खुली खिडकी के नज़ारे...... सोच रहे होंगे ...बाबा आज किस चक्करों में पड़ गया. नहीं भाई. मन में बेचैनी और शरीर में गर्मी सी लग रही थी तो सामने की खिडकी खोली दी, .... मानो विंडो खुल गई ... वर्ल्ड की ... www … और इसी तरह के लोग... लाल बस .. हरी बस... फेक्ट्रियों से युवा जो नाबालिक लगते है, पर उम्र २०-२१ की है.. थके हारे. .... और ये बिंदास.... जींस पहिने पैदल चलते मल्टी नेशनल में नौकरी करते युवा, .. हाथों में हाथ डाले... रेडियो बज रहा एफ एम् ... स्टेशन मालूम नहीं...
... प्यार करने वाले कभी डरते नहीं... जो डरते है वो प्यार करते नहीं...
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सत्य है.... बिंदास लोग ही प्यार करते है. इसी के साथ मैं देखना छोड़ देता हूँ उन लोगों को... और काम पर ध्यान देता हूँ... एक फ़ाइल इम्पोर्ट की है कोरेलडरा में.... अभी तक नहीं हुई.... ध्यान फिर रेडियो पर चला जाता है... एफ एम् में शाम मस्तानी है... संगीता बोल रही है, चित्तोडगढ के बारे में, मीरा का महल जहर का प्याला... पद्मिनी .... आईने में अक्स ... चित्तोडगढ़. ...... रानियाँ जोहर हो गयी थी... कुछ आमंत्रण सा लग रहा है इनकी वाणी में... मन कर रहा चलो यार प्यार का ये जहाँ भी देखें ... देखें जहाँ आध्यात्मिक प्रेम में बावरी ने जहर खा लिया था.... और वासना के पुजारी ने पद्मिनी का अक्स देखते ही चित्तोडगढ पर आक्रमण कर दिया था....
लो फ़ाइल इम्पोर्ट हो गई.. पर मैं उलझ गया.. सुनो .... सुनो.... संगीता ये गाना सुना रही है : सुन साहिबा सुन ... प्यार की धुन. मैंने तम्हे चुन लिया तू भी मुझे चुन......... चुन चुन. ........तेरे संग जिंदगी बिताने का इरादा है. सुन सुन सुन
फाईल इम्पोर्ट हो गयी है... पर मन काम से भटक गया... बाबू... सोच रहा हूँ... अगर इस दुनिया में प्यार न होता .. तो क्या ये एफ एम् वगैरा तो बेकार ही रहते.. ...... सुनायी देती है जिसकी धडकन तुम्हारा दिल या हमारा दिल है.. वो आकार पहलू में ऐसे बैठे की शाम रंगीन हो गयी है... आज तक कोई नहीं बैठा कसम से... मन पुराने दिनों में मटर गश्ती करने चला जाता है..... मासूम सा एक लड़का ... और लड़कियों का नयन मट्टका .... पैसा.... यहीं वजह थी, प्यार न करने की... कई जगह नयन लड़े .. पर मुंह से वह ३ जादूई शब्द [I Love U] नहीं निकले ..
.... ३ दिन बस स्टैंड पर मेरा इन्तेज़ार करने के बाद बेशर्म होकर वो ही बोली थी, पर मैं बुद्दू सीधे ही “क्या आप मेरे साथ **** करना पसंद करेंगी”... सन्नाटा .... कौन भली लड़की इसके लिए तैयार होगी... .. वो मुंह फूला कर चली जाती थी और हम ऑफिस सर्कल में बदनाम होते गए .. मित्र मण्डली चु**** करार देती थी ... पर क्या करें... प्यार का मलतब था... उसके साथ घूमना और पर यही समय का ही तो आभाव था... उन दिनों ओवर टाईम... १२ रुपे घंटा... अगर ४ घंटे लड़की के साथ घुमे तो ५० रुपे तो तनखाह में कम हुए .... और २०-२५ रुपे अभी खर्च करवा देगी... १०० रुपे में डीटीसी का आलरूट पास बनता है, .... हटा न बला को.. फिर से नयी नौकरी... हमें प्यार जाताना नहीं आया... आज आया है... पर अंकल से कोई प्यार नहीं करता ... जिहाल-ऐ-मिस्कीं मुकों बरंजिश बहाल-ए-हिजरा बेचारा दिल है. क्या करें..
लोग आ जा रहे है... इन सब से बेखबर वो जुल्फे संवारती है... और कुछ नए से सपने फिर से अपने संग चलने वाले युवक को बताती है... वो भी मुस्कुरा देता है... सुन सुन.... तेरी जिंदगी संवारूगी ... ये रेडियो बताता है. युवक भी मुस्करा उठता है... तेरे ही हाथों होगी तबाही मेरी... खुशियाँ छाई है... पर दिल की लगी नहीं बुझती .. बुझती है तो हर चिंगारी.
जो रेडियो बनाते थे, खयाला गाँव से वो कारीगर अपने गांव चले गए.. लगन का टाइम है.. अब रेडियो नहीं बनायेंगे.. बस गाँव में बजायेंगे - मोबाइल . इस को... जो करोलबाग से ११०० रुपे का लिया था... मेमोरी कार्ड भी है. गाँव में है.. और यहाँ मालिक परेशान है.. कारीगर नहीं है... मॉल बन नहीं रहा ... पर आर्डर भी तो नहीं है ... १२५ रुपे का और नाम है सोनी जी .... स्टाईल 'सोनी' वाला और 'जी' ख्याला वाला.... कारीगर चले गए तो क्या ... किराया तो सर पर है न ... वो देना ही होगा...
....उस वक्त .. उस घडी ... उस नगर को सलाम... संगीता सुना रही है ... ये प्यार तेरे
पहली नज़र को सलाम....
जितना बड़ा बिहारी ... उतना बड़ा रेडियो... ८०-९० के दशक में एक मित्र का तकिया कलाम था ... बिहारी मजदूर जब छुट्टी कर के आ रहे होते तो हाथ में फिलिप्स का रेडियो होता था... या फिर पोक्केट वाला ...
..... फिर भी नहीं झुकी जो उस नज़र को सलाम... ए प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम....
दिमाग है चलता रहता है... तभी दोस्त मुझे सेंटी कहते है... कम सोचा कर... मस्त रहा कर... पर दिल है की मानता हैं....
संगीता गुड बाए कह रही है... कारेलडरा खुला पड़ा है.... टेलीफोन घनघनाता है.... भैया क्या हुआ ... प्रूफ नहीं भेजे.... और मैं फिर लग पड़ता हूँ... रोज़ी रोटी के लिए... उंगलियां है... जब तक चलेंगी मैं भी चलूँगा .. नाच बसंती नाच ... जब तक तेरे पैर चलेंगे ... बीरू की साँस चलेगी...
जब तक है जान ... जाने जहां ... मैं नाचूंगी... मैं नाचूंगी...