15 दिस॰ 2010

वैश्या और रिक्शेवाला

जमा देने वाली सर्दी और उफ़ ये धुंध...
वो बैठी है रिक्शे में....
बेकरारी से निहार रही है –
आस पास गुजरते गाडी वालों को.
५० रुपे का ठेका है...
रिक्शे वाले के साथ....
ग्राहक न मिलने तक...
यूँ ही घुमाता रहेगा
इस महानगर के राजमार्ग पर

.... मेरे मौला, कोई गाहक भेज..
रिक्शे वाला भी दुआ कर रहा है...
एक गाड़ी से चेहरा बाहर निकलता है..
रेट ?
३०० रूपये एक के..
और गाड़ी चल देती है.
रिक्शे वाला गुस्सियाता  है...
काहे, बाई कित्ता घुमाएगी...
चल देती इसके साथ २०० में...


अरे, तू क्या जाने औरत कर दर्द
मुए चार बैठे है गाड़ी में..
बाई, २०० तो मिलते.........
थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...
कल सुबह टीवी में मुंह छुपाती फिरेगी.....

आजकल ऐसी सनसनी के लिए 
टी वी चैनल भी तो बहुत तेज है.

23 टिप्‍पणियां:

  1. सही शब्द वेश्या है।
    गुस्साता या गुसियाता या गुस्सियाता

    इतना नंगा यथार्थ! दीपक बाबू आप ने मुझे मेरी ही कविता नरक के रस्ते की याद दिला दी।
    सो जाइए या कैनवास बड़ा कीजिए और रच डालिए एक लम्बी कविता... ज़माने में बहुत दर्द है। कागज पर उतर आता है तो पढ़ने वाले जाने अनजाने उससे निपटने की राह खोजते हैं या किसी को दर्द न देने की सौंह लेते हैं।

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  2. दर्दनाक है ...समाज का नंगा यथार्थ यही है दीपक बाबा ...
    बढ़िया रचना

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  3. समाज का ऐसा सच जिसके लिए शब्द नहीं हैं ....लेकिन आपने शब्दों से मूर्त रूप दे दिया है ...सटीक और सार्थक ..

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  4. महानगर की सच्चाई बयान कर दी है बाबाजी।

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  5. समाज के कई सच हैं लेकिन किसी शरीफ कन्‍या के साथ ऐसा वाकया होता है वो भी सच है।

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  6. एक कडवी सच्चाई को बखूबी उकेरा है।

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  7. आजकल ऐसी सनसनी के लिए
    aaj kal blog jagat kisi sansani se kam nahi hai.

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  8. बाबा जी प्रणाम
    बहुत बारीक निगाह डाली है

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  9. अजित जी,
    @समाज के कई सच हैं लेकिन किसी शरीफ कन्‍या के साथ ऐसा वाकया होता है वो भी सच है।

    यही सच तो झंझ्कोर के रख देता है - जब किसी के साथ ऐसा हादसा पढते हैं तो ..........

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  10. थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...
    कल सुबह टीवी में मुंह छुपाती फिरेगी.....
    आजकल ऐसी सनसनी के लिए
    टी वी चैनल भी तो बहुत तेज है.
    ... jabardast abhivyakti ... behatreen !!!

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  11. अरे, तू क्या जाने औरत कर दर्द
    मुए चार बैठे है गाड़ी में..
    बाई, २०० तो मिलते.........
    थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...
    कल सुबह टीवी में मुंह छुपाती फिरेगी....

    कितना कड़वा सच...आज के समाज पर सटीक और तीखी टिप्पडी ...

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  12. दीपक बाबा ! बहुत दिन बाद आया, लेकिन आना निष्फल नहीं |
    और वो लाइन 'थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...' मूक कर दिया आपने |

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  13. bahoot hi katu sachchhai........ paede ke peechhe ka sara khel kabhi bhi sachhai bankar samne nahin aa pata ....

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  14. क्या बात है दीपक बाबा पेजर बाबा का सलाम कबुल करे मैंने अभी अभी ब्लॉग में कदम डाला है आपकी पोस्ट बहुत ही अच्छी है मगर आपपे सक लगता है क्या सायद आपको पता है आप भी तो बाबा है न

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  15. सरजी आपकी कविता को पढ़ने के बाद निःशब्द रह गया। आभार कि संवेदना के इस गहराई तक आपकी पहूंच है।

    और क्षमायाचना के साथ निवेदन कि आपकी रचना को विना आपकी अनुमति को मीडिया मंच पर लगा दिया है।
    सादर

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.