हमारे घर के पास ५९ हेकटर में फैला हुआ ये पार्क है जिसमे पुराना एक जोहड है जिसे अब झील की संज्ञा दी गई है, माने तिहाड़ झील. मैं ये दावा बिलकुल नहीं करता कि मैं सुबह इस पार्क में सैर करने जाता हूँ, जब मैं जाता हूँ, उसे विद्वजन सुबह का नाम नहीं दे सकते. पर मेरे जाने के वक्त भी कोहरा था.... माने जयपुर में छाया हुआ रुश्दी प्रसंग... जयपुर में बाकि क्या हुआ ... उ न मैं जानता हूँ न ही कोई मेरे जैसा 'गण' जानता होगा. इस वायदा है.
गणतंत्र है या फिर 'गनतंत्र' ... मैं कह नहीं सकता ... मैं चाहता हूँ आप खुद ही महसूस कीजिए. मेरी तरफ से एक आइडिया है जरूर - आज न तो ये गणतंत्र न गनतंत्र - ये
गुणातंत्र है... के
गुणा - जितना आप के पास है उतने ही
गुणा. गर पैसा तो पैसा से
गुणा कर सकते है और गर बहुबल या शोरत है तो उससे भी... चलेगा. जमीन और वोट का हिसाब किताब पंडित लोग बता सकते हैं, विधायकी का मोल भी उन्हें ही मालूम.
कोहरा छंट नहीं रहा ... करीब से पता चलता है कि दूर से देखने से ये मात्र वृक्ष लग सकता है पर जरा गौर करेंगे तो ये अपना भारत देश लगेगा. वीरान सा, एकांत, असुरक्षित ... कभी भी कुल्हाड़ी चल सकती है. दूर तक कोहरे की चादर को गर भ्रष्टाचार मानेगे तो इ फोटू और भी जीवंत हो उठेगी - माने पुरे देश में भ्रष्टाचार नामक कोहरे की एक चादर सी चडी हुई है...
एक बुजुर्ग आ कर चले गए, हमारे मन में पहले भी था कि सपने जगाना आसान है -इसे कई कवी लोग आसानी कर सकते है - पर जब सपने सच के धरातल पर नहीं उतरते और आम जनता की जो निराशा उपजती है और आज दिख रही है. चारों तरफ निराशा.... कोहरे माफिक. लीजिए इसी वृक्ष की दूसरी और निकट की स्पष्ट तस्वीर पर गौर कीजिए.
अब लीजिए अब पूरी तरह स्पष्ट हो गई उस वृक्ष की फोटू, कर लीजिए
गुणा = टहनी
गुणा टहनी =
टहनी का घनत्व; या फिर सोचिये पैसा
गुणा पैसा = पैसे का घनत्व ; वोट
गुणा वोट = वोट का घनत्व (सत्ता); जमीन
गुणा जमीन = जमीन का घनत्व (बिल्डर्स) यानी सारा खेल गुणा का है इसमें कहीं भी गण नहीं मात्र
गुणा है... अब गणतंत्र कहें या
गुणातंत्र ..... आप फैसला कीजिए.
२६ जनवरी का परेड देखने जायेंगे - छाती ठोक कर जाइए, पर कहते हैं न जो दीखता है - वास्तविक रूप से वो नहीं होता और जो होता है वो दीखता नहीं... वृक्ष की टहनियों के घनत्व को मत देखिये - देखना है तो देखिये दबंग-नेता-नौकरशाही और व्यापारी के घनत्व को देखिये ... खनकते सिक्कों की आवाज़ को सुनने की कोशिश कीजिए .... आत्महत्या करते जमीर वालों की आह; तिहाड से बाहर निकल बेशर्म मुस्कराहट बिखेरते जमीर बेच चुके नेताओं के कमीनेपन को महसूस कीजिए और एक सर्वे भी हो सकता है ये लोग खाने में नमक का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करते थे; टचवूड. बेशक पूछ लीजिए.
पर अपने ही लिखे शब्द गर घुमते रहे आपके दिमाग में और सोने न दें तो :
अन्ना – ये आमजन है – जो धंधा छोड़ कर तेरे साथ चल पड़े है ....... बेचारे हर जगह पिटे हैं.... कईयों के साथ चले – पर इनके साथ कोई नहीं चलता...लोकपाल बिल आएगा...... या नहीं ...इमानदारी से राज्य चलेगा ... या नहीं...पर चिंता मत करना – ये पब्लिक भूल जायेगी... अन्ना के लिए कभी कुछ कीमती समय निकला था. युवा फिर व्यस्त हो जायेगे....आज परेशान है .... कल फिर इन्ही से साथ - कोंग्रेस का हाथ होगा. शुक्र है ...... पब्लिक है – भूल ज़ाती है.... अगर ना भूलती तो – तो भारत देश के पागलखाने कम पड़ जाते.
कुहरा और घना हो गया है !
जवाब देंहटाएंहमारी जागरूकता ही समाधान है। ध्यान रहे कि तंत्र का काम गण को बेहोश रखना है। लिहाजा,हमें स्वयं ही कुछ करना होगा।
जवाब देंहटाएंबेचारा आमजन ...
जवाब देंहटाएंइस पोस्स्ट पर एक शे’र शेयर करने का मन बन गया
जवाब देंहटाएंये हिन्दू है वो मुस्लिम है, ये सिख वो ईसाई है
सबके सब हैं ये-वो लेकिन कोई न हिन्दुस्तानी है।
मैथ थोडा कमजोर है, लेकिन लेख के जरिए आसान हो गया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
wakai guna tantra hai yah...bahut sundar...
जवाब देंहटाएंजयपुर में जो हुआ वह अप्रत्याशित था, या फिर कह सकते हैं नियोजित.. खैर हमारा गणतंत्र गुणातंत्र भी है और गिनतंत्र भी...
जवाब देंहटाएंमस्त पोस्ट :)
मैं भी मरूंगा
जवाब देंहटाएंऔर भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे
लेकिन मैं चाहता हूं
कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें
फिर भारत भाग्य विधाता मरें
यानी सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लें
फिर मैं मरूं- आराम से
धूप निकलेगी, धुंध छटेगा..
जवाब देंहटाएंपूरा 100% गनतंत्र तो नहीं है, पर गन बढ़ता जा रहा है, गण कम होता जा रहा है! :-(
जवाब देंहटाएंगण ही नहीं सभी जगह गुण कम होता जा रहा है :)
हटाएंyatra tatra sarvata....
जवाब देंहटाएंjai baba banaras..........
गण-गन-गुणा-गुण बड़ी जटिल तन्त्रता है. :)
जवाब देंहटाएंआपकी खींची हुई इस फोटो का उपयोग मैंने आज की पोस्ट पर उच्चारण नें कर लिया है।
जवाब देंहटाएंक्योंकि यह गूगल छवियों में मुझे बहुत अच्छी लगी थी!
आपका आभार!