ये गुलमोहर के विशाल दरख्त...
लाल-लाल छितराए हुए... दूर तक
फलक तक फैली शाम की लाली...
और ये अमलतास के
पीले ... पीले खुशी से सरोबार ....
यों दूर से आती रहंट से
पानी गिरने की आवाज़ ..
सुनो जोगी.. सुनो..
फिर मत कहना ..
जिदगी रसहीन है...
और मैं रसिक ...
इस मायावी दुनिया को छोड़ चला...
हमारी ब्लॉग की दुकानवा तो बंद हो जाएगी..
जवाब देंहटाएंबाबा अब कविता भी करने लगे...अब हमे कोई न पूछे है..
बाबा बकबक ही करें भक्तों के लिए भी कुछ छोड़ दें..वैसे भी रसपान की उमरिया तो अब बीत गयी क्यों नित्यानंद बनने पर तुले हैं..
वैसे आप के अन्दर कवि भी हैं आज मालूम हुआ..
मजा आ गया.. मैं चला जीवनपुष्प के पास रसास्वादन करने..
फिर मिलते हैं आप की अगली बकबक तक ..जय श्री राम
ज़िंदगी के अर्थ खोजती रचना ..
जवाब देंहटाएंजिन्दगी तो बहुत खूबसुरत है ही... जिन्दगी की खूबसुरती को निखारती हुई सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंदीपक बाबू!
जवाब देंहटाएंआज तो दार्शनिक बने हो प्रभु!!!
कहाँ चल दिए बाबा ......
जवाब देंहटाएंशिष्यों का क्या होगा ...??
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंजिंदगी के रंगों से सरोबर
जय हो !!
जवाब देंहटाएंबाबा मूड में लगते हैं आज. सुन्दर कविता. ))
baba ji kaha jaa rahe hoo.......
जवाब देंहटाएंchutti ka pura pura sadupog............
jai baba banaras.................................
बहुत सुन्दर भाव्।
जवाब देंहटाएंखोजने वाली दृष्टि चाहिए .... वरना सब कुछ व्यर्थ है ... सुंदर रचना है ....
जवाब देंहटाएंचित्र और कविता से मन तृप्त हुआ। बधाई।
जवाब देंहटाएंगुलमोहर से अमलतास तक, रंग ही रंग ...
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया बाबा आपके आश्रम (ब्लॉग) पर आकर.
जवाब देंहटाएंअब आप मेरी कुटिया (ब्लॉग) पर भी पधारें.
मेरी ५ मई को जारी पोस्ट आपके दर्शन की प्यासी है.
अनुग्रह कीजियेगा बाबा.रस की बरसात कीजियेगा बाबा.