ब्लॉग बिरादरी जो जय राम जी की और समीर दादा को प्रणाम।
बहुत दिन से न तो कुछ लिख पाया और न ही कुछ पड़ पाया । प्रेस में हालात ठीक नहीं थे । वैश्विक मंदी का असर धीर धीर और कम ही सही बाबा की प्रेस पर भी पड़ा । आज जब एक बार फिर ब्लॉग देखा तो दादा की टिपण्णी थी की बहुत दिन से कुछ नहीं लिखा ... फिर असमंजस में पड़ गया की दादा को हमारी याद तो कम से कम इतनी बिरादरी में एक शख्स तो है जो राख में चिंगारी खोजने की मादा रखते हैं ।
इतने दिनों में घाघ की कुछ देसी कहावते की किताब नेट पर हाथ लगी थी कई बार उसको पढा बहुत अच्छी लगी। मंझली बहन, parinita, devdas , ये उपन्यास भी पढ़े देवदास और परिणीता तो पहेले से ही पढ़ा हुवा था । ये सब यहाँ उप्लब्ध हैं www.kitabghar.tk।
कनपुरिया जी, कबाड़खाना, मोहल्ला और टूटे हुवे बिखरे हुवे पर गोता लगाता रहा । लगभग दो सप्ताह नेट भी ख़राब था। आज हालात ठीक हैं। नेट भी ठीक है।
abhi haal hi में मेरे मित्र श्री हरीश जोशी जी का कविता संग्रह छापा ... उलझन । जोशी जी भारतीये कृषि अनुसन्धान परिषद् में राज भाषा निदेशक है और कवि हृदये है। आप की ये कविता संग्रह ६ मॉस के लंबे अन्तराल में छप पाई - इसका एकमात्र कारन मेरी मनो दशा ठीक न होना था। कुछ भी करने को मन नही कर रहा था। कुछ कविताये तो बहुत ही अच्छी है जैसे की :
बस
ये बस हिंदुस्तान है
क्या इतना ही काफी है
इसकी
सीट पर बैठा हर व्यक्ति
महान है
क्या इनता ही काफी है
जरा यहाँ गोर फरमाइए
जूता
घायलों के रिश्ते खून में भिगोकर
भाषा का जूता ... दनादन ... मरना चाहता हूँ
इन कम्भाक्तों के सर पर ...
पर इनका सर कहाँ।
इनके तो पड़ते हैं ... पैर जहाँ ...
वहां तो खून ही खून ... आता है नज़र
इनके सर में भर दिया है बारूद ... और....
नफ़रत की गोलियां
बरसाने के लिए ।
दिन ॥
क्या क्या नहीं घटता एक दिन में
सुख दुःख - हार जीत - कहा सुनी - मार पीट
रोग शोक - आधी व्याधि - हानि लाभ - जीवन मरण
सब एक दिन में ही तो घटते हैं
सचमुच .... जिंदगी काटना कितना आसन है
पर दिन काटना कितना मुश्किल।
जो भी हो देर आयद दुरुस्त आयद ... किताब लेट छपी परन्तु अच्छी छपी और जोशी जी नें किताब का टाइटल उलझन भी मेरे कहने पर रखा ... शायद मेरा मान रखने के लिए।
इतना ही ....