1 मई 2012

मेरा गाँव - मेरा देश.

इस बैसाखी पर अपने गाँव गया था, मानका - (राजस्थान - हरियाणा सीमा पर). गाँव पहुँचते ही एक गहरी अनुभूति होती है, फैफडों में एक साथ ताज़ी हवा का झोंका आता है और शरीर का वजन ५ किलो कम हो जाता है - खून का दौरा बढ़ जाता है, पंख नहीं होते पर यकीन मानिए - पैर जमीन से २ ब्लांत उपर चलते हैं...

कटाई के बाद खेत में पड़ी गेंहू 
गेंहू - २४ केरत खरा सोना
गेंहूँ की लावणी (कटाई) का समय है... हमारे गाँव में कटाई के लिए थ्रेशर (गेंहू काटने की मशीन) नहीं मंगवाई जाती - क्योंकि उसमे किसान को तुड़ी नहीं मिलती जो की पशुयों का प्रमुख आहार है. अत: खुद ही कटाई की जाती है. खड़ी गेंहू २४ केरत का सोना लग रही है... पर दुःख होता है जब यही गेंहू सरकारी गोदामों में सड़ता है.



नया धंधा ...
दिल्ली  - मुंबई - इंडस्ट्रीयल कोरिडोर - कंपनी के लिए राजस्थान सरकार ने यहाँ जमीन के अधिग्रहण के लिए नोटिस निकाले हैं, २५०-३०० हेक्टर जमीन का अधिग्रहन की सुचना प्रकाशित हो चुकी है. जमींदार सपने देखने लगा है, पैसा मिलेगा - पैसा का क्या उपयोग होगा,  आने वाली संतति का भविष्य क्या होगा - ये उसे नहीं मालूम.

गाँव में बदलाव है कई मायनों में बहुत अच्छे - जैसे की  घरों में शौचालय का निर्माण और रसोई घर में एल पी जी गैस का उपयोग. १०-१२ साल पहले तक खुले खेतों में शौच के जाया जाता था... अब इक दुक्का छोड़ दें तो शहरों की तरह घर में ही ये सुविधा है.  और इसी के साथ एक नया रोज़गार भी .... गाँव में सीवर लाइन तो है नहीं - अंडर ग्राउंड टैंक में फ्लश कर दिया जाता है - और उसके भरने पर "लेटरिंग सफाई" वालों को बुलाया जाता है जो की एक टैंकर में टैंक से गंदे पानी को सक कर के ले जाते हैं और कहीं जाकर बिखेर देते हैं .

घूरे में पडा गोबर - जो खाद बन जाएगा.

दूसरे - पहले उपले (पशु के गोबर को सुखा कर बनाए गए कंडे) चूल्हे में जलावन के लिए प्रयोग किये जाते थे, अब गैस आ गया है, चूल्हे भी हैं - जिसमे मात्र रोटी ही पकाई जाती है - ग्रामीण जीवन में आज भी गैस की रोटी पसंद नहीं की जाती - और ये सत्य भी है. खैर सरसों की लकडियाँ लगभग पुरे साल चल जाती हैं.

अहीरों का जो जोहड है - वो पानी से भरा है.. परन्तु दुसरे कई जोहड बिलकुल सूखे पड़े हैं, कुँए की तरह. गाँव के सभी कुओं का पानी बहुत नीचे चला गया है. पीपल और बड के छायादार वृक्ष है - और हवा बहुत तेज चल रही है - सायं सायं - की आवाज़ के साथ. बहुत दिन बाद सुनी. एक बच्चा जो उस बड के पेड़ नीचे बैठा था दूर से तो ऐसा लगा मानो बोध ज्ञान प्राप्ति कोइ साधक बैठा है - पर वो थक कर बैठा बच्चा था, जो  मुझे देख कर उठ गया, हाथ में पोटली है - जिसमे रोटी और सब्जी हैं. खेत पर जा रहा होगा, गाँव के बच्चे बचपन में ही घर के छोटे मोटे कार्य में हाथ बटाना सीख जाते हैं. मुझे बात नहीं करता - शरमा रहा है... .


विसनन्न बनाने की तैयारी 
शाम को चलने लगता हूँ तो नानी जी (उनकी उम्र लगभग ९० क्रोस कर गयी है) खाट से उठ खड़ी होती हैं, उनको लगता है की मुझे कुछ बढिया पकवान नहीं खिला सकी... खुद ही चौके में जाती है - मेरे लिए विसनन बनाने (विसनन = मक्खन को गर्म करके उसमे थोडा सा गेंहूँ का आटा और गुड डाला जाता है - आप इसे हेवी डाईट में शामिल करेंगे) मैं बहुत मना करता हूँ, पर उनके वात्सल्य भाव के आगे नत्मस्तक हो : डाक्टरी सलाह को एक किनारे कर, कटोरी भर विसंन्न खा - २५१ रुपे विदाई के जेब में डाल गाँव से निकलता हूँ,


खोसला का घोंसला नहीं : बया का घर 
हाईवे की तरफ जाता रास्ता 
जयपूर हाइवे से बस पकडनी है - जो की गाँव से चार एक किलोमीटर दूर है, मैं पैदल चलना पसंद करता हूँ, बाकी कच्चे रास्ते तो पक्की सड़कों में तब्दील हो गए - पर ये सड़क नहीं हुई, पता नहीं क्यों?  बीच बीच में तो कई जगह पत्थर डाल दिए गए हैं... कई जगह मिटटी ही है - और उसके किनारे किनारे सरपत सर से भी ऊँचे. शाम का समय है - पक्षियों का शोर तेज हो रहा है - सभी ठिकाने लौट रहे हैं. मैं भी.  मेरा जनम और शुरूआती शिक्षा इस गाँव में ही हुई, मैं कहाँ का हूँ, मन गाँव में और शरीर दिल्ली में - समझ नहीं आता - व्यक्तित्व ऐसा है कि न तो गाँव में अडजस्ट हो सकता हूँ और खैर दिल्ली में तो हो ही नहीं पाया - पर एक ठिकाना तो है - इन पक्षियों की भांति मैं भी अपने ठिकाने की तरफ चल पड़ता हूँ. एक घोंसला दिखता है - बहुत ही सुंदर, शायद बया का है... वही ऐसे कलात्मक घोंसले बनाती है.  ४ किलोमीटर का सफर अगर हाई वे से गाँव आ रहे हो तो आध घंटे में समाप्त होता है पर जब गाँव से दिल्ली जा रहे हो तो १ घंटा लग जाता है : हाँ, पाँव अब जमीन पर होते है और धीरे धीरे चलते हैं.


जय राम जी की.

32 टिप्‍पणियां:

  1. Gaon ki bhini-bhini khushbu bikherti sundar prastuti...
    aajkal garmiyon mein gaon ki bahut yaad aa rahi hai...
    saadar!

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बुधवारीय चर्चा-मंच पर |

    charchamanch.blogspot.com

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  3. mera gaon mera desh,

    bharat ratn chahiye to aaiye

    http://sanjaykuamr.blogspot.in/2012/05/blog-post.html

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  4. आप और आपका प्यारा गांव, आपके प्यारे खेत और आपका प्यार चित्रण, उम्दा... धंधा नया चकाचक.. है

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  5. गाँवों में अब काफ़ी बदलाव हो चुके हैं फिर भी आबो-हवा ताज़ा-दम है !

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  6. baba ji ka gaon baba ji ke saath ghoom liye...din safal hua...


    jai baba banaras....

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  7. सोने से भी अधिक खालिस है, ये गेहूँ के खेत..गाँवों का महत्व बस इसी से सिद्ध हो जाता है।

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  8. ग्रामीण मन ही समझ सकता है नई फसल की कीमत !
    तस्वीरों में गाँव की मिट्टी की सौंधी महक है !

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  9. जुबान पर कुछ - मन में कुछ , ऐसी शहरी दुनिया से निकल कर गाँव की हवा और पानी का स्वाद चखाने क़े लिए शुक्रिया , काश हम भी कभी जा पाते....?

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  10. उत्तर
    1. हाँ कुछ ऐसा नहीं लग रहा - पंचम इस्टाइल पोस्ट

      स्वागत है

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  11. बहुत दिनों बाद आयी आपकी पोस्‍ट। गांव की हवा जो खा रहे थे।

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  12. बहुत सुंदर

    पर मैं क्या कहूं.. स्व. कैलाश गौतम की एक रचना याद आ रही है..

    गांव गया था
    गांव से भागा
    रामराज का हाल देखकर
    पंचायत की चाल देखकर
    आंगन में दीवाल देखकर
    सिर पर आती डाल देखकर
    नदी का पानी लाल देखकर
    और आंख में बाल देखकर
    गांव गया था
    गांव से भागा..

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  13. बहुत दिनों बात ब्लॉग्गिंग पर उतरे हैं, आप सब लोगों का आभार जिन्होंने यहाँ टीप देकर मेरा उत्साह बदाया.

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  14. हम लोग तो इस तरह के वातावरण से कभी कभी ही रूबरू हो पाए वो भी बचपन में। गाँवों में हो रहे बदलाव के बारे में जानकर अच्छा लगा।

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  15. मस्त रिपोर्ट| और इस रिपोर्टिंग में वो असंतुष्ट दिल का हाल है जो जहां है वहां नहीं है लेकिन सब जगह है| कल ऑफिस से लौटते हुए फोन पर पढ़ा था अक्षर अक्षर जोड़कर और दिल गार्डन गार्डन हो गया था|
    एक बार उस रूदावल वाले मंदिर चलना है, बाईक पर चलेंगे| बनाओ प्रोग्राम|

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    1. बाईक से कभी इतनी लंबी यात्रा की नहीं संजय बाऊ. वैसे यादाश तुम्हारी बहुत अच्छी है.

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    2. यादाश अच्छी नहीं है बाबाजी, बहुत खराब है सा...., बहुत दुःख देती है कभी कभी :)

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  16. गाँव का शुद्ध हवा और पानी का कहीं कोई सानी नहीं..
    खैर बंधुवर, जयपुर हाइवे से जयपुर याद आता है और जयपुर से कुछ और, एक फोन तो कर देते,

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  17. हा हा .. अच्छा हुवा कुछ ताज़ी हवा तो ले आए आप गाँव की ... पर अब वहां भज माहोल बदल रहा है ...

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  18. बेजोड़ प्रस्तुतीकरण और चित्र...आपने भावुक कर दिया...गाँव जैसी सादगी शहरों में कहाँ...
    नीरज

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  19. अच्छा लगा, आपका गांव तरक्की पर है। सूचनार्थ: ब्लॉग4वार्ता के पाठकों के लिए खुशखबरी है कि वार्ता का प्रकाशन नित्य प्रिंट मीडिया में भी किया जा रहा है, जिससे चिट्ठाकारों को अधिक पाठक उपलब्ध हो सकें। 

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  20. ये दो पंक्तियाँ, गाँव जाने औऱ गाँव से लौटने के बीच होने वाले एहसास के फर्क को बखूबी अभिव्यक्त करती हैं...

    पंख नहीं होते पर यकीन मानिए - पैर जमीन से २ ब्लांत उपर चलते हैं।
    ............................
    हाँ, पाँव अब जमीन पर होते है और धीरे धीरे चलते हैं।

    दिल को छूती शानदार पोस्ट। वाह! आनंद आ गया।

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  21. उत्कृष्ट प्रस्तुति

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  22. नानी से भी पैसे मार लाये बाबा ....
    आप खुशकिस्मत हो जो वे ठीक ठाक हैं, उनके स्वास्थ्य की कामना करो बाबा ...अभी कई सालों तक पैसे मिलते रहेंगे !
    शुभकामनायें आपको !

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  23. हम भी गाँव होकर आये... बस तस्वीरे नहीं ले पाए !

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  24. गाँव की यादों को बहुत ही प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया है आपका स्टाइल लाजवाब है दीपक जी

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  25. @@@@ देवेंदर जी सहमत हूँ
    .......दिल को छूती शानदार पोस्ट

    संजय भास्कर

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.