24 मई 2012

पेट्रोल के दाम - बुद्ध फिर मुस्कुराये.

भगवान बुद्ध गाँव गाँव शहर शहर घुमते इन्द्रप्रस्थ आये, और गट्टर कि गंदगी से भरी यमुना किनारे एक विशाल वृक्ष के नीचे आकार बैठ गए, इन्द्रप्रस्थ की शानोशौकत देख कर भूल गए कि ये अब दिल्ली शहर है - जो कि भारतखंड नामक द्वीप की राजधानी बन चुकी है, जहां बैठ कर कुछ लोग सवा अरब मानव के भाग्य विधाता बने हुए हैं. जैसे इस नगर में आकर श्रवण अपनी पितृ-मात भक्ति भूल गया था उसी प्रकार पर भगवान बुद्ध भी बौद्ध गया से प्राप्त ज्ञान भूल गए, और शांति वन के नज़दीक एक बड के पेड़ के नीचे विचारवान मुद्रा में बैठ गए.
        सायं ६ बजते ही जैसे बाबु लोग आई.टी.ओ. से ऐसे छूटे मानो बच्चो का समूह स्कूल से छूटा हो - राष्ट्रपति के आकस्मिक निधन के कारन. ऐसे में एक विद्वजन सारा दिन राजकीय सेवा से त्रस्त, शान्ति की खोज में शान्ति वन टहलता हुआ आया, और एक सफाचट पुरुष को घने पेड़ के नीचे बैठा देख जान गया, हो न हो, भंते ने प्राणी मात्र के उद्धार के लिए फिर से जन्म लिया है.

18 मई 2012

जीव ज्ञानोदय (कहानी)

तुम अपनी तीव्रता और मेघा खोते जा रहे हो मिस्टर आनंद, रतलाम डेवेलोपेर्स प्रोजेक्ट में तुमने जो भूलें की वो बर्शास्त से बाहर है, इससे पहले भी कई बार में तुम्हे चेतावनी दे चूका हूँ, पर तुम्हारे कानो में जूँ तक नहीं रेंगती ..

सर झटक दिया आनंद ने , और पूर्व की भांति ही गंगा को देखते हुए, हर की पौड़ी से चल दिया. दिमाग में मिस्टर घई का क्रोध से तमतमाया हुआ चेहरा उसके जेहन में जीवन्त हो उठता है.

पता नहीं क्यों, ऐसा कैसे हो गया, आनंद जैसे कॉपी राइटर कम विजुलाजर कम ग्राफिक डिजाइनर का दिमाग भनभनाता रहा, मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है, कहाँ जीरो आइडिया से में काम शुरू करता हूँ, और पूर्ण होते होते क्लाईंट और एम् डी  की कितनी शाबाशी मुझे मिलती है ... पर जब फाइनल विज्ञापन अखबार में छप कर आता है तो कोई न कोई ऐसी गलती छप जाती है कि जितनी शाबाशी मिली थी उससे कहीं ज्यादा गालियाँ सुननी पड़ती हैं.

फक आल दीज़ थिंग्स एंड एन्जॉय योरसेल्फ.... सोच  कर उसने सर पटका  डेव की पेत प्लास्टिक बोतल को मुंह से लगा कर एक चुस्की ली. सुबह ही एक अद्धा जिन का उस ने डेव में मिक्स कर दिया था, ताकि धार्मिक स्थल पर कुछ ऐसा न हो जाए जिसके लिए समाज उसका तिस्कार कर दे. वैसे अब तक घर क्या, कम्पनी से लेकर समाज तक हर जगह उसका तिस्कार हो चूका था.

13 मई 2012

नमन माँ


तेरे संघर्षों को, 
तेरी घुटन को,
तेरी तड़प को,
तेरे धैर्य को,
तेरे विनम्रता को,
तेरे विश्वास को,
तेरी आस को,
तेरे उस दर्शन को,
जिसने किया सदा मार्गदर्शन मेरा ,
कि जिस मुकाम पर तू मुझे पहुँचाना चाहती थी,
आज मैं वहीँ हूँ, माँ 
और चाहता हूँ कि तेरे प्यार और असीस की 
ये घनी छाया यूँ ही बनी रहे

नमन माँ.

11 मई 2012

मेरे दोस्त, मैं एक बार तो मरना चाहता हूँ

नहीं नहीं, तुम गलत समझे मेरे दोस्त,  
मैं मरना तो चाहता हूँ, पर मर कर दुबारा जिन्दा भी होना चाहता हूँ,
मैं देखना चाहता हूँ, कैसे और क्यों मुझे कोई कंधे पर उठता है, बवजूद इसके कि मैं जानता हूँ, कि अब कंधे किसी भी अर्थी कर वज़न नहीं उठा पायेंगे, क्योंकि वो त्रस्त है,
पहले ही झुके हैं वो कंधे, परिवार के अरमानो को झूलते झुलाते,
दूध सब्जी और राशन के थोडा सा बौझ पर इतने पैसे लुटाते, सिगरेट का कश भी गिन गिन पीते, 
झुके झुके से चल कुछ गुनगुनाते बडबडाते, बुदबुदाते,मन ही मन, मन को समझाते, गिरे नयनो से घर को आते, उनके कंधो का वज़न और तोलना चाहता हूँ,

1 मई 2012

मेरा गाँव - मेरा देश.

इस बैसाखी पर अपने गाँव गया था, मानका - (राजस्थान - हरियाणा सीमा पर). गाँव पहुँचते ही एक गहरी अनुभूति होती है, फैफडों में एक साथ ताज़ी हवा का झोंका आता है और शरीर का वजन ५ किलो कम हो जाता है - खून का दौरा बढ़ जाता है, पंख नहीं होते पर यकीन मानिए - पैर जमीन से २ ब्लांत उपर चलते हैं...

कटाई के बाद खेत में पड़ी गेंहू 
गेंहू - २४ केरत खरा सोना
गेंहूँ की लावणी (कटाई) का समय है... हमारे गाँव में कटाई के लिए थ्रेशर (गेंहू काटने की मशीन) नहीं मंगवाई जाती - क्योंकि उसमे किसान को तुड़ी नहीं मिलती जो की पशुयों का प्रमुख आहार है. अत: खुद ही कटाई की जाती है. खड़ी गेंहू २४ केरत का सोना लग रही है... पर दुःख होता है जब यही गेंहू सरकारी गोदामों में सड़ता है.