.भारत चमत्कारों
का देश है. मुगलों ने चमत्कार किये – कहीं शिवालय को ताजमहल बना दिया तो कहीं विष्णु
मंदिर को क़ुतुबमीनार. कहीं ढाई दिन का झोपड़ा खड़ा है तो कहीं गाँव शहर में अपने आप
उगी मजारें. साईं बाबा के चमत्कार भी कम नहीं थे. सुना है जब मांस
पका रहे होते तो बर्तन में अपना हाथ डाल कर हिलाते थे, यह चमत्कार था बाबा का हाथ
जलता नहीं था... वही चमत्कार आज दिल्ली में करोल बाग़ के गणेश मच्छी वाला करता है. खौलते
तेल से मच्छली निकाल कर चेक करते हैं कि पकी या नहीं. देखते वालों के कलेजे मुँह को
आ जाते हैं बाऊ जी अभी जला फफोले वाला हाथ दिखाएँगे. पर बोला न चमत्कारों का देश
है.
ओह , यह भटकाव.
अंग्रेज़ आयें, चमत्कारों की परम्परा उन्होंने भी जारी रखी. पढ़ी-लिखी कौम
थी, मुगलों की तरह किसी मन्दिर – शिवालय पर चमत्कार नहीं किया. उन्होंने क्षुद्र भारतीयों
पर चमत्कार किया, अंग्रेजी माध्यम से. उनमे एक महान व्यक्ति भी था, मैकाले यह उसी
के चमत्कार है की क्षुद्र भारतीयों की संतानें गिटपिट अंग्रेजी में गुड मार्निंग
एंड गुड नाईट विथ स्वीट ड्रीम्ज़ जैसे सुनहरे एवं आनंदायक मेस्सेज भेजती है.
ओह ! यह भटकाव - मैं फिर भटक गया, कई दिन बाद ब्लॉग की गलियों में आया हूँ, न. वैसे भी भटकाव मानवीय गुण जैसे ... भटके हुए नौजवान.
हाँ, तो बात चमत्कार की हो रही थी.
सबसे बड़े संत तो श्रीमान मोहनदास करमचंद गांधी हुए. उन्होंने बहुत बड़े बड़े
चमत्कार किये. उन चमत्कारों से प्रभावित होकर क्षुद्र भारतीयों (जो अब कुलीन और सभ्य
बन गए थे) ने उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दी. हालाँकि यह भी एक चमत्कार ही था. कि
देश का कोई राष्ट्रपिता भी हो सकता है. गांधीजी ने गजब चमत्कार किया – उन्होंने चरखा
चलाया और अंग्रेजों से हमें आजादी दिलाई. वास्तव में इस चमत्कार से हमें आजादी
मिली. आज भी जब भारत में विदेशी मेहमान आता है तो सबसे पहले प्रधानमंत्री उनको वह
चरखा दिखाते हैं. मेहमान सब भी चरखे को छू कर एक चमत्कारी अनुभूति लेते हैं.
ओह ! पोस्ट लम्बी होती चली जा रही है. खैर गांधी जी जब मरे तब वह बकरी
प्रधानमन्त्री निवास पर थी. चूँकि इस देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का
है तो इसलिए वह राष्ट्रीय धरोहर इनको दे दी गई. अब अब्दुल उस बकरी को शाम को
टहलाने बाग़ - बगीचे में ले जाता है.


कोरोना जैसे चीनी वायरस वाला महामारी का दौर है. प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्रमोदी के नेतृत्व में भारत सरकार अपनी १३० करोड़ जन मानस को कोरोना से बचाने के लिए दिन रात एक कर रहा है.
पर चक्रपाणी जैसे कई लोग भगवा कपडे पहन कर गौमूत्र सेवन से कोरोना से बचने का आन्दोलन चला रहे हैं – चमत्कार की उम्मीद में. वहीँ एक सांसद महोदय भी कहाँ पीछे रहने वाले थे – गो कोरोना गो - गो कोरोना गो – के नारे लगाते हुए आन्दोंलन कर रहे हैं. – चमत्कार की उम्मीद में. चमत्कार तो खैर अब क्या होने, पर यह अपने देश और धर्म की भद पिटवाने पर लगे है.
कुछ हिस्सों अम्मायें, बीबियाँ, आपायें भी एकत्र हुई है. चमत्कार की उम्मीद से. पर दिशाविहीन
होकर बाग़ पाक हो रहीं हैं. वहां भी कोई
चमत्कार नहीं हुआ.
मित्रों
! चमत्कार का दौर तो मई २०१४ को ही खत्म हो गया था. पर चमत्कार करना चमत्कृत होना - यह भारतीयों की सदियों पुरानी आदत है, पांच दस वर्षों में तो सुधरेगी नहीं.
ओह ! पोस्ट बहुत ज्यादा भटकाव के साथ खत्म हुई – अफ़सोस रहेगा, भटक कर इस
ब्लॉग पर आप आये, और मुझ जैसे अटके भटके ब्लोगर को पढ़ा उसके लिए धन्यवाद
~ जयरामजी की