भगवान बुद्ध गाँव गाँव शहर शहर घुमते इन्द्रप्रस्थ आये, और गट्टर कि गंदगी से भरी यमुना किनारे एक विशाल वृक्ष के नीचे आकार बैठ गए, इन्द्रप्रस्थ की शानोशौकत देख कर भूल गए कि ये अब दिल्ली शहर है - जो कि भारतखंड नामक द्वीप की राजधानी बन चुकी है, जहां बैठ कर कुछ लोग सवा अरब मानव के भाग्य विधाता बने हुए हैं. जैसे इस नगर में आकर श्रवण अपनी पितृ-मात भक्ति भूल गया था उसी प्रकार पर भगवान बुद्ध भी बौद्ध गया से प्राप्त ज्ञान भूल गए, और शांति वन के नज़दीक एक बड के पेड़ के नीचे विचारवान मुद्रा में बैठ गए.
सायं ६ बजते ही जैसे बाबु लोग आई.टी.ओ. से ऐसे छूटे मानो बच्चो का समूह स्कूल से छूटा हो - राष्ट्रपति के आकस्मिक निधन के कारन. ऐसे में एक विद्वजन सारा दिन राजकीय सेवा से त्रस्त, शान्ति की खोज में शान्ति वन टहलता हुआ आया, और एक सफाचट पुरुष को घने पेड़ के नीचे बैठा देख जान गया, हो न हो, भंते ने प्राणी मात्र के उद्धार के लिए फिर से जन्म लिया है.