26 फ़र॰ 2014

बदायूँ



ये उत्तर प्रदेश है. 
वाहन रेंग रहे है लगता है यहाँ सड़क है. उसी सड़क के दोनों और मुख्यमंत्री साहेब के बड़े बड़े होर्डिंग लगे हुए हैं. लगता है यहाँ सरकार भी है. पर वहीं खड़ी है या सरक रही है - कहा नहीं जा सकता. बदायूं जाने के लिए आनंद विहार बस अड्डे से एक के बाद एक बस चलती है. चलती है या रेंगती है – कुछ कहा नहीं जा सकता. २३७ किलोमीटर यहाँ ९.५ घंटे में पूरा होता है. फिर भी सवारी पर सवारी है – मानो चिल्लड़ और रेजगारी है. इन्हीं सवारियों के यहाँ सब व्यापारी हैं. छोटी छोटी सड़कों पर बड़ी बड़ी गाड़ियाँ भी है – हुटिंग है – सायरन है – ट्रेक्टरों ट्रोलो का शोर है. चारो ओर बने होर्डिंग पर हाथी है और साइकिल है. दिल्ली से लखनऊ तक की साइकल यात्रा है. इनके सवार वी आई पी हैं. ऐ सी दफ्तरों में बैठते हैं. हाथी के दांत माफिक इनकी सवारी है. 
उत्तर प्रदेश है – बहुत से प्रतीक है. यहाँ सरकारें भी प्रतीकों के सहारे हैं.
जैसे उत्तर प्रदेश एक राज्य है उसी प्रकार कहने को बदायूं एक जिला है. बस में मेरा सहयात्री ‘भाई जान’ की दो बीबियाँ है – एक से पटती नहीं थी तो दिल्ली में दूसरी कर ली – उसी से एक बेटी हुई है. एक प्यारी सी बच्ची का फोटू लावा में दिखाते हैं. भाईजान बदायूं से १०-१२ किलोमीटर और आगे जायेंगे. बदायूं में घुमने लायक क्या है तो जवाब देता है – लालकिला. !! आजम खान बदायूं में लालकिला बनवा रहे हैं. साथ बैठा दूसरा सहयात्री उसके सामान्य ज्ञान पर चुटकी लेता है.. अरे लालकिला दिल्ली में है. पर वो रुकता नहीं छाती ठोक कर कहता है वो तो मुगलों ने बनवाया था – बदायूं में आजम खान बनवा रहे हैं. दूसरा यात्री फिर से चुटकी लेता है – हाँ जरूर बनवा रहे होंगे ये आधुनिक मुग़ल हैं.