इस सेंट्रल पार्क में बहुत
गंदगी थी, झील में पास के गाँव की भेंसे, सूअर पड़े रहते. जहाँ तहां पालतू कुत्तों
की शीट नज़र आती. पर एक पालतू कुत्तों की शिट को नज़र अंदाज़ कर लें यानि नाक रुमाल
से ढकने की बजाय नज़र को रुमाल से ढक दे तो पार्क साफ़ सुथरा मालूम होता है. पार्क
की थोड़ी बदली तस्वीर से नए नए आये एस ओ साहेब खुश हैं. पर अपनी खुशी किस्से बांटे –
सैर करने वाले बुद्धिजीवियों का काम है मीन मेख निकलना. सोचा लोकल मीडिया ‘मोहल्ला4यू’ को ही बुला लिया जाए जो पिछले वर्ष आकर पार्क
में फैली गंदगी को लेकर महकमे की बहुत छिछ्लेदार कर गया था.
सेंट्रल पार्क के इस नए रूप
से परिचय करवाया जाए. एस ओ साहेब से किसी तरह ‘मोहल्ला4यू’ लेनल वालों से संपर्क किया जो गत वर्ष आये थे. और सुबह ११
बजे का समय मिला.
इतर फुलेल लगा कर एस ओ
साहेब सुबह शार्प नाइन थर्टी पार्क के मैन गेट पर थे, कल ही सभी मालियों और चोकिदारों
को तक्सीद कर दिया गया था. मीडिया आ रहा सभी समय पर पहुँच कर अपने अपने में कार्य
में ढंग से लग जाए और राष्ट्रीय खेल ‘सीप’ (उत्तर भारत में ताश का खेल) पर विराम रहेगा.
एस ओ साहेब ने बाइक का
सेल्फ दबाया और रोजाना की तरह पार्क के दौरे पर निकले. पार्क का जो हिस्सा गाँव को
लगता था वहाँ काफी बदबू महसूस हुई.
रामपाल ने बताया कि कुत्ता मरा पड़ा है.
ओह... शिट हटाओ इसे.
कहाँ हटाएँ साहेब.
अरे हटाओ इसे, अभी ‘मोहल्ला4यू’ वाले आते ही होंगे, तुम तो अभी तक किया-धरा एक
बराबर कर दोगे. कुत्ते को मसान के पीछे ले
जा कर सूखे पत्ते इक्कट्ठे कर के आग लगा दे.
ठीक है साब...
अपनी बकरियों के लिए पेडों
की पत्तियां तोड़ते मलखान ने इस वार्ता को सुन लिया.
साहेब ये कुत्ता मेरा था, कल मर गया.
एस ओ साहेब ने उसे घूरते
हुए कहा कुत्ता तुम्हारा था? एक तो तुम लोगों की बकरियों से परेशान होते हैं,
जितने नए पौधे लगाते है ये खा जाती है जहाँ चढ़ नहीं सकती ऊँचे पेडों से तुम
पत्तियां तौड तौड कर ले जाते हो. अब तुमने अपने कुत्ते की बाडी यहाँ पार्क मे सड़ने
के लिए छोड़ रखी है, ... देखो कितनी बदबू आ
रही है. इसे जलाने दो.
नहीं साब ये मुसलमानी कुत्ता है, जलाया नहीं जाएगा.
मलखान ने ‘मुसलमानी’ शब्द
पर इतना जोर दिया कि आस पास उसकी बिरादरी के लोग इक्कठा हो गए, और कुत्ते को जलाने
से मना करने लगे.
अच्छा खासा ड्रामा सा रच
गया.
सामने ‘मोहल्ला4यू’ को देख कर एस ओ साहेब के पैरों तले से जमीन खिसक गयी. पर मलखान का चेहरा खिल उठा. उसे मालूम था, मीडिया की 'निष्पक्ष' रिपोर्टिंग.. जो सदा उनके और उन जैसों की करतूतों को तुष्ट करती है.
कैमरा चालू हो गया. माइक
हाथ में लेकर माया रिपोर्टिंग को तैयार हुई,
कैमरे के चालू होते ही उस कुत्ते से किसी को दुर्गन्ध नहीं आ रही थी, लोग कुत्ते के नज़दीक आ गए केमरा कभी कुत्ते से लेकर मलखान और एस ओ साहेब पर फोकस होता रहा.
माया ने हाथ में माइक लेकर अपनी
अदा में बोलना शुरू किया ...
भारत में एक अल्पसंखयक बिरादरी के कुत्ते का अपमान हो रहा है. उसके पार्थिव शरीर को जलाया जा रहा है. देखा जाए तो तंत्र के एक अंग के रूप में यहाँ एस ओ साहेब उपस्थित हैं. उनके सामने ऐसी उसकाने वाली कार्यवाई की जा रही है.
उधर ‘मोहल्ला4यू’ के ऑफिस में, एडिटर साहेब चौक
गए – लगा भैंस बिया गयी है – अब तीन चार दिन खीस खाने को मिलती रहेगी.
हाँ माया जरा एस ओ साहेब से मामले के बारे में पूछो
एस ओ साहेब आप क्या कहना
चाहते हैं,
देखिये ये कुत्ता मुझे नहीं मालूम किसका है और कब मरा. सुबह माली रामपाल ड्यूटी पर आया तो उसे कुत्ते की बाड़ी मिली. अब दुर्गन्ध इतनी आ रही है तो मैंने सोचा क्यों न इसे जला दिया जाए.
यानि मुसलमानी कुत्ते का
दाह संस्कार करने जा रहे थे ?
नहीं इसमें दाह सस्कार जैसी कोई बात नहीं, बस ‘गंदगी के निपटान’ का यही तरीका ठीक लगा. मुसलमानी कुत्ता तुम कह रहे हो क्या इसकी सुन्नत हुई थी.
माया जरा एस ओ साहेब से
पूछो कि देश में सविधान तहत अल्पसंख्यकों को अपने तरह से खाने-पीने हगने-मुत्तने
का अलग अधिकार मिला हुआ है. तो उनके कुत्ते को जलाया कैसे जा सकता है.
अपनी ही अदा में माया ने
वही एस ओ साहेब के सामने दोहरा दिया.
यहाँ अल्पसंख्यक वाली बात कहाँ से आ गयी. एक कुत्ते की प्राकृतिक मौत हुई है, बस उसी का ‘निपटान’ कर रहे थे. दूसरे, मैंने तो आज तक नहीं सुना की कुत्ता भी हिंदू या मुसलमान होता है. कुत्ता तो बस कुत्ता होता है – कई विशेष इंसानों की तरह.
वहीँ मलखान जो अब तक खामोश था, अपने पक्ष में हवा बनते देख मुखर हो उठा,
नहीं साब, पक्का मुसलमानी कुत्ता था, मैं हमेशा हलाली हड्डी ही इसके आगे डालता था, वो ये बहुत चाव से खाता था. मैंने इसका नाम भी जफर रखा था. इसलिए इसे दफनाना चाहिए.
क्या तुमने इसकी सुन्नत
करवाई थी?
कुत्तों की कभी सुन्नत होती है क्या – माया के पीछे खड़े मलखान ने आँखे तरेरी
तो मरने के बाद पार्क में
फैंक दिया जाता है - बदबू फ़ैलाने के लिए. मैंने इसके निपटान के लिए सोचा तो तुमने
हल्ला मचा दिया. अब कहते हो कि मुसलमानी कुत्ता था. दफना देते हैं.
रामपाल खड्डा खोदो और कुत्ते को सारी जफर को उसी में दफना दो.
माया "मैं जहाँ खड़ी हूँ, वहाँ से
कुछ ही दुरी पर रामपाल फावड़े से खड्डा खोद रहा है. मलखान जफर की मौत से सदमे
में हैं."
माया तुम यहाँ निगाह रखो अभी हमारे साथ कासगंज के मौलवी साहेब, पर्यावरण हित चिन्तक मि. घसाना और पशु चिकित्सक डॉ खरपड़े साहेब जुड चुके हैं
सेंट्रल पार्क में कैसे एक मुसलमानी कुत्ते को जलाया जा रहा था, और हमारी रिपोर्टर माया ने पहुँच कर उसे रुकवाया.. अभी तक आपने देखा, घसाना साहेब बता रहे थे कि जीव को जलाने में कैसे पर्यावरण का नुक्सान होता है....
देखते रहिये ‘मोहल्ला4यू’ पर "जफर की मौत"... शीघ्र मिलते हैं छोटे से ब्रेक के बाद.....
वाह भाई! ब्लॉगरी का इससे उत्कृष्ट प्रमाण अन्य कोई नहीं हो सकता। गजब की पोस्ट, माया को मेरा राम राम कहिएगा।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट :) सही है शर्मा जी, बाकि माया तक आपकी 'हाय हैलो' पहुंचा दी है... राम राम मुख्य मीडिया में नहीं चलता.
हटाएंहा हा हा हा हा , बहुत खूब ,.. सही लगाया है , कितनो के मुह से और न जाने कितनो के कहाँ से धुवा निकल पड़ेगा. सच बात हजम जो नहीं होती ....अब मीडिया के चर्चाकार आपस में चर्चा करते हैं , जफ़र ने जेहाद वेहाद किया था या नहीं ? उसको जन्नत में ७२ कुतिया मिलेंगी या नहीं ? अभी कच्ची गृहस्थी थी इसकी , इसकी कुतिया अब अपने ७-८ पिल्लो के साथ अपना पेट कैसे पालेगी ? क्या सरकार इन पिल्लो के लिए मदद करेगी ? ... एंड ब्ला ब्ला ब्ला
जवाब देंहटाएंSUPEREB DEEPAK JI,
जवाब देंहटाएंCHINTNIY, IS BAK BAK KO SALAAM
jafar ki maut na ho gayee afjal ki fansi ho gayee...
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
लाजवाब प्रस्तुति - जस की तस! जभी मैं कहूँ, सन्नाटा पार्क में इतनी ऊर्जा कैसे भर गई।
जवाब देंहटाएंसन्नाट धोया है आपने।
जवाब देंहटाएंलों जी यहाँ भी मीडिया ने राजनीति शुरू कर दी ...:)
जवाब देंहटाएंइसका जिम्मेदार भी भगवा आतंकवाद को बता देंगे, कर लो क्या करोगे? :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंला-जवाब!! यथार्थ संस्मरण सा लगता है, लगता जैसे कल ही किसी चैनल पर यह रिपोर्ट सुनी हो.......
जवाब देंहटाएंबेचारे रामपाल को ही कब्र खोदनी पडती है. :( सफाई कर्मचारी जो है
mazaa aa gaya
जवाब देंहटाएंदीपकजी,
जवाब देंहटाएंआज अल्पना जी के लेख 'फागुन-धुन' के comments देखते समय आप के बारे में पढ़ने की उत्सुकता हुई। आपका लेख 'जफर की मौत' पढ़ा। वाह! मजा आगया।
मैं अभी ब्लोगिंग के क्षेत्र में नयी हूँ अतः आप से अनुरोध है जरा समय निकाल कर मेरे ब्लोग 'Unwarat.com में आइये। मेरे लेख एवम काहानियों को पढ़ कर अपने बहुमूल्य विचार अवश्य व्यकत कीजिये।
आभार,
विन्नी,