जिंदगी सिसकती चलती है - जिंदगी
के शोरो शराबे के बीच.कसम से,
बड़ी ही
बेकार बोझिल सी है ये जिंदगी... कसम से; नोटों की गड्डी माफिक जितना
भी गिनो ९९ या फिर १०१ ही निकलते हैं, कभी १०० क्यों नहीं... उन्हें १००
बनाने के लिए कई बार गिनना पढता है. थूक लगा लगा कर.. थूक न हुई, माना ग्रेस में दिए गए नम्बर हों, जिनके बिना श्याद ही इंटर हो
पाती.
एकटक लगा
कर देखते रहना - एक ही फिल्म को कितनी ही बार, टीवी पर; और एक खास सीन पर पूछना ... यार ये हेरोइन कौन है... कसम से - कुछ
अलग सा है... बता सकती हो क्या...
और वो भी
झुनझुन्ना कर जवाब देती, जैसे तुम्हे कुछ मालूम नहीं, कुछ भी नहीं, ये मुआ चेनल पिछले ३ महीने में कम
से कम ८ बार ये फिल्म दिखा चूका है, और इसी सीन पर तुम प्रश्न दाग
देते हो - इस हीरोइन का नाम क्या है... गज़ब की एक्टिंग है.... तंग आ गयी मैं तो,
सिगरेट
पता नहीं चलता कब खत्म हो गयी, तुम बेकार में फिल्म की
बारम्बारता का इतना ध्यान रखती हो, तो कम से कम सिगरेट के पैकेट का
ध्यान रखा करो ... देखो, अब पता चला - ये 'लास्ट' थी, और अंतिम कश भी ढंग से नहीं लिया....
सही में, अरमान मन में रह गए, .... बिलकुल ..मालूम होता कि लास्ट सिगरेट है तो फैंकने की जल्दी न
करता ... और गोल्डन कश को कम से कम सिल्वर की तरह तो इस्तेमाल करता.
समय की
परतें ख़ामोशी ओढती चलती है, और जिंदगी दूसरों का ढोल बजाती -
शोरो-शराबे के साथ;
जिंदगी -
बेकार सी क्यों है, क्यों नहीं सलीका है उसे.... जीने का..
नोट
गिनने का, ९९ को १०० बनाने का;
गोल्डन
चांस को झटकने का, कम से कम सिल्वर पर ही संभल जाने का,
बातों को
थोड़ी पोलिश कर चम-चमा कर सामने रखने का,
अरे रमेश
- भाई, क्या हम लोग आठवीं कक्षा में इकट्ठे नहीं पढते थे, रमेश, ऐसे क्यों देख रहे हो भाई, माना की गलती हुई थी मुझसे .... पर इतनी भी क्या नाराज़गी, देखो मैं भी जीवन में ओरों की तरह कामयाब रहा, मेरी भी एक बीवी है, और बच्चे भी हैं, अपना घर है;
रमेश ...
यूँ क्यों गुमसुम हो, जवाब क्यों नहीं देते, भाभी को लेकर घर कब आ रहे हो; चलो - तुम्हे एक कप चाय पिलाता
हूँ;
छोडिये
बाऊजी, इ बताइये जाना कहाँ है, मैं तो निरा अनपढ़ हूँ, कभी सकूल गया ही नहीं, और आप आठवी जमात की बात कर रहे
हैं, इन्हा रक्सा चलाता हूँ...
और वह
फिर चल देता है... सर झटक कर..... कसम से सरकार भी कितनी जल्दी सिगरेट के रेट बढा
देती है- माने खुदा साल दर साल उम्र बढाता चलता है, ऐसा लगता है जैसे, अभी पिछले दिनों ही 'उसने' उसे पहचाने से मना कर दिया था, जब 'उसके' पापा ने उसे दुनिया का दस्तूर समझाते हुए ..... दूर एक करोड़पति
रिश्तेदार के यहाँ बहु बनने का हसीन सपना दिखाया था. वो फिर से झुकी कमर को सीधा करने का प्रयास करते हुए चलने लगता है.
उफ़ ....
वक्त पर
लोगों को पहचान लेने का भी सलीका, एकदम - फटाक से;
समय की
परतें - ख़ामोशी - लाचारी और जिंदगी सिसकती हुई चलती है.
सुसरा
हाथ जला गया, वो तुरंत सिगरेट का टुकड़ा फेंकता है जो
हाथ जलाने की हद तक आ गया था; और गोल्डन कश का मलाल रह जाता
है...
मोबाइल
बजता है- सुनाया जाए क्या हालचाल है - तुम्हारे बॉस के साथ जो खिटपिट थी - उसका
क्या हुआ; और वो पीओंन - जो तुमसे गाली गलौच कर के
गया था - उसके खिलाफ क्या एक्शन हुआ - कुछ भी नहीं - तुम भी न - ये फकीरी का लबादा
उतारते क्यों नहीं - जो कुछ तुम नहीं हो - वो बनने की कोशिश क्यों करते हो ; तुम्हारी आवाज़ क्यों बदल गयी है; क्या हुआ, .... ऐसा क्या है जो छुपा रहे हो; ठीक है मत बताओ; एक मेहरबानी करो - घर चले जाओ - उसी तीखी आवाज़ के साथ फोन कट जाता है ;
उफ्फ्फ
..
एक रखा
नहीं और तुरंत दूसरी काल बाज़ उठती है - देखो ९ बज गए हैं - जल्दी घर भी नहीं आ सकते - पता नहीं कहाँ धक्के खाते रहते हो- दफ्तर
तो ६ बजे का बंद हो गया और ये महाराज है - पता नहीं खुद में खोये हैं या फिर
दुनिया में खोये हैं...
कसम से - खुद के होने और न होने के बीच; जिंदगी सिसकती चलती है - लयबद्ध - दुनिया के शोरोगुल के साथ. जय राम जी की
यह ब्लॉगर पर डिपेन करता है - सिसकाओ तो सिसकती है, हंसाओ तो हंसती है जिन्दगी।
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट में हंसाने की ट्राई कर के देख लेना।
जीडी - कोशिश की जा सकती है. फिलहाल तो सिसकने दीजिए.
हटाएं:)
हटाएंसुखिया सब संसार है, खाये और सोये
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोये
अन-राते सुख सोवना, राते नींद ना आये
हटाएंज्यूं जल छूटे माच्छरी, तडफत नैन बहाये
जिंदगी भी मस्त, चलती है शोरे शराबे में .
जवाब देंहटाएंनाची है आज देख लो, बोतल शराब में !
आज की पोस्ट टनाटन है बाबा.... टनाटन !
अरे हाँ यह घर के फोन को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए ...बाकी सब ठीक !
मस्ती भरी जिंदगानी तेरी बाबा...
हटाएंबोतले भरी मस्ती जवानी है बाबा..
जवानी - जिंदगानी तक दीवानगी छाई रहे बाबा..
कुछ यार रहे, ये बोत्तले रहे और आबाद रहे
....तेरा ये आश्रम बाबा ...
अच्छी पोस्ट ,दीपक जी
जवाब देंहटाएंvikram7: महाशून्य से व्याह रचायें......
कभी गलती से 'शतक' भी बन जायेगा...!
जवाब देंहटाएंबकिया यह असली जिंदगी का हिस्सा है !
शतक बनाने की जल्दी बनाने वाले को नहीं है... हम काहे हलकान हो जी ..
हटाएंइसे कहते हैं असली बकबक।
जवाब देंहटाएं१०० अपना महत्व खो चुका है, जीवन में ९९ और १०१ अपने आप में पूरे पड़ाव हैं।
जवाब देंहटाएंश्याद ९९ का चक्कर तभी कहा गया है...
हटाएंदेखो ९ बज गए हैं - जल्दी घर भी नहीं आ सकते - पता नहीं कहाँ धक्के खाते रहते हो- दफ्तर तो ६ बजे का बंद हो गया और ये महाराज है - पता नहीं खुद में खोये हैं या फिर दुनिया में खोये हैं...
जवाब देंहटाएंjab tak aaye tab tak wo post likh kar chale gaye....
jai baba banaras....
इंटेलेक्चुअल सी पोस्ट...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति बेजोड़
अपकी हमारी सबकी ज़िन्दगी यूं ही चलती रहती है। कभी हम ज़ोरदार कश लगा कर आधी सिगरेट फेक देते हैं, तो कभी आधी कश के लिए तरसते रह जाते है। आलेख की शैली में जादू है।
जवाब देंहटाएंसही है - चने और दांत वाली बात... शैली और जादू जैसे शब्दों के लिए शुक्रिया मनोज जी
हटाएंतुम भी न - ये फकीरी का लबादा उतारते क्यों नहीं - जो कुछ तुम नहीं हो - वो बनने की कोशिश क्यों करते हो ;
जवाब देंहटाएंसारी समस्या की जड़ ये ही है...फकीरी का लबादा इतना फेसिनेट करता है के कमबख्त उतरता नहीं और नतीजा वो जो आपने बताया है...बेजोड़ लेखन दीपक जी...
नीरज
फकीरी का लबादा और फ़कीर होने में भी कितना फर्क है... मन से फकीरी की एक अलग मौज है.
हटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - अंजुरि में कुछ कतरों को सहेज़ा है …………ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंगुरू, ऐसे चौड़े में यारों के किस्से सुनाओगे? :))
जवाब देंहटाएंदू दू महीना गाएब रहेंगे यार .... तो क्या किया जाए.
हटाएंसही जवाब ....
हटाएंज़िन्दगी की वक्र रेखाओं के मध्य ऐसी ही बातें चलती हैं
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी बकबक आपके ब्लॉग पर आना सार्थक सिद्ध हुआ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है :-)
जवाब देंहटाएंबकबक बकबक बकबक बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!
यह ढिशूम वाली पोस्ट है. जो संजीदा होकर लिटरेचर फेस्टिवल में गुलज़ार को सुनकर आयें उनके लिए तो कम से कम है ही !!
जवाब देंहटाएंढिशूम वाली पोस्ट
हटाएंसंजीदा
लिटरेचर फेस्टिवल
गुलज़ार
:)
वाह मनोज जी...
:)
हटाएंये बकबक कब बकबक की श्रेणी से निकल कर जीवन की सच्चाई में बदल जाती है ... लाजवाब पोस्ट ....
जवाब देंहटाएं"खुद के होने और न होने के बीच; जिंदगी सिसकती चलती है - लयबद्ध"
जवाब देंहटाएंसूत्र वाक्य सा... एक बार पढ़ते ही लय के साथ कंठस्त हो गया!
ज़िंदगी चलती चलती है...बिना गोल्डन कश के. बहुत दिलकश तरीके से लिखा है दीपक जी.
जवाब देंहटाएं:)....:)
जवाब देंहटाएंbadiya hai...
गोल्डन कश
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