जीवन अधूरा है, पर इसी प्लास्टिक ने जीवन गरक कर रखा है. खासकर नाले/सीवर
जाम में. सुबह पार्क में देखता हूँ, तो कई लोग ब्रेड, बिस्कट, और नमकीन पोलिथिन
में भर कर लाते हैं, धर्मार्थ हेतु ये सब पक्षियों के खिलाने लाते हैं, पर
इन सब के रेपर वहीँ छोड़ देते है जो हवा से तालाब में आ जाते हैं. और पानी को
गंधियाते रहते हैं - वो ये नहीं सोचते कि पर्यावरण को गन्दा कर कितना अधार्मिक कार्य कर रहे हैं.
ऐसे हालात देख कर लगता है, हमें कम से कम प्लास्टिक के बिना तो जीना सीखना ही होगा. और Life is incomplete
without plastic
के नारे को नकारना होगा.
जय
राम जी की.
सही कहते हैं आप...
जवाब देंहटाएंहमारी ज़िन्दगी ही अब प्लास्टिकमय बन गई है...अब तो बस इतना ही होना है :
चले जायेगे हम ये जहाँ छोड़ कर
रह जायेगी प्लास्टिक हमारी निशानी बन कर
अच्छी लगी आपकी पोस्ट,
शुक्रिया..
सुन्दर विचारणीय पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबिना सोचे समझे प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से
यह भयावह स्थिति भी उत्पन्न कर सकता है.
प्लास्टिक के खिलाफ हम सब को खड़ा होना पडेगा
जवाब देंहटाएंये सिर्फ कानून से खत्म नहीं होने वाला
सार्थक पोस्ट बहुत सुंदर
सब्जी या कुछ भी खरीदने जांय तो अपने साथ उसी हिसाब से एक झोला साथ रख लें। प्लॉस्टिक अपने आप नष्ट नहीं होता इसलिए पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाता है। लालू जी का मिट्टी के बर्तन का प्रस्ताव बहुत बढ़िया था। उनके पद से हटते ही हमने उसे भुला दिया। नेता कभी कभार कोई अच्छा काम कर जाते हैं तो उसके साथी जल्दी ही उसे मिटा देते हैं। :)
जवाब देंहटाएंनेता कभी कभी अच्छा काम करते है, रोज करने की आदत तो है नहीं. अत: उसे जल्दी ही 'ठीक' कर दिया जाता है. वैसे आज धीरे धीरे प्लास्टिक के बैग तो खत्म हो रहे है - पर पाउच की समस्या मुंह-बाए खड़ी है.
हटाएंकाफी है गंभीरता, बाबा बातें गूढ़ ।
जवाब देंहटाएंछोड़ प्लास्टिक दीजिये, सुन ले मानव मूढ़ ।
सुन ले मानव मूढ़, प्लास्टिक कचड़ा कप का।
रैपर कई प्रकार, पैक करता हर तबका ।
दारू पानी दूध, मसाला बिस्कुट टाफी ।
करते खड़े पहाड़, प्रदूषण बढ़ता काफी ।
LAGATA HAI BABA JI RAMDEV KE KHEME KE LIYE KAAM KAR RAHE HAI.....
जवाब देंहटाएंJAI BABA BANARAS.....
बिल्कुल सही कहा है ... सार्थकता लिए सटीक प्रस्तुति...आभार
जवाब देंहटाएंसच्चाई यह है कि प्लास्टिक जीवन से नहीं जायेगा.... बहुत पहले मैंने एक विज्ञापन लिखा था.. ठीक ठीक याद नहीं लेकिन कुछ ऐसा था... मैं प्लास्टिक हूं... मैं अजर हूं.. मैं अमर हूं.. मैं न जल सकता हूं.. न मैं गल सकता हूं... मैं मिट नहीं सकता... मैं प्लास्टिक हूं... धरती के लिए बुरी अत्त्मा हूं..." लेकिन यह बुरी आत्मा इतनी बुरी भी नहीं है.. इसने जीवन को बहुत सरल बना दिया है... अभी भारत में शोध हुआ है और प्लास्टिक की जो समस्या हमें दिखती है वह "irresponsible littering" की वजह से है... यदि विवेकपूर्ण रूप से प्लास्टिक कचरे को निपटा सके हम तो आधी समस्या ख़त्म हो जाती है.... कई और भी शोध हो रहे हैं जो पल्स्टिक को जैवअपघटनीय(बायो डि ग्रेडेबल) बना देंगे.... मेरी एक किताब आ रही है "प्लास्टिक और पर्यावरण" प्लास्टिक के बारे में नवीनतम बातें वहां देने की कोशिश कर रहा हूं... हाँ... देश में जल्दी ही प्लास्टिक की करेंसी भी आने वाली है.... जल्दी ही... परिक्षण आदि हो चुका है....
जवाब देंहटाएंअरुण जी आपने प्लास्टिक पर एक नए कौण से रौशनी डाली, सूचना के लिए आभार.
हटाएं@करेंसी की बात हुई है यहाँ, इसलिए बताना उचित समझा, कनाडा में प्लास्टिक की करेंसी आ चुकी है, और वह सचमुच अजर-अमर है, न सिकुड़ती है, न मुडती है, न फट सकती है, न ही मिट सकती है...हाँ आयरन किया था तो जरा सी जलने लगी थी...
जवाब देंहटाएंवैसे प्लास्टिक मनी तो क्रेडिट/डेबिट कार्ड हैं हीं...
जी सही कहा आपने - क्रेडिट/डेबिट कार्ड प्लास्टिक मनी ही तो है .
हटाएंआभार
पैक एंड केरी में प्लास्टिक का कोई मुक़ाबला नहीं, ऊपर कही बात irresponsible littering काफी हद तक ठीक है. प्लास्टिक मनी का इंतज़ार है, हमने भी सिर्फ़ सुना है !!
जवाब देंहटाएं@पैक एंड केरी में प्लास्टिक का कोई मुक़ाबला नहीं
जवाब देंहटाएंमनोज जी, बस यहीं पैक एंड कैरी से ही सारा 'कांड' हो जाता है.
प्लास्टिक के बिना जीवन अधूरा है, पर इसी प्लास्टिक ने जीवन गरक कर रखा है. खासकर नाले/सीवर जाम में. सुबह पार्क में देखता हूँ, तो कई लोग ब्रेड, बिस्कट, और नमकीन पोलिथिन में भर कर लाते हैं, धर्मार्थ हेतु ये सब पक्षियों के खिलाने लाते हैं, पर इन सब के रेपर वहीँ छोड़ देते है जो हवा से तालाब में आ जाते हैं. और पानी को गंधियाते रहते हैं - वो ये नहीं सोचते कि पर्यावरण को गन्दा कर कितना अधार्मिक कार्य कर रहे हैं...यदि ऐसा सोच लें तो फिर चिंता की कोई बात ही नहीं होती पर आदत बिगड़ जो गयी है, और बिगड़ी आदतें बड़ी जल्दी ख़त्म कहाँ होती है. एक छोडो दूसरी अपनाओ वाली बात ही दिखती है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चिंतनीय और सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार .
@बिगड़ी आदतें बड़ी जल्दी ख़त्म कहाँ होती है.
हटाएंसही बात है, बिगड़ी आदतें जल्दी लगती हैं.
व्यवस्थ बुरी नहीं होती है ! उपयोग करने वाले उसे बुरी बना देते है ! सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंछोटी छोटी प्लास्टिक की थैलियों ने बहुत बड़ा नुकसान कर दिया है..
जवाब देंहटाएंकिसी भी उत्पाद का यदि समुचित प्रबंधन नहीं होगा तब वह उत्पाद हानिकारक सिद्ध होगा। अमेरिका में प्लास्टिक का सर्वाधिक उपयोग होता है लेकिन एक कण भी सड़क किनारे नहीं होता। इस सृष्टि में यदि मनुष्य सहित बड़े जानवरों का भी शव-प्रबंधन नहीं होगा तब वे भी वातावरण को दूषित करेंगे।
जवाब देंहटाएं@ अमेरिका में प्लास्टिक का सर्वाधिक उपयोग होता है लेकिन एक कण भी सड़क किनारे नहीं होता।
हटाएंसहमत जी, किसी भी देश को उसी के नागरिक महान/विकसित बनाते हैं, सफाई खासकर सार्वजनिक जगह के मामले में हम लोगों का रिकोर्ड वैसे भी अच्छा नहीं है.
कुछ चीजो के विकल्प तो है ही जैसे की सब्जी के लिए घर से कपडे का थैला ले कर जाये और बनिया पहले की तरह पुराने कागजो से बना "ठोंगा " थैला प्रयोग करे एक प्लास्टिक के थैलों को अधिकतम बार प्रयोग करे किन्तु हम सभी छोटे छोटे विकल्प को भी अपनाने से हिचकते है ये ठीक नहीं है | हमरा किया हमरे बच्चे कल को भुगतेंगे |
जवाब देंहटाएं@बड़ी दुकानों/शोरूम पर कागज/गत्ते के कैरी बेग मिलने लग गए है, पर उनकी लागत अधिक है. छोटे दुकानदार १०-२० रुपये के सौदे के लिए उनका इस्तेमाल नहीं कर सकते. पर आपकी बात सही है कि पुराने अखबारी कागजों के लिफाफों का उपयोग शुरू होना चाहिए.
हटाएंप्लास्टिक सुविधाजनक है , मगर इसके कचरे के निस्तारण हो पाने के कारण बहुत असुविधाजनक हो गया है . गनीमत है कि कागज और जूट के थैले , सिकोरे कम संख्या में ही सही पुनः प्रचलन में हैं...बढ़ोतरी होगी तो पर्यावरण के लिए बेहतर होगा !
जवाब देंहटाएंलेकिन प्लास्टिक अब भी प्लास्टिक का उपयोग जहाँ नहीं होता था, वहाँ भी शुरू हो गया है, जैसे की चाय की पन्नी... ये बहुत ही वीभत्स है.
हटाएंविकल्पों से इस समस्या का पूर्णतया समाधान नज़र नहीं आता, वस्तुतः प्लास्टिक कचरे के उचित निस्तारण में ही कहीं समाधान है। अरुण चन्द्र रॉय जी से सहमत वे प्रयोग शीघ्र सफल हो जिसमें प्लास्टिक को जैवअपघटनीय(बायो डि ग्रेडेबल) बना दिया जाय।
जवाब देंहटाएं@ प्लास्टिक कचरे के उचित निस्तारण में ही कहीं समाधान है।
हटाएंहाँ, वैसे इसमें समाज को जागृत होने की सबसे बड़ी आवश्यकता है.
बेहद सार्थक पोस्ट...........
जवाब देंहटाएंपढ़ा सबने है..सराहा भी....मगर सबके घर में गद्दों के नीचे पन्नियों का ढेर होगा ही होगा....महिलाओं को तो विशेष शौक है -भैया पन्नी में देना ...
बहुत बड़ी समस्या है ये....
सादर
अनु
आपसे सहमत. प्लास्टिक से जीवन सरल बनता तो लगता है किन्तु इससे हमारी पृथ्वी बर्बाद हो जाएगी.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
http://uwaach.aojha.in/2008/01/blog-post_31.html :)
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