क्योंकि तुम्हारा जमीर भी तो सुन्न हो गया था..
और मेरा खून - पानी .
जैसे खून का दौरा बंद हो जाना... धमनियों में..
या फिर राजमार्गों पर एक के बाद एक
गाड़ियों का थम जाना..
और जाम की स्थिति का बन जाना..
इस जमीर पर विचारों के जाम होने
और मेरे खून के के पानी बनने में..
बहुत कुछ है प्राची...
क्या क्या बताऊँ तुम्हें.
क्या क्या समझाऊं तुम्हे..
जमीर यूँ ही नहीं सुन्न होता ..
क्योंकि उसे पता होता है -
सुन्न होने की अगली स्थिति क्या होगी..
जानती हो प्राची..
मैं उसे मृत्यु नाम दूंगा..
पर वो जीवित रहता हैं..
खाते है - पीते है ... पैसा कमाता है .. और
पैसे से ओरों का जमीर खरीदते है ..
खुद का जमीर गिरवी रख के ..
प्राची...
क्यों यहीं न..
ये चाँद, ये घटा, ये सावन की छटा ..
किसी चित्रकार की कूची ..
सब व्यर्थ है न प्राची..
सब व्यर्थ है ..
क्योंकि वो चित्रकार
जिसने इतना विशाल चित्र बनाया..
लाल और हरे रंग से इतनी उर्जा और
इतनी वैभवता उसमे भर दी
इन्सानियत और मानवता के शब्दों द्वारा..
उसे मूल्यवान होने का संकेत दिया.
पर और कुछ विस्तार देने हेतु ..
कुछ और ..
कुछ और काले रंग में डुबो कर
अपनी कुची वहीँ कहीं चलाई
अमां यार कभी खुश भी रहा करो. |
और पुत गया जमीर भी.. काले रंग में.
प्राची..
वो दिखना ... महकना ... बंद हो गया..
जमीर मात्र
इन्सानियत और मानवता
को विस्तार देने के लिए..
पुत गया ... फना हो गया
प्राची..
सुनती हो तुम..
गर सुन सको तो ..
नहीं पढ़ लेना.
वाह क्या बकवास है |
जवाब देंहटाएंपर अभी बाकी प्यास है |
दो घूंट और मिल जाए तो --
जीवन की आस है ||
सुन्दर भाव --
बधाई ||
Sab Kuch Saachi.......
जवाब देंहटाएंjai baba banaras....
खून बहे जब रह रह कर,
जवाब देंहटाएंक्यों मरना जीते रह कर।
इस जमीर पर विचारों के जाम होने
जवाब देंहटाएंऔर मेरे खून के के पानी बनने में..
बहुत कुछ है प्राची...
बहुत ही अर्थपूर्ण कविता
बाबा कहाँ चक्कर में पड़े हो ...यह रहे उबले चने...
जवाब देंहटाएंगिलास उठाओं मस्त रहो !
:-)
नन्न, कुछ भी व्यर्थ नहीं है। जरा दूसरे पहलू से सोचो मित्र।
जवाब देंहटाएंयह व्यर्थ नहीं है, इसमें गहन अर्थ है।
जवाब देंहटाएंपहली बार बकवास के बजाय ज्ञान बघारा है !लगे रहो !
जवाब देंहटाएंगहन अर्थपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंऔर पूत गया जमीर भी.. काले रंग में.
जवाब देंहटाएंप्राची..
वो दिखना ... महकना ... बंद हो गया..
जमीर मात्र
इन्सानियत और मानवता
को विस्तार देने के लिए..
पुत गया ... फना हो गया
सार्थक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.
और पूत गया जमीर भी.. काले रंग में……………अब कहाँ ढूँढें और किसे? सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहमारे लिये व्यर्थ नहीं है ये, अमूल्य है।
जवाब देंहटाएंअमाँ यार वाली बात के लिये किसी शेर खान को दोस्त बनाया जाये जो यार को खुश करने के लिये यूँ ही जन्मदिन जैसा मना ले और ’कहे तो आसमां से चांद तारे ले आऊँ’ जैसी पेशकश कर सके। हम जैसों से दोस्ती करोगे तो चाय के लिये भी तरसोगे, जैसे उस दिन तरस गये थे:)
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति ... झंझोड के रख देने वाली ..
जवाब देंहटाएंbahut khub bakbak baba.............
जवाब देंहटाएंवाह वाह बाबाजी, कमाल की रचना है।
जवाब देंहटाएंमैं उसे मृत्यु नाम दूंगा..
जवाब देंहटाएंपर वो जीवित रहता हैं..
खाते है - पीते है ... पैसा कमाता है .. और
पैसे से ओरों का जमीर खरीदते है ..
खुद का जमीर गिरवी रख के ..
प्राची...
सब त कुल समझ में आ गईल लेकिन ई प्राची कवन ह बाबा जी...हर लाइनिये में प्राची..
इस काव्यात्मक बकबक से आप की बकबक को एक नया आयाम मिला है..गहन अर्थपूर्ण बकबक है..उम्मीद है सोमरस के रसास्वादन की अनुभूति के बिना की गयी है ये बकबक...
बहुत ही सुन्दर कृति
जो हम सब ने है बाँची....
उससे भी सुन्दर एक बिंदु..
दीपक बाबा की प्राची.........
जय श्री राम
लग रहा बाबा जी बहुत ही बेहतरीन कविता ... (बाबा जी का ये ट्रांजिशन पीरियड तो नहीं जो कविताई में जमकर छलांग लगे है.)
जवाब देंहटाएं'भय बिन होय न प्रीत गुसांई' - रामायण सिखलाती है
जवाब देंहटाएंराम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है
जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं
तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं
केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कला की नगरी मुंबई लोहू में सन जाती है
राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं
इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है
पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||