27 फ़र॰ 2013

पठान यार अम्मिदुल्लाह


मुझे पश्तो नहीं आती पर पश्तो भाषा से बहुत प्यार है. मेरे दादा दादी – नाना नानी आपस में पश्तो में बात करते थे. हालाँकि पश्तो विदेश भाषा रही होगी. क्योंकि हमारी मातभाषा किड़्रकी रही है. वो बोली नहीं थी जैसा मैं घर मम्मी के साथ या श्रीमती के साथ बोलता हूँ – किसी जमाने में वो पूर्ण भाषा ही थी, क्योंकि उसकी अपनी लिपि भी थी जो देखने में गुरुमुखी के साथ मिलती जुलती दिखती है परतुं उससे जुदा है. 
    मुग़लकाल में पश्तो राजभाषा हो गयी होगी और उतरी पश्चिम सीमांत (North West Frontier Provinces - NWFP) इलाके के लोगों ने वही भाषा इस्तेमाल करनी शुरू कर दी होगी... जैसे आज दिल्ली में धीरे धीरे पंजाबी की जगह हिंदी और हिंदी की जगह हिंगलिश और हिंगलिश की जगह पूर्ण रूपेण इंग्लिश लेती जा रही है... माफ कीजियेगा पोस्ट लिखने के लिए जो भूमिका बाँधने लगा था – वो भी अपने आप में पोस्ट से कम नहीं होने जा रही. छोडो – बहुत गंभीर विषय है – पता नहीं कब कोई विद्वान मिलेगा थोड़ी और जानकारी होगी तो पोस्ट बनेगी.
अब इतना जान लीजिए कि पश्तो से मुझे मुहब्बत है क्योंकि मेरे दादाजी और अन्य आदरणीय बुजुर्गों की भाषा थी, लगभग सभी कालकलवित हो चुके हैं पश्तो के साथ.

सर गंगा राम अस्पताल में मनोरोग विशेषज्ञ के केबिन के बाहर में अपनी बारी प्रतीक्षा कर रहा था तो अम्मिदुल्लाह (मैं शायाद नाम का सही उच्चारण कर रहा हूँ) से मुलाकात हुई. २४-२५ साल का एक युवक आ कर मेरे साथ बैठ गया – गर्दन झुका कर. कुछ अजीब तरह से मुझे देखते हुए कहा कि मेक्स हॉस्पिटल से इलाज़ करवाया और ये दवाई में पिछले २ महीने से ले रहा हूँ, पर आराम नहीं आ रहा.
क्या दिक्कत है.
कुछ नहीं मेरा दिमाग खराब हो गया है. दिमाख में कुछ कुछ बजता रहता है. यहाँ पीछे सिर के नीचे कुछ लगता है. अच्छी खासी हिंदी बोल रहा था अम्मिदुल्ला. पर कहीं न कहीं कमी थी, मैंने पूछ ही लिया कहाँ से हो.
उसने तुरंत जवाब दिया अफगानिस्तान से
?
नाम पूछने पर उसने फ़ाइल दिखा दी. पर हिंदी अच्छी बोल रहा था.
भाई अम्मिदुल्लाह तू देखने में पठान नहीं लगता
वो हँसा
तडे माशे (कैसे हो)
मैंने उससे बोले तो उसने तो काफी जवाब दिया – जो मैं नहीं जानता था. पर वो खुशी से बोला कि मैं एक पठान बिरादर के साथ बैठा हूँ,
तुम बस हममजहब को ही बिरादर बनाते हो, हमारे तरह हम वतन को नहीं.
क्या करते हो, कहाँ रहते हो, खाना ?
युनिसेर (यूनिसेफ) में काम कर के १५०० डॉलर पगार है और यहाँ मजहब के लोगों की देखभाल के लिए है. बाकि पाकिस्तान कनाडा आस्ट्रलिया जहाँ जहाँ अफगान शनार्थी हैं उनके बीच काम करने के लिए इन देशों में जाता है. इसके लिए उसे इन देशों किसी वीजा की जरूरत नहीं रहती.
बेतहाशा हंस कर बोला मेरा दिमाग खराब हो गया है.
अरे खान साहेब, जब इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी पगार मिलेगी तो अच्छे अच्छे का दिमाग खराब हो जायेगा ?
नहीं मुझे ख्वाब नहीं होती 
?
नींद नहीं आती
वो, २-४ पेग ले लिया करो नींद बढिया आएगी और ख्वाब एक से एक - मेरा ख्वाब का मतलब अलग था.
नहीं नहीं हराम है मेरे लिए.
हाँ इंसान कटना हराम नहीं है – कह कर मैं मुस्कुराया..
नहीं वो पाकिस्तान का काम है, हम इंडिया के लोगों को कुछ नहीं कहते. उनको काम करने देते हैं.
पर वो तो तुम्हारे मुल्क को बनाने के लिए आये है न – कुछ देने ही आये हैं.
इस बात को वो इग्नोर करता है.
अफगानीस्थान से जो सिख परिवार आये हैं उनके बारे में भी वो बार बार खामोश हो जाता है और उनको इंडिया के लोग बताता है.
जबकि मैं उसे समझाता हूँ कि नहीं ये सिख परिवार कई पीढ़ियों से वहाँ रह रहे हैं और हो सकता है वहाँ के मूल निवासी रहे हों, पर आज वो अल्पसंख्यक है उन पर जजिया लगाया जाता है. ये उनकी हिम्मत है कि अभी तक वहाँ रुके हुए थे.
हैरानी अपनी मतलब की बात तो बड़े मज़े से बताता है और मेरी बात को इग्नोर कर देता है. मामा जी बगल में बैठे है – वो बताते है कि कोई जासूस है पठान हो कर हिंदी - अंग्रेजी इतनी बढिया बोल रहा है.
स्पाई  ??? नहीं नहीं मैं वर्ल्ड वाइड आई टी हूँ
ओके इन्टरनेट
हाँ
बढिया है.
चक्कर है मेरी शादी १५ साल में हो गयी थी, मेरी बीवी मेरी पसंद की नहीं है – मेरे से एक साल बड़ी. छोड़ी उम्र में शादी से मेरा दिमाग खराब हो गया – ब्रिटेन के एक फौजी ने बताया था.
नहीं तुम्हारा दिमाग खराब नहीं हुआ – फौजी गलत था.
मेरे ४ बच्चे है
?
?
हाँ, चार बच्चे
अभी तुम २३ साल के हो और ६-७ साल में चार बच्चे कर दिए.
J
वो हँसता है.
उससे बात करने को मेरा मन नहीं करता. दिमाग खराब कर देती है. मै कहता हूँ, फोन रख दे – दिमाग खराब मत कर.
तुम्हे उससे साथ रखना चाहिए
नहीं, अभी एक मैना (बीवी) और ढूंढ रहा हूँ, दिल्ली में.
फिर, तो उससे भी चार बच्चे पैदा करोगे.
हाँ नाटो की फौज मैं बनाऊंगा J वो बेतहाशा हँसता है.
अच्छा एक बात और बताओ तुम सुन्नी हो या शिया
सुन्नी,
वो
असल बात ये है कि मेरा दिमाग खराब मौलवियों ने कर रखा है.
फिर से बेतहाशा हँसता है,
डॉ वाधवन का असिस्टेंट मुझे अंदर भेजता है.... और में बाए कर के निकलता हूँ, पतली गली से.. पर समझ नहीं आता कि वाकई ही वो व्ही है जो कह रहा है ?

जय राम जी की.
सुझा नहीं कि अम्मिदुल्ला का या फिर उसके आई कार्ड का फोटू मोबाइल पर खेंचू. 

9 टिप्‍पणियां:

  1. @ मनोरोग विशेषज्ञ के केबिन के बाहर में अपनी बारी प्रतीक्षा कर रहा था ..

    मुझे पहले ही शक था...
    अपने पुरविया का क्या हाल है ?
    कोई बात नहीं, ठीक हो जाओगे :)

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  2. बढ़िया पोस्ट, इसे कहते हैं ब्लोग्गेरी :)

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  3. सच में, बात करके जो बात उभर कर आती है वह हजारों विश्लेषणों से अच्छी होती है..

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  4. मजहब के लोगों की देखभाल करने की मासिक पगार पन्द्रह सौ डालर, वल्लाह!!

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  5. हमीदुल्लाह से मुलाकात खूब रही.

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.