31 दिस॰ 2010

३१ दिसम्बर २०१० - डाईरेक्ट लाइव फ्रॉम माय आश्रम

अंग्लो वर्ष २०१० जा रहा है, सोचा जाते जाते की राम राम दे दूं, पोस्ट लिखने लगा था ही कि जोगन सर पर आ कर खड़ी हो गई, बोली पहले दवाई खा लो,???? दवाई? लाओ जी, दुनिया कोकटेल कर रही है हम दवाई ही खा लें. दूध का गिलास भी साथ है.... कहते है भारत देश विषमताओं से भरा देश है...... और ऐसे ही यहाँ से बाबा भी.

अब मुझे ही देखिये...... रोज अंगूर की बेटी से नज़रे चार करते हैं और घर विलम्ब से आते हैं, पर आज दिन भर घर रहे और अंगूर की बेटी से बे-वफाई कर ली. क्यों ? क्योंकि आज वो कई लोगों के होंठो की प्यास बुझा रही होगी और मैं नहीं चाहता कि मेरे पी लेने के किसी भाई को कम पड़ जाए. चलो दूध का ग्लास ही सही, पर उसमे भी तकलीफ यह है की वो स्टील के ग्लास में दिया गया, कांच का ही होता तो ये अरमान तो रहता कि तू नहीं ते तेरी यादां सही.

अब तक की लाइनों से स्पष्ट है की पोस्ट लिखने का कोई इरादा नहीं था, कल से कन्धों में भयंकर दर्द था, अत: आजमा रहा हूँ कि दवाई ने कहाँ तक असर किया है.  १ जनवरी २००८ को पोस्ट लिखी थी, उस समय तो आपने पढ़ी नहीं होगी, अत: अब उसे पेस्ट कर कर रहा हूँ, कसम से डिरेक्ट फ्रॉम दिल थी (आचार्य, कृपया इस पोस्ट की त्रुटियों पर नज़र मत डालना – खुदा कसम कापी लाल हो जायेगी) ....

नया साल - बता तुझ मैं नया क्या है ....
कुछ दोस्तों को SMS किया था कि बता तुझ मैं नया क्या है।
मुझे आज तक पता नहीं चला कि लोग नया साल क्यों मानते हैं। पंजाब केसरी मैं आया था ध्यान नहीं हैं - कितनी करोर रूपये कि दारू लोग पी गए। कनाट प्लेस मैं जाने को कितने तरस गए। पता नहीं।
कौन सी संस्कृति में हम जी रहे हैं, श्याद किसी को नहीं पता, क्यों पता हो । सही बात है क्या जरूरत है, बुरा क्या है, एक दिन आता है जब दिल खोल के पीते हैं और एअश करते हैं, साला , तुम्हे वो भी दिक्कत है, चल्लो तुम्हारी मान ली, अब ये बताओ कि किया कर लिया।
जिसको नया साल कहेतो हो उस दिन ऑफिस में लेट आये। सारा दिन खराब कर दिया, क्या किया, चलो नया साल तो मनाया। इसी बात कि ख़ुशी है , इंटरनेशनल तो बने , नए दुनिया के साथ तो चले , तरक्की पसंद लोगों कि जमात में शामिल तो हुए, चार अफसरों कि खुशामंद की, चार लोग तो जानते हैं, तुम्हारी क्यों जल रही है।
ठीक फ़रमाया. तुम्हे पता भी नहीं होगा की ३० दिसम्बर को राम सेतु का कार्यक्रम था, लाखों लोग दिल्ली में आये थे । तुम नहीं गए न , तुम्हे क्या वो वेले थे। हाँ , वो वेले थे , बच्चो को घुमाने ले जाना था, घर की सफ़ाई करनी थी, बीबी को हेल्प करनी थी. भाई अब तो मेरे पास एक ही एक्जेंदा हैं - में, मेरे बच्चे, मेरी बीवी और मेरे ससुराल. भाई अपन की लाइफ तो चल जायेगी, तुम बताओ. राम सेतु से तुम्हारा किया मतलब है. किया मिल जाएगा, भारती जनता पार्टी रोटी घर में नहीं देगी. भाई दुनिया दरी सीखो. ये लोग घर ये तो चाय पिला कर चलता करो ओर अपना काम देख. समझे.
बरहाल, आपके ये कुतर्क गले से नीचे नहीं उतरते. आपको वापिस पाकिस्तान भेज देना चाहिऐ. सब समझ जायोगे.
देखो दोस्तों, लाइफ को क्रिटिकल मत करो, जैसे हो वैसे ही दिखो, सिर्फ अपने काम में ध्यान लगाओ. दूसरो को मत देखो. दिक्कत होगी.
जय राम जी की

जी हाँ १ जनवरी २००८ को ये पोस्ट लिखी थी देर शाम को. साल २०१० बहुत कुछ दे कर जा रहा है...... सब आपके सामने है. पूरे साल कविता व्यंग इत्यादि बक बक के महापुरषों को याद करता रहा अब किसी को भीं नहीं याद कर रहा बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय.... बस एक तमन्ना है, २०११ में ये सभी महापुरुष अपनी उचित स्थान पहुंचे ...


आखिर में एक पैरा आचार्य चतुरसेन की कहानी जीवन्मृत से उद्धृत कर रहा हूँ. मेरे हिसाब से इस कहानी का रचना काल स्वतंत्र पूर्व का है पर गज़ब देखिये कि आज भी सामयिक लग रही है. सिवाय सरदार जी के तथाकथित विकास दर के अलावा कुछ भी तो नहीं बदला.
पर मैंने जो कुछ समझा वह मेरी जड़ता थी. देश का अस्तित्व एक कठोर और वास्तविक अस्तित्व था. उसकी परिस्तिति ऐसी थी कि करोड़ों नर-नारी मनुश्तत्व से गिरकर पशु के तरह जी रहे थे. संसार कि महाजातियाँ जहाँ परस्पर स्पर्धा करती हुई जीवन-पथ पर बढ़ रही थीं, वहाँ मेरा देश और मेरे देश के करोड़ों नर-नारी केवल या समस्या हल करने में असमर्थ थे कि कैसे अपने खंडित, तिरस्कृत, अवशिष्ट जीवन को खत्म किया जाए? देश भक्त मित्र मेरे पास धीरे धीरे जुटने लगे. उन्होंने देश की सुलगती आग का मुझे दिग्दर्शन कराया. मैंने भूख और अपमान की आग में जलते और छटपटाते देश के स्त्री-बच्चों को देखा. वहाँ करोड़ों विधवाएं, करोड़ों मंगते, करोड़ों भूखे-नंगे, करोड़ों कुपढ़-मुर्ख और करोड़ों ही अकाल-ग्रास बनते हुवे अबोध शिशु थे. मेरा कलेजा थर्रा गया. मैं सोचने लगा, जो बात केवल में कहानी-कल्पना समझता था, वह सच्ची है, और यदि मुझे सच्ची गैरत थी, तो मुझे सचमुच ही मारना चाहिए था. मैं भयभीत हो गया.

जय राम जी की........ सही मायने में कुछ नए का इन्तेज़ार कर रहा हूँ...... कुछ अच्छी ख़बरों का.

29 दिस॰ 2010

एस एम एस की बहुयात : योर मेसेज बॉक्स इस फुल.

पता नहीं, क्यों ? पर आजकल मोबाइल में एस एम् एस की बाड़ सी आ गई है.. अभी देखा तो मोबाइल में लिखा आ रहा था.... मेसेज बॉक्स इस फुल. तुरंत देखने चालू किये.... जितनी रंग बिरंगी दुनिया है ... उतने ही रंग बिरंगे एस एम् एस... इंसान ने भी क्या चीज़ बनाई है. जिससे आप बात नहीं करना चाहते – उसे एस एम् एस भेज दो...... जिससे करना चाहते भी हो तो उसे भी एस एम् एस भेज दो...  ब्लेंक काल की तरह ब्लेंक एस एम् एस भी हैं...... मात्र उसकी याद के लिए दर्शाने के लिए. प्यार से भरे शेरो श्यारी वाले, कुछ पति और पत्नी की नोकझोंक वाले, कुछ दर्शन शास्त्र की पुस्तकों का निचोड़ लगते हैं. बाकि तो तीज त्व्योहार वाले होते हैं.

चर्चा करते हैं, कुछ एस एम् एस की – जो हैं तो नोर्मल परन्तु कुछ अब्नोर्मल हैं. जैसे की
Jaane Pandit Ji se Nav Varsh me grahon ka apke jiwan me kya hoga prabhaw, kaisa hoga apka business, love and marriage life : dial :
टीवी पर देखा देखी कई पंडितजी भी हाई टेक हो गए है. बाकि सेवाओं की तरह ज्योतिष भी मार्केटिंग की शरण में हैं....  अगर परेशान है, पेमेंट नहीं आ रही, किसी ने आपके काम पर नज़र लगा राखी है, गर्ल फ्रेंड का प्यार- प्याज से ज्यादा भाव खा रहा है, आप तुरंत पंडित जी को फोन लगाइए...
R u a LIC policy holder? If yes! Don’t miss to book your flat in OXY Homz at new dilshad extn.
इस एस एम् एस में ये नहीं समझ आ रहा कि फ्लैट की बुकिंग के लिए एल आई सी पोलिसी की क्या आवश्यकता पड़ गई है. या एल आई सी पोलिसी धारक को फ्लैट फ्री में मिल रहा है क्या ?
लीजिए साहेब, उम्र चालीस पार कर गए है और कमर के चालीस तक पहुचने लगे है, सुबह पूरी हलवे का नाश्ता और रात को मटन बिरयानी के साथ दारू छोडना नहीं चाहते.... तो प्रस्तुत है
*SAUNA SLIM BELT* Heating+Vibrating reduce your weight 5 to 10 kg. (100% result) + 1 year guarantee.Rs.650/-
६५० रुपे में ५ से १० किलो वजन कम होगा........ वो भी शत प्रतिशत गारंटी.... क्या बात है.
I.D.O. If u r facing any problem in payment of C.C. & Pl Bank debts then contact :
ये कुछ आर्थिक प्रकार की समस्याओं का जिक्र है.... भेजने वाले को नहीं मालूम ... बाबा को भेजा जा रहा है – सोचा होगा मोडर्न बाबा है – पैसे वैसे के चक्कर में होंगे.
Kaale Angrejo ko Satta se bahar karne k liye App bhi Rajneeti Join kare, Samajseva ke Echhuk “AZAD MAZDUR KISSAN PARTY” mein Padadhikari bane ye chunav lade –
लीजिए साहिब, सबसे बढिया ....... रोज रोज नेता देवता को कोसना छोडिये.... आप खुद ही क्यों नहीं राजनीतिज्ञ बन जाते. एक फोन न. दे रखा है – फोनुआ मिलाए और नेता बन जाए... और जी भर के लुटे खुद की कुढन भी मिट जायेगी........
Learn International Language (FRENCH) and secure your childs chances to study abroad. FRENCH Home Tuitions Available Rs.399/hrs.
अब अंग्रेजी गए ज़माने की बात हो गई है साहिब......... ये एस एम् एस ऐसा ही कहता है. अब बच्चे को फ्रेंच सिखाएं... अगर जमाने के साथ कदमताल करना चाहते है तो.........
Make dreams come true, Own a free car with every flats (no lucky draw)
ये लीजिए...... फ्लैट के साथ कार भी फ्री........ (पेट्रोल दे देता तो बढिया था) शायद फ्लैट के लिए माया का जुगाड कर लेते.
Scared of Facing d Public? Public Speaking, presentation Skills Courses starting in Delhi/Noida/Gurgaon.
पब्लिक में बोल नहीं पाते – अटकू राम बन जाते हैं तो प्रस्तुत है ये कोर्स.....
ये देखिये ... पूरी जिंदगी का ठेका.... २०४२ रुपे दीजिए और सब कुछ पाइए..... सभी कुछ...इससे ज्यादा क्या चाहिए..
Pay Rs.2042 pm & get 11 lacs+after 20 years+riskcover 5lacs+accidental 10 lacs+tex benefits. Part/full money back after 3 years. More contact :
 और एक मित्र द्वारा भेजे गए :
ये मत सोचो की ईश्वर हमारी दुआएँ तुरंत नहीं सुनता..... ये शुक्रिया करो की वो गुनाहों की सजा उसी समय तो नहीं देता.....

और अंत में
आज वो हम से जन्नत में टकरा गए....
आज वो हम से जन्नत में टकरा गए....
और हमारे दिल से ये आवाज़ निकली
फिट्टे मुहं... तुस्सी इत्थे वी आ गए ...
 
पत्नी: अगर मैं खो गयी तो तुम क्या करोगे?
पति: मैं अखबार में ईश्तिहार दूंगा।
पत्नी: तुम कितने अच्छे हो, क्या लिखोगे?
पति: जहां भी रहो खुश रहो!!

28 दिस॰ 2010

अघोषित आलसी का इकबालनामा

उफ्फ़, कहाँ से शुरू करूँ........ सर्दी बहुत है, आलस का समय है....... रजाई प्रेम बहुत ज्यादा है ....... घर में ही बैठकर कोहरे के बारे में सोचता हूँ, ...... गाँव में सरसों बढ़ रही है.........  पानी लग रहा होगा..... बाजरे की रोटी ... सरसों के साग के साथ गुड या फिर लहसुन की चटनी और बथुए का रायता... सब कुछ रजाई में बैठ कर ही याद आता है.... ये आलसपन की हद है........ १०० किलोमीटर दूर गाँव जाने से भी कतरा रहा हूँ........ आश्रम में, मेरी जोगन (श्रीमती) को भी सुनाम-पंजाब जाना है – उसकी तैयारी अलग से है– कब छोड़ने जायूँगा..... कुछ पक्का नहीं है........

बहिन घर में रुकने आई है .... स्कूल की छुट्टियाँ हो गयी है और बच्चों की मस्ती चल रही है, ......... त्यौहार का वातावरण............ कितना बढ़िया लग रहा है......... सबसे छोटी भांजी ने तो मुझे नानू कहना शुरू कर दिया है....... और मैं दिमागी रूप से उम्र का एक और पड़ाव पार कर रहा हूं.......


उधर प्रेस में कार्य का सलाना दबाव है........ ६ तारीख तक एक और मैग्जीन छाप कर देनी है....... अभी डिज़ाइन भी शुरू नहीं किया....... राम जी खैर करे.........

और इसी सब के बीच चिटठा जगत के मित्रों से दूरी ......... आलस्य भारी पड़ता है.... सभों और. आज सीट पर बैठे है तो देखते है सभी भाई लोग कार्यशील हैं..... एक मुझ आघोषित आलसी को छोड़ कर ....कहाँ से शुरू करूँ...... किस ब्लॉग पर पहले जाऊ.... क्या पहले पढूं...... सभी तो मनपसंद है.... पोसिशन उसी सावन में गधे जैसी........... पुराने दिन याद आते हैं, ऐसे लगता है...... १ सप्ताह स्कूल नहीं गया........ होम वर्क बहुत रह गया है... कौन से सब्जेक्ट पहले कवर करूँ....... इसी उहापोह में कुछ भी नहीं करता था..... और बस सरजी के २ थप्पड़ का इन्तेज़ार रहता था...... वो मुहं पर पड़े और दिल को करार मिले....... बुद्धि बहुत थी, अत: सोचता था कि  जरूरी नहीं है कापी भरना..... सो मत भरो... बस थप्पड़ से बचने के लिए ही तो भरता था..... दिल-दिमाग तो वैसे ही पढ़ाई से कोसों दूर रहता था....... राम जी, इतनी बुद्धि के साथ साथ थोड़ी सद्बुद्धि भी दे देते...... पर अब ऐसा नहीं है... पढ़े-लिखे विद्वान ब्लोगर भाइयों का साथ है, ..... जो पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया आज इन्ही सब के बीच पूरी करने का प्रयत्न करता हूं.


रविवार को संजोग से पुस्तक मेले के दर्शन भी कर आया...... और कुछ किताबें भी खरीदी – उसमे सबसे उल्लेखनीय ....... आवारा मसीहा....... पिछले कई वर्षों से पढ़ने की सोच रहा था. छोटे बहनोई (सुनील जी) साथ थे...... गेट पर हेलिकोप्टर (बच्चों के खिलौने) बिक रहे थे ७५ रुपे का एक..... जब तक मैं टिकट ले कर आया तो सुनील जी ने भाव बनाया.... १०० के ४. मैंने मना कर दिया कहाँ अंदर ले कर घुमते रहेंगे....... राकेस (खिलौने बेचने वाला) का मुंह उतर आया.... अंकल जी आपसे ही बोहनी करनी थी...... रेट भी ठीक लगा दिए..... मैंने २० रुपे उसे दिए...... भई जब बाहर आयेंगे तो ले लेंगे.... और हम लोग अंदर चले गए..... बाहर लौटे तो ७ बज़ रहे थे..... और खिलोनेवाले को भूल गए थे..... पर वो हमारी इन्तेज़ार में बैठा था..... सारा सामान समेट कर. भागता भागता पीछे आ गया..... बोला अंकलजी खिलौने नहीं लेने...... मैंने फिर मना कर दिया....... बोला अपने पैसे वापिस ले लो... आपके इन्तेज़ार में इतनी सर्दी में बैठा हूँ......... उसकी इमानदारी ने सोचने पर मजबूर कर दिया..... सर्दी और कोहरा बहुत था, सही में वो जा सकता था.... .. सुनील जी ने उसे १०० रुपे और दिए ...... और हेलीकोप्टर घर को तहस-नहस करने घर आ गए........ राकेस तुम्हारी इमानदारी को प्रणाम

चलता हूं, जय राम जी............... आप लोगों के ब्लॉग पर .......

20 दिस॰ 2010

सितम ढहती कुछ चुटकियाँ........

बहुत कविता कर ली, पर चैन नहीं आया..... ख़बरें और आ रही है..... दिल को झंझ्कोर कर रख रही है..... वास्तविकता है ...... चुटकियाँ है.... अरे नहीं आपके लिए नहीं .......... पर दौलतमंद दलालों के लिए तो मात्र चुटकियाँ हैं .......
पढ़ लीजिए...... और दर्द महसूस कीजिए...... क्योंकि जो दर्द था वो तो सौदागर ले गया....

श्रीमती जी जब प्याज काट रही थी ... तो बातों बातों में दाम पूछने लगी..... मैं मुस्कुरा उठा...... उनको मेरी मुस्कराहट कुछ रहस्यमई लगी..... बोली कि हम प्याज का भाव पूछ रहे है..... और तुम विष्णु भगवान की तरह मुस्कुरा रहे हो..... अजीब लग रहा है तुम्हारा ये मुस्कुराना ...... दाम काहे नहीं बताते..... मैंने जवाब दिया आज तक तो पूछा नहीं आज किस बात की जिद्द है..... वो बोली, आज प्याज काटने पर आंसू ज्यादा आ रहे है..... मैंने मन को मज़बूत करते हुए जवाब दे ही दिया ७० रुपे किलो....... तो उसका हाथ एकदम अपने गाल पर चला गया....... पूछने पर बताने लगी.... कांग्रेस का हाथ अपने गाल पर महसूस कर रही हूँ..

दिल्ली से १०० किलोमीटर दूर गाँव मानका (राजस्थान) से आया एक किसान बहुत खुश है...... आजादपुर मंदी में उसके खेत के प्याज २२ रुपे ७५ पैसे किलो के हिस्साब से बिके है...... कम से कम बीजों और कीटनाशक, खाद और पानी के पैसे तो निकल आये....... अपनी मजदूरी तो गई तेल लेने ...... पहले कभी मिली है क्या.
   XXXXX
महान लोकतान्त्रिक देश की राजमाता ने अपनी पार्टी के महाधिवेशन के शुरू में शर्मो-शर्मा वंदे मातरम गाने का आदेश दिया....... सभी लोग खड़े होकर वन्देमातरम गाने लगे ..... पर माईक से अजीब अजीब आवाजे आने लग गयी....... पता नहीं गले के शर्मनिरपेक्ष सुर आदेश का साथ नहीं दे रहे थे या फिर साउंड के ठेकेदार को पैसे की चिंता थी......कि वंदे मातरम गाया तो गया पब्लिक तक नहीं पहुंचा और ........ राजमाता की नाक बच गई..... नहीं तो मुस्लिम वोटरों को क्या जवाब देती.
   XXXXX
नटखट राजा भागता भागता घर आया और अपने पिताजी से दिक् करने लगा पापा पापा हमारा नाम बदल दो क्या हुआ बेटा..... पापा सकूल में सभी छात्र कभी मुझे ऐ राजा और कभी दिग्गी राजा कह कर बुलाते हैं.......
अरे बेटा तेरा नाम तो बदल दूँगा....... पर पहले दरवाज़े से वो स्टिकर हटा दो.....गर्व से कहो हम हिंदू हैं.
क्यों पापा,
कहीं पुलिस वाले हमें आंतकवादी समझ कर गिरफ्तार न कर लें.....

   XXXXX

और जाते जाते एक और चुटकी ......
बस का ड्राइवर टाटा नैनो को देख कर मुस्कुरा उठा...... और मुझ से मुताखिब होकर बोला...... बाऊजी, ये देखो टाटा का एक और मजाक......
मैंने कहा, पहला और कौन सा मजाक था.....
बाऊजी, याद करो टाटा मोबाइल फोन, ....... गरीब आदमी को १२०० १२०० रुपे में चाइनीज़ घटिया सेट पकड़ा दिया...... और वो हर २ महीने बाद २००–२०० रुपे की बैटरी उसमे डलवाता रहता था.

17 दिस॰ 2010

दर्द का खरीदार हूं - कविता.....

दर्द का खरीदार हूं,
दर्द खरीदता हूँ......
जितने दर्द हो दे दीजिए.......


बहुत अजीब लगा.... ये फेरी वाला


मैडम ....... ढूंढ लीजिए..
दिलों दिमाग में,
कल फिर आ जायूँगा...
क्यों भई, क्या रेट खरीदोगे.. दर्द
मैडम, दर्द का कोई भाव नहीं......
ये तो बेमोल है....
जितना संभाल सकते हो ....
उतना ही संभालिए.....
न संभले तो हमें दीजिए.....
बराबर तौल कर खुशियाँ दे जाऊँगा...
आपका दर्द ले जाऊँगा.

नहीं भई, आजकल जमाना कैश का है...
खुशियाँ क्या करनी है.....
उन्हीं खुशियों के बदले ही तो दर्द लिया है...
तुम दर्द ले जायो ...और कैश दे जाना...
ठीक है, बीवी जी, जैसे आपकी मर्ज़ी.....
मैं नहीं देखता... नफा नुकसान..
मुझे नहीं मालूम सही पहचान....
बस ऐसा ही सौदागर हूं.

15 दिस॰ 2010

वैश्या और रिक्शेवाला

जमा देने वाली सर्दी और उफ़ ये धुंध...
वो बैठी है रिक्शे में....
बेकरारी से निहार रही है –
आस पास गुजरते गाडी वालों को.
५० रुपे का ठेका है...
रिक्शे वाले के साथ....
ग्राहक न मिलने तक...
यूँ ही घुमाता रहेगा
इस महानगर के राजमार्ग पर

.... मेरे मौला, कोई गाहक भेज..
रिक्शे वाला भी दुआ कर रहा है...
एक गाड़ी से चेहरा बाहर निकलता है..
रेट ?
३०० रूपये एक के..
और गाड़ी चल देती है.
रिक्शे वाला गुस्सियाता  है...
काहे, बाई कित्ता घुमाएगी...
चल देती इसके साथ २०० में...


अरे, तू क्या जाने औरत कर दर्द
मुए चार बैठे है गाड़ी में..
बाई, २०० तो मिलते.........
थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...
कल सुबह टीवी में मुंह छुपाती फिरेगी.....

आजकल ऐसी सनसनी के लिए 
टी वी चैनल भी तो बहुत तेज है.

14 दिस॰ 2010

प्रपंच कथा......... तुम्हारा जीवन 90% व्यर्थ है

    एक महान लोकतान्त्रिक देश का सरदार एक बार वाराणसी जाता है. गंगा किनारे सामने दुसरे किनारे को देख उसका मन ललचा जाता है – कि वहाँ क्या होगा ? इस पर एक मल्लाह से नाव का किराया तय कर के उस में बैठ जाता है..... और नाव चल पड़ती है गंगा जी के पार.
    देश का सरदार बहुत ही पढ़ा लिखा विद्वान – विद्या के दंभ में चूर – वाला व्यक्ति है. मल्लाह अनपढ़ सा दीखता है...... अत: उसे चिढाने के लिए वो कहता है, क्या तुम्हे अर्थशास्त्र मालूम है
मल्लाह उत्तर देता है, नहीं मालूम.
वो विद्वान सरदार पूछता है, जिस देश का सोना तक बिकने जा रहा हो, क्या तुम उस देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकते हो..... उस देश को भंवर से निकाल सकते हो.
नहीं सरकार, मल्लाह उत्तर देता है.
क्या तुम्हे विश्व बैंक से पेंशन आती है......... इस देश की मुफ्त में सेवा कर सकते हो....
मल्लाह उत्तर देता है, मालिक आप मुफ्त की बात कर रहे हैं, यहाँ तो अगर नदी पार करने की मजदूरी से अलायादा कुछ पैसे (टिप्स) मिलती है तो जाकर महुवा की दारू पीते हैं.... मुफ्त की सेवा कहाँ करेंगे सरकार.
तो तुम्हारा जीवन 90% व्यर्थ है.......... विद्वान सरदार दंभ में हुंकार भरता है.


अचान्चक, नदी में तूफ़ान आता है, और नाव भंवर में फंस जाती है,  मल्लाह खूब महनत करता है कि नाव को भंवर में निकाल लाये .....
लोकतान्त्रिक देश का सरदार असहाय दृष्टी से उसकी और देखता है,  तो मल्लाह पूछता है, क्या सरकार को तैरना आता है,
नहीं,
तो आपका 100% जीवन व्यर्थ है.

यही सत्य है न, अगर आप एक लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सकते,  जब नेता विपक्ष सदन में दहाड़ रहा होता है, आपमें इतना दम नहीं कि उनका सामना कर लें ....... आप विदेश दौरे पर चले जाते हो, आपके मंत्री अपने मन की मर्ज़ी से फैसले लेते हैं और आपकी चिट्ठी का जवाब तक देना अपेक्षित नहीं समझते और फिर भी आपको गुमान होता है – अपनी सरदारी पर................


12 दिस॰ 2010

गर गुमनामियाँ ही हमसफ़र हों तो क्या कीजिए.

कोई खिलौना ही दिल तोड़ दे तो क्या कीजिए....
कोई अपना ही बेगाना हो जाए तो क्या कीजिए....

दिया साथ तो हमने अंगारों पर चल कर..
अगर रास्ता ही लंबा हो जाए तो क्या कीजिए....

मेरे दोस्त, ये मय साकी ओ मयखाना....
सब एक रात में ही तवारीख हो जाए तो क्या कीजिए....

जो फूल बन बेबाक रस्ते में बिछ जाते थे....
शूल बन चुभते रहे बरास्ता, तो क्या कीजिए....

लाख बचाते रहे दामन हम अपना इन फूलों से ...
फिर भी शूल मिलते रहे किस्मत में तो क्या कीजिए....


बाबा तो चल निकले थे रस्ते ए शोहरत पर...
गर गुमनामियाँ ही हमसफ़र हों तो क्या कीजिए....



दोस्तों कुबूल फरमाएं इसे .... गज़ल नाम दे देंगे तो बाबा का सफर मस्त रहेगा... नहीं तो ओलख निरंजन

7 दिस॰ 2010

विद्रोही का ब्रह्मज्ञान और कविता

देखो विद्रोही, कितनी मस्ती है दिल्ली में, गुलाबी ठण्ड का मौसम है, लोगबाग दिव्य मार्केटों में घूम रहे हैं, चिकन-बिरयानी और मक-डोनाल के साथ मौसम का मज़ा ले रहे हैं. सरकार ने इतने बड़े-बड़े माल बनवा रखे हैं, ऐसे-ऐसे सिनेमा हाल बना रखे है की इन्द्र देवता भी फिल्म देखने को तरसे- क्या है कि अब वो भी तो अपनी अप्सराओं के नृत्य से परेशान हो गए हैं – क्योंकि वो अप्सराएं मुन्नी बदनामी और शीला की जवानी से डिप्रेशन की शिकार हो गयी हैं. उनमे अब वो लय और गति नहीं रह गयी. और एक तुम हो, कि मुंह लटका कर बेकार ही परेशान होते रहते हो. सरकार कि समस्त सुविधाओं का मज़े लो..... नए-नए मनभावन ठेके और बार खुले हैं – अच्छी वराइटी की दारू मिल रही है – जाओ खरीदो और पान करो. पर क्या करें? हम हैं तो कर्महीन ही – कर्महीन: अरे भाई, तुलसी दास जी फरमा गए है : सकल पदार्थ इ जग माहि – कर्महीन पावत नाहीं. तो भाई सभी पदार्थ मौजूद हैं – थोड़ी अंटी ढीली करो और मौज लो.

    ये ब्रह्मज्ञान आज ही राजौरी गार्डन की मार्केट में मिला है, रोज-रोज व्यवस्था को कोसना अच्छी बात नहीं. छोड़ दिया है कोसना ....... जैसा है–जहाँ है के आधार पर सब ठीक है.... पर पता नहीं कब तक? कब तक ये ज्ञान मेरे विद्रोही स्वर को दबा कर रखेगा... कुछ भी नहीं कह सकते ... दूसरा पैग लगाते ही की-बोर्ड की दरकार हो उठती है और बन्दा बेकरार हो उठता है.....  चलो कविता ही सही. नहीं आती लिखनी तो भी लिखो.


सामने अलाव सेंकते मजदूर
सीधे साधे अच्छे लगते है
कम से कम सीने में सुलगती भावनाओं को
इंधन दे - भडका तो सकते हैं.
अपने सुख-दुःख इक्कट्ठे बैठकर
झोंक देते हैं उस अग्नि में
और, सब कुछ धुआं बन उड़ जाता है.


उधर उस मरघट में
उठती लपटें भी सकूं देती है
चलो, अच्छा ही हुआ,
एक व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुंचा...
तमाम चिंताएं, दुश्वारियां
अग्नि के हवाले कर.
वो निश्चित होकर चल दिया...
और, सब कुछ धुंए में उड़ जाता है.

दूर घाट के पार अघोरी
जो चिता की आग से
अपनी धूनी जमाये बैठा है
खुनी खोपड़ी - कटा निम्बू,
कुछ सिन्दूर – शास्वत सा.
और मदिरा... आहुति के लिए
अपने कर्म-दुष्कर्म,
मदिरा बन होम कर दिए अग्नि में
और
सब कुछ धुंए में उड़ जाता है.

और मैं यहाँ ....
अपने घर में....
जहाँ सास-बहु के रिश्तों की सनक
नहीं देखने देती राष्ट्रीय नेताओं की हरकत....
कसमकसा रहा हूँ  ...
उस मजदूर का, मरघट का और अघोरी का
धुंवा अंदर भर रहा हूँ..
विद्रोह दबा रहा हूँ...
अग्नि अंदर ही अंदर सुलगा रहा हूँ.
-:-

मित्रों बक तो दी - जो दिल में थी........ देखना ये है कि आज की बक बक कहाँ तक आपके हृदय को छूती है, या फिर बेरंग ही वापिस आती है : जय राम जी की.
बाकलम खुद
दीपक बाबा 

6 दिस॰ 2010

मैं ईमानदार प्रधान हूँ, मेरे प्रयत्नों में कोई कमी हो तो बताओ.

जंगल में सभी प्राणियों ने पंचायत की. इस बार प्रधानी में शेर को विजयी न होने दिया जाए..... क्या है कि ताकतवर है, जब चाहे किसी न किसी को तंग करता रहता है, किसी न किसी को उठा कर ले जाता है, अपनी मनमानी करता है. इस बार प्रधानी में किसी और प्राणी को चुना जाए....
.
सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ, और बन्दर जी को प्रधानजी के पद पर मनोनीत किया गया. बन्दर जी प्रसन्न हुआ और प्रधानी भाषण पढ़ा गया... बन्दर जी बोले
कानून सभी के लिय बराबर होगा, और पूर्ण स्वतंत्र होकर आपना काम करेगा. हर प्राणी को जीने की पूर्ण आज़ादी होगी
तालियाँ ......
फोटू सेस्सन के बाद सभा विसर्जित हुई.
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कुछ दिन बाद एक बकरी हांफते हाँफते आयी, प्रधानजी प्रधानजी, शेर मेरे बच्चे को उठा कर ले  गया है.....
शेर की इतनी हिम्मत, इस लोकतान्त्रिक जंगल में, जहां हर प्राणी को अपनी आज़ादी से जीना का पूर्ण अधिकार प्राप्त है – वो अपनी मनमानी और गुंडागर्दी नहीं कर सकता, बंदर जी ने जोश में कहा 
प्रधानजी, यहाँ बातें मत कीजिए, जल्दी चलिए...... समय बहुत कम है...
चलो देखते हैं.
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देखा तो शेर एक पेड के नीचे बकरी के बच्चे को दबोच कर सुस्ता रहा था.
बकरी ने इशारा किया...... प्रधानजी उछलकर पेड पर चढ़ गए ......
बकरी चिल्लाई...... देखो, वह मेरे बच्चे की गर्दन पर दांत गडा रहा है
बंदर ने पेड की एक डाल से दूसरी डाल पर उछलना शुरू कर दिया...
बकरी चिल्लाये..... देखो, वह मेरे बच्चे की गर्दन को नोच रहा है
बन्दर ने और जोर से पेड की शाखाओं को हिलाना चालू कर दिया ....
बकरी जोर से चिल्लाती रही...
शेर बच्चे को खाता रहा.....
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बन्दर कभी इस डाल कभी उस डाल..... जा जा कर जोर जोर से पेड की शाखाओं के हिलाता रहा.....
शेर ने बच्चे को पूरा खा लिया.....
बकरी रोने लग गई..... रोड पर स्यापा करने बैठ गई...
बन्दर थक कर पेड से नीचे आया, और बोला..
बकरी ने अर्शुपूर्ण दुखभरे नेत्रों से बन्दर को देखा.....
हांफता हुवा बन्दर सर झुका कर बोला, मैं ईमानदार प्रधान हूँ - पूरी इमानदारी से महनत की, मेरे प्रयत्नों में कोई कमी हो तो बताओ....

जी दोस्तों,
शक्तिहीन की इमानदारी भी किसी काम की नहीं रहती..
शेर बच्चे को खा रहा है.....
.
भेडिये और सियार बची हड्डियों को पाने के लिए जंगल पंचायत को ठप्प करके बैठे है...
बकरी विलाप रही है.....
इस लोकतान्त्रिक जंगल में अपने-अपने हिस्से के लिए लड़ाई है, जनता के हिस्से की लड़ाई कौन लड़े. अत: बकरी का विलाप जारी है...

एक प्रधान कह रहा है 
"मेरी इमानदारी में कोई कमी हो तो बताओ.....
अब शेर के मुहं कौन लगे."

5 दिस॰ 2010

काला धन ...... नेता जी के माथे पर बल .

काहे माथे पर बल डाले ...... इन्ह से उन्ह चक्कर काट रहे हो.... पेट में अफारा हो गया का ? या सुसरी अब विदेशी दारू भी नहीं पचती.... पी कर घूमना पड़ता है.
नहीं इ बात नहीं
फिर क्वोनो टेप-वैप का चक्कर परेशान कर रहा है....
नहीं इ बात नहीं........
इ बात नहीं उ बात नहीं, तो फिर का अपने कुंवर साहिब क्वोनो परेशानी खड़े किये हैं.... कहीं कोई बलत्कार-व्ल्त्कार का का चक्कर तो नहीं हैं.
चुपे रहो.......... जब देखो गटर-पटर करते रहती हो..... जाओ खाना लगाओ
पहले बात बताओ, का परेशानी है.
सुनो, परेसानी सुसरी बिदेश में पड़े पैसा की है.
हाँ, उ तो कब से रखे है जब मंत्री थे... और खूब घोटाले किये रहे और पैसा स्विस बैंक में जमा करवा दिए.... वहाँ तो सेफ है.
हाँ, सेफ तो था, पर अब वहाँ की सरकार ने फैसला कर लिया है, की किसी भी देस की सरकार यहाँ आकर कुछ कागज कारे करके, सभी खाते देख सकती है.... और पैसा भी वापिस ले जा सकती है...
पर इ बात तो पुरानी हो गई, इसमें परेसान होने की का जरूरत है, सरकार क्वोनो गैर थोड़े ही है.... उसका का जरूरत पड़ी है – पुराने खाते खंगालने की.
नहीं, अब उ बात नहीं है, इ सरकार पर अपनी पकड़ नहीं है...... इन्ह अब क्वोनो सुनवाई नहीं होती...
फिर भी, आप अपने को रो रहे हो, इ लोग भी पिछले ६-७ बरस से सरकार चला रहे हैं, कुछ न कुछ इन्होने भी जमा कर लिया होगा..... उ फिल्म नहीं देखि थी.... वक्त.. उमे राजकुमार बोले थे, शिनाय सेठ, जिसके अपने घर शीशे के हों, दूसरों पर पत्थर नहीं फैंका करते. बस. कौन जाएगा...
अरे, सरकार से ज्यादा डर उ बाबा से है, सुसरा खुदे तो न कोई बाल-बच्चा, लौकी का जूस पीकर गुज़ारा करता है, हल्ला कर रहा है – पैसा देश में मंगवाओ – पैसा देश में मंगवाओ.
अरे हल्ला करने दो, कौन सुनता है, किसी बाबा की..... बाकि तो सभी आप जैसे ही हैं न टोटली भ्रष्ट.....
अरे धीरे बोलो, तुमहो तो बस........ तभी कहते है, बीवी पढ़ी लिखी होनी चाहिए..... कहाँ गवार से गुजारा करना पड़ रहा है......
हाँ हाँ पढ़ी लिखी होनी चाहिए...... तुमहो कौन से पढ़े लिखे थे.... या कौन सा रोजगार था..... इ तो सुकर करो, हमरे बाप नें तुमरे खानदान देख कर सादी कर दी.  बिटिया को पढ़ा लिखा कर कौन सा तीर मार लिए..... देखो अपनी दोस्त को क्या-क्या कह रही थी.........

3 दिस॰ 2010

लो जी, मारूति ८०० आ गयी........ सौम्यपूर्ण और अम्बेसडर आ गई.... पूर्ण गरिमा युक्त.

    सामने जाती रोड पर खड़े होकर ट्रेफिक को देखना भी एक कला है. आजमाइए . आप मात्र ट्रेफिक को ही देखिये ... पैदल चलने वाले मुसाफिरों को नहीं. क्योंकि जो मुसाफिर है – उसकी सवेदानाएं कहीं न कहीं उनके चेहरे पर अंकित होती है – और एक आम इंसान दूसरे इंसान क्या हर प्राणी की भावनाएं पढ़ सकता है, समझ सकता है. और कई बार तो दूसरे प्राणी के साथ नज़र मिलते ही एक दूरसंवेदी यंत्र की तरह सम्बन्ध भी स्थापित हो जाता है. और उसकी खुशी और उसके गम खुद महसूस किये जा सकते है. अत: मुसाफिर जो देखना छोड़ दीजिए... हो सके तो राम जी के बनाये अन्य प्राणी जैसे कुत्ता, बिल्ली या फिर कोई चिड़िया इत्यादि भी मत देखिये.......
    आप देखिये.... वाहनों को....... कलपुर्जों के अंतर्द्वंद को. सही में. पहचान लेंगे..... वो देखिये, टाटा ४०७ आ रही है... डरी हुई सी..... पता नहीं कब कहाँ ... ट्रेफिक पुलिस वाला हाथ देकर रोक ले. पता नहीं, गाड़ी ही डरी हुई है या फिर ड्राइवर का डर गाड़ी पर झलक रहा है. ड्राइवर सचेत सा ... गाड़ी भी सचेत सी. कभी कुछ यू लगता है कि ड्राइवर का व्यक्तित्व ही गाडी पर हावी रहता है. कोई दबंग सा ड्राइवर टूटी फूटी ४०७ चला रहा है – तो गाडी भी घटर-पटर करती हुई निकल जाती है....... खूब धुआं उडाती हुई.... मनो किसी कि परवाह नहीं, ‘ये तो नू ही चालेगी के तर्ज़ पर
    उधर, एक सेवा निर्वुती को अग्रसर ब्लू लाइन आ रही है.... परेशान सी....... रुक रुक कर चल रही है. कोशिश है कि सामने वाली रेड लाईट पर जरूर रुके......... शायद कोई सवारी चढ जाए ... और पांच रुपे की टिकट कट जाए...... झम-झम ... खट-पट सी. किसी ज़माने में कितनी शान से चलती थी...... उतनी ही शान से ड्राइवर बैठा करता था..... मुंह में ‘दिलबाग’ डाले....... पर अब दोनों सुस्त. सुबह जब गाड़ी निकलती है तो मालिक भी बड़ी हसरत से देखता है... जैसे बिना दूध देने वाली गाय को दुधिया देखता है...... न तो बेच सकता है और न ही पाल सकता है.
    लो जी, मारूति ८०० आ गयी........ सौम्यपूर्ण. जब से रोड पर उतरी है – हमेशा सौम्य रही है. शायद ही किसी को परेशान किया हो.... न तो पैदल यात्री को न मालिक को और न ही ड्राइवर को. आज भी ऐसे ही.... कंपनी ने बनाना छोड़ दिया तो क्या, मायका बिछुड गया तो क्या? कितनी शान्ति से चल रही है. अब देखो, आराम से बिना शोर के चलते हुए, पुराने दिन याद करते हुई दिखती है. कितनी घबराहट में उतरी थी – ससुराल में यानि रोड पर, दायें-बाएं बड़े-बड़े ट्रक, बसें, और सौत (अम्बेसडर) ... उनके बीच बहुत ही प्यार से फिट हो गयी..... मधुर रिश्ते रहे हरेक से......... कई कोठियों में अब भी खड़ी है.... बिना उदासी के, ड्राइवर रोज सुबह कपडा मारता है – और लालाजी का जब मन हुआ – मंदिर तक चला जाता है. नहीं बेच रहा....... कैरीअर के उठान पर ली थी..... आज कई कारें खड़ी हैं.. पर मारुती मारुती ही है.
    ये सुफेद अम्बेसडर आ गई.... पूर्ण गरिमा युक्त...... दिव्य ..... माथे पर लगी ‘रेड लाईट’ मनो इसको और गरिमा प्रदान करते हों,  अंदर जितने भी काले दिल वाले क्यों न बैठे हों .... पर सुफेद अम्बेसडर की गरिमा पर कोई दाग नहीं.... बड़ी बहु जितनी आज्ञाकारी ...... और बड़ी सेठानी जैसे राज-काज वाली शांत धमक. अम्बेसडर ड्राइवर भी एक गरिमा लिए मिलेंगे.

कीजिए साहेब........ नोटिस कीजिये.... इनको. 

2 दिस॰ 2010

छोडो यार .. एक कश लगाने दो.....

थामस, राजा, आदर्श, २ जी स्पेक्ट्रम,  राडिया, ........ छोडो यार .. एक कश लगाने दो... ढंग से. कल से आई टी सी कंपनी भी अपनी सिगरेट की फेक्टरी बंद कर रही है.... इसी पल को जी लें.... इस पनवाडी की दूकान पर ये कश पी लें..... और तुम हो कि थामस थामस लगा रखा है... CVC सरकार की और थामस भी सरकार का....... जो घोटाले हुए वो भी सरकारी.. राजा भी सरकार का हिस्सा या ये कह लो कि राजा की ही सरकार. क्या फर्क पड़ता है....... फर्क तो वहाँ पड़ रहा होगा जहाँ १५ दिन से कुछ संसद वेतन नहीं ले रहे..... पता नहीं घर का राशन कैसे भरेंगे.

    कितना ही आसान है सिगरेट के धुंए में गम को विलीन कर देना...... पर ये गम भुला नहीं जाता ... जब ये घोटाले दिमाग में घूम-घूम कर दही बिलो रहे हों, तो इसकी आउटपुट सिगरेट के धुंए में बाहर आती है. तुम कह रहे हो, थामस थामस क्या लगा रखी है. भाई, वो ध्यान देगा भ्रष्टाचार कैसे आदर्श हो.... आखिर सरकार ने उसको CVC पर बिठाया है.... तो उसका भी कर्तव्य हो जाता है की सरकार का ध्यान रखे. सिगरेट का धुआं कई बार आसमान में विलीन होते-होते अजीबोगरीब शक्ल अख्तियार कर लेता है. अभी धुआं निकला तो पता नहीं कुछ क्रास जैसा निशान बन गया...... वाकई कुछ नहीं सूझता. CVC का पद एक सवेधानिक पद है...... इसमें कोई धर्मवाद और जातिवाद थोड़े चलता है. ये अपने आप में ऐसे ही महत्वपूर्ण है जैसे की इस सिगरेट में तम्बाकू के बाद लगी फिल्टर का होना.

     युवराज को परिपक्व होने में अभी और समय है और ‘उस’ भलेमानुस से कम से कम ४ साल सरदारी और करवानी है...... कई काम अधूरे है..... तो ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर थामस जैसे का होना लाजिमी है. इसी उधेड़बुन में एक जोर का कश और लेता हूँ और आउटपुट में जो धुआं निकलता है उसका रंग काला बदरंग सा नज़र आता है ...... और मैं जब उसे आसमान में उडेलता हूँ तो पहले का क्रास जो सफेदी लिए था... इस काले रंग में और खिल उठता है.


   सिगरेट जलती जा रही है..... मेरे सवालों के साथ-साथ...... सवाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहे .....  
   दिमाग में दही पूर्णता बन कर तैयार हो जाती है दूकान पर रखे टीवी में थोमस साहेब कहते हैं, "सरकार ने मुझे मुख्य सर्तकता आयुक्त (सीवीसी) नियुक्त किया है। मैं सीवीसी के रूप में काम कर रहा हूं।"

   सिगरेट का आखिरी कश लगाकर मैं उसे सड़क पर फेंकता हूँ और पैरों तले रौंद कर ...... बकबका कर चल पड़ता हूँ......


जय रामजी की
  
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