क्या ये जरूरी है कि कवि बना जाए
क्यों न एक इंसान बना जाए
या फिर सवेदनशील पाठक
जो अच्छे कवियों की रचनाओं को पढ़े
खाली समय में उन्हें गाये गुनगुनाये
मनन करे, पर इससे अच्छा
एक नागरिक भी तो बना जा सकता है
जो जब कहीं अपनी ही जुस्तजू में
धक्के खाता रहे
फिर भी दुष्यंत को गुनगुनाता रहे
सोचो कवियों, सोचो
गर अच्छे नागरिक नहीं होंगे,
तो कहाँ से आयेंगे क्रांतिवीर
कौन तुम्हे पढेंगें, मनन करेंगे
तुम्हारी अग्नि से उर्जा पायेंगे
नेतागण एक बार तुम भी सोचो
कौन क्रांति का झंडा ले कर चलेगा
कौन मौके पर जा कर
पुलिस के डंडे झेलेगा
क्योंकि झंडे और डंडे का एक अनाम रिश्ता है
जहां झंडे होंगे वहीं डंडे भी होंगे
तुम तो आराम से रहोंगे न
क्यों झंडे इन्हीं ने तो थामे हैं
चाहे लाल हो न नीला
पर डंडा रंग नहीं देखता
वो बरसता है .... झंडे उठाने वालों पर
कार्यकर्ता मरता है
कुछ किसी मशान में जलते हैं
तो कुछ दफनाए भी जाते है
ये बस इरादे हैं
पर नेता के तो बुलंद होते जाते हैं
ये बस इरादे हैं
पर नेता के तो बुलंद होते जाते हैं
संसंद में भी शपथ लेते हैं
कविता - कविता बस किताबों में आह भरती है
कवित्रियाँ प्रकाशकों/आलोचकों के यहाँ
कविता पढ़ कर जागृत हुए क्रांतिवीर की माँ
बहु को संशय की नज़र से देखती है
बहु को संशय की नज़र से देखती है
कहीं न कहीं कविता ही उस औरत की निगाह में दिखती
है..
क्या था उसका प्यार कविता या फिर औरत
क्यों न खत्म कर दिया जाए सत्ता की हर निशानी को |
जय राम जी की
बहुत ही वाजिब सवाल उठाया है दीपक बाबा जी!! हमेशा की तरह सोचन एपर मजबूर करती है यह कविता!!
जवाब देंहटाएंसहमत हूं आपकी बात से, लेकिन आज कौन नागरिक बनने को तैयार हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छा संदेश, बढिया रचना
सार्थक सन्देश देते हुए बाबा जी ........पर मेरे मुताबिक अगर इंसान इंसान ही बना रहें तो वही बहुत है .......अभी कुछ दिन पहले कहीं पढ़ा कि किसी की कार के नीचे आ कर एक कुत्ता मर गया ...वो शक्स दुखी थे उस कुत्ते के मरने से ...पर वो तब दुःख नहीं होते जब उनकी कार के नीचे आ कर कोई इंसान मर जाता तो ......उसी दिन पता चला कि आज के वक्त में इंसान की जान की कीमत कुत्ते से भी कम है ......हैरान हूँ एक इंसान की ऐसी मानसिकता को पढ़ कर .....ऐसे किसी भी इंसान का नागरिक बनना तो बहुत दूर की बात है ...क्यों कि हर नागरिक के साथ कर्तव्य और अधिकार दोनों जुड़ जाते हैं ........राम राम
जवाब देंहटाएंसत्ता के मद का ख़तम होना जरुरी है .........
जवाब देंहटाएंSupereb , Behtreen
जवाब देंहटाएंबडी गहरी बात कह दी काश सबसे पहले हम नागरिक होने के अर्थ को समझ पाते।
जवाब देंहटाएंवाजिब सवाल ... इस व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की जिद्द ...
जवाब देंहटाएंजरूरी है इन प्रश्नों का जवाब ... गहरी रचना ...
चाहे लाल हो न नीला
जवाब देंहटाएंपर डंडा रंग नहीं देखता
वो बरसता है .... झंडे उठाने वालों पर
कार्यकर्ता मरता है
कुछ किसी मशान में जलते हैं
तो कुछ दफनाए भी जाते है
इतना सब कुछ होने के बाद भी जनता इन नेताओं के पीछे चलती ही है,
पुलिस के डंडे झेलेगा
जवाब देंहटाएंक्योंकि झंडे और डंडे का एक अनाम रिश्ता है
जहां झंडे होंगे वहीं डंडे भी होंगे
तुम तो आराम से रहोंगे न
jai baba banaras....
कवि बनना विकल्प नहीं अब, पीड़ा छन्दों में बहेगी ही।
जवाब देंहटाएंविशिष्टता दिखाए बिना इंसान इंसान भी नहीं होता है और विषय औरत हो तो क्रांति हो ही जाती है..
जवाब देंहटाएंदीपक बाबा की जय हो
जवाब देंहटाएंमेरे हिसाब से आजकल सबसे कठिन तो इंसान बने रहना है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना ..
डंडा रंग नहीं देखता
जवाब देंहटाएंवो बरसता है .... झंडे उठाने वालों पर
कार्यकर्ता मरता है
कुछ किसी मशान में जलते हैं
तो कुछ दफनाए भी जाते है
ये बस इरादे हैं
पर नेता के तो बुलंद होते जाते हैं
- गंदा है पर धंधा है ...