दायें बाएं देखता हूँ, कुछ कोशिश जारी रखता हूँ, अपने वजूद को पहचाने की - उस बच्चे मानिंद जो देखता है छूता है - और वस्तु को उसकी प्रकुति के हिसाब से पहचानता है... पर क्या किया जाय कि बच्चे जितनी जिज्ञासा भी खत्म हो चुकी है. फिर किसी उदासीन बाबा की तरह दुनिया को देखता भालता हूँ, कोशिश करता हूँ - समझना चाहता हूँ
मेरे पात्र बैताल की तरह चढ़ जाते हैं सिर और कंधे पर, पूछते हैं हजार सवाल।
मुझमें इतना कहाँ विक्रम जो दे सकूं जवाब ...रोज़ मेरा सिर हजार टुकड़े होता है।
क्या बताऊँ, ये पात्र है, कई बार कहना मान भी जाते हैं - पर इस दीन दुनिया का क्या किया जाए, ये तो रोज ही मेरे वजूद के हज़ार टुकड़े करती है, और मैं रोज मर मर जाता हूँ, और फिर जीवित हो उठ भागता हूँ, गिरता हूँ, संभलता हूँ, फिर भागता हूँ, भागते भागते रुक कर हाँफते हाँफते सोचता हूँ, कि जीवन एक जिद्द है - पूर्ण करना है, आनंद है - परमआनंद होना है, कि रास है - महारास तक पहुंचना है, - जीवित रहना है अत: बहुत कुछ सहना है... और दिन को फिर से एक धक्का लगाना है... कि आज तो जा - कल फिर देखेंगे.... जय राम जी की .
5 अप्रैल 2012
देखन आये जगत तमाशा.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
aaj to ja kal feer dekhegen ye hi to jeevan chakkar hai ....
जवाब देंहटाएंयह जीवन है इस जीवन का यही है,यही है ,यही है रंग रूप .....
जवाब देंहटाएंजीवन का यही है रंग रूप .
जवाब देंहटाएंजीवन इन्ही पात्रों की तरह होने लगा है।
जवाब देंहटाएंकुछ गड़बड़ लग रही है, अगर ऐसा हो और अपने जानने लायक हो तो मेल कर देना दोस्त।
जवाब देंहटाएंये जो है जिन्दगी
जवाब देंहटाएंजै रामजी की।
जवाब देंहटाएंdil laga ke jindagi bade maje se jee jaati hai...
जवाब देंहटाएंjai baba banaras....
जय बाबा बनारस ....जय दीपक बाबा !
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद... लेकिन एक वाजिब सा सवाल....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं♥
प्रिय बंधुवर दीपक बाबा जी
नमस्कार !
मन की उहापोह की अभिव्यक्ति हुई है आपकी इस पोस्ट में …
लगाते रहिए दिन को धक्का … रामजी भला करेंगे …
:)
आपके लिए मेरे दो शे'र प्रस्तुत हैं -
किसे बद्’दुआ दें , किसे हम दुआ दें
हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें
फ़रेबो-दग़ा मक्र मतलबपरस्ती
यही सब जहां है तो तीली लगादें
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जीवन को इस अंदाज़ से देखने पे कशमकश होती है ...
जवाब देंहटाएंजिंदगी रूकती नहीं ...
जवाब देंहटाएंऽ खूब धोबिया पछार मारते है सर जी आप, धड़ाम धड़ाम।
जवाब देंहटाएं