25 अप्रैल 2012

दिल जार जार है

      भाई लोगों से दूर हूँ, पर इतना भी नहीं किसी के ह्रदय छुपे दर्द को महसूस न कर पायूं, दिमाग है, बातें घुमड़ घुमड़ आती हैं, और आ रही हैं, खबरे हैं, बैचेन करती हैं, और कर रही हैं.
      पानी के हौज़ में बंदरी को उसके बच्चे सहित छोड़ दिया, हौज़ में पानी भरने लगा तो बंदरी ने बच्चे को गोदी में उठा लिए ..... पानी बढ़ते बढ़ते जब उसकी कमर तक आया तो उसने अपने बच्चे को छाती से चिपका लिए, पर हौज़ में पानी बढ़ ही रहा था, और पानी उसकी छाती छोड़ गर्दन तक आ पहुंचा तो बंदरी अपने बच्चे को सर पर उठा कर खड़ी हो गयी जब पानी उसके नाक तक पहुँचने लगा तो एक अजीब बर्ताव नजर आया उस बंदरी के व्यवहार में, उसने अपने बच्चे को हौज़ में पटका और उस पर खड़ी हो गयी, अपनी जान बचने को.

5 अप्रैल 2012

देखन आये जगत तमाशा.

      दायें बाएं देखता हूँ, कुछ कोशिश जारी रखता हूँ, अपने वजूद को पहचाने की - उस बच्चे मानिंद जो देखता है छूता  है - और वस्तु को उसकी प्रकुति के हिसाब से पहचानता है... पर क्या किया जाय कि बच्चे जितनी जिज्ञासा भी खत्म हो चुकी है. फिर किसी उदासीन बाबा की तरह दुनिया को देखता भालता हूँ, कोशिश करता हूँ - समझना चाहता हूँ

मेरे पात्र बैताल की तरह चढ़ जाते हैं सिर और कंधे परपूछते हैं हजार सवाल।

मुझमें इतना कहाँ विक्रम जो दे सकूं जवाब ...रोज़ मेरा सिर हजार टुकड़े होता है।

      क्या बताऊँ, ये पात्र है, कई बार कहना मान भी जाते हैं  - पर इस दीन दुनिया का क्या किया जाए, ये तो रोज ही मेरे वजूद के हज़ार टुकड़े करती है, और मैं रोज मर मर जाता हूँ, और फिर जीवित हो उठ भागता हूँ, गिरता हूँ, संभलता हूँ, फिर भागता हूँ, भागते भागते रुक कर हाँफते हाँफते सोचता हूँ, कि जीवन एक जिद्द है - पूर्ण करना है, आनंद है - परमआनंद होना है, कि रास है - महारास तक पहुंचना है, - जीवित रहना है अत: बहुत कुछ सहना है...  और दिन को फिर से एक धक्का लगाना है... कि आज तो जा - कल फिर देखेंगे.... जय राम जी की . 

4 अप्रैल 2012

कुछ तो लिखो मेरे यार.....


कहते हो कि लिखो, कुछ तो लिखो, लो ये कलम और लिख दो दिल के जज्बात, लिखो कि दिल पुकार रहा है, लिखो कि शाम का मौसम खुशनुमा है और तुम नहीं समझ पा रहे हो कि टाइम्स रोमन टाइप लगाया जाए या फिर सेरिफ़... बोल्ड कर के ३६ पॉइंट लगा दिया जाए या फिर नोर्मल ही रुआंसा छोड़ दें, बेदर्द दुनिया से ठुकराए आशिक की तरह.. लिखो इसी को लिखो.
कलम नहीं चल रही, स्याही खत्म है तो क्या... की बोर्ड सामने है, इस मुए कारेल डरा को एफ फॉर दबा कर विराम दो और .... दो पेग लगा कर अपनी मस्ती में फिर से बहो, लिखो ... लिखो कि आशिकों के आंसू खत्म हो गए हैं, लिखो कि दुनिया अब भी बेदर्द है... लिखो कि कैकई कैसे मंथरा की बातों में आ गयी और राम सिंहासन विहीन हो कर बनवासी हुए ... घबरा मत मंथरा अब भी जिन्दा और अपनी जिद्द पर कायम है,...
कुछ तो लिखो मेरे यार.....