आजकल मॉडल विवेका के मौत नें सभी नौजवान (खासकर महिलाएं जो अकेले रहेती हैं) को विचलित कर दिया है. एक मित्र की ईमेल इस प्रकार है :
मशहूर मॉडल विवेका बाबाजी की मौत के बाद कई बातें सामने निकल कर आ रही हैं। उनके दोस्तों का कहना है कि वह बहुत जिंदादिल लड़की थी और किसी के साथ भी बहुत ही जल्दी घुल मिल जाती थी मगर वह अपनी दुनिया में खोई रहना पसंद करती थी। विवेका काफी समय से अकेलापन महसूस कर रही थी इसलिए उनके दोस्तों का कहना है कि वह एक बच्चे को गोद लेने का मन बना रही थी।
अगर वह ऐसा करती तो शायद आज इस दुनिया में होती|विवेका को उनके टूटते रिश्तों ने काफी परेशान कर दिया था। हर ब्रेक अप के बाद विवेका का मर्दों पर से विश्वास उठता जा रहा था और वह अंदर से टूटती जा रही थी। ब्रेक अप के सदमे से उभरने के लिए उसे भावनात्मक सहारे की बहुत जरुरत महसूस होने लगी थी इसलिए उसने यह तय किया था कि वह किसी अनाथ बच्चे को गोद लेकर उसे सारी खुशियां देगी जो उनके परिवार ने उन्हें दी थी। मगर लगता है शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था जो विवेका इतनी जल्दी इस दुनिया से चली गई.
परन्तु मेरा मन कुछ और कहेता है :
बात सिर्फ विवेका बाबाजी की नहीं, बात हमारी उस लाइफ स्टाइल की है जो हम जी रहे है. अकेलापण सताता है - भयावह होता है, अकेलापण दिन के सुहाने प्रकाश को अन्धकार में बदल देता है. हम लोग नेट पर पर दोस्त दूंदते रहते हैं पर आस पड़ोस के लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं करते. आप सुबह पार्क जाइए, कितने लोग होंगे जो रोज़ आपको उसी समय मिलेंगे, राम राम होगी- सुबह सुबह चेहरे पर मुस्कान आएगी. घर पर सुबह मैड आती है सफाई करने, हम सिर्फ बोस बन कर उससे पेश आते हैं - उसे हंस कर बात नहीं कर सकते क्योंकि उससे हमारी इज्ज़त कम होगी- सुबह दूध वाला आता है: मैं तो कई बार उसको चाय पूछता हूँ, अखबार वाले की इंतज़ार कर रहा होता हूँ- वो मुझे देख कर ही मुस्करा उठता है: अच्छी खासी दोस्ती हो गई है उससे. हर बार चाय पूछता हूँ पर उसने कभी नहीं पि. रास्ते में पनवाड़ी के पास रुकता हूँ - मुझे देख कर खुश हो जाता है. पेट्रोल पम्प - जहां से तेल भरवाता हूँ: वहां का स्टाफ मुस्करा कर मेरा स्वागत करता है: मैं उससे उसके घर का हाल चाल तक पूछता हूँ. प्रेस में जो रिक्शे वाले आते हैं - हरएक को पानी-चाय ऑफ़र करता हूँ - बहुत खुश होते हैं: किसी किसी को पवे के पैसे भी दे देता हूँ. वो लोग ख़ुशी से मुझे सुरती बना कर खिलाते हैं.
प्रेस में लडको को छोटा भाई सम समझता हूँ, सारा दिन मजाक मजाक में दिन निकल जाता है. जिस दिन प्रेस नहीं आता मेरा स्टाफ परेशां रहेता है. उनका मन नहीं लगता. जितने भी मेरे ग्राहक हैं: उनको ये प्रेस अपनी लगती है - यहाँ आते हैं - हम लोग घर परिवार की बात करते हैं और मस्त रहेते हैं.
देखो अकेलापन सिर्फ आपनी नाक से पैदा होता और पुरे वातावरण को दूषित करता है. हमारा दिमाग - सिर्फ नारात्मक हो जाता है और एक आज का नौजवान जब तरकी करके किसी मुकाम पर पहुँचते हैं तो अपने से निचले दर्जे को नीची नज़र से देखते हैं और यहीं उनका अकेलापन शुरू हो जाता है. अगर ऑफिस का पियन अगर मुस्करा कर बात कर दे - मन में संशय हो जाता है कहीं उधर न मांग ले.
मित्रों, में बस एक बात कहेना चाहता हूँ - की मस्त रहो और खुश रहो - सभी अपने लगेगे और अगर उदास और चिडचिडे रहेंगे तो अपने भी पराये लगेगें. जो मिले सब्र से इश्वर का प्रसाद मान कर सवीकार करें - और अगर ज्यादा की उम्मीद हो तो बस प्राथना करो. दूसरों को खुश रखना भी खुदा की इबादत है :
"घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो, यूँ कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये"