31 अग॰ 2011

जनता बेचारी नग्न है...


पूजा का दिया..
मंदिर की घंटी..
धूप कपूर और बाती 
प्रसाद, खीर और पूरी
पता नहीं कितना कुछ..
वाह
प्रभु आप तो  मग्न है..

जनता बेचारी नग्न है...

24 अग॰ 2011

नशा बुरी बात........ नहीं तो सब कुछ उल्टा पुल्टा........

लीना तरकारी काट के खाना बनाने का उपक्रम कर रही है... बच्चे डब्लू डब्लू ई, और मैं... बोतल खोल एक किनारे बैठ जाता हूँ..

सामने दिवार पर... चाचा नेहरु कोट पर फूल लगाए मुस्कुरा रहे है... और गाँधी जी.. १००० नोट के उपर..... जो सब्जी वाला लेने आया है.
टीवी पर अन्ना हजारे हैं... अर्धलेटे हुए ..... किरण बेदी तिरंगा लहरा रही है... सोनिया गाँधी...  लेक्चर दे रही है ... और मनमोहन सिंह आज्ञाकारी बच्चे की तरह सुन रहे हैं........ प्रणव दादा सहमति से सर हिलाते हैं ....... कपिल सिब्बल और दिग्विजय तिवारी मौन है..... क्लास लग चुकी है..
बोतले खुली पड़ी है ....... और मैं एक पेग ख़त्म करता हूँ .... अन्ना हजारे करवट बदल लेते हैं... किरण बेदी का हाथ थक गया है..... केजरीवाल झंडा थाम लेते हैं....
मनमोहन सिंह का सर झुका हुआ है..
सब्जी वाला चला जाता है...... गाँधी जी भी गए.... 
लीना झल्लाहट के साथ आती है... 
प्याज काटने से आंसू आ रहे है.... मैं अन्ना हूँ की टोपी पहने ... एक महिला भी रो रही है....... साथ ही प्याज काट रही है.....
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता..
अन्ना फिर करवट लेते हैं...... भूखे पेट नींद नहीं आती.... डॉ. चेक कर रहे हैं...
३ पेग ख़त्म होने को है..
प्रणव मुखर्जी झंडा फिराने लग जाते है....  किरण बेदी... कुर्सी पर बैठ गयी है... केजरीवाल मौन है....... जैसे सब समझ आ गया... बच्चे थक कर देखते हैं...  संसंद में डब्लू डब्लू ई शुरू हो जाती है...... चित्र में से नेहरु मुस्कुराते हैं....
राहुल गांधी आते हैं... भूख बहुत लगी है... पर प्याज कटे नहीं और तरकारी बनी नहीं... दलित महिला के यहाँ पिछले ९ दिन से चूल्हा नहीं जला... राहुल को रोटी नहीं मिली....
बाबा आंबेडकर...... बुखारी साहेब की टोपी पहनते हैं........ गांधी जी की नहीं.... क्योंकि वो तो अन्ना ने पहन ली जो उत्तर गयी क्योंकि अन्ना करवटें बहुत बदलते हैं... भूखे पेट बुजुर्ग को नींद नहीं आती...
४ पेग भी जाता है जहाँ बाकी ३ गए ..
मैं रोटी के लिए आवाज लगता हूँ, लीना आग्नेय नेत्रों से घूरती है....... मनमोहन सिंह हाथ जोड़ते हैं..... सोनिया गाँधी रसोई में है..... उसे नमकदानी नहीं मिलती....... राहुल गाँधी मना करता है ...... उसे दलित के घर का खाना चाहिए... बच्चे सारा कौतुक देखते हैं... देश देख रहा है....... 
अन्ना फिर करवटें बदलते हैं.....
धीरे धीरे ....
मैं चारों तरफ देखता हूँ संशय वाली नज़रों से....
१ पेग और लेता हूँ ....
नेहरु अट्हास करने लग जाते हैं..... उनकी गांधी टोपी गिर जाती है......... जो लपक कर राहुल गाँधी उठा लेता है.... और पहनता हैं....
प्रणव आते हैं... और राहुल की टोपी उतार कर उसकी जेब में रख देते हैं...
बच्चे फिर कौतुक देखते हैं..
संसद में डब्लू डब्लू ई,  चलती रहती है.... 
अन्ना इंतज़ार में हैं.... रोटी के ... भूखे... पर सोनिया गाँधी खाना जला देती है......
मनमोहन सिंह विदा लेते हैं...... 
बोतल सामने रखी रखी ख़त्म होने को आती है....... 
दिवार से चाचा नेहरु परेशान दीखते हैं... गुलाब का फूल गायब है...
टीवी पर फिर अन्ना दिख रहे है... गुलाब का फूल हाथ में लिए हुए, मुस्कराहट के साथ...
राम लीला मैदान में फिर से...
सब्जी वाला १००० का गाँधी जी दान पेटी में डाल देते हैं...... क्योंकि  
मनमोहन सिंह लेटे लेटे करवटें बदलते हैं ....... नीली पगड़ी पहने.... संसद में डब्लू डब्लू ई,  ख़त्म हो जाती है....... सभी आकर सामने बैठे हैं..... नीली पगड़ी पहने...
सोनिया गाँधी तिरंगा लहरा रहीं है मंच से ..... चक्र की जगह हाथ है...... प्रणव गा रहे हैं..... हम होंगे कामयाब .... हम होंगे कामयाब एक दिन... 
अन्ना मुस्कुराते हैं लालकिले से ..... .... गरीब अटट्हास करता है...  झोपड़े से निकल कर... क्योंकि झोपड़े में तिरंगा लहरा रहा है..
बोतल खाली होकर गिर जाती है..... और मैं पूर्णत: भर कर नाचता हूँ..........  प्याज़ काटने से आंसू नहीं निकलते .... सभी नाच रहे हैं.... 
पर राम लीला मैदान में सभी बैठे हैं खामोश......... नीली पगड़ी पहने ..... 
और उनकी छाती पर लिखा है .....मैं मनमोहन ,,,,,,,,,,,,

जय राम जी की..




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जी, अर्चना जी को पोस्ट बहुत पसंद आयी और उन्होंने इस पोस्ट को आवाज़ भी दी कि 'देखी जायेगी' आप उनके ब्लॉग 'मेरे मन की'  पर सुन सकते हैं... 

18 अग॰ 2011

कुछ चुटकियाँ ....... अन्ना हजारे....२


Photographs : deepak dudeja 
काग भुशंडी..... अकेले बैठ ... बक बक करता रहता है ... सब बेकार ...
 मामा 
मोनू चल ..
कहाँ...
तिहाड़ जेल से सामने..
छोड़ यार, आज देट पर जाना है......
साले, छोड़ दे कुछ दिन के लिए ये देट वेट .... नहीं तो कल तुम्हारे बच्चे प्रशन करेंगे ... 
पापा जब देश में दूसरी आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी तुम कहाँ थे?
और तुम मन ही मन सोच रहे होगे..
अरे बेवफा, जब मेरे दोस्त अन्ना के साथ आन्दोलन कर रहे थे और मैं तेरी जुल्फों की छाँव में गुलजार को पढ़ रहा था, उस पर भी तुम किसी और की हो गयी, और मैं आज तुम्हारे बच्चों से आँखे चुराता घूमता हूँ.... कहीं मामा न कह दें.....
बुढ़ापा 
पापा,
बेटा, बोलो.....
जाओ न, शर्मा अंकल भी जा रहे हैं... पड़ोस में ही .... अन्ना हजारे को छुडवाने..
अरे पपू, दूकान कौन संभालेगा, आजकल वैसे भी मोमबत्ती की शोर्टेज पड़ रही है..
जाओ न पापा... नहीं कल जब दूसरी आजादी वालों की भी पेंशन बनेगी... और तुम्हारा नाम तो होगा नहीं तिहाड जेल के रजिस्टर में..... 
कल तुम मेरे पर बोझ बनोगे... जाओ ... हो सकता है आंदोलनकारियों की पेंशन बन जाए ... और तुम्हारा बुढ़ापा आराम से कट जाएगा...
पनवाडी
रामू तुम क्यों परेशान हो.... दुनिया नाच गा रही है... और एक तुम हो कि चेहरे पर बारह बजा रखे हैं..क्या करें भाई, आम दिनों में, कैदियों को मिलने वाले आते है ... कुछ गुटखा और सिगरेट खरीद के ले जाते है... पर जब से ये अन्ना का दंगा शुरू हुआ है.... कोई खरीददार नहीं है...लोग अनशन की बात करते है ... रोटी तो खाते नहीं.... पान सिगरेट क्या पीयेंगे....इसलिए उदास हूँ...
किसानी
अंकल जी....क्या हुआ, क्यों उदास हो....
कुछ नहीं बेटा,  टीवी देख रहा हूँ, 
पर यहाँ तो अन्ना हजारे का लाइव निव्ज़ आ रहा है,
हाँ बेटा, मैंने भी देखा था जे पी को लाइव, पटना के गांधी मैदान में, बहुत उम्मीदें थी, 
फिर
फिर क्या बेटा, पब्लिक है, सब भूल जायेगी - जैसे जे पी को भूल गयी. जैसे मैं आज परेशान हूँ, ये युवा पीढ़ी भी १०-२० साल बाद परेशान होगी..... वो भी तब जब लोक पाल बिल पारित हो जाएगा ...... और ये देश यूँ ही बर्गर पिज्जा खाता हुआ विकास की राह पर चल रहा होगा, और किसानी करने को कोई नहीं होगा..... क्योंकि जमीने ही नहीं होगी... तब कोई नहीं पूछेगा, प्रधानमंत्री जी, गेंहूँ विदेश से ही क्यों आता है.... 
क्या अन्ना हजारे के मुताबिक़ लोकपाल बिल पास होने से सभी समस्याएँ हल हो जायेगीं ? 
क्या किसान आत्महत्याएं करना भूल जायेंगे?
क्या झोपडपट्टी में रहेने वाले, खुले रोड पर शौच करने वाले, रेड लाइट पर भीख मांगे वाले -इज्ज़त से रह पायेंगे ?
क्या हिन्दुस्तान का वो पुराना वैभव लौट आएगा.... एक हिंदू साध्वी जेल में जलील नहीं होगी?
क्या पडोसी लोगों को उनकी औकात दिखा दी जायेगी... कि एक भी हिन्दुस्तानी को मारने का क्या अंजाम होता है. हिन्दुस्तानी लोगों की जीवन की कीमत एक कीड़े-मकोड़े से उपर हो जायेगी.
क्या अपनी महनत के बल पर खड़ा हुआ एक कुशल कारीगर .... जो अपने व्यवसाय खोल कर ४-५ लोगों को रोज़गार दे रहा है.......इन इंस्पेकटरों (सेल्स, इन्कम, एम सी डी, लेबर, पोल्लुशन) के  पैर नहीं पड़ेगा.... गिडगिडायेगा तो नहीं... इंस्पेक्टर राज  का खात्मा हो जाएगा 
क्या मेंहनतकश मजदूर भी इज्ज़त की जिदगी के सपने देख पायेगा..
नहीं ...
नहीं तो सब बेकार है....
समय बर्बाद.
और कुछ नहीं....
 अन्ना हजारे जी, आपने रालेगन गाँव को आदर्श गाँव बना कर दिखाया ....  अगर आप भारत के एक एक गाँव में इसी परकार अलख जागते ... नशा मुक्ति करते, पानी बचाते, स्वालंबन सिखाते ... उनको शहर जाने से रोकते तो मेरे ख्याल से भारत देश पुन: अपने पूर्ण वैभव को प्राप्त करता, बिना किसी लोकपाल बिल के.....


जय राम जी की.
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20.8.2011 को देर शाम जोड़ा गया : (पु:निश्चय) 

जी, १६ टीप प्राप्त हुई है......  कोई भी बात जो अन्ना के प्रति विद्रोह दिखाती हो, ब्लोग्गर बंधुओं को  स्वीकार नहीं...  कोई बात नहीं.. मन के विचारों को बाहर निकलना चाहिए... न की नासूर बनने के छोड़ दें मन में ही..... बाकि कौन क्या करता है या कौन क्या करेगा... ये तो देश के हालात बता रहे हैं....  और बताते रहेंगे.

जलाते रहिये मोमबतियां..........
गाते रहिये गीत क्रांतियों के

हम भी गीत लिख रहे हैं क्रांति पर..
मेरी नज़र में ....

जय राम जी की. 

16 अग॰ 2011

क्रांति का समय है......... युवा वर्ग साथ है.

और कुछ हो या न हो – पर भारत देश में लोगो में लोकतान्त्रिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बहुत है........ बहुत ज्यादा. अपने घर में पानी न आये – लाइट २ दिन से नहीं आ रही .... रोड खुदी पड़ी है... कोई प्रोब. नहीं – एडजस्ट हो जाता है...

पर जहां बात लोकतंत्र की आती है तो – पब्लिक उमड़ पड़ती है जैसे बोतल से बीयर को गिलास में डालते ही झाग उभर आती है . ............... नहीं सहेगा हिन्दुस्तान. भावुकता हमारे समाज में कूट कूट कर भरी है.
सुबह सुबह आनंद का फोन : बाबा, अन्ना को गिरफ्तार कर लिया है ... चलो वहीँ चलते हैं.... बेचारा बुडा परेशान होगा.
७३ न. रूट की डी टी सी  की बस....... भादों की झड़ी और दिल्ली का जाम. २० मिनट में चले १ किलोमीटर – और मुझे जाना है ६ किलोमटर ..... कुछ न कुछ होना चाहिए... मसाला चाहिए – टाइम पास करने को. सामने की सीट पर बैठे युवा बार बार फोन पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहा है
‘भैया मैं आ रहा हूँ सिविल लाइन ..... इन्तेज़ार करना. जींस और ट-शर्ट में. और  हाँ हाथ में सफ़ेद कुरता.
अन्ना के समर्थन में जा रहे हो.. हाँ,
कुर्ती वहीं पहनोगे ..हाँ,
टी-शर्ट में ठीक नहीं...और कुरता यहाँ ठीक नहीं मैंने सोचा.
रामदेव के आन्दोलन में गए थे ? - हाँ, जब लाठी चारज हुआ तो मैं वहीँ था......
अच्छा .अन्ना पर लाठी क्यों नहीं चलती.
नहीं, अन्ना पर नहीं, रामदेव बहुत फालतू बोलता था, सन्यासी को वाचाल नहीं होना चाहिए.
इसलिए पिटवा दिया.. :) या कांग्रेस भगवा पर ऐसे टूटती है जैसे लाल कपडे को देख कर सांड बिदक जाता है.
नहीं, अन्ना बहुत सोम्य है.. और पूरा देश उनके साथ है.
नहीं ऐसा कुछ नहीं, अन्ना कांग्रेस के एजेंट हैं..... हाथों की कठपुतली है...... वैसे भी राजमाता को कठपुतली नाचने का बहुत शौंक है.... अन्ना को भी युज किया जा रहा है तभी .........
आगे से एक और प्रबुद्ध महाशय आ पहुंचे और लगभग चिलाते हुए बोले ...
क्यों भ्रम पैदा कर रहे हो पब्लिक में...... अन्ना के साथ युवा वर्ग है – अब क्रांति होगी...
युवा को समय कहाँ मिलेगा....पूरा देश है साथ – खासकर यूथ है अन्ना के साथ. और तुम यहाँ बैठ कर ऐसे भी कन्फुज कर रहे हो... बेकार की बातें है सब.
आप की तारीफ..ठहरो ...ये फोटू देखो..... अन्ना के साथ जो है – वो मेरा बेटा है...... और मुझे खुशी है.हाँ, क्रांति कर रहे हैं.
ललित ककरोला से आ रहा है – अन्ना से समर्थन में और दूसरे साहेब प्रेम हैं जो सुभाष नगर में रहते हैं.
जो भी हो, मामला सामने है.... राजनीति पार्टियां भी साथ आ रही है ..... टीम अन्ना अंदर है – स्वामी अग्निवेश बाहर ...... वो बाहर क्यों है .. पता नहीं – शायद बातचीत के लिए.
अन्ना – ये आमजन है – जो धंधा छोड़ कर तेरे साथ चल पड़े है ....... बेचारे हर जगह पिटे हैं.... कईयों के साथ चले – पर इनके साथ कोई नहीं चलता...
लोकपाल बिल आएगा...... या नहीं ...
इमानदारी से राज्य चलेगा ... या नहीं...
पर चिंता मत करना – ये पब्लिक भूल जायेगी... अन्ना के लिए कभी कुछ कीमती समय निकला था. युवा फिर व्यस्त हो जायेगे....
आज परेशान है .... कल फिर इन्ही से साथ - कोंग्रेस का हाथ होगा. शुक्र है ...... पब्लिक है – भूल ज़ाती है....   अगर ना भूलती तो – तो भारत देश के पागलखाने कम पड़ जाते.

जय राम जी की.

14 अग॰ 2011

हिमाकत दरख्वास्त की ....... आज़ादी का सपना अधुरा ही रहेगा.


सरदार मनमोहन सिंह
वजीर-ऐ-आज़म..
हुकूमत ऐ हिन्दुस्तान 

सतश्रीआकाल
ज़नाब, राजस्थान सूबे के उतरी हिस्से में अलवर जिला है और उसमे तहसील मुण्डावर के गाँव मानका में पाकिस्तान (तत्कालीन हिन्दुस्तान के उत्तर पश्चमी सरहदी जिले - बन्नू) से आये कुछ परिवार आपसे दरख्वास्त करने की हिमाकत करते हैं....

हिमाकत अलफ़ाज़ कुछ अजब लगेगा...... पर जनाब मुल्क के हालातों को देखते हुए, अपने हक की बात करने को हिमाकत ही कहेंगे. १४-१५ अगस्त १९४७ की आधी रात को जब दुनिया सो रही थी तो हमारे मुल्क के मुहाफ़िज़ जाग कर मुल्क की एक नयी तत्बीर लिख रहे थे... और हम लोग उस समय कोई माँ की गोद में और कोई बाप की उंगली थामे लाहोर का बाघा बोर्डर पार के इस नए इलाके में भूखे प्यासे .... १ जून के भोजन और रात बिताने के लिए आशियाना ढूंढ रहे थे.... जनाब , भरे पूरे खानदानी लोग मात्र ३ तार के जनेऊ की रक्षा हेतु वहां से चल पड़े थे... की जब हालात ठीक होंगे तो वापिस आ जायेंगे.... खाली हाथ चले ..

जनाब, मेरे ख्याल से आप भी उनमे से एक रहे होंगे.... जो चकवाल जिले से अपने खानदान के साथ चले होंगे..
आपको इस लिए याद दिलाया जा रहा है ... कि आप हम में से एक है .... और हमारी मुश्क्लातों को समझते होंगे... जनाब इधर कई जगह भटकने के बाद हमारे लोगों को मुस्लिम खानदानो द्वारा छोड़ी गयी जमीन पर कब्ज़ा दिया गया...  ताकि हमारी अपनी छोड़ी गयी जमीन के बदले कुछ भारपाई हो सके.

मालिक, पिछले ६० सालों में हमने अपने को इस इलाके की रवायत के अनुसार बदला और एक पीड़ी बीतते बीतते हम यहाँ पर स्थिर हो  गए ... पर एक बार फिर विस्थापन के काले बादल हम पर मंडराने लगे है. ये इसलिए कि इस इलाके की राजधानी से दूरी मात्र १०० मील के करीब है ... और जैसा की बाकि सूबों में हो रहा है - यहाँ भी जमीन सरकार दूसरी विकास योजनाओं के लिए कब्ज़े में लेने जा रही है.  ये न हो...... 

जनाब .... इस हालत में कि हम लोग मात्र कृषि पर ही निर्भर है ... और यही हमारा रोजी-रोटी का जरिया है... हमें न उजाड़ा जाए.... कल आप लाल किले से जब भाषण देंगे तो बीते कल पर एक  कदम पीछे मूड  कर जरूर देखना - और कुछ सोचना..

तब की हालातों को... आप भूले नहीं होंगे..  कहीं देश आज फिर ऐसे किसी मोड़ पर नहीं हैं .... विभाजन का दर्द जिस पीड़ी ने भोग था... एक एक कर के मर गयी - खप गयी और अपने साथ तमाम किस्से कहानियाँ ले गयी ....... आने वाली नसले उस दर्द को दुबारा न भोगें .... ऐसी व्यवस्था करनी होगी....  विभाजन के दर्द को जनाब सआदत अली मंटो ने कुछ इस तरह बयां किया था  
रिआयत 
'मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो'
'चलो, इसी की बात मान लो, कपडे उतार हांक दो एक तरफ'
उलाहना 
'देखो यार तुमने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा पेट्रोल दिया कि एक दूकान भी नहीं जली' 
मिस्टेक 
छुरी पेट चाक करती हुई नाक के नीचे तक चली गयी. इजारबंद कट गया . छुरी मारने वाले के मुंह से तुरंत अफ़सोस के शब्द निकल '... अल्लाह ... गलती हो गयी'
पठानिस्तान
'खो, एकदम जल्दी बोलो , तुम कौन ए?
'मैं .... मैं ....'
'खो शैतान का बच्चा, जल्दी बोलो इंदु आय या मुसलमीन'
'मुसलमीन'
'खो, तुम्हारा रसूल कौन है '
'मुहम्मद खान'
'टीक है जाव' 
घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और ४२ रुपे देकर उसे खरीद लिया. रात गुज़ार कर एक दोस्त ने पूछा 'तुम्हारा नाम क्या है ?'
लड़की ने अपना नाम - जीनत बताया तो वो भन्ना गया ...'हमसे तो कहा गया था कि तुम दुसरे मज़हब की हो.'
लड़की ने जवाब दिया, उसने झूठ बोला '
या सुनकर वह दौड़ा दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा 'उस हरामजादे ने हमारे साथ धोका किया है, हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी. चलो वापस कर आयें .
किस्मत 
'कुछ नहीं दोस्त, इतनी महनत करने पर सिर्फ एक टीन  हाथ लगा था, पर उसमें भी सूअर का गोष्ट (चर्बी) निकली...
मालिक किसानो के हाथों से जमीन न छीने .......  नहीं तो आज़ादी का सपना अधुरा ही रहेगा.

12 अग॰ 2011

BOYZ TOYS - ये कैसी मानसिकता है ...



इशारों के अगर समझो तो राज को राज रहने दो...
देर रात तक घर से बाहर रहना
रात खाली सड़कों पर फर्राटेदार महंगी बाईक चलाना...
बात बात पर गुस्सा खा जाना...
अब ये मारक  केलिग्राफी.....

खुदा मेरे देश के युवा वर्ग को सही दिशा दे ... पडोसी की नियत शुरू से सही नहीं है ...

ये केलिग्राफी पार्क (तिहाड गाँव - झील वाले पार्क) में खाली पड़े शेड (दुकानों) के उपर बनी है.... 
कई दिन से देख रहा था...... समझ से परे है.

आज आपसे साँझा की हैं ....

जय राम जी की.
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विद्वानों ने कहा है, शब्दों की कमी को चित्रों द्वारा पूरा किया जा सकता है ................ एक प्रयास किया है ..

मेरी नज़र में ....
http://deepakcomposer.blogspot.com/

9 अग॰ 2011

महंगा पर ताकतवर देश है..... कभी महान और विश्वगुरु भी था....

महंगा पर ताकतवर देश है..... कभी महान और विश्वगुरु भी था....
कई लोग नीली पगड़ी पहन कर या फिर बिना पगड़ी के भी रसोगुल्ला की मीठी मीठी चाशनी में अपनी बातें भिगो भिगो कर कह रहे है - नहीं हम विश्व की शक्तिशाली अर्थव्यवस्था है........ हमें कोई हिला नहीं सकता... कोई अन्ना - कोई स्वामी या कोई बाबा नहीं ... ... कोई नहीं... दुनिया भले डूब जाए... पर हम शक्तिशाली है.. अपने गरीब धरती पुत्रों की बदोलत...

हम संम्पन है क्योंकि अपने लोगों को गरीब बना दिया है ... वो गरीब है तभी हम उनको १०० दिन की भीख देते हैं.... तुम्हारे पास जमीन है - और तुम गरीब होकर जमीन क्या करोगे.... तुम्हारे पास पैसा होना चाहिए - जिससे तुम अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में पढा सको, गाडी ले सको और ७० रुपे लीटर का पेट्रोल भरवा सको.... देश को तरक्की करने दो इसी में सबका भला है ; अपनी जमीन हमें दे दो ...... और पैसे लो...

देखो, तुम्हारे पुरखो के पास जमीन थी - और तुम्हारे पास भी है - पर तुम लोगों ने क्या किया ...... महाजन के यहाँ गिरवी रखी और शेहर जाकर मजदूरी की, - तुम्हारे भाइयों ने महंगे विदेशी बीज लिए - ट्रेक्टर के लिए कर्जा लिया  - फिर भी फसल नहीं काट पाए और खुदखुशी कर गए....... मर गए - तिल तिल कर के...

तुम समझदार हो - तुम जीना चाहते हो - दिल्ली जैसे महानगरीय व्यवस्था माफिक ... बिंदास..... पैसा लो - और खुल कर जियो - कर लो दुनिया मुठी में.... जमीन से कभी तुम्हारे बाप-दादाओं का भला नहीं हुआ... तुम्हारा कैसे होगा...

सत्यम शिवम सुन्दरम - दूरदर्शन पर - दो बीघा जमीन देखी होगी - क्या मिला उस किसान को - फेक्टरी लग ही गयी न उसकी जमीन पर - पर तुम्हे तो  पैसा मिल रहा है - पैसा है तो जिंदगी है....छोडो जिद को.. 

ओ-----ओ-----
अजब तोरी दुनिया है मोरे रामा ...... अजब तोरी दुनिया 
परबत काटे सागर पाट महल बनाए हमने 
पत्थर पे बगिया लहराई फाल खिलाए हमने 
होके हमारी हुई न हमारी 
अलग है तोरी दुनिया हो मोरे रामा - 
हो मोरे रामा 
अजब तोरी दुनिया है मोरे रामा 


ओ मोरे रामा - ओ मोरे रामा
फटी धरती - सुनी कोख.... 
खड़ा सेठ मुस्कुराता है ...
ऊँची ऊँची बिल्डिंग के सपने 
सभी को दिखाता है ...
कहीं दूर बैठा धरती पुत्र 
अपने भाग्य को कोस-कोस 
भूखे ही मर जाता है 
 ओ मोरे रामा - ओ मोरे रामा
गज़ब तोरी दुनिया है मोरे राम 


कहाँ हो विमल राय ...... 
पटकथा आज फिर तैयार है ......
फिल्मांकन करो भाई 

5 अग॰ 2011

रे चाची कहाँ भाग गयी तु

चाची राम राम......... रे चाची कहाँ भाग गयी तु........ देखो सारे बच्चे बिलख रहे हैं...

अरे, मेरे कौन से बच्चे हैं, मात्र दो ही तो हैं, और उनको मालूम है मैं कहाँ हूँ.

 चाची, 
तेरे  दो बच्चे तो याद रहे, पर बाकी भूल गए, उ अम्मा भी तो एके पार्टी बना गयी थी, उक के सबे मेम्बर भी आपके बच्चे सम्मान हैं... .. और उ पूरा गाँव ही आपके लिए हवन यज्ञ कर रहे हैं, उ का आपके बच्चे नहीं............

रे भोले राम, तू चालीसा पार कर गया पर रहा भोले का भोले, 

का चाची, का बात कर दी, हमू और भोलू राम...

और क्या,

अब हमरी सास कौनो पार्टी शार्टी बनवा जरूर गए थे, पर हमरा एको काम रहा, उ पर शासन करना, - त्याग तपस्या का पाठ पढ़ाना, बस...... और उ पार्टी जबे अपनी ओकात में आवे तो पुरे गाँव में शासन  करना..... बस. 


चाची, तेरा गाँव अलग, तेरी जात अलग, हमरा चाचा बिआह लाया और हमने मान लिया तू चाची है....... मा सरीखी..... अब चाचा रहे नहीं और तू कैसी बात करे है.... चाची कुत्ता भी घर में १० साल पालो तो पहचान जाता है - किस पर भौंकना है और किस पर नहीं..... तू तो इंसान है ...

भोले राम......... औकात देख कर बात कर, तेरी इंतनी हिम्मत.........

पैर पकड़ता हूँ चाची.......

चल माफ़ किया..... पर आईंदा से ध्यान रहे, मेरी गोरी चमड़ी है और तेरी काली..... बस...... सदियों से काली चमड़ी बस पिसती ही रही है ..... गोरी चमड़ी से..... अपनी औकात मत भूल, तेरे चाचा की गौरी चमड़ी थी......... 

कैसे थी, और क्यों थी ये तू जान....... मेरे से फालतू बात मत कर.

ठीक है चाची........ पर गाँव में इ तो बता दे ....... गाँव छोड़ कर क्यों भागी.........

बेटा, हर बात बताने की नहीं होती, औरत जात हूँ, कई लेडिस प्रोब्लम हो जाती है ........ उका बताया नहीं जाता..... 

चाची, उ सरदार को तो बताये जाती, जो तू पंचायत में बिठा दी....

बेटा उ सरदार की सरदारी अपने हाथ है, लगे हाथ इम्तिहान हो जाएगा, या तो सरदारी छोड़ देगा या फिर वैसे ही बने रहेगा...... अपना कुछ नहीं है....

पर उ सब गाँव के भांड.......

रे उनका चिल्लाने देव, चिल्ला चिल्ला कर जब गल्ला बैठ जाब तो खुदे शांत हो जाए....

और उ जो कुछ दिलजले भाट जो दिन भर तो काम कर रोजी रोटी कम, शाम गाँव आकर बैठ गए उ विश्व व्यापी 
बूढ़े बरगद, के निचे और रात भर जाग जाग गाँव में आल्ह गाते रहे है - गाँव वालों को भड़काते रहे........ उका का किया जाए.........

उका का करना है....... गला फाड़ फाड़ खुदे थक कर बैठ जाएंगे.......... उका ज्यादा ध्यान देने की क्वोनो जरूरत नहीं - समझे...

और मुनीम जी भी ......... पंचायत में पूरा लेखा जोखा ले कर आ गये ........ और पूछे लगे हिसाब किताब..... 

अरे उमे का है, क्वोनो 'बच्चा' आगे कर दी और बोले सब हिसाब - किताब में घोटाले इ बालक ने किये है..... 

वाह चाची वाह...... मान गए, माने अपना किल्ला गडा रहे भाड़ में जाए गांव पूरा..... 

2 अग॰ 2011

अथ प्रिय सुरती महीमा

क्या प्रेस में बैठ कर खैनी रगड़ते रहे हो ........ शर्म करो - छोडो ये सब...... चाय पानी का प्रबंध करो. - झा अंकल उवाच...........

और शर्म के मारे हमने भी हाथ झडक लिए...... 

पानी आया ....... और उसके पश्चात चाय....

अब सुरती खानी - मैं खिलाता हूँ....... तुमसे नहीं बनेगी. लाओ पुडिया दो. झा अंकल ने कुछ रोब झाड़ते हुए कहा.......

देखो सुरती खाने के कुछ नियम कानून होते है - सबसे पहला जो तुमने तोडा - अकेले के लिए सुरती नहीं बनाते ...कम से कम दो लोग मिले - तब एक सुरती बनावे...

अंकल जी, कैंसर का ज़माना है - रोज ही कोई न कोई मर रहा है - मुंह के कैंसर से ..

मारना है - बस यही सत्य है बाकि सब मिथ्या .... कोई सब्जी तो कोई अनाज, कोई दारू तो कोई सुल्फा.... कोई घी बादाम तो कोई मूंगफली....... पर सत्य तो है कि मारना है - बचेगा तो कोई नहीं न......... हज़ारों लोग ऐसे है जो तम्बाकू न खाते हुए भी केंसर का सिकार हो रहे है...... काहे सोचना..... कुछ तो भूखे ही मर रहे है - और कुछ पड़ोस से आये आंतकवादियों की गोलिओं से - बेवज़ह ....... सरकार को उसके लिए भी तो कुछ सोचना चाहिए..... खाली पीली कैंसर का भबका देने से काम नहीं चलेगा न.

देखो बाबू, केला, पान, तुलसी, मखाना और तम्बाकू ये ऐसे पदार्थ है जो बैकुंठ में भी नहीं मिलते........
कृष्ण चले बैकुंठ को - राधा पकड़ी बांह 
यहाँ तम्बाकू खाय लो - वहाँ तम्बाकू नाह
एक बार कृष्ण जी बैकुंठ जाने को हुए - तो राधा ने रोका और बोली प्रभु बैकुंठ जा रहे है - तम्बाकू तो खाते जाइये ..... वहाँ नहीं मिलना . इस प्रकार बहुत वर्णन है. अत: इसे बहुत ही प्रेमपूर्वक करके खाना चाहिए.

और तो और हमारे मिथिलांचल में एक और बात है :
छोट गाच्छ - लम्ब पात : होंठ में समात है 
वंश में कपूत जो - तम्बाकू नहीं खात है .

वाह पंडित जी, वाह आपने तो निशब्द कर दिया.. पर अभी तक सुरती बनी नहीं - इतना वर्णन कर दिया और इतना घिस दिया..

इसका तरीका होता है..... ये नहीं कि गब्बर सिंह की तरह २-३ सेकण्ड रगडा और मुंह में डाल दिया 
१०३ गुस्स्सा ३ चुटकी १३ ताल
फिर देखो सुरती का हाल.

अरे बाबू जब पंडित जी कह ही दिया है तो कुछ संस्कृत में भी सुनो .. फिर मत कहना नकली पंडित हूँ, वामहस्ते दक्षिणहस्तागुश्ते मर्दने फटकने मुखमार्जने विनियोग.
समझे.

लो हाथ करो - और इज्ज़त से इस सुरती को ग्रहण कर मुंह में रखो और मेरे ११ रुपे दक्षिणा दो ...... चलते हैं 
जय राम जी की. 

1 अग॰ 2011

युटीवी बिंदास - गुटरगूं - फिर वही बेवफाई ....

सारा दिन कबूतर तुम्हारे फ्लेट की बालकोनी पर आकार गुटरगू करते रहते हैं .... गंद मचाते है..... तुम्हे कोफ़्त नहीं होती...... भगाते क्यों नहीं इनको..
बहुत भगाया....... पर नहीं भागते......
अरे यार, इनके घोंसले तोड़ दो...... दो चार दिन यहीं बैठे रहो... भाग जायेगे..
ये आवारा कबूतर हैं, इनका कोई घोंसला नहीं है.... विचारों की तरह....... कभी मेरे पास तो कभी किसी और के पास.... आवारागर्दी करते हैं........ ये कोई चुग्गा नहीं चुगते....... शब्द ढूंढते है...... और मैं निशब्द.... बस ताकता रहता हूँ, अपने कमरे से.
निज में मन के विचारों का जो अंतरद्वंद उपजता है... वही प्रयत्क्ष  कबूतरों का शोर है.... न मुझे शब्द मिलते है न ही इनको चुग्गा.... कई बार सोचता हूँ कि सामने की छत पर क्यों नहीं जाते.... जहाँ प्रयाप्त दाना पड़ा है.
पर ये बेफिक्री से यही अड़े रहते है - पड़े रहते है -  मन में ज्यों विचारों का तूफ़ान चलता रहता है - मनो ये दाने के लिए और विचार कविताओं के लिए. और सुनो कई बार तो ये लड पड़ते है.....तूफ़ान सा मच जाता है ... ज्यों प्रेमिका - अपने प्रेमी को थप्पड़ मार देती है - और प्रेमी कहता है - तुझसे तो पहले ही ब्रेक ले लिया था....
हाँ युटीवी बिंदास टीवी के स्टूडियो में .. ठीक वैसे ही.
तुम्हे ध्यान होगा... तोता मैना की कहानिया..... राजा के बर्बादी कि और रानी की बेवफाई के किस्से...
नहीं, राजा भी बेवफा थे...
हाँ वही सब किस्से ... तो तोता मैना को सुनाती थी और मैना हुंकार भरा करती थी... याद है .
अब वही सब किस्से है - बिंदास ....... बिंदास टीवी पर ..... वही सब .. वही बेवाई की बातें..... पर अब प्रतक्ष है... सभी कुछ... बेवफाई और नंगाइ जो पहले दबे शब्दों में ब्यान होती थी - चुपके से ...... और अब वही बिंदासपन टीवी पर दीखता है.... समाज में नयी पीढ़ी के शिल्पकार - उपदेश दे रहे है - कावों की तरह कांव कांव कर रहे है और तुम अभी कबूतरों को भगाने की बात कर रहे हो.....  सही मायने में सेंसर करना चाहते हो शब्दों को .........पर उनके नहीं क्योंकि वो बिंदास है.