वो बहुत भावुक इंसान था .... शराब पीकर भावना में बह कर रोता था। लोग उसे पागल या फिर सनकी कहते थे। कोई उसे विशप्त प्रेमी या फिर सेंटी कहता था। अभी तक उस भावना का पता नहीं चला जिसके चक्कर में वो भावुक इंसान रोया करता था। उसके रोने से जो पानी निकलता - वह भी सरस्वती नदी की तरह गालों पर आते आते लुप्त हो जाता था। उसके दो चार शुभचिंतक मित्र भी थे जो गलियों में मारे मारे उस भावना को ढुंढते फिरते - पर भावना नहीं मिली। और उस भावुक इंसान शराब पीकर रोना चालू रहा।
‘लगता है हमारा भावुक मित्र - बेकार ही भावना की जिद्द करता है - जबकि अब तो ऐसा लग रहा है कि इस नाम की काई भी लड़की आस पास के इलाके में नहीं है’
नहीं भाई ढुंढना तो पड़ेगा - हम दोनों दो अलग अलग दिशा में जाते हैं और एक माह तक भावना को ढंूढेगे। जिससे पहले मिल जाए वा दूसरे को मिस काल देगा। ताकि दुसरा वापिस आ जाए।
और दोनो मित्र भावना को ढुंढने निकल पड़े। भावुक इंसान वहीं पत्थर बन बैठा रहा - शराब पीता रहा और आंसू निकालता रहा जो उसके गालों पर आकर लुप्त हो जाते - ठीक सरस्वती नदी की तरह।
उस रोज भावना ने उसके इन्हीं गालों पर छुआ था - और ये गाल दहक उठे थे। वो बैचेन हो गया। समझ नहीं आया कि मेरे गाल ऐसे अंगारे मानिंद कैसे तपने लग गये - जबकि बाकि शरीर बिल्कुल ठंडा है। दो-चार रोज बाद उसे से ये परेशानी सहनी मुश्किल हो गई। अतः हकीम लुकमान के पास गया।
बिमारी बहुत पैचिदा निकली....... लुकमान साहेब बहुत परेशान हुए। उसने पूर्वांचल के किसी बाबा के पास उस भावुक इंसान को भेज दिया। बाबा पहुंचे हुए संत फकीर थे। देश के कई बेइमान और ईमानदारी का ढ़ोंग करने वाले राजनीतिज्ञों का उनके पास आना जाना था। और बाबा को बहुत मानते थे। अपने आश्रम में एसी के आगे गऊ के गोबर से पुते हुई फर्श पर उनका बैठने का स्थान था। और उन्होंने ही एक नामी गिरामी सिने कलाकार को अपने लिए हिरण की खाल लाने का आदेश दिया था।
वो भावुक इंसान जब बाबा के सामने पहुंचा तो बाबा मृगचर्म आसन पर विराजमान थे। बाबा ने सामने बैठने का इशारा किया और वो सामने बैठ गया। जमीन पर गोबर का गीलापन उसने महसूस किया। मरीज को देखा - और शिष्य को इशारा किया। शिष्य तुरंत सोमरस भरा कमंडल लेकर आ गया। और उसे पीने को दिया - और एक कागज का टुकड़ा भी लिख कर दे दिया।
भावुक इंसान घर आया, दो चार रोज उसके घर के बाहर सोमरस के गैलन आने लगे पता चला सोमरस बनाने की कंपनी का मालिक भी बाबा का भक्त था और हर वर्ष की संध्या पर जब वह नए कलेंडर छपवाता और मॉडल को बाबा की सेवा में भेज देता था।
अब भावुक इंसान शराब पीता और आंसू निकालता और उसके गालों पर आते आते लुप्त हो जाते।
दोनो मित्र घूम फिर कर वापिस आ गये बिना स्लाईस ऑफ इटेली का पिज्जा खाये - मॅकडानल पर खाया था। और भावना फिर भी नहीं मिली - मायूसी अपने चरम पर थी।
पर बाबा अंतरयामी थे - बैठे तो दूर थे पर जान सब कुछ रहे थे- भावना अब नहीं रही थी - वह दुर्भावना हो गई थी - पर पगले भावुक इंसान को कौन समझाये - अतः उस को शराब की आदत डाल दी।
अब भावुक इंसान भावना को भूल चुका था। आंसूओं ने उसके गालों को ठंण्डा कर दिया - साथ ही उसका जमीर भी ठण्डा हो गया था। अब वह शराब पीकर दुर्भावना के साथ पैसा इकट्ठा करता और हर सप्ताह उस बाबा के आश्रम में दान देकर आता।
बस खामख्वाह, ताकि आप मुझे भूले नहीं।
जय राम जी की.........