16 सित॰ 2009

हरीश जोशी जी का कविता संग्रह ... उलझन

ब्लॉग बिरादरी जो जय राम जी की और समीर दादा को प्रणाम

बहुत दिन से तो कुछ लिख पाया और ही कुछ पड़ पायाप्रेस में हालात ठीक नहीं थेवैश्विक मंदी का असर धीर धीर और कम ही सही बाबा की प्रेस पर भी पड़ाआज जब एक बार फिर ब्लॉग देखा तो दादा की टिपण्णी थी की बहुत दिन से कुछ नहीं लिखा ... फिर असमंजस में पड़ गया की दादा को हमारी याद तो कम से कम इतनी बिरादरी में एक शख्स तो है जो राख में चिंगारी खोजने की मादा रखते हैं

इतने दिनों में घाघ की कुछ देसी कहावते की किताब नेट पर हाथ लगी थी कई बार उसको पढा बहुत अच्छी लगी। मंझली बहन, parinita, devdas , ये उपन्यास भी पढ़े देवदास और परिणीता तो पहेले से ही पढ़ा हुवा थाये सब यहाँ उप्लब्ध हैं www.kitabghar.tk।

कनपुरिया जी, कबाड़खाना, मोहल्ला और टूटे हुवे बिखरे हुवे पर गोता लगाता रहालगभग दो सप्ताह नेट भी ख़राब थाआज हालात ठीक हैंनेट भी ठीक है

abhi haal hi में मेरे मित्र श्री हरीश जोशी जी का कविता संग्रह छापा ... उलझनजोशी जी भारतीये कृषि अनुसन्धान परिषद् में राज भाषा निदेशक है और कवि हृदये हैआप की ये कविता संग्रह मॉस के लंबे अन्तराल में छप पाई - इसका एकमात्र कारन मेरी मनो दशा ठीक होना थाकुछ भी करने को मन नही कर रहा थाकुछ कविताये तो बहुत ही अच्छी है जैसे की :

बस

ये बस हिंदुस्तान है

क्या इतना ही काफी है

इसकी

सीट पर बैठा हर व्यक्ति

महान है

क्या इनता ही काफी है


जरा यहाँ गोर फरमाइए

जूता

घायलों के रिश्ते खून में भिगोकर

भाषा का जूता ... दनादन ... मरना चाहता हूँ

इन कम्भाक्तों के सर पर ...

पर इनका सर कहाँ

इनके तो पड़ते हैं ... पैर जहाँ ...

वहां तो खून ही खून ... आता है नज़र

इनके सर में भर दिया है बारूद ... और....

नफ़रत की गोलियां

बरसाने के लिए


दिन

क्या क्या नहीं घटता एक दिन में

सुख दुःख - हार जीत - कहा सुनी - मार पीट

रोग शोक - आधी व्याधि - हानि लाभ - जीवन मरण

सब एक दिन में ही तो घटते हैं

सचमुच .... जिंदगी काटना कितना आसन है

पर दिन काटना कितना मुश्किल

जो भी हो देर आयद दुरुस्त आयद ... किताब लेट छपी परन्तु अच्छी छपी और जोशी जी नें किताब का टाइटल उलझन भी मेरे कहने पर रखा ... शायद मेरा मान रखने के लिए

इतना ही ....

27 मार्च 2009

नव वर्ष की शुभ कामनाएं

आज शुभ विक्रमी संवत २०६६ है। में भारत भूमि पर जन्म लेने के कारन सर्व मानव कल्याण की पुरातन हिंदू भावना से ग्रस्त हूँ, अतः इस वेद मंत्र के साथ कामना करता हूँ :

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत् ।

अर्थात सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी को शुभ दर्शन हों और कोई दु:ख से ग्रसित न हो ।

कितना सुंदर और सारगर्भित ये मंत्र है जिसमे विशव के सभी मानव जाति के कल्याण की बात की गए है। होली के बाद ही मौसम में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है । जब प्रकृति अपनी सम्पूर्ण छटा बिखेर कर अपने योअवन पर आ कर मुस्कराती है तो भारत देश में मानव तो क्या प्रतेयेक प्राणी के मन में नयी उमंग आ जाती hai।


नयी फसल खेतों से निकलकर - किसान जब नगदी घर लाता है - और घर में एक त्यौहार का एहसास होता है बच्चों के लिए नए कपडे, घर के लिए कुछ नया, और पैसा बचा तो घर की मालकिन के लिए नया कपड़े जेवर इत्यादि । कुल मिला कर किसान जो भारत वर्ष की ७० प्रतिशत जनता का प्रतिनिध्तावा करता है खुश होता है और मन उमंगों से भरा रहेता है। प्रकृति के ताल से अपना ताल मिलते हुवे अपनी खुशी में और इजाफा करता है।

वसंत ऋतू में प्रकृति अपने सम्पूर्ण यौवन पर मानव के चित्त को मस्त करती है। आम के वृक्षों में फूल सुगंध बिखेरते हैं। जगह जगह लगे पेड़ भी नव पत्तों के साथ नए कपड़े पहेने सरीखे लगते हैं।

विक्रमी संवत का इतिहास :
ब्रम्हा जी ने आज ही के दिन सृष्टि का निर्माण शुरू किया था.
भगवान् श्री रामचंद्र जी का राज्यअभिषेक इसी दिन हुआ था.
आज ही के दिन स्वामी दयानंद जी नें आर्यसमाज की नींव रखी थी.
माना जाता है कि विक्रम संवत गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उज्ज्यनी में शकों को पराजित करने की याद में शुरू किया था।
एक बात और, दीपक बाबा ने भी इसी दिन संवत २०६२ में नरेना मैं एक 6 गुना 6 फ़ुट कोठरी में मिस्टिकल ग्राफिक्स नामित कंपनी की शुरुवात की थी. अत इस दिन का महत्व और भी बाद जाता है. अच्छी तरह याद है की पंडित राम कुमार पाण्डेय जी (छोटू पंडित) नें कोठरी के बाहर हवन किया था और जी भर कर आशीर्वाद दिया था.

दोस्तों हमारा हिंदू धर्म कह लो या जीवन पद्धति - हमें प्रकृति के साथ जीने की विद्धा सिखाती है। और हमारे पूर्वज प्रकृति के लए के साथ ताल मिलते हुवे जीते थे और खुश रहते थे। आज अपने बारे में सोचे? अंग्लो नव वर्ष Happy New Year पर क्या करते है? क्या प्रक्रति हमारा साथ देती है. हम बस और लोगों की देखा देखि ये अंग्लो नव वर्ष मानते है.

25 मार्च 2009

मनमोहन सिंह जी - जय हो....

मानिये प्रधानमंत्री जी। मुबारक हो ॥ बधाई हो .. आपने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पांच वर्ष पुरे कर लिए हैं और आपकी तस्वीर पूर्व महान प्रधानमन्त्रियों के साथ सरकारी दफ्तरों में चस्पा की जायेगी. वो बात दीगर है की उस तस्वीर में श्रीमती सोनिया गाँधी जी भी नज़र आएँगी. चाहए वह वाटर मार्क के रूप में ही नज़र आये. पर आयेंगे जरूर.

मुझे याद hai आपका शपथ ग्रह समारोह। याद है वामपंथियों के नाम पर शेयर मार्केट का धराशाही होना। मैडम का दो बार तत्कालीन राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम के पास जाना और वापिस आना। १० जनपथ के बाहर फर्जी कांग्रेसियों की भीड़। सभी कुछ तो याद है. एक कांग्रेसी वो भी याद है जो पिस्टल ले कर पेड़ पर चढ़ गया था. टीवी पर देखते देखते शेयर मार्केट ४००० से नीचे आ गयी थी. अचानक सब बदल गया मैडम ने आपको आगे कर, एक तुरुप का पत्ता चल दिया, मैडम को मालूम था की आप दक्षिण दिल्ली में विजय कुमार मल्होत्रा से लोकसभा चुनाव हार गए थे. प्रणव मुख़र्जी जैसे मंजे हुवे खिलाडी को एक किनारे करते हुवे आपका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे किया. आप क्या सोच रहे है की आपके अंदर प्रधानमंत्री बनाने की प्रतिभा थी, नहीं, मैडम को बस एक डमी प्रधानमंत्री की जरूरत थी, वो सब योगतायें आप में दिख रही थी.
मनमोहन सिंह जी, दिल पर हाथ?? (क्या बताएं, हाथ भी कोंग्रेस का कैसे सच बोलेंगे ) रख कर बताएं , की कोंग्रेस में श्री प्रणव मुख़र्जी जैसे मुखर नेता के होते हुवे आप को (मैडम नें ) प्रधानमंत्री कि रूप में नामित क्यों किया. और आब्की २००९ कि लोकसभा चुनावों में भी आपको आगे रख कर लड़ रहीं है. आप अपनी कारीगरी पर नज़र डालें :

- आपके राज में शेयर मार्किट, २०,००० को पार कर गई, आपको मालूम था की किन लोगों का पैसा इस खेल में लग रहा है, और वो लोग जब अपना पैसा वापिस निकालेंगे को कों पिसेगा, ... यानि की उच्च माध्यम वर्ग, जो आपना एक एक पैसा बचा कर शेयर मार्केट में मुनाफे कि लिए लगा रहे थे। उनको क्या मालूम था की कुर्सी पर एक अर्थशास्त्री बता हुवा है जो आपकी न सुन कर मुल्क से बाहर बेठे आकोयों की सुनता है


- उत्तेर प्रदेश में निठारी बच्चे लील कर थी। हरियाणा में पुलिस फक्टोरी कि बाहर कामगारों की पिटाई कर रही थी पर आपको कहाँ फुर्सत थी। पिस तो धरती कि लाल रहे थे। - कारपोरेट जगत का पैसा, काली कमाई कि रूप में भूमि सम्पदा में निवेश हो रहा था ... आपने अपना चस्मा उधेर नहीं घुमाया।
- एक सत्यम का राजू तो पकडा गया ... बाकि राजू का क्या होगा।
- सेज कि रूप में दिल्ली कि १५० किलोमीटर बाहर जमीन कोडियों कि भावः उद्योगपतियों को दी गई, किसानो का क्या होगा सोचा.
- एक माल में करोडों रुपे का निवेश होता है. .... पर ग्राहक नहीं होते, ये पैसा कहाँ से आता है. और क्यों डैड इनवेस्टमेंट कि रूप में इस्तेमाल होता है.
- आज चुनाव नज़दीक आने पर, आपने मंहगाई दर शुन्य के करीब कर दी है. पर इसका फयदा किसे है॥
- दिल्ली की बात करता हूँ, दिल्ली में फक्टोरियों में, एक हेल्पर जो १८०० से २२०० में मिल जाता था और खुश हो कर काम करता था, आज ३००० में नहीं मिलता, मालूम क्यों, २००५ में वह प्राणी, १८०० के वेतन से ३००० (ओवर टाइम मिला कर) रुपे पाक संतुष होता था और उसमें घर भी १००० रुपये भेज देता था. आज वह ३००० वेतान पाकर भी संतुष नहीं होता क्यों की आपकी दया से फक्ट्रोरिओं में काम ख़तम हो गया है और ओवर टाइम नहीं लगता.
- आप कहेते है की महंगाई दर कम हो गई है. झुगी झोपडी में रहेने वाले सभी करोड़ पति नहीं बनते. वेह मात्र फिल्मो में ही होता है और आपसे कहेल्वाया जा रहा - जय हो

बहरहाल जय हो ... प्रधानमंत्री जी ... तेरी जय हो....

1 फ़र॰ 2009

मानिये समीर लाल जी

आज पता नहीं क्या मन में सूझी - उड़नतस्तरी की जांच करना को मन हुवा. अजीब लगता था जो भी ब्लॉग मैं देखता या पड़ता था वहां काम्मेंट्स में उड़नतस्तरी सबसे पहेले मौजूद होता था. तब ध्यान नहीं दिया. आज मैं समीर लाल जी (आगे से आदरनिये समीर लाल जी बोला करूंगा) के ब्लॉग के रूबरू हुवा. आश्चर्य . ... महा आश्चर्य ... ताजुब हुआ की एक टेक्नीकल हुनर वाला आदमी वो भी जो देश से दूर (कनाडा) इतना कार्य. अपने ब्लॉग में भी लिखना. नए उभरते ब्लोगेर्स (मेरे जैसे) को काम्मेंट्स के द्वारा उत्साहित करना ... पहेले में खुश होता था की मेरे ब्लोग्स पर टिपण्णी देते है. अब पता चला की ये उनकी आदत में शुमार है नए ब्लोगेर्स को उत्साहित करना .. उनकी दिक्कत दूर करना. कुछ तकनिकी टिप्स देना.
मैं परमपिता से प्राथना करता हूँ की उनकी ये आदत बनी रहे. तभी हिन्दी ब्लॉग जगत का भला है तभी नए नए नोसिखिये ब्लोगर्स लगे रहेंगे और लिखते रहेंगे.

31 जन॰ 2009

हे शारदे माँ

माँ , आज तेरी वंदना जगत कर रहा है, बचपन से तेरे आशीर्वाद को तरसता हूँ माता। विद्या की देवी दूर ही रही मुझ से। आज तेरा दिन है मैया ...

हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमे तार दे माँ
तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझ से
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझ से
हम है अकेले, हम है अधूरे, तेरी शरण हम
हमें प्यार दे माँ

हे शारदे माँ ....
ऋषियों ने समझी, मुनियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुरानो की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ

हे शारदे माँ

तू स्वेत वरनी, कमल पे विराजे
हाथों पे वीणा मुकुट सर पे साजे
माँ से हमारे मिटा दो अंधियारे
उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ

25 जन॰ 2009

कलम, आज उनकी जय बोल










कलम, आज उनकी जय बोल
- रामधारी सिंह दिनकर

जो अगणित लघु दीप हमारे
तुफानों में एक किनारे
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल

पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही लपट दिशाएं
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल

दोस्तों बधाई सवीकार करो ... 6०वे गणतंत्र की . दुनिया के सामने सर ऊँचा और सीना चोडा है . ये है हमारी ताकत .. देख लें और तोले लें. हिमत है तो बोले ... हमारी आर्मी, नोसेना, वायुसेना, हमारे अर्ध सैनिक बल, कोस्ट गार्ड , ..... इस दिन हमें अपना जलवा दिखाते है और भरोसा दिलाते है की रात की नींद सुख चैन से लिया करो, चिंता की कोई बात नहीं हम है न . हम तैनात है वहां जहाँ २४ घंटे और १२ महीने बर्फ परती है ... वहां जहाँ वायु में ऑक्सीजन कम हो जाती है . हम तैनात है बस इसलिए की आप सुरक्षित हो. हमारा हिमालय जो मुकुट के रूट मैं माता की शोभा बड़ा रहा है वेह सुरक्षित रहे. ये पवन भूमि, पावन ही रहे जहाँ गंगा जमुना जैसी पवित्र नदियाँ बहेती है . अयोध्या , कशी, मथुरा द्वारका जैसे पवित्र स्थान है सदा पावन ही रहे किसी मलेछ या अन्य अंतिकी से अपवित्र न हों. हमारे बच्चे सदा की तरह स्कूल जायें. हमारे बुजुर्ग सदा की तरह आराम से जाप करें. सकूं से रहे. माता के चरणों को धोता अथाह जल प्रवाह -- इसे ही धोता रहे ..

इसलिए ये जवान कायम है अपने वचन पर , अपनी बात पर अपनी ओकात पर ... सदा चोकस इनकी निगाहें ... दुश्मनों के मन में खोफ पैदा करती है ...

आओ शपथ लें की कभी कोई सैन्य बल में कार्यरत व्यक्ति कभी कोई मदद मांगे तो जान से बड़कर देंगे.. क्योंकि इनकी बदोलत ही हम और हमारा अस्तित्व है .

एक राष्ट्रीय कवि की कविता प्रस्तुत है :

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी
अराति सैन्य सिंधु में, सुबाड़वाग्नि से जलो
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो


22 जन॰ 2009

काँच की बरनी और दो कप चाय - एक बोध कथा

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा , "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं... उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ?

हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ॥ कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ?

हाँ॥ अब तो पूरी भर गई है॥ सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक- अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे॥ अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

दोस्तों कितना सुंदर विचार है । पर चाह कर भी, अपने स्वाभाव के अनुरूप भी में ये नहीं कर सकता। पता नहीं क्यों दुनिया दोरंगी लगती है । जिससे भी मिलने जाता हूँ ... उस व्यक्ति का भावः हमेशा से कुछ स्संक्षित लगता है। ... जे राम जी ज्यादा नहीं दिल का गुबार निकला तो बात दूर तक जायेगी।

20 जन॰ 2009

मदरसों के बड़ते कदम ...


आदरनिये पॉप (रोम वाले) व् इटली से निर्यातित भारतीय महारानी (श्रीमती सोनिया गाँधी - भारतीय नाम ) के प्रताप से मनमोहन सरकार अपने पाँच साल पुरे करने जा रहे है । इन ५ सालों में सरकार ने मुसलमानों की शैक्षिक, सामाजिक, व् आर्थिक हालत सुधरने के लीये जो कदम उठाये थे उनके परिणाम आने लगे है । में बात करता हूँ शेक्षिक हालातों के बारे में ।

मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने मदरसों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और भारतीय स्कूल शिक्षा बोर्ड परिषद के समकक्ष मानने की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है। इसके अलावा केंद्रीय मदरसा बोर्ड गठित करने का मामला भी विचाराधीन है।

लाल बादशाहों के राज यानिकि पश्चिम बंगाल में इन प्रयोग का प्रत्यक्ष देखने को मिल रहा है। वहां पर हिंदू विद्यार्थी बहुत संख्या में मदरसों में जाने लगे है. राज्य के उत्तेरी दीनापुर जिला, कूचबिहार, बर्दवान और पश्चमी मिदनापुर जिलों में तो ६० प्रतिशत तक स्टुडेंट हिंदू हैं. इसका मुख्या कारन इन इलाकों में मुस्लिम आबादी का कम होना है. यानी, आबादी कम और मदरसे ज्यादा। बहार से मिलती जबरदस्त आर्थिक मदद. तो पैसा तो कहीं लगेगा ही. और छोटेपण में बच्चो के अगर दिमाग को ही बदल दिया जाए तो .... अब मुस्लिम रणनीतिकारों को अपनी निति बदलनी पड़ रही है. तलवार के दम पर धर्म परिवर्तन तो हो नहीं रहा तो ईसाईयों की देखा देखि ये भी कर के देख लेते हैं.

गरीब हिंदू अभिवावक कम फीस की वजह से अपने बच्चों को यहाँ भेज देते है जो की राज्य द्वारा चलाये जा स्कूलों से भी कम है। औराए मदरसे अब कंप्युटर साइंस टेक्नोलोजी और वोकेशनल सुब्जेक्ट की बात करते करते ... अरेबिक और इस्लामिक पदाई करवाने लगते है।

सरकार को कम से कम इस विषय पर सोचना चाहिए की कम आबादी के होते हुवे ज्यादा मदरसे क्यों खोले जा रहे है खासकर उन शेत्रों में जहाँ इनकी आवश्कता नहीं है. दुसरे राज्य द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों से कम इनकी फीस क्यों है.

18 जन॰ 2009

एक तनहा पेड़
एक दरवेश की तरह
मुझे बुलाता है
समझाता है
दुनिया का दस्तूर
जब तक हरे भरे थे
विकट थे , विकराल थे
पंछी आते थे पन्हा को
मुसाफिर aate the थकान मिटने को
आज तनहा यहाँ
दुनिया को कुछ दे नहीं सकता
तो दुनिया ने बेगाना किया
अपनों ने ही तो ये सिला दिया
परन्तु खुदा की सभी नियम्नते तो
मेरे लिए ही है
तुम्हारी आँखों का सकूं हों
तुम्हारी जज्बातों का
तुम्हारी खवा एइशों का सिला हूँ