एक बार फिर से घोषित करना
चाहता हूँ कि मैं तिहाड़ गाँव झील वाले पार्क में रोज सुबह जाता हूँ, और सूर्य देव
के विपरीत मेरी सुबह का कोई समय नहीं है. जब जागो तभी सवेरा... आज ८.४० पर गया...
और पार्क के गेट पर ही ठिटक गया ...
49 एकड़ में फैले हुआ यह पार्क,
जिसमे पुराना जोहड भी है, डीडीए के अंतर्गत है. पिछले कई दिनों से इस जोहड (जिसे
झील का नाम दे दिया गया है J) में उगी घास को हटाया जा रहा था. वैसे ही मैं समझ गया था कि छठ पूजा नज़दीक
है अत: उसी के तैयारी हेतु इस घास को हटाया जा रहा है. वैसे हमारे देश की की अफसरशाही
संसार में सबसे विचित्र है. ये जोहड सुखा पड़ा था तो इसमें कोई घास फूस नहीं थी,
जैसे जैसे बारिश आयी इसमें पानी भरने लगा और कुछ पानी आसपास लगे ट्यूववेल से भरा
जाने लगा तो ये घास भी उगनी शुरू हो गई.... उसी समय इसका सफाया क्यों नहीं हुआ ? जब बारिश रीत चुकी है और ये घास बड़ी होकर गलने लग गयी तो जो थोडा बहुत पानी जोहड में है वो सड़कर काले रंग का हो, बदबू मारने लगा है - कैसे पूजा होगी? अब इसमें से से घास निकालनी शुरू कर दी गयी है..... पुरे तालाब
में से तो घास निकालना बहुत दुरह कार्य है... छठ पूजा निम्मित मात्र किनारों से निकाली जायेगी.
गंदगी का आलम ये रहता है कि
आप वहाँ से गुजर नहीं सकते.. पर पूर्वांचल का ये समाज अपने इस
त्यौहार को मनाने के लिए यहाँ बहुत मेहनत - फावड़े लेकर खुद ही सारी सफाई करते है. किनारों
को मिटटी से लीप कर सुंदर ढंग से सजा देते हैं. कई वर्षों से देखा जा रहा है कि साहेब
लोग वादा करते है पक्के घाट बनाने का. और पूजा खत्म होते ही ये मेहनती तबका नून
आटा तेल के चक्कर में व्यस्त हो जाता है. और अगले साल फिर वही समस्या...
तिहाड़ झील के घाट पर भई नेतन की भीड़.
अधिकारी सब मनन करें कि दे नेता बहुते पीड़
लाल बत्ती वाली गाडी और माननीय
नेता, युवा नेता, छोटे नेता, बड़े नेता, अफसर नेता, मजदूर नेता, पूंजीवादी नेता और
समाजवादी नेता जैसे लोगों की भीड़ थी. छठ पूजा की तैयारी को लेकर पशिचमी दिल्ली से
सांसद श्री महाबल मिश्र जी का दौरा था.
गत वर्ष - छठ पूजा के लिए अपनी मेहनत से बना घाट. |
गत वर्ष : छठ पूजन के लिए तैयारी करता श्रद्धालु |
छठ पूजा आने को है.... झील से घास निकली जा रही है.. |
मेरे ख्याल से आज सुबह
मिश्र जी इसी तैयारी का अवलोकन करने आये थे. सरकारी लश्कर साथ था. इस जोहड़ को लेकर
मेरे मन में काफी सवाल/सुझाव उठते है जैसे कि,
१. जब इस जोहड़ पर झील का ठप्पा नहीं लगा था तो ३ किलोमीटर दूर मायापुरी चौक और १ किलोमीटर दूर हरिनगर डिपो तक से पानी इसी जोहड़ में आता था, जोकि फरवरी मार्च तक जोहड़ को पानी से लबालब रखता था. जैसे जैसे आसपास की कालोनियों का अव्यवस्थित विकास हुआ वैसे वैसे इस जोहड़ से पानी दूर होता गया. आज हालात ये हैं कि थोड़ी सी भी बारिश हो जाए, बाहर रोड पर पानी भरा रहता है. क्या ऐसी व्यस्था नहीं हो पाती कि कोई ऐसे ड्रेनेज सिस्टम बनाया जाए कि बारिश पानी इसी जोहड़ में आकर गिरे.
२. इस पार्क में स्थित शमशान को पूर्णत: सीमेंट से पक्का कर दिया है. उसमे से बारिश का पानी सीवर में जाता है... वो इसी जोहड़ में आना चाहिए.
३. बेरीवाला बाग पीर बाबा, तिहाड़ गाँव, मानक विहार, हरि नगर एल ब्लोक के फ्लेट, आशा पार्क, फ़तेह नगर आदि कालोनियों के बारिश का पानी भी इसी जोहड़ में आना चाहिए... जो नालों द्वारा आगे चला जाता है.
४. पीर के पीछे इस पार्क की कुछ जगह उजाड पड़ी है – जहाँ दिन में भी अधिकतर असमाजिक तत्व घुमते रहते हैं, वहाँ कोई सीवर के पानी को साफ़ करके न केवल इस झील को भरा जा सकता है बल्कि उस पानी से पार्क में पौधों की सिंचाई भी की जा सकती है. बची हुई सीवर की सिल्ट को खाद के रूप में प्रोयोग किया जा सकता है. अनमोल मोटर और शमशान के बीच के इसी पार्क के एक हिस्से सीवर के पानी से ही सींच कर हरा भरा बनाया गया है.५. अब हालात ये है कि २-३ ट्यूववेल चलाकर इस झील में पानी दिया जाता है. आसपास की कई कालोनियां जो आज इसी भूजल पर निर्भर है - कल प्यास कैसे बुझायेंगी. क्योंकि अब जमीनी पानी रिचार्ज नहीं होता. पानी बह जाता है. हम भाग्य शाली है कि एक वाटर बॉडी हमारे बीच है – जिसमे न केवल बारिश के पानी को सहेजा जा सकता है अपितु भूजल को रिचार्ज भी किया जा सकता है.
मैं जानता था कि
उक्त बातें करने के लिए साहेब के पास समय नहीं होगा. मैंने अभी मात्र इतना ही कहा
था कि बारिश का पानी इस झील में नहीं आता .... और मिश्र जी के साथ जो अधिकारी आये
थे वो अभी पिछले साल २ पाईप लाइन दिखने लगे.... बिलकुल बंद पड़े थे... बिलकुल बंद
कोई अंधा भी देख कर कह सकता है कि मात्र खानापूर्ति हुई है. कोई १ बाल्टी पानी भी
नहीं आया.
माननिय सांसद मिश्रजी
भड़क गए, बोले तुम कौन होते हो... हमारे अधिकारी से इतना ऊँचा बोल रहे हो. अरे
साहेब क्या करें जब नक्कारखाने में आवाज़ कोई सुनता नहीं है तो व्यक्ति की
ऊँचा बोलने की आदत हो जाती है. और मेरी आवाज़ तो वैसे भी ऊँची है मैं कोई बदअदबी नहीं कर रहा था.
जय राम जी की.
Baba ji chat puja ka to ek bahana hai ye sab safed kurta pajama wala log hai..ye jameen ka serva karne aaye the ki kal ko yaha par koie sunder mall ya nai coloni ban sakti hai ya nahi..aur is park ki complant bahut hai ki log jua khalte hai, sarab peete hai,aur pata nahi kiy kiya karte hai...jaida kiyu likhu aap samajh daar hai..
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
जब नक्कारखाने में आवाज़ कोई सुनता नहीं है तो व्यक्ति की ऊँचा बोलने की आदत हो जाती है. और मेरी आवाज़ तो वैसे भी ऊँची है मैं कोई बदअदबी नहीं कर रहा था.
जवाब देंहटाएंkariye kariye...ba-adbi karne ki jaroorat he..umda....
aap ka likha hamesh natural hota hai. achchha lagta hai.
जवाब देंहटाएंझीलें प्यासी हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकाश उन लोगों तक भी आवाज पहुंचे.....
क्यों पंगा ले रहे हो बाबाजी, खाम्ख्वाह नप जाने का डर बना रहेगा। माननीय तो माननीय हैं, इनका कुछ नहीं बिगड़ना है।
जवाब देंहटाएंसुझाव अच्छे हैं लेकिन ये इंप्लीमेंट हो गये तो सालाना बजट और नये नये प्रोजेक्ट्स का क्या होगा? माननीयों, अधिकारियों, बाबूओं और ठेकेदारों के भी बाल बच्चे हैं और उनके भी पेट लगे हुये हैं।
हमारा सुझाव यही है कि गांधीजी के तीन बंदरों से प्रेरणा लेकर आंख, कान और मुंह पर कभी कभी हाथ रख लिया करो।
संजय यही सलाह ... मेरे दोस्त ... मेरे भाई ... मेरे सखा... लक्की (एल आई सी) ने भी दी थी... जब सुब्रह का किस्सा उसे सुनाया तो... यही वो बोले बड़े लोग हैं पंगे मत ले ... भूल जा और मौज कर.
हटाएंआपके सभी सुझाव महत्वपूर्ण हैं। लेकिन सोवियत संघ के तानाशाह स्टालिन का बताया जाने वाला एक कथन है कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि वोट किसने दिये, महत्वपूर्ण यह है कि वोट गिनता कौन है। आपकी यही सलाहें करोड़ों मानी जायेंगी, मगर इतने सस्ते में नहीं। माननीय बनने के लिये यही सलाहें बड़े खर्चीले आयोगों द्वारा आनी चाहिये ...
हटाएंझीलों के हालात यही हैं अब मैदान से पहाड़ और ब्लॉग जगत तक ! छठ पर ऊपरी सफाई हो जाती है बस!
जवाब देंहटाएंडॉ साहेब कुछ उद्धारण दे देते तो अच्छा था.
हटाएंइतनी बड़ी जगह का कबाड़ा कर दिया!इसके लिए जनता ही दोषी है। सभी को एकजुट होकर इसके सुंदरी करण की मांग करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंएकजुट :) कौन सी सदी की बात कर रहे हैं आप :)
हटाएंसबसे धाँसू टीप स्पैम में? बहूत नाइंसाफ़ी है ...
जवाब देंहटाएंजी इन्साफ कर दिया.... टीप झील से बाहर निकाल लाए हैं..
हटाएंआभार.
बाबा जी की जय हो!
हटाएंbat to app sahi uthaye baba...magar sahi kaun sunta hai, jaise ki sansad mahodaya.
जवाब देंहटाएंसारे देश में ही ऐसी बदहाली है, जब तक जनता समझदार नहीं होगी, इस देश में कुछ नहीं हो सकता।
जवाब देंहटाएंजनता और समझदार....
हटाएंआप भी कैसी बातें करती हैं..:)
दीपक जी आप अपनी बा बुलंद आवाज़ में इन्हें खरी खरी सुनाते रहिये...कभी तो सुनेंगे ससुरे...हार मान गए तो इनकी जीत हो जायेगी और फिर जोहड़ में बरसात का पानी भी नहीं आएगा...
जवाब देंहटाएंनीरज
हार नहीं मानूंग..... कर के अटल की कविता की कुछ पंक्तियाँ ध्यान आ रही हैं.
हटाएंबहुत दिन बाद... नीरज जी स्वागत है.
हार नहीं मानूँगा
हटाएंरार नई ठानूँगा
काल के कपाल पर
लिखता हूँ मिटाता हूँ...