13 दिस॰ 2008

पिछले दिनों एक कापी में मेरी लिखी कुछ पुरानी कविताये नज़र आयी। उनमे से अभी तीन पेश कर रहा हूँ। :

मेरे जाने के बाद
रह जायेंगे ये मेरे क़दमों के निशां
एक जुस्तजू पैदा करेंगे तुम्हे मेरे लिये
मेरी मंजिल को निहारोगे तुम
मेरी कदमों के इन निशानों पर
मेरी बदनसीबी पढोगे तुम
ये बताएँगे तुम्हे मेरी
उल्फतों , जज्बातों , नापाक खा वशिओं
और मेरे अधूरी हसरतों की कहानी
ये निशान नहीं, दस्तावेज बनेगे
मेरे खयालातों की
मेरे उन अफसानो के
जिन्हें ज़माने ने बेवफाई का नाम दिया


मेरी बिखरी यादें
कुछ टूटे पत्तों मानिंद
जिन्हें हवा अपने साथ
बहा ले जाती है
और
मेरी झोली में कुछ
बचे हुए लम्हे
जो छोड़ जाती हैं
मेरी स्वपनल दुनिया में
एक विराम देने के लिये
व् नींद से उठकर
सोचने के लिये
की मैंने जिया तो क्या जिया।




ये अस्त होता सूरज

सुना जाता है अपनी दास्ताँ

भोर को जल देकर स्वागत

करने वाली दुनिया

शाम तलक तो इनको भी थका देती है

इनकी प्रचंडता को विराम लगा देती है

मेटा देती है इनका वजूद

और मेरा तो वजूद ही क्या ?

ख़ुद क्यों नहीं थकती

ख़ुद क्यों नहीं रूकती

ये दुनिया

इसी मायावी दुनिया में रह कर जी रहे हैं हम

हम तो श्याद सूरज से भी ज्यादा

प्रचंड है

पर ढीठ भी सूरज से jyada

इस बार नहीं

इस बार नहीं
इस बार जब वोह छोटी सी बच्ची मेरे पास अपनी खरोंच ले कर आएगी
मैं उसे फू फू कर नहीं बहलाऊँगा
पनपने दूँगा उसकी तीस कोइस बार नहीं
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखा देखूँगा
नहीं गूंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूँगा , उतारने दूँगा अन्दर गहरे
इस बार नहीं

इस बार मैं न मरहम लगाऊँगा
न ही उठाऊँगा रुई के फाहे
और न ही कहूँगा की तुम आंकें बंद कार्लो ,
गर्दन उधर कर लो मैं दावा लगता हूँ
देखने दूँगा सबको हम सबको खुले नंगे घाव
इस बार नहीं

इस बार जब उलझने देखूँगा ,चत्पताहत देखूँगा
नहीं दौडूंगा उलझी दूर लपेटने
उलझने दूँगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं

इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊँगा औजार
नहीं करूंगा फिर से एक नयी शुरुआत
नहीं बनूँगा मिसाल एक कर्मयोगी की
नहीं आने दूँगा ज़िन्दगी को आसानी से पटरी पर
उतारने दूँगा उसे कीचड मैं ,टेढे मेधे रास्तों पे
नहीं सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार
की पान की पीक और खून का फर्क ही ख़त्म हो जाए
इस बार नहीं
इस बार घावों को देखना है
गौर सेथोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फैसले
और उसके बाद हौसले
कहीं तोह शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है

9 दिस॰ 2008

चुनाव की बक बक

दोस्तों, पिछले लेख में मैंने राजस्थान की बात की थी, चुनाव का परिणाम आपके सामने है - वही हुआ - जाटों ने महारानी को सत्ता से बहार कर कांग्रेस के सर पर काँटों का ताज रख दिया । और सामने खड़ा कर दिया शीशराम जी ओला को - लो इनको मुख्यमंत्री बनायो। इस प्दद के दूसरीऐ दुसरे दावेदार है पोर्र्वा मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी - उम्दा प्रशाशक - पर इन्होने अपने पिछले कार्यकाल मेंन सरकारी कर्मचारी और इसी बिरादरी को रुष्ट किया था। एक और शक्श है - श्री सी पी जोशी जी - जो मात्र एक वोट से हार कर दोड़ से बाहर हो गए हैं। एक बात और जो सामने आई की कम्युन्ष्टों ने इस राज्य में ३ सीटें लेकर आपना खता खोले दिया वहीं दूसरी और उत्तर प्रदेश की मलाई खाकर मस्त होकर हाथी भी राजस्थान में गुस गया और कांग्रेस की खड़ी फसल बर्बाद कर दी। pehle भाजपा की - भाजपा ने यहाँ पर निवारात्मान मुख्यमंत्री वसुंधरा को पूर्ण अधिकार दे दिए - उन्होंने टिकटों का बंटवारा अपने हिसाब से कर दिया - और कईयों को बागी कर दिया। १ - २ मंत्री भी बागी हो गए। गुज़र समाज तो पहले ही एकतरफा लडाई के मूड में था - सो भरतपुर - करोली आदि स्थानों पर इन्होने एकतरफा ९० प्रतिशत तक मतदान किया । पुलिस की गोलाबारी से ९० किसान मर गए थे वहां पर कमुनिस्तों ने अपनी जमीन पा कर ३ सीटें हथिया ली। बगिओं ने भाजपा को कम से कम 20 - 25 सीटों पर चोट पहुंचाई । इस राज्य में कांग्रेस भी कोई अच्छी पोसिशन में नहीं थी। न कोई नेता - न कोई नारा । हालाँकि हाई कमान ने शीशराम ओला kओ अधिकार दे कर आगे कर दिया था। गहलोत की अपनी पृष्ठभूमि थी । एक - बात अहम् है इस चुनाव में लोगों ने बहुत सकीर्ण नजरिया अपनाया । न तो पार्टी देखि गई न घोषणा पात्र देखा गया - बहुत ही सकीर्ण नज़रिए से - उमीदवारों को वोट दिए गए।
दूसरी स्टेट थी दिल्ली - यहाँ तो करिश्मा हो गया - ओवर ब्रिज - मेट्रो के नाम पर शीला मैया तिबारा जीत गई - विजय जी विजय श्री से दूर हो गए । यहाँ कोंग्रेस नहीं जीती - न ही भाजपा हरी है। पिछले 1५ सालों में दिल्ली में एक नया वर्ग उभरा है - जिसकी जुबान हिन्दी - एंगलइश - पञ्जाबी है - बेशक ये लोग पहाडी - बिहारी - पूर्विये हैं लेकिन इनकी दोसरी पीडी दिल्ली में जगह बना चुकी है - और यह yuwa पीडी अपने को शुद्ध दिल्ली वाले मानती है - शीला मैया इनकी नेता । इनको नहीं मालूम विजय जी ने कितने पापड़ बेले उन्होंने दिली के लिए क्या क्या किया । इन्होने कभी विजय जी का फोटो अख़बार में किसी अस्पताल का उद्घाटन करते नहीं देखा - कभी विजय जी का दिल्ली के विषय में कोई स्टेटमेंट नहीं पड़ी ।


भाजपा आज के युग में १९६७ का टेंक उठा लाये। विजय जी का जमाना जा चुका है । आज जमाना है - नये वर्ग का - जो सुबह १ घंटे सलून जा कर टीवी पर आए और खबरिया टीवी के एंकर की तरह जल्दी जल्दी हिन्दी और अंग्रेजी में बात करे । नए ज़माने की बात करे। जगदीश मुखी या विजय गोएल या अरुण पुरी जैसे बन्दों की जरूरत थी । जो भी हो - भाजपा के कार्यकर्ताओं ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी - भीतर घाट किया है - वोही सब जो २००३ के चुनाव में खुराना जी के साथ किया था। मुख्यमंत्री का उमीदवार उपर से थोपा गया - और छोटे नेता क्या जिन्दगी भर के लिए छोटे ही रहेंगे - उन्होंने जमीन मुंह चुराया । और ४ सीटें तो थाली में परोस कर कांग्रेस को दे दी गए - अकाली कोटे में ।

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में - जो भी हुवा अच्छा हुवा - और येही होना था। बेदाग छवि - दमदार नेतित्वा - फिर सामने चाहे - योगी आए या नाथ । पिछले पाँच वर्षों में मध्यप्रदेश ने ३ मुख्यमंत्री देखे भाजपा के बनाये हुवे - तीसरे आए शिवराज चोहान - जनता को ईश्वर मान ख़ुद को किसान का बेटा मान कर मिदान में उतेरे और जनता ने आशीर्वाद दे दिया । कितना भय था उमा का - बागियों का - पर चोहान की झोली जनता नें वोटों से भर दी।

छत्तीसगढ़ में रमन बाबा के काम सर चद्द कर बोले ... चावल वाले बाबा .... सलवा जूदम .... नक्सलियों से loha ... और एक निश्छल वक्तिवा । जी हाँ रमन सिंह के पक्ष में ये बात जाती है .... आदिवासियों को १ रूपी किलो चावल देकर रमन सिंह चावल वाले बाबा बन गए । नक्सलवाद से सकती से निपटा गया । रही बात कोंग्रेस की तो उसने यहाँ पर पूर्व मुख्यमंत्री श्री अजित जोगी को कप्तान सोंप राखी थी । वाही अजित जोगी ..... जिनका बेटा एक मर्डर केस में शामिल था ... व्ही अजित जोगी जिन्होंने पिछले चुनावों के बाद देश के सामेने विधयाकों की खरीद फरोक्त की थी । ऐएसे विषम चरित्र को पर पाना कठिन था ... पर रमन सिंह ने sएहार्द्यता से इनको किनारे किया।

दोस्तों , पोस्टिंग में जाकर लिखने में काफी दिक्कत आती है । अरमान मन में रह जाते हैं । कृपया टाइपिंग का कोई सॉफ्टवेर बताये जहाँ इनस्क्रिप्ट में टाइप किया जा सके ..... बहरहाल जय राम जी .....



7 दिस॰ 2008

जय जय राजस्थान बनाम जाट गुज़र मीणा बामण और बनिया

पिछले दिनों राजस्थान के अलवर खैरथल और इनके समीप के गांवों में गया था। कुछ चक्कर अक्टोबर के शुरू में लगे थे - जब चुनाव के बारे में ज्यादा शोर नहीं मचा था गया था। जिस गाँव में मैं गया था - उधर के एक पंच से बात चल रही. मेरे पूछने पर की सरकार कैसी चल रही है - बिजली, सड़क आदि - पंचायत के बारे में। पञ्च साहिब एक दम उछल पड़े और राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा tअरीफों के पूल बाँध दिए । हमारी मैडम ... हमारी मैडम ... और हमारी मैडम। अच्छा लगा .... जो जो उन्होंने बतया सड़क बिजली के बारे मैं --- और वेह पञ्च साहिब खुश दिखे सरकार के काम और मुख्यमंत्री के विषय मैं।
चांस की बात है की चुनाव से ठीक दो दिन पहेले उनसे फ़िर मुलाकात हुई। .... भाई मैडम के क्या हाल हैं । साहेब एकदम भिफर पड़े ... मैडम बिक गई गत्तों के भावः ... क्या मतलब... भाई उनसे गूजर नाराज़ हैं, जाटों को उसने नाराज़ कर दिया ... मीना पहेले से बिदके बेठे हैं ... पञ्जाबी किसी टोल में नहीं । साडी बीजेपी में फूट पड़ गई है .... भाई कांग्रेस आएगी।
बहुत ही दुःख होता है ... एक मुख्यमंत्री का पैमाना क्या है । jahan dekho जाट गुज़र मीणा बामण और बनिया की बात .... क्या इसे राज चलेगा। इसका मतलब लालू जी , मुलयम जी, रामनिवास पासवान और मायावती का एजेंडा ठीक है । कम करो या मत करो जाट पात का तिगदम फंसा कर रखो। एक महिला मुख्यमंत्री ने सदियों के बाद राजेस्थान को नइ पहचान देने की बात की पहली बार एक नया नारा - जय जय राजेस्थान सुनने को मिला ... पहली बार जातपट से उठ कर बात की गई । लेकिन इस बार भी राजस्थान में जातपात हावी रही ।
एक बात यहाँ कबीले तारीफ है की राजस्थान के मतदाता राजनीति से जातिवाद की बुराई को तोड़ने को आतुर दिखाई देते हैं, लेकिन इससे निपटने का उनके पास कोई तरीका भी नहीं बचा है। कारण यह है कि प्रमुख राजनीतिक दल इसे हतोत्साहित करने के बजाय जातीय मकड़जाल में जकडे़ हुए हैं। रही बात बड़े नेतायों की उन्हें कोई फरक नहीं पड़ता पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी, हीरालाल देवपुरा और शिवचरण माथुर भी ऐसे बड़े नेता हैं, जिनके जातिगत समीकरण आड़े नहीं आए। प्रद्युम्न सिंह के राजाखेड़ा में स्वजातीय मतदाताओं का प्रतिशत काफी कम होने के बावजूद सात बार निर्वाचित हुए। पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने तो प्रदेश के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से, जहाँ विभिन्न जातियों का प्रतिनिध्त्वा अलग अलग था , चुनाव जीत कर रिकॉर्ड बनाया है।
आज इसे नेता की आवश्कता है जो जातपात के जाल को तोड़ कर राजस्थान की बात करे - हर जात के कल्याण की बात करे ... नहीं तो आने वाले समय में अलवर जिला - भरतपुर जिला, उदयपुर जिल न होकर गुज़र जिला, मीणा जिला, ठाकर जिला, बामन जिला और बनिया जिला न बन जाए। हम जाट गुज़र मीणा बामण और बनिया न होकर राजस्थानी बने और प्रदेश के विकास के बारे में सोचे ... आज एक मजबूत राजस्थान की जरूरत है । प्रदेश की शान्ति .... सुरक्षा और दिल्ली से नजदीकी विदेशियों को भी राजस्थान के तरफ़ आकर्षित करती है । जाट गुज़र मीणा बामण और बनिया से उपर उठ कर जय जय राजेस्थान के नारे पर अमल करने की जरूरत है .

5 दिस॰ 2008

मेरे एक मुरीद के कमेंट्स

समुन्द्र पूछता है वो दोनों क्यों नहीं आते - इस कविता पर मेरे एक मुरीद की कमेंट्स आई थी - अच्छी लगी अतः अक्षरत प्रकाशित कर रहा हूँ :

मैं एक सेहरा में कश्ती चलता रहा .....
आंसूयों का समंदर बहेता रहा
दिन गुजरते गए वक्त जाता रहा
आंसूयों का समंदर बहेता रहा

दिल की धरकन में वो, मेरे तनमन में वो
चाँद को दिखा कर, चांदनी रात में
मुझ को बिछडा सनम - याद आता रहा
आंसूयों का समंदर बहेता रहा

बस इसी आस में दिन गुज़रते रहे
क्या तू मरा है, यह सोच कर दिल रुबा
दिल को अपने तस्सल्ली दिलाता रहा
आंसूयों का समंदर बहेता रहा

वो भी क्या दिन थे जब बेकारी में तुम
मुझे हर बात सच सच बताते रहे, or
आंसूयों का समंदर बहेता रहा

तू बना मेरे और मैं तेरे वास्ते
एक नगमा फिजाओं में बिखरा हुआ
तुझ को शाम-ओ-सेहर गुनगुनाता रहा
आंसूयों का समंदर बहेता रहा

जिंदगी मेरी मानिंद-ऐ-तरीक शुब,
जिस में तेरी हो यादों के चंद एक दिए
बस जलाता रहा और बुझाता रहा
आंसूयों का समंदर बहेता रहा

एक तूफान उठा, जो उड़ा ले गया
जिंदगी के वरक, बादलों की तरह
तुझ को भी ले गया, में बुलाता रहा
आंसूयों का समंदर बहेता रहा

में अपने मुक़द्दर से हूँ शिकवा ज़रूर
था किसी और से मुन्सल्क तेरा नाम
में तो बस यूही लिखता - मिटाता रहा
आंसूयों का समंदर बहेता रहा

आंसूयों का समंदर बहेता रहा
मैं एक सेहरा में कश्ती चलता रहा .....

3 दिस॰ 2008

श्रीमान प्रधानमंत्रीजी दिल की सुनिए ......

प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने बुधवार को कहा कि मैं इत्तफाक से राजनीतिज्ञ हूँ मेरा सबसे पसंदीदा काम पढ़ाना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सालों तक विश्वविद्यालय में पढ़ाना उनके जीवन का सर्वाधिक दिलचस्प दौर था। मनमोहन ने जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) में इंटरनेशनल सेंटर फॉर मटेरियल्स साइंस (आइसीएमएस) तथा सीएनआर हाल के उद्घाटन के समय पहले से तैयार अपने भाषण से हटते हुए यह बात कही।

श्रीमान प्रधानमंत्री जी , आप ठीक फरमा रहे हैं आप राजनीतिज्ञ नहीं है , सही बात तो ये है की आप मैडम के चमचे है। आप दिल में झांक कर , गुरु जी को याद कर के बोलो कियह बात सत्य है कि नही, आपको क्या पड़ी थी कि आप प्रधान मंत्री बनते, आपको अपनी अबिलिटी तो मालूम ही थी कि आप दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव हार गए थे, जो आदमी एक लोक सभा का चुनाव नहीं जीत सकता आखिर उसको प्रधानमंत्री बनने कि जरूरत क्या है। पिछले ५ सालों से एक अयोग्य गृह मंत्री को सहन करते रहे .... आपसे नहीं बन पाया कि उसका इस्तीफा ले ले ... आज मैडम को जरूरत पड़ी तो एक मिनट में उसको बाहर का रास्ता दिखाया। श्रीमान आप विद्वान है याद कीजिये देवगोडा का जमाना ... और अपने से तुलना कीजिये .... आप पाएंगे कि आप श्री देवगोडा से भी बतर साबित हो रहे हैं। जो समय रहते गुरआ तो देते थे परन्तु आप तो सदा मन को मर कर शासन कर रहेहैं । जेसे मैडम कि आज्ञा । श्रीमान वक्त कि नजाकत को समझे अबी भी समय है कुछ टaईट हों जाए। वोट बैंक से क्या लेना..... बस कठोर कदम उठायें । जो फांसी से वंचित हैं उन्हें तुंरत फांसी दीजिये .... जिनके मामले कोर्ट mएं चल रहे हैं उन पर अतरिक्त जज लगा कर उनका निपटारा करवाए। दशम पिता का ध्यान करो ....

देही शिवा वर मोहे एही

शुभ कर्मन से कबहूँ न टरों

डरों ari जब जाय लरों

निश्चय कर अपनी जीत करूँ

पड़ोसी की नियत शुरू से ही खोटी रही है. आज की बात नहीं है ... हरामजादे शुरू से ही उर्दू की मुशायेरे और क्रिकेट की बातें करते करते पीठ में छुरी घोंप जाते है. अब क्या कहे रहे है "जरदारी ने मुंबई हमलों में अपने देश की भूमिका होने से इनकार करते हुए कहा कि आतंकवादियों का किसी देश से कोई सरोकार नहीं होता। उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक राजधानी पर हमले उन लोगों ने किए जो पूरी दुनिया को बंधक बनाना चाहते थे।राष्ट्रपति ने भारत की वह माँग भी खारिज कर दी, जिसमें इस्लामाबाद से 20 आतंकवादियों को नई दिल्ली के सुपुर्द करने के लिए कहा गया था। येह ज्ञात रहे की कि यह आतंकवादी पाकिस्तान में हैं।"
सिंह साहेब , याद करो महाराजा रणजीत सिंह नें खेबर दर्रा तक पंजाब की सीमाएँ पहुंचाई थी , और अब दुश्मन भी यहीं अड्डा जमे बेठा है . यहाँ तक इनको मरने के लिए हमें कोइ और हुकाम्रानो की जरूरत नहीं है. बस अपनी विरासत को देखो - और सोचो - ये काग्रेसी आपको बर्बाद कर रहे देश को बर्बाद कर रहे हैं ... आप इनके चक्कर में मत पडो. मैडम का हुकम बजाना बंद करो - देश आपके साथ है ... दो चार अच्छे साथी चुन कर कार्यवाही चलो करो.

2 दिस॰ 2008

सुखद आश्चर्य

सुखद आश्चर्य, दोस्तों कुछ लोंगों ने मेरे लिखये हुवे पर कमेंट्स भेजे कुछ ने फ़ोन पर मुझे ब्लॉग के लिए बाध्यई दी --- जो भी बहुत अच्छा लगा। आपका ऐसी ही सहयोग मिलता रहा तो दीपक बाबा बकबक कम करेगा हो लिखेगा ज्यादा। अगर दिल को लग जाए तो माफ़ करना -- दिमाग में घुस जाये तो बहार निकल फेंकना - दिल को तसली देना की दीपक है कुछ भी लिख देता है - बाकी दिमाग की बात तो दिमाग बेकार की बाअतों में कभी नहीं लगता। मित्रों -- हालत बाद से बदतर हो गए है - आब तो राम जी भी दुबारा राज पर आ जाए तोभी शयद हालत सुधरे।

समुंदर से - पहाड़ से जमीन से - हम तो कहीं से भी सुरक्षित नहीं है - और ये नेताहराम का माल पचा कर मौज कर रहे है। बस अपनी जेब भार रहे है। सोचो कोई एसा है जो हमारे बारे मैं, देश के बारे में सोच रहा हो - सोचो - केसे ये लोग वोट लेते है और कैसे ये मिनिस्टर बन जाते है सोचो। दोस्तों दिल मैं बहुत बड़ा गुबार है - शब्द ही नहीं मिलते - क्या लिखे - पर आपका धन्यवाद की आपने बाबा की बक बक सुनी ... जय राम जी की - मेरी प्रिये शिष्या यानि श्रीमती का फ़ोन आ रहा है फिर कल - ---

केरल के सीएम की कारस्तानी

शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के परिवार पर केरल के मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन की अभद्र टिप्पणी के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया है। केरल से लेकर दिल्ली तक मुख्यमंत्री की तीखी आलोचना हो रही है।
खुद उनकी पार्टी माकपा ने अच्युतानंदन की टिप्पणी पर खेद जताया। लेकिन, इस सबसे अडिग अच्युतानंदन ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगने से इनकार किया है। उल्लेखनीय है किs केरल में जन्मे मेजर संदीप मुंबई पर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान शहीद हो गए थे। बेंगलूर में संदीप के अंतिम संस्कार के वक्त राज्य सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं भेजने के कारण विपक्षी दलों ने अच्युतानंदन की खिंचाई की थी। इसके बाद मुख्यमंत्री रविवार शाम को संवेदना व्यक्त करने गए बेंगलूर स्थित मेजर के घर गए। जहां मेजर के नाराज पिता ने उन्हें घर के दरवाजे से लौटा दिया।
उन्होंने कहा, 'अगर वह मेजर संदीप का घर नहीं होता तो वहां कुत्ता भी झांकने नहीं जाता।' मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी पर मंगलवार को भी केरल में विरोध प्रदर्शन हुए। कांग्रेस और भाजपा से जुड़े संगठनों ने प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री से माफी की मांग की।

अच्युतानंदन आपकी इज्जत आपके विरोधी भी करते है। मगर सत्ता के गुमान में एक सदारण कर्येकर्ता भी बददिमाग हो सकता है यह बात आज पता चली। आपकी छवि एक इमानदार और अच्छे प्रशाशक की थी लेकिन आपने इसके ऊपर पानी फेर दिया। क्या आप is बात की कल्पना ही कर सकते है aapne bete की २० साल के पलने पोसने के बाद आप उसको आर्मी मैं भेज दो और यहाँ से commando के प्रक्षिक्षण के आगे भेज दो। फिर किसी ऑपरेशन मैं वह शहीद हो जाए। कल्पना करके ही आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे। मेजर के पिता ने तो ठीक ही किया - उनका तो खून था - उनके अरमान थे जो उन्होंने देश के उपर न्योछावर कर दीये। तुमारा खून तो खून नहीं है वह पानी है - उनका खून तो खून था शुद्ध - एक दम - पुश्तों से संस्कारों से सिंचित - इसलिए वो नाराज़ हो रहे थे। - मगर क्या किया जाए की फितरत -कामुनिस्ट की ऐसी ही है। भारत वंशी का होश नहीं गंगा की सोच नहीं मिटटी का लगाव नही वतन पर नाज़ नही बस राज करना चाहते हैं - दोस्तों मेरा ये वादा है की जिस दिन ये लोग आपने तरीके से इस देश पर राज करने लगे तो भारत के ३८० टुकड़े होंगे और इनका मुख्यालय पेचिंग (चाइना) में होगा। .... जय राम जी ..