मुझे ये बताते हुए जरा सी शर्म महसूस हो रही है कि मैं इस अभागी दिल्ली का अभागा बाशिंदा हूँ. जरा सी मीन्स ‘जरा सी’ जितनी अपने वामपंथी मित्रों को अपने को हिंदू कहने में महसूस होती है. :) खैर मजाक यहीं तक, और नहीं.
जब देश
के किसी भी हिस्से में बाड़-सुखाड़ आता है तो यही दिल्ली तुरंत मदद भेजती है. इसपर
कोई तरस नहीं खाता. केरल से मानसून आता हुआ यू पी, बिहार, बंगाल तक पहुँच गया, मगर
ऐसा नहीं हुआ कि कुछ बादल वो यहाँ भी भेज देते. नहीं, अभी से सावन गीत गाने लगे
है. ऐसा नहीं कि दिल्ली को कुछ नहीं मिलता. वैसे आपको मालूम ही होगा कि दिल्ली का
अपना कुछ भी नहीं है, न बिजली, न पानी, और तो और मौसम भी नहीं. पडोसी राज्य जो वही
देते है जो उनसे संभलता नहीं, जैसे गर्मी आई तो राजस्थान उदार हो गया, गर्म हवाएं
यहाँ भेजने लगा, पर सर्दी में सारी गर्मी अपने पास ही रख लेता है. सर्दी में पहाड़ मेहरबान
हो जाते जाते हैं, लो जी हमारे पास बर्फ जयादा आ गयी है – कुछ सर्द हवाएं आप ले
लो. गर्मी में ये दरियादिल्ली क्यों नहीं दिखाते. संपन्न दिल्ली वालों को अपने
यहाँ बुला लेंगे, आओ मित्रों – अपना पैसा ले कर आओ – और यहाँ की ठंडक महसूस करो. इधर शीला मैया हरियाणा सरकार को पानी के लिए गिडगिडा रही है और चौधरी साहेब
आँखे दिखा रहे है – किद्द से दे दें पाणी, अपना ही पूरा न हो रहा. यही दो चार ढंग
से बरसात पड़ी नहीं तो चौधरी साहेब, तुरंत हुक्म दे देंगे, भाई दिल्ली वालों को दे
दो पाणी, कई दिन से पाणी–पाणी रो रहे थे, बोलो संभलो यमुना को.