27 नव॰ 2011

सब व्यर्थ है न प्राची..

मेरे लहू ने पुकारना बंद कर दिया था..
क्योंकि तुम्हारा जमीर भी तो सुन्न हो गया था..
और मेरा खून - पानी .
जैसे खून का दौरा बंद हो जाना... धमनियों में..
या फिर राजमार्गों पर एक के बाद एक
गाड़ियों का थम जाना..
और जाम की स्थिति का बन जाना..
इस जमीर पर विचारों के जाम होने
और मेरे खून के के पानी बनने में..
बहुत कुछ है प्राची...
क्या क्या बताऊँ तुम्हें.
क्या क्या समझाऊं तुम्हे..

25 नव॰ 2011

बनिया, बेटी की शादी और एफ डी आई....Retail FDI... Social responsibility

क्या करें, कुछ खबरें आपको बैचेन करती हैं.
जी, याद आता है जुलाई का महीना और सन १९९३ ... बहन की शादी थी... उस समय के हालात से (हालांकि ऐसे मामलों में हालात लगभग यही रहते हैं..)  और पैसे की तंगी .. बोले तो हाथ टाईट.
सुरेन्द्र जी हैं, तिहाड गाँव में ... किराने की दूकान करते हैं... और दूकान प्रसिद्ध है ढालू की दूकान के नाम से. पुराने बनिया हैं - हलवाई के सामान की लिस्ट लेकर चिंतित होकर उनके पास माताजी और मामा जी (जिनकी खुद गाँव में किराने का थोक का व्यवसाय है) ले कर गए. उन्होंने तुरंत लिस्ट का वाजिब पैसा जोड़ कर बता दिया और सहर्ष तैयार हो गए पैसा किस्तों में लेने के लिए... बिना किसी ब्याज बट्टे के.
एक बनिया या कहिये व्यापारी का सामाजिक उतरदायित्व था... बिना किसी 'कंपनी ला' के .... और आज भी है.. क्योंकि वो खुद उसी समाज का हिस्सा है... उसी का अंग है.
मेरे ख्याल से ये गांधी जी अर्थशास्त्र है या फिर दीनदयाल उपाध्याय जी का एकात्म मानववाद  का ... उसके हर दुःख सुख में इंसान ही इंसान के साथ खड़ा रह सके .... 
साहेब कंपनी ला नहीं था... बिना किसी कंपनी ला के समर्थ व्यक्ति (समाजिक इकाई) आपनी आपनी सामाजिक जवाबदेही तय कर लेता था.  आज आप कानून बना रहे हैं. बनाइये. बजाये उस बनिए को कोई सहुलि़त देने के आप उसे उलझा दीजिए विदेशी साहूकारों के हाथ ..कि वो सामाजिकता भूल कर दिन रात बस दूकानदारी ही सोचता रहे. जनता पिसती रहेगी साहेब.

15 नव॰ 2011

सावधान .. कुत्ते काले कपडे देख कर भड़क जाते हैं..

कलयुग है जी,
मैं तो कहता हूँ – घोर कलयुग...
"रंडियों ने रंडियों को और भिखारियों ने भिखारियों को लताड़ना शुरू कर दिया, नाइ कहाँ नाइ की हजामत मुफ्त में करेगा... पैसे दो मिंया....."
एक मोडर्न सैल्यून में ये बात सुनी थी, .... मैं तो कहता हूँ जी ... घोर कलयुग है...

फोटू आभार : hindustaantimes.com
ब्लॉग जगत में आने के बाद एक शब्द सुना था – कटहई कुतिया .... पर वास्ता नहीं पड़ा, पर टीवी पर देखा तो मालूम हुआ कुछ कंफुज़न हुई होगी ... कुतिया नहीं... कुत्ते होंगे - कटहए कुत्ते.. जो काले कपडे को देख कर भड़क जाते हैं,.... वैसे लाल कपड़ों को देख कर सांड भडकता है.... साक्षात तो नहीं देखा, पर कई फिल्मो में देखा है... और काले कपडे को देख कर कुत्तों का भडकना भी टीवी पर देखा...

10 नव॰ 2011

मत पूछिए क्या लिख गया और क्योंकर....

एक आदरणीय आज उत्तराखंड में एक रेलवे लाइन का शिलानियास करने जा रही थी, पर फिर से किसी रहस्यमय बिमारी के कारण नहीं जा पाई... बिमारी क्या थी – अभी तक मालूम नहीं, क्यों न जा पायी, ये सब आप यहाँ-वहाँ देख सकते हैं.

एक स्वामी जो कल तक जय हिंद का नारा लगा रहा था, आज बिग बॉस के घर में है, कई मंत्री और बड़े बड़े ओद्योगिक घरानों के संत्री आज मेरे पड़ोस ‘तिहाड जेल’ में हैं. मुझे कुछ समझ नहीं आता.... क्योंकि कई और लोग भी हैं जिन्हें इस पवित्र आश्रम में पहुंचना चाहिए था, पर कलियुग में बाहर मायावी दुनिया में उलझे हुए हैं.... उनकी दरकार थी..., कानून अपना काम रहा है,

आज से २७ साल पहले जब मैं नोवीं कक्षा का छात्र था- कुछ लोगों नें संगीन अपराध किया था, आज वो मज़े से सत्ता का सुख भोग रहे हैं, बिना राष्ट्र को शर्मसार किये हुए... और इसी २७ के अंक को जब से ३ से भागे देते हैं और जो अंक आता है, ९ साल पहले जब किसी से ऐसा तथाकथिक ‘अपराध’ हुआ तो आज सलाखों के पीछे पहुंचे का इंतज़ाम करवा दिए गए हैं...... धाराएं है साहेब, कानून है... जो विज्ञान है. 

5 नव॰ 2011

बकरे की माँ ... कब तक खैर मनाएगी..

तिहाड गाँव के पार्क में घास खा गिनती के दिन गुजारता
१०,५०० रुपये का बकरा..... इसकी कुर्बानी के लिए
जो शक्श्स आएगा वो ५०० रुपे मेहनताना लेगा..
इसका मांस मित्रों और रिश्तेदारों में बांटा जाएगा..
इसका चमड़ा दान दिया जाएगा... मदरसों को
'गरीब' विद्यार्थियों के लिए...

बकरे की माँ ... कब तक खैर मनाएगी..

जी कल रविवार तक और... बस
उसके बाद
उसके बाद कुर्बानी है...

2 नव॰ 2011

शराबी लात पर रखता है दुनिया को.

राणो... यारां दा टशन..
देसी दारू..

फोटू कर्टसी http://www.saanj.net
साहेब, शराबखोरी का कोई नियम नहीं होता, न ही इसके लिए देश काल का ध्यान रखा जाता है... शराबखोरी के लिए २ बातें आवश्यक होती हैं - शराब और शराबी... इसमें तीसरा पक्ष है बेमानी. चाहे क्यों न हो वो पानी. नमकीन का क्या हुआ, कहाँ बैठ कर पियेंगे...... यार अभी टाइम क्या हुआ है... सूरज देवता सर पर चमकते हुए मुंह चिढा रहे हैं... इ भी सब है बेमानी....
तु ला बस पानी....
वो भी न मिले तो कोई दिक्कत नहीं,
सरसों को पानी लग रहा है, 
क्या कहा, ट्यूबवेल बहुत दूर है,
कोई नहीं, धोरे (खेत की मुंडेर के साथ साथ पानी की नाली) से पानी ले लेंगे.
प्याला ?
क्या प्याला?
वो भी मिला तो कोई बात नहीं,
साइकल की घंटी उतार कर प्याला बना लेंगे, पौव्वा तो मेरी अंटी में हेगा. बस 'तु' आ.
'तु' यानी, मित्र, सखा, बंधू, प्रियतमा, परमेश्वर...... बस 'तेरा' साथ चाहिए, तु सामने होना चाहिए... मुझे किसी और की जरूरत नहीं.... मैं लात मारता हूँ इस दुनिया को...

जी शराबी लात पर रखता है दुनिया को.