कई दिन से कोई भी पोस्ट या टीप लिखते हुए आलस सा आता है...
पता नहीं क्यों. अत: कुछ लिखने की कवायद के नाम से बक बक शुरू कर रहा हूँ, मित्रजन संभाल लेंगे :)
अस्वीकरण : इस पोस्ट में तम्बाकू या उससे जुड़े हुए
कोई भी प्रोडक्ट की मार्केटिंग का प्रपंच नहीं रचा जा रहा. तम्बाकू को लेकर जो जी में
बार बार बातें याद आती हैं उन्हीं को शब्द
रूप देने हेतू इस पोस्ट को लिखने बैठा हूँ.
आर्टिस्ट (चित्रकार – ग्राफिक डिजाइनर) निरंजन
पुरानी बात है, जब मैं प्रेस लाइन में डी टी पी ओपेरटर के
रूप में कार्य करने लग गया था और ‘उस्ताद’ का खिताब भी प्राप्त कर लिया था. पर
जहाँ नौकरी करता था मात्र कम्पोजिंग ही होती थी और किसी प्रेस को देखने के लिए मैं
हमेशा उतावला रहता था. पर मौका नहीं मिलता. ऐसे उमंग भरे दिनों मैं राह चलते, दिवार
पर चस्पे पोस्टरों को खासकर जैमिनी सर्कस के पोस्टरों को बड़े चाव से देखता था, कलात्मक
तरीके से हाथ से ही लिखे और फ्लोरोसेंट इंक से छपे पोस्टरों को. उसी दौरान मेरा
परिचय एक आर्टिस्ट (चित्रकार – ग्राफिक डिजाइनर) निरंजन से हुआ. बिहार या यु पी का
तू पता नहीं पर था पूर्व का बाशिंदा... घोर काले रंग का. तिहाड़ गाँव में ही एक
कमरा किराए पर ले कर रहता था. जिसमे कुछ उसकी ड्राईंग का सामान (रंग, कागज, ब्रुश)
और कुछ स्क्रीन प्रिंटिंग का... बाकि बची जगह में एक छोटी सी फोल्डिंग चारपाई के
साथ एक स्टोप और २-४ बर्तन. दूकान-मकान सभी एक १० बाई १० के कमरे में. गर मैं कभी
जल्दी छुट्टी पा जाता तो घर में शक्ल दिखाने के बाद मेरा ठिकाना निरंजन का कमरा ही
होता था. बेचारा बहुत गरीब आदमी था. कहीं से स्टिकर बनाने का काम मिल जाता था तो
पहले डिजाइन बनाता फिर उसको खुद ही गम्मिंग शीट पर छाप कर सप्लाई करता था. जिसके
पैसे भी उसे कभी मिलते कभी नहीं.. जैसे तैसे जुगाड कर जिंदगी चलाता था.
उसे खैनी खाने का बहुत शौंक था... वो बड़े जतन से खैनी बनाता
बहुत ही महीन से... और मुंह में रखता... मुझे बहुत कोफ्त होती. (हालाँकि मेरे बाबा
(दादा) और अम्मा (दादी) सभी तम्बाकू का प्रयोग करते थे) एक दिन उसने मुझे कहानी
सुनाई :
एक बाबू साहेब सरकारी अफसर थे, के यहाँ बच्चे को सांप ने काट लिया. शहर में हहह्कार मच गया... किसी ने बताया कि पड़ोस ही गाँव में एक गुणी रहता है जो सांप का जहर अपने मुंह से चूस कर बाहर निकाल देता है. उस गुणी की खोज खबर शुरू हुई... पर गुणी ने आने से इनकार कर दिया. बोला कि एक तो तबियत खराब है दुसरे मैं बाबू लोगों के घर नहीं जाता. पर जब बच्चे का वास्ता दिया तो गुणी चल पड़ा. जब बाबु साहेब के घर पहुंचा तो बच्चा काफी हद तक नीला पड़ चुका था. गुणी ने तुरंत आध सेर गाय का घी मंगवाया और सांप काटे की जगह चूसने लगा. कुछ जहर चूस कर उडेलता और फिर घी से कुल्ला कर्ता... फिर कुछ मन्त्र बडबडाता ... फिर से जहर चूसता ... काफी देर ऐसा करने ने बच्चा होश में आ गया... परन्तु तब तक गुणी महाराज बेहोश हो गए थे. अब सभी लोग खुशी के साथ साथ परेशान भी हो गए. फिर से बेचैनी बड़ने लगी... थोड़ी देर बाद गुणी उठ खड़े हुए... कुछ मन्त्र वगैरह बोले ... और चलने लगे.
बाबू साहेब अंदर से जाकर पैसा निकाल लाये – और गुणी से मुंह मांगे पैसे के लिए कहने लगे. पर गुणी ने पैसा लेने से इनकार कर दिया. परन्तु जाते जाते एकाएक सुरती की डिमांड रख दी. उस पढ़े लिखे तबके में कोई ऐसा नहीं था जो सुरती खाता हो. गुणी महाराज परेशान हो गए... जैसे तैसे एक व्यक्ति कहीं से सुरती ले ही आया और गुणी ने मुंह में रखी और घर को चल दिया.
निरंजन कहानी सुनाता रहा और मैं अपने मन में बस चुकी उस गुणी की छवि को प्रणाम
करने लगा. उसकी महानता को एक बच्चे को
जीवन दान दे दिया दूसरे बाबू साहेब से पैसा नहीं लिए तीसरे वो सुरती भी खाता था.
और निरंजन जो अब तक सुरती बना चुका था मेरे तरफ हाथ बढाया और कसम से मैंने भी पहली
बार जिंदगी में थोड़ी सी सुरती उस गुणी को प्रणाम करके अपने मुंह में रख ली. उफ़
थोड़ी देर बाद भयानक सर दर्द. समय रात के १० से उपर हो चुका था.. मैं भगा... और सर
दर्द साथ में. चौक पर यार लोग महफ़िल (दारू वाली नहीं – मात्र बकैती) लगा कर बैठे थे... मेरे को आवाज़ दी कहाँ जा रहा
है... मेरा सर दर्द – भयानक... मैं रुका नहीं.. पर एक दोस्त सामने ही आ गया...
बोला कहाँ से आ रहा है ..
मैंने जवाब दिया : निरंजन के यहाँ से...
बेहच..... उस चूतिये बिहारी के यहाँ बैठेगा तो सर दर्द होगा
ही....
ये उसकी इमेज थी. मैं निरंजन से मिलता रहता पर कभी दुबारा
सुरती नहीं खाई. उसकी मुफ्लसी देख कर मैंने कई बार कहा कि नौकरी कर ले... पर पठ्ठा
पका कलाकार था.. बोला मेरी कला की कोई कीमत नहीं...
एक दिन उसके कमरे पर गया तो कमरा खाली था... मालिक मकान
बोला कि वो कमरा खाली कर गया है... कहाँ गया कह नहीं सकते. २-३ साल तक नहीं मिला. एक
दिन मिला ... तो था तो काला ही पर कुर्ते पजामे और फट्टी चप्पल की जगह पैंट बुशर्ट
और जुते में था... बोला नौकरी कर ली है पांच हज़ार माहवार पर... किसी फेब्रिक प्रिंटिंग
कम्पनी में आर्टिस्ट की. जी १९९०-९१ के समय ५००० बहुत थे, कमरे का किराया २५०
रुपये महीना होता था ... जो निरंजन नहीं दे पाता था.
किस्सा मेरे सुरती खाने का..
उसके बाद सुरती कभी नहीं खाई ... कभी भी नहीं. २००२ की
गर्मियां थी. अपना कम्पोजिंग यूनिट खोल चुके थे नारायणा में... २ कृषि वैज्ञानिक
आये अपनी किताब छपवाने... छपवाने तो किसी प्रेस में आये थे और उस प्रेस की कम्पोजिंग
का कार्य मैं ही करता था. ३-४ दिन में ही उन डॉ साहेब से दोस्ती जैसे कुछ हो गया
... इसे दोस्ती नाम नहीं दिया जा सकता कि उन में और मेरे में जमीन आसमान का अंतर
था... पर की-बोर्ड पर मेरी उंगलियां नचाने की कला के वो कायल हो गए. उनमे अजब का
जनून था साहेब जबरदस्त जनून... सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद भी रात रात भर बैठ
कर करेक्शन करवाते. पूरी रात काम करने के बाद लगने दिन दोपहर को मेरे को जब नींद
का एक झटका आया तो उन्होंने मुझे ‘दिलबाग’ गुटका दिया ... बोले नींद उड़नछु हो
जायेगी. वाकई ... ऐसा ही हुआ... पर मुझे
गुटका खाने की लत गयी. डेढ़ एक साल मैं करीब १५ गुटके प्रतिदिन की एवरेज पर पहुँच
गया. एक दिन घर से निकला और पिता जी साथ थे, स्कूटर पर बैठे हुए.... मैंने
दिनचर्या के हिसाब से स्कूटर पनवाडी की दूकान पर रोका और पनवाडी ने तुरंत गुटखों
की २ लड़ी (२०) मेरे को दे दी.
![]() |
टेबल पर हमेशा मौजूद रहती है ये खैनी |
बहुत ग्लानि हुई ... बहुत ज्यादा. दफ्तर पहुँच कर वो गुटखे
फैंक दिए. पर दिन कैसे निकले. गुटखा तो आदत में शुमार हुआ उसका तौड निकला कुबेर – रेडीमेड खैनी का २
रुपये का पाउच.. क्या बुराई थी... बाबा को खाते देखा था ... पर उस जमाने में रेडीमेड खैनी नहीं हुआ करती थी, तब अपने ही खेत में तम्बाकू उगता था... शीशम के पेड की छाल को जला कर उसकी राख और तम्बाकू को कूट कर तैयार कर लिया जाता था... रेडीमेड खैनी का ही रूप थी. वो प्राकृतिक होता था पर कुबेर नहीं. मैं जानता हूँ कि इसमें कुछ केमिकल वगैरह भी मिलाए जाते हैं.
गुटखों पर प्रतिबंध और कुबेर की पुडिया.
कुबेर का मूल्य काफी साल दो रुपये ही रहा उसके बाद तीन रुपये. तीनेक साल
पहले जब कोर्ट ने सख्ती दिखा कर सकूलों के आस पास तम्बाकू के उत्पाद बेचने में पाबंदी लगाईं तो कुबेर सीधे पांच रुपये.
और पिछले साल से छ: रुपये. और अब जब पूर्ण रूपेण गुटखों पर रोक लग गयी है तो अवल
कोई भी पनवाडी अनजान को तो कुबेर बेचता ही नहीं ... और जानकार को ७-८-९-१० रुपये
बेच देता है. जबकि आज भी एम आर पी ५ रुपये ही है.
और गुटखा दिल्ली में प्रतिबंधित हो गया है.. पर जर्दा
(तम्बाकू) अलग से और साधारण सुपारी का पाउच अलग से. २ रुपये में मिलने वाले गुटखे
की कीमत आज ४-५ रुपये तक हो गयी है. मजदूर तकबा आज भी दो पुडिया अलग अलग खरीदता है
और फांकता है. जीवन से निजात पाने के लिए. जितना जियेगा उतना ही पैसा गुटखे पर खर्चा
करना होगा.

छोटे तबके के छोटे लोग हैं, अव्वल दिल तो किसी से लगाते
नहीं ... और लगा ही लिया तो छोड़ते नहीं चाहे उसमे कितने ही कैंसर वाले कीड़े हों.
मैं भी जब कुबेर छोड़ने की बात सोचता हूँ तो उस पुडिया का चेहरा
मेरे सामने आ जाता है ... जो उदास स्वरों में कहती है..
जे नई सी तौन निब्हानी – मेरी कानू पकड़ीअई बांह.
जो अन्त तक साथ ले कर नहीं चल सकते थे तो मेरी बांह ही क्यों पकड़ी.
जय राम जी की.
मेहनतकश लोग कुछ देर सुस्ताने के लिए बीड़ी तम्बाकू खैने इत्यादि का प्रयोग करते हैं। इसमे अब गुटखे का भी शुमार हो गया। जो निहायत ही हानिकारक है। लेकिन खैनी की मौज के तो क्या कहने। जो खाए वही जाने :))
जवाब देंहटाएंअपनी आदतों के बारे में कहना और उनके बारे में सचेत होना एक दुरूह कार्य होता है. अपनी बात को इतनी डिटेल में कहना कोई आपसे सीखे. ग़रीबों की बाँह पकड़ने की आदतों पर आपकी टिप्पणी दिल को छू गई. तोड़ निभाणी तो सभी को नहीं आती न :))
जवाब देंहटाएं...कई बार यह खैनी बड़े काम करा देती है ।
जवाब देंहटाएंमैं इससे बचा हुआ हूँ ।
बकबक बाबा की गजब की बकबक ....:)
जवाब देंहटाएंयह कुबेर है ...??
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें बाबा !
आज से तो यू.पी. में भी गुटके पर बैन लग गया बाबा.............ये आदत छुट जाय तो ही अच्छी.
जवाब देंहटाएंये खैनी घनघोर कैमिकल का घर है। मुझे कभी नहीं सुहाई...
जवाब देंहटाएंखैनी के दीवानों से इसके लाभ सुनने को मिलते हैं।
जवाब देंहटाएंham to tere aashiq hai sadi purane ....
जवाब देंहटाएंyahi diwanagi logo ki khaini ke saath hai..aur uska vigapan chani khani..chain se maja le...
jai baba banaras...
राजदरबार की 25-30 पाऊच रोजाना की आदत से सुबह-सुबह मुंह से ब्लीडिंग होने लगी तो 4-5 महंगे महंगे टैस्ट करवाये और गुटखा छोडकर कुबेर की आदत पाल ली थी। रजनीगंधा मुंह छील देने के कारण शुरु से ही नहीं जमा। कुबेर से जेब के साथ ये फायदा भी है कि किसी को पता ही नहीं चलता है।
जवाब देंहटाएंअब 5 वर्षीय बेटे के टोकने पर छोडने की कोशिश की तो 5 दिन में ही हवा टाईट हो गयी यानि आलस ने बुरी तरह घेर लिया। कम कर दी है पर पूरी तरह छोडने में नाकामयाबी है।
इसमें तेजाब भी होता है जो मसूढे गला देता है, भूख कम कर देता है, गैस बनने लगती है और दांत काले कर देता है।
प्रणाम
हम हैं राही एक पथ के.... :)
हटाएंबिहार के समस्तीपुर जिले में सरैसा खैनी पैदा किया जाता है जो चूने के साथ प्रयोग किया जाता है... मुझे नहीं लगता वो प्राकृतिक खैनी इतना नुकसानदेह रहा होगा..नुक्सान तो केमिकल से होता है.... आपका वर्णन अच्छा लगा...निरंजन के बहाने आपने देश में छोटे उद्यम के मौत की कहानी कह दी है...वह नौकरी तो कर सकता है लेकिन व्यापार नहीं...यह अर्थव्यवस्था के पंगु होने की निशानी है... दिल को छू जाती है आपकी लेखनी...
जवाब देंहटाएंअरुण जी, आज हालात ऐसे बन गए हैं कि छोटे-छोटे उद्यमी आज इन्स्पेक्टरराज के दल दल में फंस कर भाग रहे हैं, यहाँ नारायणा आद्योगिक क्षेत्र में ही कई छोटे छोटे कारीगर जो अपने हुनर से अपना तो पेट् पाल ही रहे थे बल्कि ५-७ लोगों को और भी रोज़गार दे रहे थे, और ८-१० साल बाद उन्ही ५-७ में से कोई एक अपना 'ठिया' खोल लेता था - फिर वो भी ३-४ लड़कों को अपने यहाँ रख लेता था....
हटाएंआज नियति यह है कि किसी भी छोटे मोटे व्यवसाई का बेटा अपने पिताजी के धंधे में नहीं आना चाहता वो नौकरी को मजबूर है.
आने वाले दस साल में हम बहुत बड़े पैमाने पर बी-टेक जैसे डिग्री धारी सफ़ेद कमीज़ वाले बेरोजगार लड़कों की फौज देखेंगे.
बाकि आपकी टीप सदा उत्साहवर्धक रहती है... आभार.
हटाएंहाहहाहाहा, बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंभाई अंतर सोहिल जी की बात को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html
धन हरे रोगी करे, करे दृढ़ता नाश।
जवाब देंहटाएंकाहे आमंत्रण दिया, शत्रु बाहु पाश॥
जितनी जल्दी छोड़ दे उतना ही अच्छा , सेहत और जेब दोनों के लिए अच्छा है , कुछ लोग टॉफी , चिविन्गम आदि को उसके विकल्प के रूप में आजमाते है अब तो इसे छुड़ाने के लिए बाजार में काफी कुछ उपलब्ध है |
जवाब देंहटाएंजबरदस्त लिखा है उस्तादजी, सॉरी बाबाजी:)
जवाब देंहटाएंजय हो !
जवाब देंहटाएंखैनी का बहाना लगाकर अपनी आदत के मुताबिक आपने इस पूरे सिस्टम पर कटाक्ष किया है, ५००० की नौकरी की तो ठीक और अपना धंधा किया तो २५० रुपये महीना कमरा किराया ना दे सका... यूँ कहिये की अब ज़माना MNCs का है, चाहे retail FDI का बहाना हो या फिर बाहर की कंपनियों को अपने यहाँ कारोबार करने की छूट दी जाये, आखिर वही होना है, भारत का नौजवान करेगा नौकरी और कमाने वाले कमाते रहेंगे !
गुटका खाने से अच्छा है खैनी खाना। खैनी खाने से अच्छा है पान खाना। सबसे अच्छा है कुछ भी न खाना। अपन को भी पान खाने की बुरी आदत है। तीन दाँत उखड़वा चुका लेकिन तभी तक पान से दूर रहा जब तक दाँत में दर्द रहा। दर्द ठीक, पान चालू।
जवाब देंहटाएंछोटे उद्योगों को तो सरकार नष्ट करने पर तुली ही हुई है। गुटका पर पर प्रतिबंध तो दिखावा है। आपने बड़ी साफगोई से लिखा है। अच्छा लगा।
अगर आपको कुछ पता नहीं होता तो ज्ञान देते छोड़ने का :)
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएंSugar & Coco