भाई लोगों से दूर हूँ, पर इतना भी नहीं किसी के ह्रदय छुपे दर्द को महसूस न कर पायूं, दिमाग है, बातें घुमड़ घुमड़ आती हैं, और आ रही हैं, खबरे हैं, बैचेन करती हैं, और कर रही हैं.
पानी के हौज़ में बंदरी को उसके बच्चे सहित छोड़ दिया, हौज़ में पानी भरने लगा तो बंदरी ने बच्चे को गोदी में उठा लिए ..... पानी बढ़ते बढ़ते जब उसकी कमर तक आया तो उसने अपने बच्चे को छाती से चिपका लिए, पर हौज़ में पानी बढ़ ही रहा था, और पानी उसकी छाती छोड़ गर्दन तक आ पहुंचा तो बंदरी अपने बच्चे को सर पर उठा कर खड़ी हो गयी जब पानी उसके नाक तक पहुँचने लगा तो एक अजीब बर्ताव नजर आया उस बंदरी के व्यवहार में, उसने अपने बच्चे को हौज़ में पटका और उस पर खड़ी हो गयी, अपनी जान बचने को.
पता नहीं सत्य है या फिर झूठ... कहानी है, कहाँ सुनी मालूम नहीं... किसने सुनाइ मालूम नहीं, पर स्मृति में कहीं न कहीं अंकित है. और आज याद आ रही है.
डिस्कवरी चेनल पर देख रहा था, एक हवाई जहाज कहीं दुर्घटनाग्रस्त हो कर गिर गया, पर राम कृपा से ५-७ लोग बच गए, वो किसी निर्जन द्वीप पर पहुंचे, जहाँ खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं, बहुत अजीब विडंबना थी कि उनमे से एक शक्तिशाली ने दुसरे निर्बल को मार गिराया - और उसका मांस खाने लगा - क्योंकि उसको जीवन चाहिए था, किसी भी शर्त पर.
ये घटनाएं मैंने लिखी, क्योंकि - बहुत याद आ रही थी. क्या आज यही सब नहीं हो रहा. मौके की ताक में हर इंसान बैठा है, गीध माफिक. जरा आप चुके नहीं - बस वही आपका काम ताम समझो.... बात करते हैं - खुदा और ईश की - पर दिल-ओ-दिमाग में हैवान ने कब्ज़ा जमा रखा है. आज हवा में एक अजीब तरह की गंध घुल रही है, जो पहले १० फीसदी थी वो अब ९० फीसदी तक हो गयी है, सब्र/भरोसा < शोहरत और पैसा - पैसा और शोहरत > सब्र/भरोसा ... यही सब. इसी हवा में क्या शालीन और क्या मलीन - सभ्य - असभ्य क्या. सभी शामिल रहे हैं.
वही तो हो रहा आज. क्या सरकार क्या घर - क्या कार्यालय/प्रतिष्ठान, क्या मित्र समाज और क्या हमारा ब्लॉग जगत.... हम लोग मौके की तलाश में है, दुसरे को कैसे हीन दिखाया जाए . इतने तो असभ्य कभी नहीं थे हम.
क्यों वहीशी हो गए.
क्यों ? ???
दिल जार जार है, कुछ तो लिखो ... से देखन आये जगत तमाशा तक .....
क्या कुछ नहीं हो गया आप सबके बीच...
विचार कीजिए,
आप सब तो ग्यानी है,
शब्द साधक हैं,
साईं भक्ति करते हैं, मोबाइल पर साईं भजन की रिंग टोन लगाते हैं,
पर सबूरी का अर्थ नहीं जानते,
विचार कीजिए,
कहाँ चूक हुई,
किसने फायदा उठाया
पुस्तक मेले से लेकर उस नारीह्रदय के कथन तक?
क्यों इतने बेहरहम हो गए हम ?
माटी के पुतले देखो कैसे नाच रहे हैं..
जय राम जी की..
माटी के पुतले देखो कैसे नाच रहे हैं..
क्या आज यही सब नहीं हो रहा. मौके की ताक में हर इंसान बैठा है, गीध माफिक. जरा आप चुके नहीं - बस वही आपका काम ताम समझो.... बात करते हैं - खुदा और ईश की - पर दिल-ओ-दिमाग में हैवान ने कब्ज़ा जमा रखा है. आज हवा में एक अजीब तरह की गंध घुल रही है, जो पहले १० फीसदी थी वो अब ९० फीसदी तक हो गयी है, सब्र/भरोसा < शोहरत और पैसा - पैसा और शोहरत > सब्र/भरोसा ... यही सब. इसी हवा में क्या शालीन और क्या मलीन - सभ्य - असभ्य क्या. सभी शामिल रहे हैं.
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
जी आप ने सही चिंता जाहिर की है ! आज सबके पास मोबाईल मिल जायेगा , पर कलम शायद ही !
जवाब देंहटाएंबढिया
जवाब देंहटाएंविषम परिस्थित में अगर, भूले रिश्ते-नात ।
जवाब देंहटाएंजिन्दा रहने के लिए, करता है आघात ।
करता है आघात, क्षमा उसको कर देते ।
पर उनका क्या मित्र, प्राण यूँ ही हर लेते ।
भरे पेट का शौक, तड़पता प्राणी ताकें ।
दुष्कर्मी बेखौफ, मौजकर पाचक फांके ।।
ab jaanvar bhi hum insanon se seekh rahe hain
जवाब देंहटाएंसही लिखा है ..
जवाब देंहटाएंक्यों इतने बेहरहम हो गए हम ?
जब अपने जीवन पर आती है, सारे नियम गोता खा जाते हैं।
जवाब देंहटाएंदीपक जी वास्तव में असभ्य ही हैं हम... सभ्यता तो एक मुखौटा भर है... गिरते मूल्यों पर चिंता चिंतन बन गई है..
जवाब देंहटाएंआइना.... दिखा दिया... आपके इस बकबक में कलम का जादू है,,,,,,सादर
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंशुक्रवारीय चर्चा मंच पर ||
सादर
charchamanch.blogspot.com
आपकी कलम को नमन, आईना है आपकी पोस्ट्स और आपका ब्लॉग. इस धार को बनाये रखना बाबा !!
जवाब देंहटाएंऊपर वर्णित दोनो कहानियों में और नीचे वर्णित हालातों में गंभीर अंतर है। कहानियों में पशु हो या मनुष्य तब तक संवेदना नहीं छोड़ता जब तक उसका अंत नहीं आ जाता। गलत है पर गलत होते हुए भी मजबूरी में कोई मार्ग न होने पर उठाया गया कदम है। वर्तमान असभ्यता कोई मजबूरी नहीं है। लोभ हवश और अपने भीतर की क्षुद्रता है। हम उस बंदरिया से और निर्जन स्थल पर छोड़ दिये गये लाचार मनुष्यों से बड़े पापी हैं।
जवाब देंहटाएंदिल जार जार हो तो बड़ी शानदार पोस्ट निकलती है!
एक बहुत पुराना पंजाबी गाना है, 'जिसने आप तली ते रख ली जान, उसनूं कौन बचा लऊगा' याद आया|
जवाब देंहटाएंफिर त्वाडी पोस्ट ते साड्डा ओरिजिनल कमेन्ट पेश है, जिस विच चोरी दा शेर है
'किस किसको याद कीजिये, किस किस को रोइए,
आराम बड़ी चीज है, मुंह ढांककर सोइए'
हम सब अपने-अपने अवसर की तलाश में हैं। जब मौक़ा मिले चील-झपट्टा मारेंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया :) मुह अल्लाह , दिमाग आरी ,
जवाब देंहटाएंचिल्लाय ईश ,, उतारे मूढ़ी