25 दिस॰ 2011

राजू का जवाबी पत्र

राजू, 
कैम्प कार्यालय : खुंदकपुर
दिनाक : २५ दिसंबर २०११ 

अंधकपुर

दिखिए कैसी विडंबना है कि आपको अपने कुल का नाम अभी तक याद है... जबकि अभी तक कई लोग कुलनाम याद रखते हुए भी अपने कुल को भूले बैठे हैं... और इसके लिए वो उक्त जानकारी गूगल बाबा के साभार प्राप्त कर रहे हैं, और मज़े की बात तो यह है कि तमाम तरह की दिमागी हार्ड डिस्क, पेन ड्राइव के स्पेसे फुल होने के बाद भी उसी में भरने का विफल प्रयास कर रहे हैं जैसे रुकमनी की  ख़ुशी कि भांति. पर अमृत तो चलनी में न रुका है और न रुकेगा...
आपका पत्र प्राप्त हुए कई दिन बीत गए -  सोचते विचारते, कई विचार मन के सागर में, जो अपने लिए शब्द तलाशने उतरे थे, वापिस न पाए और इस खुंदकपुर में कैम्प लगने के कारन खुद पर और खुंदक बढ़ चली गयी.... जो कल सांपला में जाकर भी नहीं उतरी... 
आचार्य, खुद को टुकड़ों में बाँट कर देखना और फिर से टुकड़ों को एकत्र कर अपना एक नया रूप बनाने की कला में आप विशेष रूप से दक्ष हैं ... और ये हुनर मैं भी सीखता रहता हूँ, पर जब अपने ही हिस्से का एक टुकड़ा कोई लेकर उड़ जाए तो बहुत विडंबना होती है... कैसे अपने को पूर्णता एकीकृत करें,.... खासकर तब जब जमीर ही खंड-खंड विभक्त हो. 
दिन छोटे और रातें बड़ी... कार्य करने के लिए हाथ भी कांपते हैं - और सोचने के लिए ये पूस की ठंढी और लम्बी रातें... सोचते रहो. मित्र लोग कहते हैं यार सोचने के पैसे नहीं लगते. 
सबको खुश रखने के चक्कर में इंसान किसी को खुश नहीं रख सकता... या फिर सभी का होने के चक्कर में वो किसी का नहीं हो पाता या धोबी का कुत्ता ... नहीं धोबी और कुत्ते दूना को बहुत बदनाम कर लिया... एक प्रेस का कम्पोजर गर प्रेस छोड़, दुनियादारी निभाने उड़े तो दुनियादारी तो निभा ही नहीं सकता (क्योंकि उसका उसे हुनर नहीं है) और प्रेस में प्रोडक्शन का और कबाड़ा कर के बैठ जाता है. यानि प्रेस का भावुक कम्पोजर न घर का न प्रेस का :) हाँ, यही सब लगभग एक माह से हो रहा है. 
जमीर को बार बार कोसना ठीक नहीं, .... जैसे भी हो नीला या स्याह... सही है. बस होना चाहिए. उस पर प्रशन चिन्ह लगाता ये खुंदकपुर का प्रवास है. कब तक यहाँ ठहरूंगा ... कह नहीं सकता.  ये वो जगह है ... जहाँ खबरें तो प्राप्त होती हैं ..पूर्व की भाँती पर बक बक नहीं कर पाता ... होंठ सिल जाते हैं. 
ये मानसिक कोहरा ... और नसों में दौड़ते खून को जमा देनी वाली मानसिक सर्दी कब तक रहेगी... कह नहीं सकता ... इस खुंदकपुर में कब तक प्रवास रहेगा कह नहीं सकता... शेष और अशेष के लिए दिमाग खुला रखिये और सोचते रहिये... मेरी तरह.

आपका 
राजू खुन्दकी 

12 टिप्‍पणियां:

  1. दिमाक और भी खोलने की कोशिश में, राजू खुन्दकी की सलाह के अनुसार,
    आपका जीडी!

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  2. जय हो
    दीपक बाबा की जय हो.
    सांपला मे आपसे मिलकर अच्छा लगा.
    'हनुमान लीला भाग-१' पर आपकी बात का
    जबाब मैंने 'हनुमान लीला भाग-२' में देने की
    कोशिश की है.वक़्त मिलने पर देख लीजियेगा.

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  3. khunak kis par nikali hai...


    waise phoutu kahati hai ki delli main raju ko sardi lag rahi hai aur sarkar kuch nahi kar rahi hai,,,,

    jai baba banaras...

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  4. सबको खुश करने के चक्कर में ज़िन्दगी का बाजा बज जाता है।

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  5. लाजवाब पत्र का जवाब, लाजवाब से भी आगे। वाह!

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  6. ye kya hal bana rakha hai deepak ji aur ye khandakpur jane ki vajah..... jald bahar aaeeye janab.

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  7. जय हो दीपक बाबा की। पर यह हो कैसे रहा है कि प्रेस कंपोजर की बकबक दुनिया को झकझक कर रहा है।

    और प्रवास से बाहर आइए महाराज उसपर हमारे नीतीश जी का सर्वाधिकार सुरक्षित है, नाराज हो जाएगें।
    जय हो, अजय हो।

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  8. एकदम फ़िरीज़िंग प्वाईंट पर पहुँचाये दे रहे हो बाबाजी।
    सोचने के पैसे नहीं लगते हैं लेकिन जब सोच ज्यादा दुरूह हो जायें तो डाक्टर मोटे पैसे लेकर दिमाग को कम सोचना सिखाते हैं। तुक्का नहीं मार रहा बाबाजी, भुगतभोगी हूँ इन दिमागी डाक्टरों का।

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  9. सब व्यर्थ है न प्राची..

    कहा राजू का जवाबी पत्र कहाँ दीपक बाबा की प्राची.

    बाबा ने धुनी रमाई, सब भूले, छोड़ दिया घर बार
    स्नेहामृत की अभिलाषा ले आई प्राची के पार..
    ले आई प्राची के पार, बाबा ने अलख जगाई
    अब बाबा की लेखों में बस है प्राची पुरवाई......

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.