बालक जो तू देख रहा है सब
मिथ्या... जो पढ़ रहा है वो सब माया. जो सुनता है – वो सब बकवास/गल्प कथा माफिक. इन तुच्छ
भौतिक पदार्थों में मन नहीं लगा. ओये पुतर जी कंट्रोल करना सीख. घर की औरतों से सीख जो टी वी के सीरियल देख उसके
पात्रों को तुरंत भुला चूल्हे पर दाल की पतीली चड़ा देती हैं. तू टी वी के सीरियल
देखना सीख. उसके बाद मनन कर कि खलनायक ने नायक के खिलाफ जो भी साज़िश रची, तेरे बाप
का कुछ नहीं गया. उसके बाद खाना पीना नहाना धोना, दारु सुट्टा सब कुछ मिला ही न. इन सीरियल को देखने से तू दुनियादारी
भी सीख जाएगा. कुछ दिन या महिना-एक ख़बरों से छुटकारा पा कर एकता कपूर टाईप सीरियल
पर मन लगा.
तत्पश्चात अन्य ग्यानी पुरुषों
की तरह तू भी मानने लगेगा कि यहाँ प्रभु ने एक तमाशा रचा है – भांति भांति के
किरदार हैं. उन सब को झेलने के बाद भी खाना मिलेगा और हज़म भी होगा. बिस्तर पर ऐसे
किरदारों को ले कर अपनी नींद चौपट करने की जरूरत नहीं है.
धूमिल याद आये :
हर तरफ धुआं है - हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है
अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है- तटस्थता।
यहां कायरता के चेहरे पर सबसे ज्यादा रक्त है
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी उसके लिए,
सबसे भद्दी गाली है
हर तरफ कुआं है - हर तरफ खाईं हैजय राम जी की.
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है
बराबर बात है.. देश के करीब आदमी की परिभाषा अचूक है..
जवाब देंहटाएंअगस्त के आखिर में आपको सब तरफ और हर तरफ के मिथ्या का भान हुआ? जबकि धूमिल को इतना पहले जाने किस-किस का हुआ चुका था? और ये विवेकी ऐसे करीब हुए कि गरीब को गरीब भी नहीं रहने दे रहे, करीब किये ले रहे हैं? हद है.
जवाब देंहटाएंप्रमोद जी, सही कहा आपने, अब गरीब नहीं रहेगा -
हटाएंगरीब सरकारी होगा - सत्ता का खाना और पैसा असरकारी होगा.
सब मिथ्या है
जवाब देंहटाएंतटस्थता ही उपाय है !
औरों के दुख पर दुख बन्द, अपनी बारी की प्रतीक्षा।
जवाब देंहटाएं'धन्य हैं वो मूढ़ जिनको जगत नहीं है व्यापता'.
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है दीपक जी.
दीपक जी आपकी सुंदर प्रस्तुति "सब मिथ्या... सब माया... सब बकवास/गल्प...." से आपके पूर्ण बाबा होने का आभास हो रहा है ... अपनी गदी का दायरा बढायें... ताकि इसका लाभ अधिक लोगों को मिल सके ... :) :)
जवाब देंहटाएंसुरेश जी,
हटाएंबाबा या फकीरा होने के लिए गद्दी का मोहताज नहीं होना पड़ता. बाकि, हिन्दुस्तान में गद्दी सदा से खानदानी रही है. इतिहास पलट लीजिये....
बाकी आजकल की गद्दी रूपये और पैसों की चमक से ही चमकती है कारपोरेट इस्टाईल में. देश के नामचीन बाबा लोगों को ही देख लो.
जहाँ तक लाभ की बात है, तो चिंता मत कीजिए, मौजूदा केंद्र सरकार लाभ ही लाभ दे कर ही जा रही है... संभाल पायोगे लाभ को.... :)
दीपक बाबा जी, शायद में आपके जितनी जानकारी नहीं रखता.... में तो बस इतना चाहता हूँ कि आपके ज्ञान का लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिले ... :)... और मुझे लगता है लाभार्थियो कि संख्या भी बढाने वाली है ? ... हो सका है सारा देश उन लाभार्थिओं में हो ... :) क्योंकि कमाना मुश्किल होता जा रहा है और और शायद सरकारी लाभ पाना आसान हो जाय .... :) :)
हटाएं@कमाना मुश्किल होता जा रहा है और और शायद सरकारी लाभ पाना आसान हो जाय .... :) :)
हटाएंआर्य, इतना पहले ही लिख देते... काहे गद्दी के चक्कर में घसीट लिया.
विवेक जी, प्रमोद जी, मनोज जी, सुरेश जी, दर्शन जी, प्रवीण जी और भारत भूषण जी उत्साह वर्धन के लिए आपना आभार.
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट रचना का प्रसारण कल रविवार, दिनांक 25/08/30 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी| कृपया पधारें |
जवाब देंहटाएंसाभार सूचनार्थ
शालिनी जी, शुक्रिया
हटाएंलिप्त रहकर भी अलिप्त रहने के गुर………
जवाब देंहटाएंधन्य हो बाबा!!
सुज्ञ जी ... आभार.
हटाएंमार सुटया बाबाजी!!
जवाब देंहटाएंगूढ़ ज्ञान प्रक्टिकल उदाहरणों से चंद लाईनों में बरसा दिया, भक्त धन्य हुये :)
धन्य हुए भक्त आश्रम में प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं.
हटाएंन्यौता वसूल पाया, हाजिर होते हैं जल्दी ही :)
हटाएं:)
हटाएंजय हों बाबा ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ,शानदार लेखनी,धारदार लेखनी
बहुत सुंदर रचना तथाकथित समाज के मुह पर तमाचा ---------------।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और प्रभावी...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, गजब का चित्र!
जवाब देंहटाएंअजय जी, सूबेदार साहेब (दीर्घतमा), कैलाश जी और अनुराग जी, उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमतलब बालक ज्ञानी पुरुषों से मिल चूका है ?
जवाब देंहटाएंदादा ,
हटाएंग्यानी/अज्ञानी
कुपुरुष/पुरुष/महापुरुष
मिलना/पाना/खोना....
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उपर उठो दादा... गीत से उपर
संगीत से भी
जमीन से उपर
आस्मां से भी
धरती अम्बर
से उपर
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श्याद मिलन हो पाए.
चिंतित करता चिंतन
जवाब देंहटाएंधूमिल का गहरा चिंतन भारत समाज का दर्पण है ...
जवाब देंहटाएंबाबा जी के दरबार मैं हम हाज़िर है ....बाकी सब कुसल है ...बड़े बड़े ज्ञानी लोग बहुत कुछ कह चुके है ....हम ने कुछ नहीं कहना है ....
जवाब देंहटाएंजय बाबा बनारस ....
व्यथित करती रचना
जवाब देंहटाएंवाह! बाबा जी बहुत खूबसूरत प्रस्तुति के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
बिल्कुल सही कहा
जवाब देंहटाएं